Thursday, 2 September 2021

जब तक इस 35 बनाम 1 नाम के जिंक पर वॉकल हो कर इसको नहीं तोडा जाएगा!

तब तक फंडी इसके अतिरिक्त सभी वर्गों के लिए मुसीबत बना रहेगा| इसमें 1 फंडी के बिगोए इस जहर की किश्तें भरता रहेगा व् 35 में 34 को फंडी (इन्हीं में तो अपना बन के फंडी घुसा हुआ है) 1 से नफरत-द्वेष के नाम पर इन 34 को झाड़ पे टाँगे रख के इनका खून चूसता रहेगा| हालाँकि काफी सारी दलित बिरादरी तो इस 34 से निकलती जा रही हैं, जिसकी ख़ास वजहें बाबा साहेब अम्बेडकर व् गौतम बुद्ध हैं; परन्तु ओबीसी अभी फंडी के सबसे ज्यादा मोहपाश में चल रहा है|


गजब की बात यह है कि चाहे दलित हो या ओबीसी, यह सबसे ज्यादा 1 के साथ काम करते हैं, मिलके कमाते हैं| सरकारी नौकरियों को छोड़ दें तो इनकी मुख्य कमाई आपस में ही होती है 1 के साथ| सामाजिक-पारिवारिक-आर्थिक-व्यवहारिक-कल्चरल सब रिश्तों में यह 1 के साथ ही सबसे सहज होते हैं| परन्तु फिर भी पता नहीं या तो इन रिश्तों का इनके बीच प्रचार कम है या फंडी का मोहपाश इतना भारी है कि यह 35 बनाम 1 का जिंक नहीं टूट रहा|

इसके टूटने में इतनी देर ना हो जाए बस कि पता लगा तब तक फंडी कल्चर-सिस्टम-आध्यात्म सब चट कर गया| 1 तो कुछ ना कुछ हर हालत में ले मरे शायद परन्तु यह 1 भी क्यों नहीं अपनी अच्छाईयों को 34 के बीच सही से समझा पा रहा? क्या प्रचार की कमी है या फंडी की कान-फुंकाई साफ़ करने की जरूरत है?

यैस, फंडी की कान फुंकाई साफ़ करने की जरूरत है| मैंने व् हमारी टीमों ने हमारे गाम से ही उदाहरण ले के प्रक्टिकली इस बात को साबित व् इसका पटाक्षेप किया है कि फंडी एक तरफ दलित-ओबीसी के कान में फूंकता है कि "देखो, जाट तो दबंग है, हमें समाज के भले के काम भी नहीं करने देता"? और उधर वही फंडी जाट को कहता है कि, "जजमान, थारे बिना म्हारा कौन? म्हारा तो गुजारा ही थारे से चले है"|

और जब हमारी टीम ने जाट व् दलित-ओबीसी को इस पॉइंट पे इकट्ठा किया तो दोनों ने कहा कि बिल्कुल यही कहानी है जी| यहाँ हमारे वालों के कान भरते हैं जाटों के विरुद्ध व् उधर सन्मुख होने पर आप लोगों की चापलूसी करते हैं|

जब से इस बात का भंडाफोड़ किया है, तब से कम-से-कम जिन-जिन दलित-ओबीसी-जाट को इसका पता लगा वह फंडियों से दूर हुए व् आपस में नजदीकी व् अपनापन महसूस करने लगे| जिन गामों में जाट की जगह कोई अन्य कृषक वर्ग जैसे कि रोड़-गुज्जर-राजपूत आदि बहुलता में है तो फंडी वहां दलित-ओबीसी को इनके खिलाफ कान फूंक के रखता है| हालाँकि बहुतेरे ओबीसी-दलित ऐसे भी हैं जो इनके बहकावे में नहीं आते व् कृषक जातियों से अपनत्व को बारीकी से समझते हैं परन्तु फंडी दोनों तरफ फूंक के रखते हैं; दलित-ओबोसी के कृषक के विरुद्ध फूंक के व् कृषक की चापलूसी करके| अत: इनकी "कान फुंकाई" व् "चापलूसी" दोनों को सिरे से नकारिये|
आप भी अपने गामों में इसका प्रैक्टिकल कीजिए व् नतीजे हाथों-हाथ देखिए| कर लीजिए वरना फंडी ने आप लोगों को धरती में दफनाने-गाड़ने का पूरा इंतज़ाम किया हुआ है|

और आपको यह करना होगा, इसलिए नहीं कि यह आपकी आदत है अपितु इसलिए कि यह आपकी जरूरत है| आपकी जरूरत है क्योंकि फंडी तो लोगों के कान फूंकने से बाज आना नहीं और इसके कान फूंके को साफ़ किए बिना आपका काम चलना नहीं| लुगाइयां तो खामखा बदनाम ज्यादा की गई हैं दरअसल धरती के सबसे बड़े चुगलखोर तो यह फंडी हैं|

विशेष: फंडी का किसी जाति-समुदाय विशेष से कोई लेना देना नहीं है; वह कम-ज्यादा मात्रा में हर जाति में मिलता है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: