आपसे अपील है आगे जब भी ऐसे बोलने का अवसर मिले तो अडानी के साईलो तोड़ने की बजाए, गाम-गाम गेल अपने गाम की सालाना कैपेसिटी के डेड या दोगुने साइज के व् अपने कण्ट्रोल के साईलो बनाने की अपील करें, तमाम किसान कौम को; उससे अडानियों को ज्यादा चोट लगती है साहेब| और नार्थ इंडिया की किसान कौम यह काम बाकायदा कर सकती है, क्योंकि जब यह कौम गाम-गाम गेल मिनी फोर्ट्रेस टाइप की साझली परस-चौपाल खड़ी कर सकती है तो साईलो गोदाम बनाना कौनसी बड़ी बात है|
और एक और बात, म्हारे लोग साईलो गोदाम भी बना लेंगे परन्तु उसके आगे का एक और लेवल है जिसपे काम हो| और वह है इनके साइलो से सीधा देश-विदेश के ग्राहक तक अनाज पहुंचाने का रास्ता बाँधा जाए| और यह रास्ता बाँध सकते थे उस कार्यक्रम में आये NRI जिसमें आपने साइलो तोड़ने की बात कही| आप उनको अपील करते कि हम यहाँ गाम-गाम साइलो बनवाते हैं व् आप विदेशों में अपने किसान भाईयों को अनाज सीधा बिकवाने का इंतजाम बैठाइये| इंडियन गोवेर्मेंट से इसपे पालिसी मैं बनवाऊंगा कि सिर्फ अडानी का ही नहीं, हमारे इस मॉडल से जमा हुआ अनाज भी विदेशी मार्किट में जाए, इसका प्रावधान हो|
यानि अपनों की लकीर बड़ी करने की बातें कीजियेगा साहेब, खासकर तब जब आपकी कौम पे 35 बनाम 1 की तलवार 24 घंटे लटकी रहती हों तब तो अवश्यम्भावी ही कीजिए|
ये बही-खातों की चोट समझने वाले लोग हैं, और आज तक यही चोटें इनका इलाज बांधती आई हैं| अभी अल्लाह पर नूपुर शर्मा के जवाब के बदले अरब से आई रिएक्शन का तुरता-फुर्ती एक्शन देखा ना?
इतिहास में हमारे ही पुरखे सर छोटूराम की कलम ने यह साबित भी किया हुआ है| जब उस आदमी की कलम चली थी तो कहते हैं कि यूनाइटेड पंजाब के गाम-के-गाम 'बही-खातों के जरिए डंडी मारने वालों' से खाली हो गए थे, व् आज भी हैं भतेरे ऐसे गाम| एक भी नहीं बचा है आज के दिन| हम तो unethical capitalism को ऐसे गायब कर देने वालों के मुरीद हैं|
सर छोटूराम की कलम की दूसरी सबसे बड़ी उपलब्धि रही थी APMC एक्ट| जिसके चलते किसानों ने आढ़त पर 70% कब्जा कर लिया था व् इस फील्ड से भी डंडी मारने व चक्रवर्धी सूधख़ोरी वालों को लगभग खदेड़ ही दिया था| इससे पहले "बार्टर सिस्टम" से किसान ethical capitalism वाला व्यापार करता था, परन्तु उसमें अनएथिकल कैपिटलिज्म के धोतक सूदख़ोरों ने चक्रवर्धी ब्याज चढ़ाने शुरू किये तो सर छोटूराम ने उनको आढ़त के नियमों में बाँध दिया|
व् इसी ताकत से खदेड़ दिया था, इसीलिए तो अब उनके लिए नए बंदोबस्त किये गए हैं| परन्तु यह बंदोबस्त किसान से ज्यादा इनको खुद को मारने वाले हैं| खैर, इस पर विस्तार से फिर कभी|
लबोलवाब यही है कि जो खुद को कहती तो पचासियों बुद्धि है परन्तु उस बुद्धि पर जब-जब अपनी अणख पर चल 56 बुद्धि आगे बढ़ी है, तब-तब गाम-के-गाम बिना लाठी-जेली उठाए इनसे खाली हुए| वह जो गाना चलता है ना गांधी जी पर कि "दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग, बिना ढाल"; इसको किसान-मजदूर के मामले में सही में किसी ने चरितार्थ किया था तो सर छोटूराम ने| ना एक जेली उठवाई लोगों से, ना लठ; बस एक कलम चली थी और सारे unethical capitalism वाले खत्म या बचे तो वो जो ethical capitalism से चले व् किसान-मजदूरों को सूधख़ोरों के चंगुल से 1936 से ले 2014 तक तो कन्फर्म तौर पर आज़ादी रही; यानि 78 साल|
तो जब आपके पुरखों के वैल टेस्टेड व् प्रूव किए रास्ते आपके सामने हैं तो इन पर क्यों जेली-लाठी-गंडासियां उठवाते हो? जेली-लाठी गंडासी फंडी-फलहरी पर उठाने की कह गए थे पुरखे ना कि अडानियों पर| इनको कलम से सीधा किया जाए, ऐसा कैडर खड़ा कीजिये किसान कौम में|
वो कहते हैं ना कि, "हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है; बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा" - हमें ऐसा सिस्टम चाहिए जो एक और सर छोटूराम जैसा दीदावर पैदा कर दे| यह सिस्टम, यह माहौल फिर से बनाने पर कौम को लाइए| वह आ गया तो फिर से 78 साल यानि लगभग 4 पीढ़ियों का ऐसा ही जुगाड़ बाँध जायेगा, जैसा सर छोटूराम ने बाँधा|
और आज इस दीदावर के पैदा होने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा, अडानियों ने नहीं अपितु फंडियों ने लगाया हुआ है| आपके घर-कौम की औरतों-मर्दों के दिमागों में नस-नस में माइथोलॉजी घुसा, घर-कुणबे-कुल-खूम की लड़ाइयों के महाभारती स्टेज सजवा उनके बीच कभी आपस में आँखें तक ना मेलने की दरारें डाल के| यह दरारें टूटें, व् लोग फिर से बैठक-परस-चौपालों में बैठ मंत्रणाएं शुरू करें; इससे निकलेगा रास्ता| जब इनके सरजुडेंगे यानि फिर से सरजोड़ होंगे तो भटाभट लठ भी बजेंगे व् सिस्टम भी हिलेंगे| लठ बजेंगे फंडियों पर व् उनके लठ लगते देख रास्ता छोड़ भागेंगे अडानी-अम्बानी|
इसलिए लठ से पहले कलम चलवाइए जिसकी चोट सर छोटूराम जैसी हो|
अपील: जो कोई इस लेख को माननीय राज्यपाल तक पहुंचावे, मैं उसका धन्यवादी होऊं!
जय यौधेय! - फूल मलिक
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