Monday, 13 September 2021

कल सारागढी दिवस की बधाईयों के साथ इसको ले के तंज भी चले!

कुछ यूं: अंग्रेजों के लिए लड़ने में काहे का विजय-दिवस, काहे की वीरता मनाते हो?

जवाब: अंग्रेजों में तुम में यही फर्क है कि अंग्रेजों ने मात्र 200 सालों में जाट-कौम की बारम्बार वीरता देख इनको "रॉयल ब्लड" कहा और तुम्हारे लिए हजारों साल भी ब्लड बहाने पर चांडाल, शूद्र, मोलड़, गंवार में लपेटते फिरते हो| वो अलग बात है जाटों के पुरखों ने कभी तुम्हारी यह नीच सोच ओढ़ी नहीं|
वह सारागढ़ी को लंदन के रॉयल पैलेस तक में मनाते हैं; 13 बार भरतपुर (लोहागढ़) में जाट सेना से हार खा कर उसको acknowledge करते हैं; क्या तुम कभी "बागडू", "3 बार की दिल्ली फतेह", "सर्वखापों द्वारा राणा सांगा से ले अनगिनत जीतों को कहीं काउंट भी करते हो?" तुम तो पृथ्वीराज चौहान के कातिल मोहम्मद गौरी को मारने वाले सर्वखाप चौधरी दादा रायसाल खोखर तक का क्रेडिट खा के यह बुलवाते हो कि गौरी को पृथ्वीराज ने अँधा होते हुए भी तीर से मारा था; वह भी खुद की मौत के 14 साल बाद?
क्रेडिट चोरो, इन महान योगदानों को तुम ऐसे खा गए, ऐसे में जो हमारी वीरता को याद रखते हैं हम उन्हें भी याद ना रखें, ना मनाएं ताकि तुम्हारी चांडाल, शूद्र, मोलड़, गंवार साबित हो जाएं? तुम तो स्कूल-यूनिवर्सिटियों में अब पूर्ण-रूपेण तथाकथित स्वधर्म की सरकारें होते हुए भी फलों से पैदा हुओं के किस्सों में वीरताएँ ढुँढ़वाते हो; कभी इन वास्तविक वीरों पे अध्याय जोड़ने की हिम्मत दिखा लो; उस दिन बात करना कि हम क्यों सारागढ़ी मनाने में गर्व करते हैं|
9 महीने में तो अंग्रेजों ने भी किसानों की मांगें मान ली थी, तुम किसान आंदोलन दसवें महीने में भी चला जाने पे टस-से-ंमस नहीं हो; झाँक लो अपने गिरेबान में विश्व के नीचतम वर्णवादी अलगाववादी मानसिक आतंकवादियों|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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