पहली तो बात:
1) कभी नरेंद्र मोदी को भी मोढ़ बनियों (जो तेल का व्यापार करते हैं) का नेता कह-लिख लिया करो? जिसने पिछले 7 साल से सारी ओबीसी पागल बना रखी कि वह तेलियों वाला ओबीसी है? जनाब धंधा तेल का होना व् तेल निकालने का काम करना दोनों अलग-अलग होते हैं| तेल निकालने वाला तेली होता है, बेचने-खरीदने वाला नहीं; अन्यथा मुकेश अम्बानी, मोदी से भी बड़ा तेली कहा जाना चाहिए| और गुड़ बनाने वाला किसान नहीं, व्यापारी कहा जाना चाहिए|
2) कभी अमितशाह को भी जैनियों का नेता कह-लिख लिया करो? जिसका कि दादा तो बताया भी मुस्लिम से कनवर्टेड|
3) कभी अटलबिहारी वाजपेई को भी ब्राह्मणों का नेता कह-लिख लिया करो?
4) कभी मनोहरलाल खटटर को भी खत्रियों मात्र का नेता कह-लिख लिया करो?
दूसरी बात:
अपनी यह आदत आगे के लिए सुधार लो| क्योंकि अब "के बिगड़ै सै", "जाण दो रै" वाले जमींदार-किसान गए बख्तों की बात हो ली| अब "तुम डाल-डाल, हम पात-पात" वाले तैयार हो रहे हैं; थारी तसल्ली से कलम थोब्बी जागी| और नहीं हुए हैं तो मेरे जैसे बहुतेरे दिन-रात इसी बिपदा में जीवैं सैं कि जब तक उदारवादी जमींदारों के अंतिम बालक तक को थारे "PRO" ना बना देंगे; हमनें चैन नहीं| अगर तुम हमारी कौमों मात्र से होने वाले सर्वसमाज द्वारा स्वीकृत नेताओं को भी सिर्फ हम में से जिस समाज से आते हैं उन तक सिमित करने की कुचेष्टाओं से बाज नहीं आए तो आने वाले वक्त में खुद के समाज के नेताओं के लिए इसी तरह के व्यापक स्तर के सम्बोधन पढ़ने-सुनने की आदतें अभी से डालनी शुरू कर लो|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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