Monday, 3 May 2021

अपने धर्म में दान के सदुपयोग बारे सिखी जैसे सुधार करवाईये!

क्योंकि दान में धन-अनाज आप भी इतना ही देते हैं, परन्तु सिखी में दिया उसी मकसद व् नियत में काम आता है जिसके लिए दिया जाता है; उदाहरणार्थ किसान आंदोलन व् कोरोना महामारी| जबकि धर्म के नाम पर आप जिन नर-पिशाचों को दान दे रहे हैं; यही आपकी सबसे बड़ी दुर्गति की वजहें हैं| ना आपके दान से आपका यश बढ़ता, ना मानवता की सेवा में ये उसको लगाते|

हाल-फ़िलहाल धर्म में सुधार की कोई मुहीम नहीं चला सकते हो तो कम-से-कम इतना तो कर सकते हो कि अपना दान अपने पुरखों की भांति अपने हाथों से लगाओ, इन फंडी-फलहरियों को मत इसके खसम बनाओ|
देख लो आपके पुरखे जब अपने हाथों में कण्ट्रोल रख के धर्म-दान करते थे तो हर दस कोस पर गुरुकुल बनाए थे, जाट एजुकेशन संस्थाओं की हर जिले में जाट कॉलेज, जाट स्कूलों के नाम से सिरिजें बनाई थी| परन्तु जब से आपने यह कमांड इन फंडियों के हाथों में सरकाई है, क्या लगा है एक नया टोरड़ा, इन सीरीजों में बढ़ोतरी हेतु? इन पुरखों की खड़ी की इमारतों की मरम्मत में ही लगा हो? सोधी में आईये और अपनी अधोगति के खुद दोषी होने को सबसे पहले करेक्ट कीजिए| कहाँ वो पुरखे थे जिन बारे कहा जाता था कि, "जाट रोटी खिलाएगा तो गले में रस्सा डाल के" और कहाँ तुम उन अक्षरी अनपढ़ ग्रामीण पुरखों की तुलना में ज्यादा पढ़े लिखे व् शहरी होते हुए व् उनसे ज्यादा दान-पुण्य करके भी 35 बनाम 1 झेल रहे हो| कमी सारी इस दान की दिशा व् कण्ट्रोल ढीली छोड़ देने में छुपी है; कण्ट्रोल में लीजिये इसको|
और यह नहीं कर सकते तो गुरुद्वारों में दान करना शुरू कर दो; पड़े बेशक वहीँ रहो धर्म के नाम के जहाँ पड़े हो, यह इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि फिर तुम में से भक्त टाइप स्याणा कहेगा कि देखो धर्म-परिवर्तन की बात कर रहा है| ना मैं सिर्फ दान की दिशा व् कण्ट्रोल को पुरखों की भाँति करेक्ट करने की बात कर रहा हूँ|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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