अभी विगत 14 जून को स्वामी रत्नदेव का जन्मदिन था; सन 2012 में उनकी याद में लिखी मेरी यह हरयाणवी कविता मिल गई:
"महिला शिक्षा-सुधारक महर्षि रत्नदेव मलिक"
याणेपन का ध्यानी पुरुष, अनुशासित-स्वाभिमानी पुरुष,
लिए जोग-योग की शक्ति, अवतारया न्यडाणे की धरती|
१) बाबू नै रमाणा चाहया, पर रंग और चढ़ ना पाया,
जातक, जन्नत की जीत म, जोग लिखाएं आया नसीब म|
ज्यूँ-ज्यूँ कद चढता आया, सांसारिक मोह छंटता आया,
बैठ बणां तड़के की पहरी, ध्यान शक्ति तैं सिद्धि सोहरी||
२) घर आळयां नैं अरमान संजोये, सुथरी बहु जग में टोहे,
पर भगत रत्न की राह न्यारी, ग्रहस्थी बणी दुनियां सारी|
ल्य्कड़ पड़या ज्ञान की सगत म, लिए नारी-शिक्षा की अलख जगत म,
खरळ की धरती पै जा डेरा लाया, गाम-गुवांड कै मन-भाया|
३) तीन दशक तक अलख जगाया, नारी जागरूक करूँ यो प्रणायां,
बांगर के खरळ अर कुम्भाखेड़ा को नारी-शिक्षा के धाम बनाया|
चलते-चलते इस राह पै एक दयन, न्यडाणा नगरी दई दखाई,
मेरे लाल नै दुनिया सुधारी, फेरे मेरे तैं-ए-क्यूँ सुरती हटाई?
४) सिद्ध-जोग सिद्ध-पुरुष बण, महर्षि रतनदेव दुनियां म छाया,
दादा नगर खेड़े का कर्जा पुगावण, भौड़ कें लाल बड़े बीर की नगरी आया|
न्यडाणा नैं सुधारूं, नशा-खोरी नै जड़ तैं पाडूँ, गाम को न्यूं फ़रमाया,
बणा कें दस्ता गाभरूओं का, पहरा बिठा दिया नशा-दान्नों का||
५) गैल अभियान छेड़या नारी-शिक्षा का, गुरुकुल बनाऊं उत्तम-दीक्षा का,
गाम-खेड़ा भी गैल कूद पड़या, अपणे लाल की ताल-पै-दे-ताल मल्या|
गाम के जमींदारां नैं धन-दान दिए, कन्या-गुरुकुल की नीम म्ह बढ़-चढ़ कें दिए,
आर्य-समाज के प्रचार हुए, दिन-रात जगे के ठाण हुए||
६) शिक्षा का प्रचार हुआ, चूची-बच्चा सरोकार हुया,
अगड़-बगड़ तैं ले शोर सरकारों लग गया|
एक रूप दादा रत्नदेव आपका, कई जूण सुधार गया,
गा तेरी गाथा हो दादा, पेरिस आळा फुल्ले-भगत भी पार हुया||
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक (फूल मलिक)
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