कोई गरीब-गुरबा घर-संसारी मर्द-औरत, इस लामनी के सीजन आपके खेत में गेहूं कटाई के बाद खाली पड़े खेत से "बालें" चुगने आवे तो उसको दुत्कारना मत, चाहे वो किसी जाति-बिरादरी का हो| मैंने कोई फुल-टाइम खेती तो नहीं की जिंदगी में परन्तु स्टूडेंट-लाइफ में हर सीजन की छुट्टियां खेतों में काम करते हुए ही कटती थी| आठवीं क्लास से ले फ्रांस आने तक गेहूं निकालते वक्त ट्रेक्टर पर अक्सर ड्यूटी हम तीनों भाईयों में से ही कोई से की लगती थी| दोनों भाईयों की ड्यूटी होती तब तो ऐसा होता ही था परन्तु जिस दिन मेरी ड्यूटी लगती थी तो ख़ास निशानी होती थी खलिहान में आ "अनाज का झलकारा लगवाने वालों" को कि आज तो "फत्तन का बीचला पोता सै कढ़ाई पै", चालो|
वैसे उस दौरान जितने भी म्हारे सीरी रहे सारे ही ख़ास थे मेरे लिए, परन्तु दादा भूंडू चमार मेरे लिए ऐसी बातें लाने की CID था और मेरे पैर में आते ही कहता था कि देख इब लैन लाग जागी| कोई बोर मारने या घमंड की बात नहीं कह रहा परन्तु अगले एक तसला मांगते थे अनाज का तो दो डालता था| परन्तु जो आ जाता कोई फलहरी-फंडी परजीवी तो उसके पीछे तो लठ ले ऐसा पड़ता था कि जैसे खड़ी फसल में आवारा जानवर आन घुसा हो|
दान दो वहां जहाँ से दुआ मिले (सुपात्र को), वहां नहीं जो हरामी (कुपात्र) उसी दान दिए अनाज-धन से शारीरिक-मानसिक व् आर्थिक ताकत पा आप पर ही 35 बनाम 1 रचें| बहम में मत रहियो कि फरवरी 2016 तुमपे किसी मुसलमान या आसमानी ताकत ने किया था, नहीं; इन्हीं उठाईगिरे फंडियों की कारस्तानियां थी सारी| समाज में अगर कोई वास्तव में शूद्र-अछूत-नीच समझे जाने लायक हैं तो ये फंडी-फलहरी|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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