हमारे आध्यात्म व् कल्चर में किसी भी कार्यक्रम का आगाज व् समापन "बोल नगर खेड़े की जय" उद्घोष से होता आया है और युगों-युगों से होता आया है| सिंधु सभ्यता व् हड़प्पा सभ्यता हमारी रही है के पर्याप्त सबूत मिलते हैं आर्कियोलॉजिकल भी व् लिखित भी[ सिंधु व् हड़प्पा खुदाई की साइट्स पर बसासत के लेआउट हमारे पुरखों की अद्भुत नगर-गाम बसाने की कला की धाती हैं| कुछ लोग इनको आज वाले शहरियों मात्र की सिद्ध करने पर लगे हुए हैं जो कि वह बहुत भयंकर भूल कर रहे हैं|
हमारे समाज का इतिहास लिखने वाली शुरूआती खेप के लेखकों ने एक बहुत बड़ी गलती पहले ही कर रखी है कि इनकी लेखनी में हर दूसरा लेखक हमारे इतिहास को ले-दे-के अंत में घुमा-फिरा के माइथोलॉजी में घुसाए मिलता है; जिसको अब रेक्टिफाई करने का हमें एक्स्ट्रा काम करना पड़ रहा है| और इस गलती का मैं खुद भुगतभोगी भी रहा हूँ, मेरे लेखन के शुरुवाती सालों में; क्योंकि अपनों ने लिखा है तो सच ही लिखा होगा का प्रभाव उतरते-उतरते व् गलती अपनों से भी हो सकती है लेखन में, यह समझ थोड़ी देर से बनी|
आप इस आज की खेप वाले लेखक इस बात पर तो
बधाई
के पात्र हैं कि आपने माइथोलॉजी की लाइन से हट के वास्तविक इतिहास लिखने की राही पकड़ी परन्तु इस "नगर" शब्द को ले कर आप भी पहली खेप जैसी ऐसी भूलें कर रहे हो जो शायद हमें रेक्टिफाई करनी या करवानी ना पड़ जाएँ| कृपया इससे बचें| आज की पीढ़ी अपने इतिहास में मिलावट के प्रति फंडियों से भी ज्यादा सतर्क है| यह वक्त की कमी के चलते आप जितना समर्पित वक्त तो हर वक्त नहीं दे सकते होंगे, परन्तु जब भी इन चीजों पर बैठते हैं तो इतनी बारीकी से पढ़ते हैं कि पढ़ाई से पहले एनालिसिस निकाल लेते हैं कि कुणसी खूंट में लिख-बोल गया फलाना लेखक| जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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