उदारवादी जमींदारी:
1. वर्किंग कल्चर: सीरी-साझी!
2. काम में सहयोग: दोनों एक साथ खेत कमाते हैं|
3. साझी को सुविधाएं: तय सालाना/मासिक पगार, 3 वक्त का खाना, सामर्थ्यानुसार कपड़ा-लत्ता, अनाज-तूड़ी-चारा-बालन-ईंधन का सहारा, भीड़ पड़ी में ब्याह-वाणे में आर्थिक सहयोग|
4. बंधुआ मजदूरी: नगण्य !
5. साझी को संबोधन: गाम के खेड़े के नेग से|
6. वर्णवाद-छूत-अछूत: वैधानिक तौर पर वर्जित हैं, वर्णवादी प्रभाव के अपवाद मिलते हैं|
7. वैश्विक व्यापकता: Google जैसी कंपनी में "सीरी-साझी" वर्किंग कल्चर है|
8. आर्थिक कल्चर: नैतिक पूंजीवाद (यानि ‘कमाओ व् कमाने दो’ यानि ‘अर्थ + मानवता’), बार्टर सिस्टम प्रणाली, मुद्रा प्रणाली|
9. फैलाव: मुख्यत: हरयाणा-पंजाब-दिल्ली-वेस्ट यूपी, दक्षिणी उत्तराखंड व् उत्तरी राजस्थान यानि खापलैंड व् मिसललैंड|
10. आध्यात्मिक कल्चर का आधार स्तम्भ: युगों पुराना मूर्ती-पूजा रहित, परमात्मा के एकरूप को मानने वाला, धोक-ज्योत में औरत को 100% प्रतिनिधित्व देने वाला, वर्ण-जाति के भेदभाव से रहित, अवतारवाद को नहीं मानने वाला, ऊंच-नीच के बर्ताव से रहित, गाम में सबसे-पहले आ के बसने वाले पुरखों द्वारा स्थापित "दादा नगर खेड़े / बड़े बीर / दादा भैये / बाबा भूमिया / जठेरा / गाम खेड़े" व् लगभग इन्हीं सिद्धांतों के आधार बना आर्य-समाज|
11. औरत के प्रति सवेंदना: विधवा विवाह, सतीप्रथा-देवदासी कल्चर की मान्यता ना होना, खेड़े के गौत का लिंग-समानता के नियमानुसार देहल-धाणी-बेटी का गौत भी औलाद का मुख्य गौत हो सकना, 36 बिरादरी की बेटी सबकी बेटी, एक गौत के खेड़े में गाम-गौत-गुहांड का नियम|
12. सोशल इंजीनियरिंग कल्चर: सर्वखाप (खाप/पाल) / मिसल|
13. सोशल सिक्योरिटी, जस्टिस व् समानता का सिस्टम: निशुल्क व् वक्त पर सामाजिक न्याय की उपलब्धता|
14. सामूहिक मानवता पालन: गाम-खेड़े में कोई भूखा-नंगा नहीं सोना चाहिए का मानवीय सिद्धांत|
15. मिल्ट्री कल्चर: हर गाम नियम से अखाड़े पाए जाते हैं, जिनको पुलिस-फ़ौज नरसरी भी कहा जाता है, खाप लड़ाइयों में पहलवानी दस्ते यहीं से तैयार होते आए हैं|
16. सामूहिक जीवन: सामुदायिक सभा व् सामूहिक कार्यक्रमों हेतु छोटे किलानुमी परस/चौपाल/चुपाड़: खापलैंड व् मिसललैंड के हर गाम में कई-कई| आधुनिक RWA, ग्रामीण बगड़ प्रणाली का कॉपी रूप हैं|
17. अमीर-गरीब में आर्थिक हैसियत का अंतर्: पूरे भारत में न्यूनतम|
18. वर्णवाद-नश्लवादी अलगाववाद की प्रकाष्ठा: कभी किसी स्थानीय मजदूर को मात्र दिहाड़ी हेतु खापलैंड छोड़ कर कहीं और जा के कमाने का इतिहास नहीं|
सामंती जमींदारी:
1. वर्किंग कल्चर: नौकर-मालिक!
2. काम में सहयोग: नौकर कमाता, मालिक खेत के किनारे खड़ा हो काम करवाता है|
3. नौकर को सुविधाएं: मासिक पगार!
4. बंधुआ मजदूरी: बहुतायत!
5. नौकर को संबोधन: नाम से जैसे कि रामू या काका !
6. वर्णवाद-छूत-अछूत: इसको श्रेष्ठ-निम्न का आधार माना जाता है!
7. वैश्विक व्यापकता: नामालूम!
8. आर्थिक कल्चर: अनैतिक पूंजीवाद (यानि ‘औरों की कमाई पे धन जोड़ो व् दूसरे की कमाई पर नियंत्रण रखो’ यानि ‘सिर्फ अर्थ’), मुख्यत: मुद्रा प्रणाली|
9. फैलाव: मुख्यत: पूर्वोत्तर, मध्य व् दक्षिण-पश्चिम भारत|
10. आध्यात्मिक कल्चर का आधार स्तम्भ: वर्णवाद आधारित, मूर्तिपूजा करने वाली, धोक-ज्योत में मर्द का वर्चस्व रखना, छूत-अछूत, कुलीन-मलिन का अलगाववाद, अवतारवाद-चमत्कार को मानना|
11. औरत के प्रति सवेंदना: विधवा विवाह की जगह विधवा-आश्रम होना, सतीप्रथा होना,देवदासी कल्चर की मान्यता, हर सूरत में सिर्फ मर्द का गौत ही औलाद का मुख्य होगा, गौत-की-गौत व् चचेरे-ममेरे भाई-बहनों में ब्याह-शादी पाया जाना|
12. सोशल इंजीनियरिंग कल्चर: स्वर्ण-दलित व् 4 वर्ण आधारित|
13. सोशल सिक्योरिटी, जस्टिस व् समानता का सिस्टम: स्वर्ण, शूद्र का धन बलात हर सकता है जैसी मानसिकता पाया जाना|
14. सामूहिक मानवता पालन: सबसे ज्यादा गरीबी के इलाके|
15. मिल्ट्री कल्चर: इक्कादुक्का!
16. सामूहिक जीवन: खापलैंड व् मिसललैंड से बाहर के भारत में परस/चौपाल/चुपाड़ नहीं होती|
17. अमीर-गरीब में आर्थिक हैसियत का अंतर्: पूरे भारत में अधिकतम!
18. वर्णवाद-नश्लवादी अलगाववाद की प्रकाष्ठा: स्थानीय मजदूर को मात्र दिहाड़ी हेतु खापलैंड के क्षेत्रों में बहुतायत में जाना पड़ता है|
उद्घोषणा: यहाँ जो लिखा गया है वह सैद्धांतिक तौर पर है, आज के परिवेश में व्यवहारिक तौर पर तस्वीर क्षेत्र-परिवेश के हिसाब से भिन्न भी हो सकती है इसलिए लेखक किसी भी प्रकार के अपवाद अथवा व्यापकता से इंकार नहीं करता| परन्तु "चंदन के पेड़ पर सैंकड़ों भुजंग लिपटने से जैसे चंदन उसकी शीतलता नहीं छोड़ता" ठीक वैसे ही यहाँ विदित सिद्धांतों की व्यवहारिकता की महत्ता है|
लेखक: फूल कुमार मलिक - जय यौद्धेय!
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