Thursday, 16 February 2023

कम्प्टीटर्स तो तुम्हारी कमजोरी पर अपना खेल खेलेंगे ही, फिर उसको 'विदेशी हमला' या 'राष्टवाद पर हमला" कह के क्यों खिसिया रहे हो?

निचौड़: यह गोलवलकर की थ्योरी व् अधिनायकवाद का सबसे बड़ा असफल एक्सपेरिमेंट है, "अडानी को उभारना व् फिर उसका ताश के पत्तों की तरह ढह जाना"|

यह गोलवलकर की 'बंच-ऑफ़-थॉट्स' में लिखी थ्योरी कि "देश की सारी सम्पत्ति अपने एक-दो विश्वस्त लोगों को चढ़ा दो, व् इस तरह राष्ट्रवाद स्थापित कर लो"| पिछले नौ साल से देश में अधिनायकवाद ही तो लागू किया जा रहा था व् है; लोग डरते हुए या अपने निज-स्वार्थवश बोल नहीं रहे, वह एक अलग बात है|
लेकिन जब किला ढहना शुरू हुआ तो ऐसा ढहा कि $127 बिलियन से आज गौतम अडानी $52 बिलियन पर आ फिसले हैं| चलो मान लिया कि गोलवलकर वाला फार्मूला सही था (कम-से-कम वह लोग तो कहेंगे ही जो इन विचारों के समर्थक हैं); लेकिन unethical तरीके से इसको बनाने को किसने कहा था? अगर यही दो-चार सौ लोगों में बराबर से फैला के विस्तृत किया होता तो क्या हिम्मत थी हिंडनबर्ग रुपी काटडे की कि, "खा ज्या, माळ कसाइयाँ का?" चलो, इन नौ साल के बहाने यह गोलवलकर की थ्योरी भी देख ली, वरना बहम रहता कि पता नहीं कितना ही तो बड़ा जादू है इस थ्योरी में|
व्यापारी हो, सेठ हो व् मार्किट का नियम नहीं जानते? कम्प्टीटर्स तो तुम्हारी कमजोरी पर अपना खेल खेलेंगे ही, फिर उसको 'विदेशी हमला' या 'राष्टवाद पर हमला" कह के क्यों ढांप रहे हो? विदेशी मार्किट में खेलने के इतने ही कच्चे थे तो क्या बाबा जी ने कही थी, वर्ल्ड मार्किट में उतरने की? जो अब लोगों का 127-52 = $75 बिलियन डुबवा के कभी मीडिया पे सख्ती के जरिये तो कभी आम जनता पर और महंगाई व् टैक्सों की मार के जरिये "खिसियानी बिल्ली" ज्यूँ खीज निकाल रहे हो? चल पड़ते हो पल में विश्वगुरु बनने या बिना बने ही विश्वगुरु की फीलिंग लेने व् जनता को खामखा उसी में डुबा के रखने; इतना सीखे नहीं कि यह विश्व है, तुम्हारी भक्तमंडली नहीं|
अच्छा, मतलब वर्ल्ड मार्किट वाले तुम्हें सिर्फ इस बात पर अपना खेल खेलने देवें कि तुम unethical कैपिटलिज्म की प्रैक्टिसेज की हर सीमा पार करते जाओ व् बाकी वर्ल्ड मार्किट की मछलियां तुम्हें, बैठे- बिठाये रास्ता देती जावें? क्यों, वो क्या मार्किट में भुजिया तलने को बैठे हैं बस? मान लिया, "व्यापारी को कभी ना कभी दो नंबर गेम करना पड़ता है; परन्तु क्या इतना दो नंबर की बेसिक्स का कोई ख्याल ही नहीं व् धड़ाम से सब खल्लास"?
यही सच्चाई है अधिनायकवाद की व् गोलवलकर की, फंडियों की थ्योरी की| जनता 2024 में जागी तो जागी वरना तैयार रहें, "गले में काठ की हांडी व् कमर पर झाड़ू लटका के" चलने वाले दिनों की ओर लौटने को| इतना बड़ा भी गेम नहीं है इन नौसिखियों से पैंडा छुड़वाने का, बस सरजोड़ करना शुरू कर लो तो व् इनकी गपोड़ों भरे तथाकथित धार्मिक व् राष्ट्रवादी जुमलों से निकल, अपने वास्तविक आध्यात्म व् धर्म को पहचान के इनसे किनारा करना शुरू कर लो तो| लेकिन अभी तो यह भी सम्भव नहीं लगता; लगता है लोगों ने विनाश काल को इतना ज्यादा पीठ पर लाद लिया है कि चुप रहने को ही भला चातुर्य मानने लगे हैं; यहाँ तक कि ख़ामोशी से भी इनसे छिंटकने की नहीं सोचने लगे हैं; बल्कि हालात ऐसे है कि हम जैसे यह सब लिखे हुए बदबुद्धि व् राष्ट्रद्रोही दीखते हैं बहुतों को तो|
जय यौधेय! - फूल मलिक

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