एक किनशिप से यह दोनों आती हैं, जिसकी मूल किनशिप में औरत को मुसीबत के आगे जोहर करना या सति होना नहीं सिखाया जाता अपितु महारानी किशोरी की भांति लड़ना सिखाया जाता है| जैसे महारानी किशोरी ने उनके बेटे महाराजा जवाहरमल को दिल्ली फतेह में लीड किया था ऐसे ही साक्षी मलिक बनी भाई बजरंग पूनिया व् भाई वीरेंद्र सिंह यादव द्वारा पद्मश्री त्याग देने की लीड| फिर आई विनेश बेबे, खेल रत्न व् अर्जुन अवार्ड त्याग देने वाली| यह उस किनशिप से आती हैं जिसने "गाम की बेटी 36 बिरादरी की बेटी" व् "गाम-गौत-गुहांड" के सिद्धांत पाले हैं| कम से कम इतने तो पाले ही हैं कि बलात्कारियों-मोलेस्ट्रो के पक्ष में जुलूस नहीं निकाले कभी|
यह बातें भी आज के दिन जो व्यवस्था में बैठे हैं इनको समझ क्यों नहीं आ रही? क्योंकि इनका कल्चर-किनशिप, औरत को सिद्धांत रूप से बलि की बेदी बनाये रखने का है| औरत का पति मर जाए तो उसके साथ औरत सती होगी या खुद को मनहूस मान काल-कोठरी में रहेगी या विधवा आश्रमों में चली जाएगी, औरत के पति पे मुसीबत आ जाए तो औरत लड़ने की बजाए जोहर करेगी| अछूत कही जाने वाली बिरादरी की बेटी हुई तो तथाकथितों द्वारा देवदासी बना ली जाएगी| व् इन किनशिप के समाजों के लोग उनके यहाँ के बलात्कारियों-मोलेस्ट्रो को गलत कहने की बजाए उनके पक्ष में जुलूस निकालते हैं| 2014 के बाद तो ऐसे नजारों की पूरी लिस्ट साक्षात् देख ही चुके हो?
और क्या इससे आगे, खुद को देवदासी बनाने के लेवल तक समझौते करती यह बेटियां?
नादाँ हैं वह तमाम भक्त, इन बिरादरियों व् इन जैसी बिरादरियों की कल्चर-किनशिप से जिससे साक्षी व् विनेश आती है; व् यह तमाम लोग यह मूल अंतर् नहीं समझ पा रहे; इनके कल्चर व् अपने कल्चर में| तुम्हारा तो कल्चर-किनशिप ऐसी है कि एक पल को मर्द कुछ एडजस्ट करने के मोड में जाते भी दिखेंगे तो तुम्हारी औरतें ही तुम्हें उधर नहीं जाने देंगी; उदाहरण साक्षी मलिक|
यह हमारे समाज का वह ग्लोबल चरित्र है जिसका सबसे बड़ा उदहारण फ्रांस की औरतें हैं| वसुधैव-कुटुम्ब्क की बक-बक बकने वालों को बताना यह बात कि जहाँ बदनीयती से हिटलर आता है परन्तु फ्रांस के मर्दों से पहले फ्रांस की औरतें ही उसको झुका देती हैं| इसीलिए फ्रांस में औरत को इतना सम्मान है व् यही बानगी आपकी कल्चर किनशिप की है; इसको पहचानों, वक्त रहते कि इससे पहले देर हो जाए व् तुम इस कल्चरल बुलंदी से नीचे गिर जाओ|
क्यों खामखा खुद को भी परेशान करते हो व् समाज को भी परेशान करके रखे हुए हो; इन छद्मों के चाटुकार हो के| वक्त रहते अपनी किनशिप की यह जिद्द, यह अनख पहचानों व् इन नादानियों से किनारे रहो| एक उत्तर है तो एक दक्षिण; एक पूर्व है तो एक पश्चिम| अत: अपने इस किनशिप के स्वभाव को समझो व् इसके अनुरूप चलने की लाइन पे रहो|
करने दो व् मानने दो जो औरत को विधवा-आश्रम में सड़ाना सही मानते हैं, उसको सती करना, जोहर करना सही मानते हैं; हमें क्या दिक्कत उनसे, उनका समाज, उनके मर्द-औरत वह जानें; आप बस अपने को बचाने व् कायम रखने पे फोकस रहो| बल्कि इनका आदरमान करो, इन बातों के लिए अगर यह खुश हैं तो; परन्तु इनको अपने अंदर या अपने ऊपर ओढ़ने की नादानी मत करो; क्योंकि तुम्हारा खून व् तुम्हारी औरतें तुम्हें ऐसा करने ही नहीं देंगी; उदहारण साक्षी मलिक व् विनेश फोगाट|
विशेष: वह गधे इस पोस्ट से दूर रहें, जिनको यह सब पॉलिटिक्स हेतु ड्रामा लगता है; क्योंकि यह पॉलिटिक्स थी भी तो तुम्हारे आकाओं को भी 11 महीने यह मौका दिया गया था कि इन बहनों के जरिये कोई पॉलिटिक्स का बहाना निकलता है तो मोदी-शाह लपक लें| परन्तु नहीं लपका; तो कहीं तो जा के अपना मान-सम्मान बचाएगा इंसान; या मोलेस्टेर्स को यूँ खुला सर पे नाचता देखता रहे? कोई तो बॉर्डर लाइन होगी, जुल्म की इंतहा को मात्र पॉलिटिक्स से आगे जा के देखने की या नहीं?
जय यौधेय! - फूल मलिक
No comments:
Post a Comment