Friday 21 April 2023

अगस्त 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप से अंग्रेजों की विदाई और सितम्बर से लगभग 1.5 करोड़ लोगों की बर्बादी की शुरूआत!

हर साल की तरह इस बार भी 14 व 15 अगस्त को भारत व पाकिस्तान में अंग्रेजों से मुक्ति का जश्न बड़ी धूमधाम से मनाया गया | इस खुशी के साथ ही उस समय के लगभग 1.5 करोड़ लोगों ( जिनके बारे में आंकड़ों और कारणों का मैं इस लेख में विस्तार से वर्णन कर रहा हूं ) की बर्बादी की दास्तान जुड़ी हुई है | अगर वर्तमान की जनसंख्या के हिसाब से अनुमान लगाया जाए तो भारतीय उपमहाद्वीप के लगभग 6 करोड लोगों के परिवारों से ये बर्बादी की यादें जुड़ी हुई हैं | इस बारे में उसी समय एक लेख लिखने का विचार आया था लेकिन फिर मन में आया कि इस खुशी के मौके पर निराशाजनक यादों को याद दिलाना ठीक नहीं है| इसलिए तय किया कि या तो सितम्बर के प्रथम सप्ताह या फिर सितंबर के दूसरे सप्ताह में इस पर लेख लिखूंगा | इसलिए आज 12 सितंबर को मैं प्रवीन कुमार, तहसील बादली,जिला झज्जर ये लेख लिख रहा हूं जो संभवत: कल तक पूरा कर लूंगा |

अगस्त 1947 में अंग्रेजों ने भारतीय उपमहाद्वीप को छोड़ने की घोषणा की तो यहां के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा | लेकिन इसके साथ ही अंग्रेजों ने घोषणा की कि भारतीय उपमहाद्वीप को दो टुकड़ों इंडिया और पाकिस्तान के रूप में बांटा जाएगा | विभाजन की इस नीति से कुछ लोगों को बहुत दुख हुआ और उन्होंने विरोध किया | लेकिन बहुसंख्यक जनता की खुशी में उनकी बातें दब गई क्योंकि जनता को निकट भविष्य में आने वाली भयानक त्रासदी का पता नहीं था | 14-15 अगस्त को ब्रिटिशर्स और पाकिस्तान की तरफ से मुस्लिम लीग और भारत की तरफ से कांग्रेस ने 'ट्रांसफर ऑफ़ पॉवर एग्रीमेंट ' पर साइन किए थे | 17 अगस्त तक लोग इस बात से अनभिज्ञ थे कि कौन सा क्षेत्र पाकिस्तान में जाएगा और कौन सा क्षेत्र भारत में रहेगा | लेकिन वह अपनी अपनी समझ के हिसाब से अनुमान लगाकर खुशी मना रहे थे | भारत के कुछ मुस्लिम बहुल क्षेत्रों जैसे मालदा, मुर्शिदाबाद आदि में लोगों द्वारा पाकिस्तान के झंडे फहराए जा रहे थे | जबकि थारपरकर , खुलना आदि गैर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी भारत के झंडे फहराए जा रहे थे | भारत छोड़ने की घोषणा के बाद अंग्रेजों को भारत पाकिस्तान के बंटवारे के लिए दोनों की सीमा निर्धारण के बेहद जटिल कार्य को अंजाम देना था | पंजाब और बंगाल का विभाजन होना था | लेकिन इसके विभिन्न क्षेत्रों को लेकर मुस्लिम लीग तथा कांग्रेस ने अपने-अपने दावे रखे | असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह कराने की बात पर सहमति हुई | सिंध,बलूचिस्तान और उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत का पाकिस्तान के साथ जाना तय था | अंत में अंग्रेजों ने किसी भी एक पक्ष के दावों को एक तरफा न मानते हुए अपने अनुसार सीमा निर्धारित कर दी | 17 अगस्त को अंग्रेजों ने भारत पाकिस्तान की सीमा रेखा की घोषणा करके स्थिति को स्पष्ट कर दिया |
भारत विभाजन क्यों हुआ ? इसके लिए कौन जिम्मेदार था ? इस संबंध में विभिन्न पक्षों की अलग-अलग धारणाएं और तर्क हैं | किसी का तर्क है कि सबसे पहले हिंदू महासभा और संघ द्वारा दिया गया द्विराष्ट्र सिद्धांत भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार है | जबकि दूसरा पक्ष कहता है कि मुस्लिम लीग और कट्टर इस्लाम इसके लिए जिम्मेदार था | एक पक्ष यह भी कहता है कि कांग्रेसी नेताओं और नेहरू ने सत्ता प्राप्ति के लालच में भारत विभाजन के प्रस्ताव को जल्दबाजी में स्वीकार कर लिया | लेकिन अगर गहराई से अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि ये सभी संगठन कहीं ना कहीं अंग्रेजों द्वारा निर्मित अथवा पोषित संगठन रहे हैं | इन्होंने कभी न कभी अंग्रेजों के हितों की ही पूर्ति की है और हमेशा शोषक वर्ग के हितों के लिए खड़े रहे | आज के समय में इन्हीं संगठनों की वैचारिक संताने एक दूसरे को विभाजन के लिए जिम्मेदार बताते हैं | जिससे विभाजन के वास्तविक कारणों की तरफ ध्यान ही नहीं जाता | जबकि उस समय यह सारे संगठन एक दूसरे से जुड़े हुए थे | इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि ब्रिटिश समय में कई बड़े नेता हिंदू महासभा और कांग्रेस दोनों के सदस्य थे | इसके अलावा सिंध और बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार चलाना भी इस बात की पुष्टि करता है | इस तरह हम विभाजन के वास्तविक कारणों तक नहीं पहुंच पाते और आपस में सतही बहस में लगे रहते हैं |
विभाजन अकेले भारत का नहीं हुआ| अगर आप अंतर्राष्ट्रीय इतिहास उठा कर देखेंगे तो आप पाएंगे कि यूरोपियन शक्तियों का दुनिया के बहुत बड़े क्षेत्रों पर आधिपत्य था | दूसरे विश्व युद्ध के बाद साम्राज्यवादी शक्तियां बेहद कमजोर हो गई थी | इसलिए उन्होंने उपनिवेशों को छोड़ने का निर्णय लिया | जब वे उपनिवेशों को छोड़कर गए तो उन्होंने उन क्षेत्रों को विभिन्न छोटे-छोटे देशों में बांट दिया चाहे भले ही उसके लिए कोई आंदोलन हो रहा था या नहीं | जाते जाते अपनी लूट को जारी रखने के लिए वे अपने समर्थकों को सत्ता सौंप कर चले गए | लेकिन भविष्य में उन्हे भय था कि किसी भी सांस्कृतिक क्षेत्र की कोई ट्राईब् संगठित होकर नए लोकतांत्रिक ढांचे में उनके लिए समस्या पैदा कर सकती है | ब्रिटिश समय में हुए चुनाव में पंजाब और बंगाल में चुनकर आई हुई किसान व गरीब समर्थक सरकारों द्वारा उन वर्गों के लिए किए गए कार्य और प्रयासों ने उनकी शंका को भारत के संबंध में भी यकीन में बदल दिया था | इसलिए उन्होंने उपनिवेशों को विभिन्न देशों में बांटने का निर्णय लिया चाहे इसके लिए कोई भी तर्क देना पड़े | अरब प्रायद्वीप, अफ़्रीका और हिंद चीन के देश इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं | अरब प्रायद्वीप ,हिंद चीन के देश और अफ्रीका के विभिन्न उपनिवेश भारत की अपेक्षा कम सांस्कृतिक ,भाषाई ,धार्मिक और भौगोलिक विभिन्नता के होने के बावजूद विभिन्न देशों के रूप में बांट दिए गए |
विभाजन का सबसे दुखदाई पहलू लोगों का विस्थापन था | शुरुआत में आम लोग इस बात से अनजान थे कि 'ट्रांसफर ऑफ़ पॉवर एग्रीमेंट' में विभाजन के साथ-साथ पंजाब में लोगों की अदला-बदली की शर्तें भी हैं | यहां यह बात गौर करने लायक है कि जनसंख्या की अदला-बदली केवल और केवल पूर्वी और पश्चिमी पंजाब के मध्य ही होनी थी | बाकी प्रांतों के लिए इस तरह का कोई समझौता नहीं था | अगस्त समाप्त होते-होते लोगों को विस्थापन का भय डराने लगा | 99% लोग अपनी मातृभूमि को छोड़कर जाना ही नहीं चाहते थे | चाहे वह किसी भी धर्म से संबंध रखते हैं | सितंबर महीने की शुरुआत से ही पूर्वी तथा पश्चिमी पंजाब में सेना तथा कट्टर धार्मिक संगठनों द्वारा लोगों को जबरदस्ती उनके घरों से बेदखल किया जाने लगा | पश्चिमी और पूर्वी पंजाब में बहुत से ऐसे उदाहरण हैं जब लोगों ने सामूहिक रूप से जिला अधिकारियों से कहा कि वे अपना धर्म परिवर्तन कर लेंगे | लेकिन अपनी मातृभूमि को नहीं छोड़ेंगे | अधिकारियों ने ऊपरी आदेश बताकर उनकी इस बात से असहमति जताकर इंकार कर दिया | यह बात इस तथ्य पर मोहर लगाती है कि विभाजन का असली कारण धर्म नहीं था | जैसा कि ऊपरी तौर पर बताया जाता है | एक दूसरा तथ्य भी है जो इस बात की पुष्टि करता है कि अगर धर्म की वजह से विभाजन हुआ था तो जनसंख्या अदला-बदली का समझौता केवल पंजाब के लिए नहीं होता | बल्कि सभी प्रांतों के लिए होता | दरअसल विभाजन के बाद पंजाब में जनसंख्या अदला-बदली का मुख्य कारण डेमोग्राफी का बदलाव करना था | ताकि भविष्य के लोकतांत्रिक ढांचे में पूंजीपति शक्तियों को चुनौती देने वाली फिर से कोई यूनियनिस्ट पार्टी न खड़ी हो जाए | लोग अपनी मातृभूमि को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे| इसलिए हिंसा का दौर शुरू हुआ | लाखों लोगों की हत्याएं हुई और हजारों औरतों की इज्जत को तार-तार किया गया | जिसके कारण हिंसा की आग अकेले पंजाब तक सीमित नहीं रही | बल्कि पूरे भारत में फैल गई | इस हिंसा के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग 1.45 करोड़ लोग विस्थापित हुए | लाखों लोगों की हत्याओं के आंकड़ों के संबंध में अनुमान अलग-अलग हैं यह अनुमान 2 लाख से लेकर 10 लाख से भी ज्यादा तक के हैं | हत्याएँ दोनों पक्षों की हुई थी | इन्हीं की वजह से लोगों को मजबूरीवश स्थानांतरण करना पड़ा | जनसंख्या स्थानांतरण में कितने लोग इधर से उधर गए या उधर से इधर आए उसके वर्णन निम्नलिखित है :-
विभाजन के बाद के विस्थापन में लगभग 1.45 करोड़ लोगों ने सीमा को पार किया था | दोनों तरफ से संख्या लगभग बराबर थी |
1951 की जनगणना अनुसार भारत से पाकिस्तान पहुंचे विस्थापितों की कुल संख्या -72,26,600 ( लगभग सभी मुस्लिम)
1951 की जनगणना अनुसार पाकिस्तान से भारत पहुंचे विस्थापितों की कुल संख्या - 72,95,870 ( हिन्दू,सिक्ख,ईसाई,बौद्ध आदि )
1.12 करोड़ (77.4℅) विस्थापित पश्चिमी भागों में थे| 65 लाख मुस्लिम भारत से पश्चिमी पाकिस्तान गए थे और 47 लाख हिंदू ,सिख ,ईसाई आदि पश्चिमी पाकिस्तान से भारत आए थे | इसलिए पश्चिमी पाकिस्तान में भारत से शुद्ध विस्थापन 18 लाख था|
33 लाख (22.6℅) विस्थापित पूर्व में थे | 26 लाख हिंदू , बौद्ध , ईसाई आदि पूर्वी पाकिस्तान से भारत आए तथा लगभग 7 लाख मुस्लिम भारत से पूर्वी पाकिस्तान अर्थात बांग्लादेश में गए | इस प्रकार पूर्वी पाकिस्तान से भारत में शुद्ध विस्थापन लगभग 19 लाख था | इस प्रकार क्षेत्रवार असमानता के बावजूद दोनों देशों से लगभग बराबर की संख्या में लोगों का विस्थापन हुआ था |
अब भारतीय राज्यों के आधार पर आंकड़ों पर थोड़ा प्रकाश डालता हूं ताकि इस बात का पता चल सके कि किस क्षेत्र के लोगों को सबसे अधिक त्रासदी झेलनी पड़ी थी |
भाग-क :- भारत से पाकिस्तान गए लोगों की संख्या क्षेत्रवार या राज्यवार
1. जम्मू+पंजाब+हिमाचल प्रदेश+हरियाणा+दिल्ली+राजस्थान व अजमेर से पाकिस्तान गए लोगों की कुल संख्या 57,85,100 थी |
इनमें जम्मू से लगभग 2.5 लाख,राजस्थान व अजमेर से लगभग 4.5 से 5 लाख,दिल्ली से लगभग 91 हजार,हिमाचल प्रदेश से संख्या एक लाख से कम ही थी | इन राज्यों से गयी आबादी को 57,85,100 में से घटाकर शेष सारी आबादी पंजाब व हरियाणा से गई थी |
2. बिहार , झारखंड ,उड़ीसा ,पश्चिम बंगाल व आसाम आदि से पूर्वी पाकिस्तान में जाने वाले मुस्लिमों की संख्या लगभग 701300 थी जिसमें ज्यादा हिस्सा पं बंगाल से जाने वाले लोगों का था|
3. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से 464200 मुस्लिम पाकिस्तान गये थे |
4. पुराने बम्बई प्रांत से अर्थात गुजरात ,महाराष्ट्र के पश्चिम के 13 जिले व उत्तरी कर्नाटक के 4 जिलों से 160400 मुस्लिम पाकिस्तान गए थे|
5. मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़ ,तेलंगाना ,पुरानी हैदराबाद रियासत में आने वाले कर्नाटक व महाराष्ट्र के क्रमशः 3 और 5 जिले तथा महाराष्ट्र के विदर्भ और बरार के क्षेत्र से लगभग 91200 मुस्लिम पाकिस्तान गए जिनमें से ज्यादातर भाग भोपाल और हैदराबाद शहर से था |
6. आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और मैसूर रियासत जिसमें मध्य तथा दक्षिण कर्नाटक आता है से लगभग 18 से 20,000 मुस्लिम पाकिस्तान गए थे |
भाग-ख :- पाकिस्तान से भारत आने वाले लोगों की कुल संख्या भारतीय राज्यों या क्षेत्रों के अनुसार
1.जम्मू में पाकिस्तान से लगभग 113000 लोग आए |
2.पंजाब +हरियाणा + चंडीगढ़ + हिमाचल में पाकिस्तान से लगभग 2739590 लोग पहुंचे |
3.दिल्ली में पाकिस्तान से पहुंचे विस्थापितों की संख्या 495391थी| 4.अजमेर व राजस्थान में विस्थापितों की संख्या का आंकड़ा 368367 था |
5.पुराना मुंबई प्रांत जिसमें गुजरात पश्चिमी महाराष्ट्र के 13 जिले और उत्तरी कर्नाटक के 4 जिले शामिल में पाकिस्तान से 409882 लोग आए थे|
6.पश्चिमी बंगाल में लगभग 21लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित होकर पहुंचे थे|
7.त्रिपुरा असम व अन्य पूर्वी राज्यों में यह विस्थापितों का आंकड़ा लगभग 4 लाख था |
8. पाकिस्तान से आये शेष लोग दूसरे क्षेत्रों में बसाए गये थे |
यह सारे आंकड़े 1951 की भारत और पाकिस्तान की जनगणना से लिए गए हैं |अपनी तरफ से मैंने काफी प्रयास किया है कि इनमें कोई त्रुटि ना हो | कुछ राज्यों का अनुमान भी लगाया है जो आंकड़े अलग-अलग नहीं थे | अगर किसी साथी को तथ्यात्मक रूप से आंकड़ों में कुछ गलती दिखाई दे | तो मैसेंजर पर मेरे को सूचित करें ताकि मैं उनको ठीक कर सकूँ |
अंत में निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि भारत से अंग्रेजों का छोड़कर जाना जितना खुशी का विषय था उतना ही दुखदाई भी था | इसके साथ ही करोड़ों लोगों ने भयंकर त्रासदी को झेला | इसके साथ ही एक लंबे समय तक के लिए समाज में नफरत की खाई खोद दी | विभाजन की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान तुलनात्मक रूप से पंजाब और पंजाबियत को हुआ था जिसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती | लेकिन विभाजन के कारणों और वास्तविकता का पता लगने से हम समाज में नफरत की गहरी हुई खाई को पाटने की तरफ एक प्रयास जरूर कर सकते | ताकि आने वाली पीढ़ियां नफरत की आग में जलने की बजाय अपने जीवन में सुधार और प्रगति की तरफ अग्रसर हो सके और एक सुखमय जीवन जी सकें | धन्यवाद !
लेखक :-प्रवीन, तहसील बादली, जिला झज्जर

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