Thursday, 23 September 2021

ना तो ये अंग्रेज हैं और ना आप गाँधी; जो आप यह सोचते हैं कि खुद को कष्ट देने के सत्याग्रह से यह पिघल जाएंगे!

आप सोचते हैं कि, "इनकी भाषा में शूद्र का कमाया बलात हर लेने को भी अपराध की जगह हक़ मानने की मनोवृति से पले-बढ़े यह फंडी" आप किसानों को जिस तरीके से सत्याग्रह कर रहे हो इससे आपके हक़ दे देंगे? इनके भळोखे चाहे आत्मदाह कर लो, 2018 में जैसे तमिलनाडु के किसानों ने नग्न हो के प्रदर्शन किया, सुनते हैं उन्होंने मूत्र तक भी पिया; भूख-हड़तालें करी; क्या यह पिघले उनपे?

और खुदा-ना-खास्ता अगर यह यूपी चुनाव फिर से जीत गए तो क्या राह व् हश्र होगा इस आंदोलन का?
तमाम तरह के सत्याग्रह करके भी "आर्थिक असहयोग" पर तो गाँधी को भी आना पड़ता था तो किसान को क्यों नहीं?
इन बातों को देखते हुए, क्या यह सही वक्त नहीं है कि "आंदोलन के अहिंसा से चलाने" के सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए व् यूपी इलेक्शन के नतीजों की बाट देखे बिना; अक्टूबर-नवंबर-दिसंबर 2021 में "आर्थिक असहयोग" लागू किया जाए? इससे यूपी इलेक्शन तक को और जबरदस्त तरीके से प्रभावित करने में मदद मिलेगी|
जय यौधेय! - फूल मलिक

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