सभ्य इंसान ऐसी बातों के दूसरों के ठेके नहीं उठाया करते| और फिर भी उठाने हैं तो जिस चाहे समाज के उठाओ, परन्तु जाटों के मत उठाना; वरना हम थारे पिछोके व् वंश खोल के बैठ गए तो मुंह छुपाने को तो थमनें जगह नहीं मिलनी और ना थारे समाज में इतनी सहनशीलता व् सामाजिकता कि जैसे आप 26 सितंबर की रैली में बोल गए और समाज फिर भी सुन गया, ऐसे आप भी सुन और सह लोगे|
और अनुरोध है इन महाशय की जाति-बिरादरी से इनको सलीका सिखाएं अन्यथा जाट को किसी अन्य समाज की तरह ना लेवें, सारे बहम काढ़ दिए जाएंगे तथाकथित ज्ञानी व् बहमी होने के, वह भी आमने-सामने की डिबेट में|
सनद रहे, आजतक इस धरती पर कोई ऐसा चंद्रमोहन हुआ नहीं जो इन मामलों पे जाट से वाद-विवाद जीत जाए| इसलिए बेहतर है कि जो चीजें व्यक्तिगत होती हैं उनको व्यक्तिगत रहने दें| मेरा दादा कह गया था कि पोता, "वह जाट ही क्या हुआ; जिसके आगे कोई फंडी-फलहरी ज्ञान झाड़ जा| जाट वह थाह है जिसके आगे आ के बड़े-से-बड़े ज्ञानी के ज्ञान मुक जाते हैं"|
थमनें बड़े येन-प्राकेण करके समाज में तथाकथित सर्वज्ञानी होने की छवि बनाई हुई है, परन्तु इस धोखे में "खीर के भळोखे कपास खाने की गलती ना करें" कि लगे जाटों के भी वंश पब्लिक में बताने| मर्यादा रखें व् मर्यादा पाएं|
आमने-सामने मत आना वरना बड़ी खता खाओगे! थारा तथाकथित ज्ञान जाट समाज से इन मामलों में तभी तक सुरक्षित है जब तक राजकुमार सैनी व् रोशनलाल आर्यों जैसों के जरिए शाब्दिक हमले (कचोद) करवाते हो; आमने-सामने में नहीं ठहर पाओगे|
पहुंचा दी जाए यह पोस्ट इन महंत जी को; कि जब चाहें डिबेट कर लें मेरे से; सारे बहम क्लियर कर दिए जाएंगे|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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