Tuesday, 5 April 2022

मानसिक शूद्रता/दरिद्रता का बदलता चेहरा!

हरयाणवी समाज के जमींदारों का कोई परिवार शहर में निकलेगा या इनमें एक को ढंग की नौकरी लग जाए तो सबसे पहले फंडी-फलहारी के पाखंडों में रिफल-रिफल के भाग लेगा| व् साथ-की-साथ पीछे गाम का सारा कुनबा-ठोला इसमें लिपटवाने की कोशिश करेगा| और यह जो लॉबी बन रही है जमींदारों में, यही आने वाली शूद्र कहलाने वाली है, अगर इन्होनें यह रिफलने नहीं छोड़े तो| इनके घर के मर्द-औरतों ने बैठ के आपस में डाइलॉगिंग नहीं की तो|

जबकि हरयाणवी समाज के मजदूर बिरादरियों का कोई परिवार शहर में निकलेगा या इनमें एक को ढंग की नौकरी लग जाए तो उतना ही फंडी-फलहारी के पाखंडों से दूर हटता व् अपनों को हटाता जाएगा|
अपवादों को छोड़ दो तो देख लो तुम किधर जा रहे हो|
और यह फर्क औरतों की एकाग्रता व् उनके सामूहिक संगठनों का फर्क है| जमींदारों के पास कौन है ऐसा संगठन? आज के दिन इन्होनें खुद में राजनीति व् फंडी-फलहरी की कहबत इतनी ज्यादा डाल ली है कि आदमी माथा पीट-पीट बावला हो जाए| और यह फंडी-फलहरी इनको 35 बनाम 1 के अलावा जो कुछ भी दे रहे हों तो|
जय यौधेय! - फूल मलिक

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