गिहूँआ की जिब करी बिजाई
गेल फूट म्हं होई कंडाई
बथुआ, मड़कण, जई, जंजाळा
फूलड़ी, मेत्थे नै झड़ी लगाई।
एक खूड म्हं चणे अगेते
चार डांड बिरशम बुरकाई।
बीच- बिचाळै छिड़की पालक
ओड़ै- धोड़ै मूळी लाई।
एक कूणे म्हं पड़ी बनछटी
एक म्हं मिर्चां की पौध लगाई.
लहसण, आल्लू, आल के डोळे
गूंगळूआं की लार बिछाई।
गाजर का गजरेला न्यारा
मेथी, धणिए नै महक उठाई।
बथुआ चूंडूं, तोड़ूं डाक्खळ
भरगे खेत ये बाळ- बळाई।
कड़ मसळै यो घाम दोफैरी
ओस पहर लेवै अंगड़ाई।
झाड़ी- झाड़ी बेर लागरे
भरी- भराई कात्तक आई।
एक खावै, एक जाड़ या तरसै
कुट्टी, चटणी बांथ भर ल्याई
बोल्यो, खाल्यो, मौज उड़ा लो
फसल निरी जाड्डे की जाई।
सुनीता करोथवाल
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