व् इस तरह एक नंबर के धूर्त पीएम ने देश पर कई गुणा आर्थिक बोझ डाल दिए|
प्राइवेटाइजेशन का बोझ: सारा अनाज सरकारी व् सहकारी कब्जे से निकाल एक अडानी को सौंपा| इसका दुष्परिणाम किसान तो जो भुगतेंगे वह खे भी लें शायद, परन्तु असल भुग्तभोगी तो लम्बे दौर तक आम जनता यानि आम ग्राहक रहने वाले हैं, जो अभी फ़िलहाल कहीं 35 बनाम 1 तो कहीं हिन्दू-बनाम-मुस्लिम में उलझे जाते हैं|
डबल लैंड का खर्चा व् उपजाऊ जमीन का खोह: नए गोदाम नई जगह, यानि नई खेती लायक जमीन का खोह; FCI के गोदामों की जमीन का क्या होगा, जब यह रद्द होंगे? क्या यह जमीन उन गामों को वापिस की जाएगी, जिनसे मिली होगी; वह भी किसानों की ह्रदय-विशालता के चलते, शायद फ्री में सिर्फ सरकारी प्रोजेक्ट लगने के नाम पे व् लोकल्स को रोजगार के नाम पे? क्या सरकार अपने ही व् इनको चलाने वाली सहकारी समितियों के कण्ट्रोल में बात को रख के FCI के गोदामों का ही आधुनिकरण करके वहां साईलो गोदाम बनवा नहीं सकती थी? नहीं बनवाये, क्योंकि नियत तो पूरे देश की पूँजी का एक-दो खसम बनाने की, वही आरएसएस के गोलवलकर वाली सोच कि, "सारे देश की पूँजी अपने 1-2 को सौंप दो व् बाकियों दो जून की रोटी की जद्दोजहद तक ही रखो"| और सौंपे भी तो किसको, किसी हरयाणवी को नहीं, अपितु गुजराती को; जिनसे हरयाणवियों का ना कल्चर मिलता, ना भाषा, ना एथिक्स| ये जो हरयाणे वाले इनके भक्त बनते फिर रहे हैं ना, यह समझो कि तुम्हारी अगली पीढ़ियां तुम्हें ही सबसे ज्यादा कोसा करेंगी|
अगर तुम सिर्फ अपनी या अपने जन्म तक की सोचते हो तो तुम निरे जन्योर हो| जिसने अगली पीढ़ी के लिए अपनों संग सरजोड़ के निर्णय लेने व् चलने नहीं सीखे, वह समूह अंत दिन खुद के साथ "घूं-कुत्त्यां आळी" करवा के खत्म हो जाते हैं धरती से| और यही हो रहा है, कहीं राजी हुए टूल रहे हो कि बस अपना व् अपने परिवार का जुगाड़ कर लिया, बाकी जाति-समूह-कल्चर-किनशिप जाओ भाड़ में| कितने ही गैरों की, उसमें भी सबसे खतरनाक फंडियों की चाटुकारिता में जीवन काट लो, फंडी तुम्हें कभी ना तो बराबर बैठाएंगे व् ना ही उनके कल्चर-किनशिप में तुम्हें स्थान देंगे| वही कल्चर-किनशिप जो कि एकल व परिवार से बाहर हर इंसान की आइडेंटिटी होती है| इसको बचाना फर्ज है या नहीं? या समूह से संबंधित होने की भावना खत्म कर चुके हो अपनी? तो फिर ऑफिसियल तौर पर ही डिक्लेअर कर लो कम से कम कि आज के बाद मेरा कोई समूह-कल्चर-किनशिप नहीं; ताकि हमारे जैसे फिर सिर्फ उन पर फोकस रखें, जिनको समूह-कल्चर-किनशिप चाहिए होती है|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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