Monday, 3 January 2022

अधिनायकवाद, सबसे बड़ी मूर्खता है; जिसको फंडी सिद्द्त से पालते हैं!

और खुद तो लोकनिंदा का सबब बनते ही हैं साथ ही देश-समाज-सभ्यता का स्तर भी दुनिया में गिरा देते हैं| मेघालय के राज्यपाल महामहिम सत्यपाल मलिक ने भक्तों के अधिनायक से मुलाकात बारे कल जो कहा है अगर यह सत्य है तो यह अधिनायक अब एक ऐसा बेलगाम घोडा बन चुका है जो अब ना तो इसको बनाने वाली आरएसएस के काबू का रहा और ना किसी शंकराचार्य के बस का| इनके बस का होगा भी तो यह काबू नहीं करना चाहेंगे क्योंकि इनकी अल्पमति अनुसार अब इसको रोकना, इनके लिए इन सबके सर्वविनाश तुल्य यह मानते हैं| अधिनायक नाम का जिन्न खड़ा करते-करते इन्होनें अपनों के ही इतने टेटवे दबाए हुए हैं (वो भी लम्बे समय से) कि इसको रोकने में सक्षम होते हुए भी यह यूं डरते हैं कि अगर इसको रोका तो नीचे वाले भी बोलने लग पड़ेंगे व् इनका खड़ा किया तथाकथित स्वयंसेवकों का जखीरा ताश के पत्तों की भांति बिखर जाएगा| लखीमपुर खीरी वाले अपराधी गृह-राजयमंत्री को नहीं हटाने के पीछे भी तो यही डर है| इसलिए देश डूबो-बिको या बंटों, देश की विश्वपटल पर हंसी उड़े या ठिठोली; इन गिरोह बना के लूट करने वालों को चुप रहना बेहतर लगता है बस इतना ही खोखला राष्ट्रवाद इनका| 


इसी एपिसोड में अमितशाह ने मोदी बारे जो महामहिम को कहा अगर यह भी सत्य है तो अब यह घोडा अपने घनिष्टम मित्र के कहे से भी बाहर जा चुका है| यानि आरएसएस व् शंकराचार्यों को तो छोडो, खुद अमितशाह इसके आगे असहाय हो चुका दीखता है| 


ऊपर से यह सर्वखाप जैसी मध्य-मार्गी संस्था के उभार से इतना घबराते हैं कि दादरी दौरे में कुछ ही किलोमीटर दूर उसी दौरे के दौरान हुई सर्वखाप पंचायत में महामहिम द्वारा शामिल होने बारे पहले मंजूरी दे कर फिर दूरी बनावाना भी इन्हीं फंडियों की चाल की साजिश लगती है| अन्यथा महामहिम को नहीं आना होता तो वह आना स्वीकार ही क्यों करते? फंडियों ने ऐसा करवाया होगा ताकि इनके शामिल होने से सर्वखाप की साख और ज्यादा ना बढ़ जाए, जो कि फंडियों के लिए परेशानी का सबब हो सकती थी| दूसरा इन्हीं ताकतों ने इनको धर्म के डेरे पर जाने से नहीं रोका, क्योंकि यहीं से इनके एजेंडा समाज में उतरते हैं| व् यह जगहें समाज की नजरों में ऊंचीं ले जाना इनका उद्देश्य है| वरना जो तर्क दे कर राजयपाल ने खाप की पंचायत में आने से मना किया, वही तर्क धर्म कीजगह पर जाने बारे बल्कि ज्यादा सटीक बैठता था| 


परन्तु यह 10% वैचारिक भिन्नता को आपसी दूरी की 100% वजह बना के अलग-अलग चलने की आदत इस सर्वखाप फिलॉसोफी को सबसे ज्यादा तंग कर रही है; 90% समान विचार होते हुए भी, यह 10% भिन्नता वाले मिलकर इस बात की वजह ढूंढने व् भविष्य में ऐसा फिर कभी ना हो इसके लिए जरूरी मंत्रणा कर कदम उठाने की बजाए इस सर्वखाप पंचायत में राजयपाल के नहीं आने का मन-ही-मन ठीकरा इस पंचायत के आयोजकों फोड़ राजी हो रहे होंगे| यह शायद ही कोई सोच रहा होगा कि यही कल को तुम्हारे आयोजित कार्यक्रम के साथ बनी तो? यही आदत इस फिलोसॉफी वालों से 35 बनाम 1 झिलवाती है| 


 लेकिन यह कमी ठीक कर ली जाए तो कुल मिलाकर मार्ग खाप-खेड़े-खेतों वाले पुरखों वाले ही सबसे उपयुक्त हैं| "सर छोटूराम मार्ग" अगर चंद शब्दों में कहूं तो| 


जय यौधेय! - फूल मलिक  

No comments: