Friday, 31 December 2021

ऐतिहासिक सर्वखाप किसान क्रांति दिवस - 1 जनवरी 1670!

विशाल हरयाणा के उदारवादी जमींदारों की वह क्रांति जिसने 1907 के "पगड़ी संभाल जट्टा" किसान आंदोलन व् 2020-21 के किसान आंदोलन की भांति ही पूरे विश्व में ख्याति पाई थी व् देश के हालातों व् आयामों को नई दिशा दी थी|

 

उसी क्रांति के नायक यौधेय समरवीर अमरज्योति गॉड-गोकुला जी महाराज व् 21 खाप चौधरियों के बलिदान दिवस (01/01/1670) पर उन ज्योतिपुंजों को कोटि-कोटि गौरवपूर्ण नमन के साथ उनको समर्पित है यह विशेष आर्टिकल!

 

गॉड-गोकुला के नेतृत्व में चले इस विद्रोह का सिलसिला May 1669 से लेकर December 1669 तक 7 महीने चला और अंतिम निर्णायक युद्ध तिलपत, फरीदाबाद में तीन दिन चला| यह हिंदुस्तान के उस वर्ग यानि सर्वखाप की कहानी है जिसमें मिलिट्री-कल्चर पाया जाता है|

 

कहानी बताने का कुछ कविताई अंदाज से आगाज करते हैं:

 

हे री मेरी माय्यड़ राणी, सुनणा चाहूँ 'गॉड-गोकुला' की कहाणी,

गा कें सुणा दे री माता, क्यूँकर फिरी थी शाही-फ़ौज उभाणी!

 

आ ज्या री लाडो, हे आ ज्या मेरी शेरणी,

सुण! न्यूं बणी या तेरे पुरखयां की टेरणी!

 

एक तिलपत नगरी का जमींदार, गोकुला जाट हुया,

सुघड़ शरीर, चुस्त दिमाग, न्याय का अवतार हुया!

गूँज कें बस्या करता, शील अर संतोष की टकसाल हुया,

ब्रजमंडल की धरती पै हे बेबे वो तै, जमींदारी का सरताज हुया!!

यू फुल्ले-भगत गावै हे लाडो, सुन ला कैं सुरती-स्याणी!

 

1) यह खाप-समाजों में पाए जाने वाले मिल्ट्री-कल्चर की वजह से सम्भव हो पाता है कि जब-जब देश-समाज को इनके पुरुषार्थ की जरूरत पड़ी, इन्होनें रातों-रात फ़ौज-की-फौजें और रण के बड़े-से-बड़े मैदान सजा के खड़े कर दिए (एक उदाहरण विगत 28 जनवरी 2021 को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर हुआ था, अभी तरोताजा होगा ही दिमाग में)| आईये जानें उसी मिलिट्री कल्चर से उपजी एक ऐतिहासिक लड़ाई की दास्ताँ, जिसकी अगुवाई करी थी 1 जनवरी 1670 के दिन शहीद हुए 'गॉड-गोकुला जी महाराज' ने|

यह हुई थी औरंगजेब की अन्यायकारी किसान कर-नीति के विरुद्ध गॉड गोकुलाकी सरपरस्ती में|

जाट, मेव, मीणा, अहीर, गुज्जर, नरुका, पंवारों आदि से सजी सर्वखाप की हस्ती में||

 

2) राणा प्रताप से लड़ने अकबर स्वयं नहीं गया था, परन्त "गॉड-गोकुलासे लड़ने औरंगजेब तक को स्वयं आना पड़ा था।

3) हल्दी घाटी के युद्ध का निर्णय कुछ ही घंटों में हो गया था| पानीपत के तीनों युद्ध एक-एक दिन में ही समाप्त हो गए थे, परन्तु तिलपत (तब मथुरा में, आज के दिन फरीदाबाद में) का युद्ध तीन दिन चला था| यह युद्ध विश्व के भयंकरतम युद्धों में गिना जाता है|

4) अगर 1857 अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी का पहला विद्रोह माना जाए तो 1669 मुग़लों की कृषि कर-नीतियों के खिलाफ प्रथम विद्रोह था|

5) एक कविताई अंदाज में तब के वो हालत जिनके चलते God Gokula ने विद्रोह का बिगुल फूंका, इस प्रकार हैं:

सम्पूर्ण ब्रजमंडल में मुगलिया घुड़सवार, गिद्ध, चील उड़ते दिखाई देते थे|

हर तरफ धुंए के बादल और धधकती लपलपाती ज्वालायें चढ़ती थी|

राजे-रजवाड़े झुक चुके थे; फरसों के दम भी जब दुबक चुके थे|

ब्रह्माण्ड के ब्रह्मज्ञानियों के ज्ञान और कूटनीतियाँ कुंध हो चली थी|

चारों ओर त्राहिमाम-2 का क्रंदन था, ना इंसान ना इंसानियत के रक्षक थे|

तब उन उमस के तपते शोलों से तब प्रकट हुआ था वो महाकाल का यौद्धेय|

उदारवादी जमींदार समरवीर अमरज्योति गॉड-गोकुला जी महाराज|

 

6) इस युद्ध में खाप वीरांगनाओं के पराक्रम की साक्षी तिलपत की रणभूमि की गौरवगाथा कुछ यूँ जानिये:

घनघोर तुमुल संग्राम छिडा, गोलियाँ झमक झन्ना निकली,

तलवार चमक चम-चम लहरा, लप-लप लेती फटका निकली।

चौधराणियों के पराक्रम देख, हर सांस सपाटा ले निकलै,

क्या अहिरणी, क्या गुज्जरी, मेवणियों संग पँवारणी निकलै|

चेतनाशून्य में रक्तसंचारित करती, खाप की एक-2 वीरा चलै,

वो बन्दूक चलावें, यें गोली भरें, वो भाले फेंकें तो ये धार धरैं|

 

7) God Gokula के शौर्य, संघर्ष, चुनौती, वीरता और विजय की टार और टंकार राणा प्रताप से ले शिवाजी महाराज और गुरु गोबिंद सिंह से ले पानीपत के युद्धों से भी कई गुणा भयंकर हुई| जब God Gokula के पास औरंगजेब का संधि प्रस्ताव आया तो उन्होंने कहलवा दिया था कि, "बेटी दे जा और संधि (समधाणा) ले जा|" उनके इस शौर्य भरे उत्तर को पढ़कर घबराये औरंगजेब का सजीव चित्रण कवि बलवीर सिंह ने कुछ यूँ किया है:

पढ कर उत्तर भीतर-भीतर औरंगजेब दहका धधका,

हर गिरा-गिरा में टीस उठी धमनी धमीन में दर्द बढा।

 

8) राजशाही सेना के साथ सात महीनों में हुए कई युद्धों में जब कोई भी मुग़ल सेनापति God Gokula को परास्त नहीं कर सका तो औरंगजेब को विशाल सेना लेकर God Gokula द्वारा चेतनाशून्य उदारवादी जमींदारी जनमानस में उठाये गए जन-विद्रोह को दमन करने हेतु खुद मैदान में उतरना पड़ा| और उसको भी एक के बाद एक तीन हमले लगे थे उस विद्रोह को दबाने में|

9) आज उदारवादी जमींदारी (सीरी-साझी कल्चर वाली व् समातंवादी जमींदारी के विपरीत जमींदारी) की रक्षा का तथा तात्कालिक शोषण, अत्याचार और राजकीय मनमानी की दिशा मोड़ने का यदि किसी को श्रेय है तो वह केवल 'गॉड-गोकुला' को है।

10) 'गॉड-गोकुलाका न राज्य ही किसी ने छीना लिया था, न कोई पेंशन बंद कर दी थी, बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुग़ल-सत्ता, दीनतापूर्वक, संधी करने की तमन्ना लेकर गिड़-गिड़ाई थी।

11) हर धर्म के खाप विचारधारा (सिख धर्म में मिशल इसका समरूप हैं) को मानने वाले समुदाय के लिए: बौद्ध धर्म के ह्रास के बाद से एक लम्बे काल तक सुसुप्त चली खाप थ्योरी ने महाराजा हर्षवर्धन के बाद से राज-सत्ता से दूरी बना ली थी (हालाँकि जब-जब पानी सर के ऊपर से गुजरा तो ग़ज़नी से सोमनाथ की लूट को छीनने, पृथ्वीराज चौहान के कातिल मोहम्मद गौरी को मारने, कुतबुद्दीन ऐबक का विद्रोह करने, तैमूरलंग को हराकर हिंदुस्तान से भगाने, राणा सांगा की मदद करने हेतु सर्वखाप अपनी नैतिकता निभाती रही)| और ऐसे में 1669 में जब खाप थ्योरी का समाज "गॉड-गोकुला" के नेतृत्व में फिर से उठा तो ऐसा उठा कि अल्पकाल में ही भरतपुर और लाहौर जैसी भरतपुर और लाहौर के बीच दर्जनों शौर्य की अप्रतिम रियासतें खड़ी कर दी| ऐसे उदाहरण हमें आश्वस्त करते हैं कि खाप विचारधारा में वो तप, ताकत और गट्स हैं जिनका अनुपालन मात्र करते रहने से हम सदा इतने सक्षम बने रहते हैं कि देश के किसी भी विषम हालात को मोड़ने हेतु जब चाहें तब अजेय विजेता की भांति शिखर पर जा के बैठ सकते हैं|

12) हर्ष होता है जब कोई हिंदूवादी या राष्ट्रवादी संगठन किसी भी अन्य नायक के जन्म या शहादत दिवस पर शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते हैं| परन्तु जब यही लोग "गॉड गोकुला" जैसे अवतारों को (वो भी हिन्दू होते हुए) याद तक नहीं करते, तब समझ आता है कि इनकी दोगली नियत है व् यह अपने धर्म के कल्चरों में भी भेदभाव करते हैं| ऐसे में इनकी धर्मभक्ति व् राष्ट्रभक्ति थोथी लगती है| दुर्भाग्य की बात है कि हिंदुस्तान की इन वीरांगनाओं और सच्चे सपूतों का कोई उल्लेख, दरबारी टुकडों पर पलने वाले तथाकथित इतिहासकारों ने नहीं किया। बल्कि हमें इनकी जानकारी मनूची नामक यूरोपीय यात्री के वृतान्तों से होती है। अब ऐसे में आजकल भारत के इतिहास को फिर से लिखने की कहने वालों की मान के चलने लगे और विदेशी लेखकों को छोड़ सिर्फ इनको पढ़ने लगे तो मिल लिए हमें हमारे इतिहास के यह सुनहरी पन्ने| खैर इन पन्नों को यह लिखें या ना लिखें (हम इनसे इसकी शिकायत ही क्यों करें), परन्तु अब हम खुद इन अध्यायों को आगे लावेंगे| और यह प्रस्तुति उसी अभियान का एक हिस्सा है| आशा करता हूँ कि यह लेख आपकी आशाओं पर खरा उतरा होगा|

 

जय यौधेय! - फूल मलिक



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