Saturday, 2 October 2021

लाल डोरे व् फिरणी के अंदर की सारी सार्वजनिक इमारतों व् जमीनों को गाम/ठोले का साझा ट्रस्ट/सोसाइटी बना के ग्राम-सभा की पंचायत के जरिए उसको वक्त रहते गाम/ठोले के नाम कर लीजिए!

अन्यथा यह सरकार जो नया भूमि-अधिग्रहण कानून व् लाल-डोरे के अंदर प्रॉपर्टी की पैमाइश का सगूफा लाई है इसके तहत और तो छोडो आपके गाम की 100% आपके पुरखों व् आपकी मेहनत-पैसे से आपकी जमीनों पर बनी परस/चौपाल/चुपाड़/थयाई तक को सरकारी खाते चढ़ाने वाली है| और अगर यह इमारतें गाम की सरकार यानि आप लोगों के कण्ट्रोल से निकल सरकारों के हाथों चली गई तो इनमें पंचायत करने, यहाँ तक कि बारात ठहराने को परमिशन हेतु BDO दफ्तरों, पंचायत सेक्रेटरियों के चक्कर काटने पड़ा करेंगे|

ऐसे ही परस/चौपाल के अतिरिक्त गाम की फिरणी व् लाल-डोरे में जितनी जमीनें या प्रॉपर्टी गाम के आपसी समझ वाले साझले कल्चर के तहत साझले प्रयोग/इस्तेमाल हेतु चली खाली या बेनामी आ रही हैं (हालाँकि वह आपसी समझ से गाम की प्रॉपर्टी हैं) उनको भी ऐसे ट्रस्ट/सोसाइटी बना-बना गाम/ठोले के नाम कर लीजिए| कम-से-कम उन जमीनों को तो जरूर कर लीजिये जो गैर-कानूनी तरीके से किसी ने कब्ज़ा नहीं कर रखी हैं, या जो आसानी से कब्जा छोड़ सकता हो| अन्यथा बधाना, जिला जिंद (जींद) में जैसे एक परस पर रोला हुआ था व् वह बाद में केस लड़ के सार्वजनिक सम्पत्ति के तहत गाम/ठोले के नाम करवाई गई (क्योंकि जब पटवार खाने से उसकी पुरानी फर्दें निकलवाई गई तो वह जमीन उस ठोले के नाम मिली); ऐसे-ऐसे केस फिर गाम-गाम सामने आएंगे|
इस नोट के पाठकों से अनुरोध है कि इसको गाम-गाम तक फैलाएं और खासकर उन-उन गाम वाले इसपे जरूर से जरूर एक्शन लेवें; जो शहरों की परिधियों में आ चुके हैं या आने वाले हैं| क्योंकि आप वाली ऐसी प्रॉपर्टियों को तो फिर NGOs के जरिए मैनेज करने हेतु देने के भी प्लान सुनने में आ रहे हैं| और NGO के तहत कैसे-कैसे हमारे कल्चर के दुश्मनों को यह दी जाएँगी, आप कल्पना कर लें| यह सरकार, ना आपका कल्चर समझती है ना कस्टम; इसको आप में सिर्फ गुलाम नजर आ रहे हैं| और इसमें कोई जाति व् वर्ण के आधार पर रियायत के चक्कर में मत रहना; सबकी ऐसी प्रॉपर्टीज लपेटी जानी हैं|
जय यौधेय! - फूल मलिक

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