Thursday, 22 April 2021

सैद्धांतिक बात कहूंगा - पिछले हफ्ते जिस नेता ने मोदी को किसानों के लिए खत लिखा था!

उनको यह वैश्विक सत्यता दरकिनार नहीं करनी चाहिए कि, "किसी के गहणे धरा इंसान, कदे मालिकों के फैसले ना करवाया करता, कि वो आपको इतनी तवज्जो देगा कि आपके लिखे खतों के अनुसार व् समय रहते एक्शन लेगा| और आपने तो ऐसा राजा गले डाल लिया कि ताउम्र उसकी चौखट पे क़ुरबानी-पे-क़ुरबानी भी चढ़ाते रहोगे तो भी उसकी नजरों में इस लायक तक नहीं बन पाओगे कि क़यामत के वक्त वह तुम्हारे जनाजे पर "नजर-ए-मेहरबानी" तक फरमाने भी झांक जाए|

अर्थात कहीं बहम में मत रहना कि सरकार बचवा दी तो यह आपका कोई बड़ा अहसान मान रहे होंगे; आप तो छोटी सी कुर्सी पे हो; आपके तो पड़दादा को "डिप्टी पीएम" की कुर्सी से ऐसा नेस्तोनाबूत किया था इन्होनें कि पड़दादा जी को उसके बाद बोहड़ के संसद में भी राजयसभा के रास्ते चढ़ना पड़ा था| सच्चाई कड़वी है, आपके इर्दगिर्द वाले बताएंगे नहीं परन्तु हम अपना मानते हैं आज भी कहीं-ना-कहीं तो अंतर्नाद रोता है आपकी "कैद में है बुलबुल" टाइप हालत देख के| आपके पड़दादे के साथ क्या करी थी इन्होनें यह देख के भी इनके साथी हुए जाते हो, और तो और पड़दादा को "नेचुरल संघी" तक बता जाते हो? जबकि इनके किये उस धोखे के अक्स उस अलाही इंसान के चेहरे पर ताउम्र यूँ झलकते रहे जैसे "ठाड्डा हुलिया किसान के पैर नैं उड़ा दिया करै"| इस नोट के शब्दों से ज्यादा इस बात के मर्म को समझना|
थारी एक ही सूरत है अपना भविष्य बचाए रखने की कि बाहर आ जाओ इस सरकार से अब भी| किसान-मजदूर इतना गुस्सा जरूर रखेंगे कि 2024 में शायद थमनें ना हेजैं परन्तु 2029 में बोहड़ आओ इस लायक जरूर रह जाओगे; नहीं तो 2039 तक भी बोहड़ना ना बने| भूलें कोनी, अरड अणखी किसान सैं हरयाणा के, देखा नहीं 2019 में इनपे "फरवरी 2016 का 35 बनाम 1" करने वाले व् उनके साथ जा खड़े होने वाले कैसे चुन-चुन के हराए थे? सबसे बड़ा उदाहरण सीम-के-सीम लगती सफीदों-जुलाना का देख लो, सफीदों दी कांग्रेस को और जुलाना आपको सिर्फ इसलिए कि बीजेपी वाला हराना था| लहर थारी 2019 में ही ना थी, वरना होती तो सफीदों भी जीतते| और बीजेपी को हराने के चक्कर में इन्होनें तुम्हें जितवा दी नारनौंद तक, नहीं तो जिह्सा थमनें उड़ै कैंडिडेट दिया था, वो ताउम्र जीत नहीं सकै था वहां से| न्यूं भी मत ना मानियो कि नारनौंद से कैप्टेन अभिमन्यु थमनें हराया, ना फरवरी 2016 का गुस्सा ही इतना था कि बीजेपी उड़ै किसी और को भी खड़ा करती तो उसको भी ऐसी ही पटखनी मिलनी थी; कटबाढ़े हराए थे सारे; बस खटटर-विज बचगे क्यूकरे; विज तो कांग्रेस की इंटरनल पॉलिटिक्स के चलते बच गया वरना मिल जाती चौधरी निर्मल सिंह या उनकी बेटी को वहां से टिकट, विज तो बिठा दिया था पढ़न बाकियां के गैल ही, ज्युकर रोहतकिया बिठाया| फेर कैप्टेन पर तो डबल-डबल गुस्सा था एक बीजेपी से होने का, दूसरा उनका अपने कौमी बच्चों के प्रति तब तक के रूख का|
थारे चक्कर में 10 नहीं बल्कि 20 सीट खराब गई थी, जो थारी एब्सेंस में जानी ऐसी साइड थी कि बीजेपी की सरकार कम-से-कम रिपीट ना होती किसी भी सूरत से| और अब तो आप जितनी देरी करते जा रहे हो, किसान बीजेपी से भी डबल गुस्से पे आपको धरते जा रहे हैं| और इनके गुस्से का सैंपल 2019 में देख ही चुके हो| आखिर डरते किस बात से हो? संशय किस बात का है? मार के ठोकर बाहर क्यों नहीं आ जाते? इस कौम के भूल ना पड़ा करती; कहावत है इसपे कि, "ये किसी का घाल्या न्योंदा उधारा नहीं राख्या करते" फिर चाहे उल्टा नयोंदने में देर कितनी ही हो जावे| इन्नें तो बख्शें नहीं किसी सूरत में, फरवरी 2016 बहुत भारी हो के गुजरेगा इस जमात पे, चाहे गुजरियों कितना ही वक्त ले के| आ जाओ वक्त रहते बाहर, वही बात 2024 की तो कहता नहीं परन्तु 2029 में लोग थमनें फिर तैं सुन लेंगे इस लायक रह जाओगे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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