कई बार पूछा जाता है कि यह जाट-जट्ट शब्दों का फिल्म व् गानों में इतना ज्यादा इस्तेमाल क्यों होता है; व् अधिकतर इस्तेमाल हिट भी होते हैं? वह भी हर जाति-धर्म में? हिंदी बेल्ट की कोई ही ब्याह शादी होगी जो इन शब्दों वाले गानों के बिना पूरी होती हो? इसकी वजह से कई जातिवाद के कीड़े, उनकी जाति कहीं पीछे तो नहीं छूट गई की फील से कुंठित, इसको ही जातिवाद का नाम दे-दे चिंघाड़ने-बरड़ाने लग जाते हैं|
मखा यह एक आर्गेनिक ब्रांड है जो 13-13 महीने किसान-कामगार की आवाज उठाने हेतु "दिल्ली किसान आंदोलन" जब इस जाट-जट्ट के टैग वाले लोगों की अगुवाई में होते हैं तो वह मुहिमें, लोगों को एक मानसिक संदेश व् पैठ भेजती है कि 'जुल्म की इंतहा' पर 'यह कितने भी बड़े तानाशाह से लड़ सकते हैं'; जब कोई भी न्याय-अन्याय की बातों पर बोलना छोड़ जाता है तो यह बोलते भी हैं व् अपनी बात पारदर्शी तरीके से मनवा भी लेते हैं| ऐसे मूवमेंट्स इंडिया तो क्या वर्ल्ड में भी इक्का-दुक्का समुदाय हैं जो करते हैं| तो यह जाट-जट्ट ब्रांड वैल्यू ऐसे तपों से आती है व् "अर्जन वैली, गाने में दो बार जट्ट शब्द आ जाने मात्र से" एक फिल्म का भाग्य बदल जाता है| क्योंकि लोग "हो गई लड़ाई भारी, जट्ट भिड़दे" जैसे मुखड़ों को हकीकत के वाक्यों से सहजता से जोड़ लेते हैं| जब एनिमल का हीरो, गाम के उसके काका-ताऊ के भाईयों से मदद ले के आता है तब बैकग्राउंड में यह शब्द फिर बजता है; तो लोग वहां भी सहजता से जोड़ लेते हैं|
तो एक कॉकटेल तो एनिमल मूवी का यह है; जिसने किसान-कामगार जातियों के किसान आंदोलन फैन हर धर्म-जाति के तबके को थिएटर्स तक खींचा|
ऊपर से विलेन साइड में मुस्लिम तड़का लगा के, संदीप वांगा रेड्डी ने भक्त-केटेगरी सिनेमाओं में हाजिर करवा दी| मुस्लिम भी मायूस ना हों, इसलिए हीरो व् विलेन की जोड़ी को सगे चचेरे भाई दिखा दिया| इससे मुस्लिम तबका भी आन चढ़ा थिएटरों में| हीरो का जीजा मल्होत्रा दिखा दिया तो वह तबका भी टूट के पड़ा|
अब इससे ज्यादा और क्या चाहिए एक बॉलीवुड फिल्म को इंडिया में ब्लॉकबस्टर होने को?
लगता है खान-बंधुओं के अलावा, बॉलीवुड के जो सभी हीरो लोग लगभग पिटे जा रहे थे; या साउथ-फिल्म्स के रीमेक से काम चला रहे थे; उनको "किसान आंदोलन" व् "जाट-जट्ट" ब्रांड सटीक फार्मूला सूझा ही गया| अभी गदर-2 भी तो इसी जट्ट-पाकिस्तान के कॉकटेल से ब्लॉकबस्टर हो के हटी है|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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