चौधरी राकेश टिकैत के "चीफ ऑफ़ डिफेंस रावत जी" की अंतिम-यात्रा में जाने पर वहां हूटिंग करने वाले वही बेहूदे वर्णवादी फंडी हैं जिनके यही लच्छण देख के मुंबई में बाल ठाकरे पैदा होते हैं| यह शक्ल से ही पहचान में आ रहे थे कि यह संघी ट्रेंड कीड़े थे| इससे समझ लीजिए कि यह संघी विचारधारा कितनी ज्यादा लीचड़ गंदगी है|
इनका इलाज क्या हो?:
एक तो सबसे पहले तो यह जिन राज्यों से आते हैं, वहां से आए मजदूर भाइयों (जो दलित-ओबीसी-माइनॉरिटी वर्गों के हैं वो खासकर) इनसे अलग करो व् इनको चिन्हित करो| फिर इनको लो बोल के| यह कुत्ते यहाँ भी दूसरा बाल ठाकरे चाहते हैं और यही इनका इलाज है| यह इलाज आज कर लो या 10 साल बाद कर लेना| लेकिन वही बात, बाल ठाकरे की तरह सबको एक मत हांकना; मजदूर भाईयों को इनसे अलग जरूर करना|
दूसरा, अपने दादा महाराज सूरजमल सुजान के स्टाइल में करना, जैसे उन्होंने पानीपत की तीसरी लड़ाई में अपने अपमान का घूँट पी कर, सही वक्त का इंतज़ार किया व् अपमान करने वाले पेशवाओं को उनकी औकात पता लगी व् वापिस पुणे गए थे| पढ़ो कि वह कैसे वापिस गए थे व् दादा महाराज का क्या कैसे रोल था इनकी विदाई में|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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