Happy Kolhu-Dhok! Happy Girdi-Dhok! Happy Diwali!
औद्योगिकता संगत आध्यात्मिकता ही फब्ती है:
एक बड़ई-लुहार अपने औजारों की धोक लगाता है| एक कुम्हार चाक की धोक लगाता है|ऐसे ही किसान-जमींदार भी औद्योगिकता संगत आध्यात्मिकता मनाता आया है| उसी के तहत आज "कोल्हू-धोक दिन", "पचंगड़ा दिन", "परस-चौपाल-थ्याई धोक दिन" की "दिवाली" के साथ-साथ आप सभी को बधाई! कल मनाए गए "गिरड़ी-धोक-दिन" व् "पशु-सिंगार दिन" की भी लगे हाथों आप सभी को बधाईयां! लक्ष्मी को अर्जित करके देने वाले उद्योगों व् उनके औजारों की धोक लगाएंगे तो लक्ष्मी स्वत: चली आएगी; यही पुरख-दार्शनिकता व् आध्यात्म बताता है!
कोई तुम्हारी उदारता को "कंधे से ऊपर की कमजोरी ना ठहरा दे" इसके लिए जरूरी है कि अपने कॉपीराइट कल्चर को सर्वोपरि रखा जाए, और यह झक-मार के भी ऊपर रखना होगा; क्योंकि आपकी धन-दौलत आपको "कंधे से ऊपर मजबूत" नहीं कहलवा सकती”; वह सिर्फ आप तभी कहलाओगे जब पुरखों के दिए "कॉपीराइटेड तीज-त्यौहार” सर्वोपरि रख के गर्व से मनाओगे"! हमारे पुरखों का संदेश रहा है कि अपना " कॉपीराइटेड कल्चर" सर्वोपरि रखें व् "शेयर्ड-कल्चर" का आदर करें, उनको भी मनाएं-मनवाएं! मात्र किसान की औलाद कहलवाना है या औद्योगिक किसान की औलाद, चॉइस आपकी!
आज गिरड़ी, तड़कै कोल्हू, हीड़ो रै हीड़ो! - आज गिरड़ी, तड़कै दवाळी, हीड़ो रै हीड़ो!
जय यौधेय! - फूल मलिक!
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