1 - यह सामंती वर्णवाद बनाम उदारवादी खापवाद की लड़ाई है|
2 - यह स्वर्ण-शूद्र बनाम सीरी-साझी कल्चर की लड़ाई है|
3 - यह अधिनायकवाद बनाम लोकतान्त्रिक-गणतांत्रिक खेड़ावाद है|
4 - यह अनैतिक पूंजीवाद बनाम नैतिक पूंजीवाद है|
5 - यह orthodox बनाम protestant मसला है|
6 - यह मूर्तिपूजक बनाम निराकार पुरखपूजक लड़ाई है|
7 - यह बहमवाद बनाम यथार्थवाद लड़ाई है|
निचोड़ यह है कि यह जितने भी "खाप-खेड़ा-खेत" थ्योरी से आने वाले लोग, इन सामंतियों वर्णवादियों के कल्चरल-स्पिरिचुअल स्तर पर भी गलबहियां हुए पड़े हैं; यह अपना इंटेल्लेक्ट ही नहीं पहचानते| प्रोफेशनल-पावर पोलिटिकल फ्रंट पे इनसे मिलके काम करना, अलायन्स करना समझ आता है; परन्तु जब तक अपने कल्चरल-स्पिरिचुअल फ्रंट को समझ के इसपे अपना स्वछंद स्टैंड नहीं रखेंगे; यूँ ही इनके जवान-किसान-पहलवान-मजदूर-कर्मचारी-व्यापारी सब परेशान रहेगा|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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