Sunday, 10 April 2022

रामचंद्र जांगड़ा जी 1956 के पटवारखाने के रिकार्ड्स व् कानून उठा के पढ़ो, शामलाती जमीन मालिकाना जमीन है, पंचायती या सार्वजनिक नहीं!

आपको सार्वजनिक के नाम पर कुछ बंटवाना ही है तो धर्मस्थलों के दान-चंदा की कमाई व् इनमें धर्मप्रतिनिधि की पोस्टों पे ओबीसी समेत दलित-किसान सबको बैठवाईये; इससे ज्यादा भला होगा ओबीसी समेत अन्यों का भी| अकेले ओबीसी को क्यों बहकाते हो?

या वह जमीनें ओबीसी ही क्या दलित व् किसानों तक को वापिस दिलवाइए जो सरकारों ने कॉर्पोरेट के नाम पे दशकों से अवरुद्ध करके रखी हुई हैं परन्तु खाली पड़ी हैं| या उन डेड फैक्टरियों की जमीनें वापिस लिवा लीजिये जहाँ आज कोई प्रोडक्शन नहीं होती|
खामखा क्यों अपने ही कल्चर-किनशिप के दुश्मन बनते हो जिसमें सीरी-साझी कल्चर के तहत; किसान-जमींदार अपने साझियों के ब्याह-वाणों तक में साथ निभाते आए| पहले यह तय कर लो कि यह विचार खुद का है या फंडियों के बिसाहे दूसरे राजकुमार सैनी या रोशनलाल आर्य बनने चले हो? और चले हो तो पहले इन दोनों का हाल देख लो, बीजेपी-आरएसएस ने दोनों इस्तेमाल करके ऐसे फेंक रखे हैं कि पोलिटिकल करियर बचाए रखने के संघर्ष पे जिंदगी आई हुई है इनकी| राजकुमार सैनी जिसको कुरुक्षेत्र से सर्व-किसान समाज मिलके एमपी बनाता था, आज एमएलए की सीट निकालने के लाले हैं|
या स्वाभिमान से ज्यादा हीनता तंग कर रही है? वह हीनता है तो उन लोगों की दी हुई है जो आपको स्वर्ण-शूद्र में बांटते हैं; किसान-जमींदारों की दी हुई नहीं| तो यह हीनता तो इनसे ही सीधी टक्कर लेने से मिटेगी; किसान-जमींदारों के क्यों खसो हो इसके लिए? मत अपने ही स्टेट के कल्चर- किनशिप का इन फंडियों के बहकावे में आ के मलियामेट करो| होंगी बुराई किसान-जमींदारों में भी पर इतनी भी नहीं जितनी कि उनमें हैं जिनके दिमाग से आप चल रहे हो| वही बात, जरा स्वर्ण स्टेटस ही मांग के देख लो उनसे; पता लग जाएगा इनके आगे हैसियत का भी व् बिसात का भी|
जय यौधेय! - फूल मलिक

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