Sunday, 30 October 2022

Helloween Day, भूत, भूत का भय और भ्रम!

देशी भाषा में कहूं तो ईसाई लोग इस दिन खुद भूत बन के अपने लोगों, खासकर बच्चों के भीतर से भूत का भय व् भ्रम दूर करने या कहिये कि कम करने हेतु इसको मनाते हैं| और हमारे यहाँ बाबा-फंडी-फलहरी लोग आपको भूत का डर दिखा आपसे क्या-क्या टूणे-टोटके कर क्या-कैसे धन नहीं ऐंठते?

एक ईमानदार धर्म की यही निशानी होती है कि वह अपने समाज के भय-भ्रम दूर करे! ईसाई धर्म इस मामले में आदर्श नहीं तो ईमानदार तो जरूर है| इसीलिए आज 31 अक्टूबर को सारे ईसाई धर्म के देशों में लोग भूतों की रैली निकालते दिखेंगे आपको; अपनी देशी भाषा में कहूं तो "भूतों का रेल्ला"!
आज का दिन यह लोग इसलिए चुनते हैं क्योंकि अगले 3-4 महीने यानि नवंबर-दिसंबर-जनवरी-फरवरी दिन बहुत छोटे होते हैं, रातें 13 से 15 घंटे लम्बी हो जाती हैं; बर्फबारी व् शर्दीले तूफानों की वजह से मानसिक तौर पर भयावह टाइप के माहौल व् प्राकृतिक आकृतियां बनती हैं| इसीलिए यह इस चौमासे कहो या तिमाहे में प्रवेश करने से पहले ही अपने बच्चों को खासकर इस बारे सचेत करते हैं व् उनको मानसिक रूप से मजबूत करते हैं|
यह आकृतियां ठीक वैसे ही होती हैं जैसे हमारे यहाँ रातों में खेतों में पानी दे रहे किसानों-मजदूरों को कभी पेड़ों तो कभी कृषि औजारों की वजह से जंगली जानवरों से ले कीड़े-मकोड़ों तक की आकृतियां बन जाया करती हैं व् अनजान व्यक्ति उनको भूत मान बैठता है| आप रात के वक्त या मुंह-अँधेरे कच्चे रास्ते खेतों में जा रहे हों, ढाब के पौधे हवाओं के चलते लहरा रहे हों तो बैटरी की लाइट या बहुत बार चाँद की चांदनी की वजह से आभास देती है कि जैसे कोई सांप लहरा रहा हो! व् ऐसे ही बन जाने वाली अन्य आकृतियां!
Helloween को मनाने की छोटी-बड़ी और भी वजहें हैं परन्तु सबसे बड़ी व् मुख्य वजह यही है| एक ख़ास बात देखिये, यह कृषि आधारित त्यौहार है ईसाईयों का परन्तु इसको मनाता हर ईसाई है, चाहे शहरी हो या ग्रामीण| यह सबूत है कि कल्चर यानि कल्ट यानि खेती से निकलता है; जबकि हमारे यहाँ फंडी इसको खेती को छोड़ बाकी कहाँ-कहाँ से निकला नहीं बताते?
यह अपनी जनरेशन नेक्स्ट को आज के दिन दिखाते समझाते हैं कि भूत अर्धचेतन व् अचेतन दिमाग की मनोवैज्ञानिक कल्पनाएं हैं; इसलिए इनसे डरें नहीं अपितु इनके डॉक्टरी व् वैज्ञानिक इलाज कराएं, जब भी ऐसा कोई भ्रम पेश आये तो| इसीलिए इनके यहाँ किसी लुगाई-माणस में कोई माता-मसाणी-मोड्डा आता नहीं सुना जाता| हाँ, कुछ-कुछ जगह कुछ पादरी, लोगों का ऐसे धर्म से धर्मपरिवर्तन करवाने बारे सर हिलाते-हिलवाते जरूर दीखते हैं; जिन धर्म में टूणे-टोटकों का फैलाव ज्यादा है!
सबसे बड़ी बात, इनके यहाँ पार्टी-त्यौहार मनाने का ठेका सभी का होता है; यानि सभी अपने-अपने घर से कुछ ना कुछ ले के आएंगे व् घर-खेतों के सामानों से ही इसको मनाएंगे! यहाँ किसी बाबा-माया-भूत को कुछ चढ़ाना नहीं होता कि पता लगा वो बाद में सब समेट के थारा फद्दू सा काट यो गया और वो गया! हजारों में एक केस में कोई ऐसा कर भी दे तो छित्तर खाता है व् अगली बार से उसकी ऐसे मौकों पर खुली इग्नोरेंस की जाती है!
Happy Halloween Day!
जय यौधेय! - फूल मलिक

No comments: