Wednesday, 1 June 2022

सिद्धू मुसेआळे की चार सबसे बड़ी देन!

1 - किसानां के पुत्त मोटरसाइकिल-कारों से उतार वापिस ट्रैक्टर्स पर बैठने में गर्व करने सीखा दिए|

2 - "झोटा" शब्द को इंटरनेशनल ब्रांड बना दिया|
3 - कमा-धमा के गामों में ही ठाठ से बसणा सीखा दिया|
4 - किसान-मजदूर का पुत्त हो के भी इंटरनेशनल लेवल का मास-अपील वाला लेखक-गायक हो सकता है, दुनिया को जता दिया|
आओ इस चीज को पुख्ता करें कि उसके जैसी हत्या दोबारा ना हो समाज में, इसके लिए सरकारों के कानों में आवाज ले जानी है तो वो हो; या गैंग्स में सुलह करवानी हो तो वह भी हो| कम-से-कम इतनी सुलह जरूर हो कि अपनी ही कौम-खून-खूम-पिछोके के लोगों को नहीं मारेंगे|
मैं जब कॉलेज लाइफ में था तो मेरा घर-गाम के पशुओं से इतना लगाव था कि उन पशुओं को गली-घर-गोरे पे जहाँ होता वहीँ, मेरी इतनी पहचान थी कि गाम आळा झोटा तो मुझे कहीं भी देख लेता तो लाड में पूंछ उठा दिया करता व् नाड से खस के कहता कि मेरे खाज कर दे| गाम आळा खागड इसी स्टाइल में खुर्रा मारने की कह देता| एक-आध जलकंड हर जगह होते हैं, जिनसे कोई मेरे बारे पूछता तो कहते कि, "बाकी तो छोरा ठीक सै पर जब देखो डांगर-खागड-झोटयां के चीचड़ तोड़ें जा सै"|
एक बार तो म्हारे गाम आळे झोटे को चाबरी में (सीम लगता गुहांड सै म्हारा) षड्यंत्र के तहत अधमरा करके डाल दिया गया था, झोटे से उठा भी नहीं जाता था, ट्राली में डाल के लाया था गाम व् म्हारे घेर में रखा गया था| एक मेडिकल नर्स की भांति उसकी सेवा मैंने अपनी देखरेख में की थी व् न्यूनतम वक्त में उसको वापिस खड़ा होने लायक बना दिया था| उस दौरान वह झोटा जब भी मेरी गोद में सर रख के सोता तो उसकी आँखों से आंसूं टपकते रहते व् मैं उनको पोंछता रहता|
भाई रै सिद्धू मुसेआळे मैं आज भी वही जाट सूं, बैठा बाहर जरूर सूं; पर आत्मा खाप-खेड़े-खेतों में ही रमती है यहाँ बैठे भी| और धन्यवाद "झोटा" शब्द को ब्रांड बनाने का तो खासतौर से|
जय यौधेय! - फूल मलिक

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