कानूनगो के अनुसार सूरजमल के दो मुख्य लक्ष्य थे। पहला, मुसलमान रुहेलों और अब्दाली के बीच मेल-मिलाप को पूरे तौर से रोक देना, जोकि यमुना से रावी नदी तक था। जमुना के जाट पाँच नदियों के जाटों की ओर मानो जातीय प्रवृत्ति के कारण आकर्षित हो रहे थे। एक शक्तिशाली धारा की दो शाखाएँ जो पुरातन काल के धुँधले दिनों में सिंध में विभाजित हो गई थीं। क्योंकि ये दो शाखायें एक ही रक्त की हैं और दोनों का राजनीतिक व धार्मिक स्वार्थ एक ही था इसलिए सूरजमल अपने राज्य के जाटों एवं पंजाब के सिक्ख जाटों का मेल-जोल करना चाहता था।
दूसरा, वह दिल्ली से नजीब खान को बाहर निकालकर उसके स्थान पर इमाद को साम्राज्य का फिर से वज़ीर बनाना चाहता था।
(हिस्ट्री ऑफ जाट्स; के० आर० कानूनगो, पृ० 146-147)
इतिहास में जब भी ऐसा प्रयास हुआ है तो कोई न कोई कुदरती आफत या सियासी ताकत ने जमुना और पंचनद के जाटों को दूर किया है। ऐसा आखरी प्रयास चौधरी छोटूराम ने भी किया था और काफी हदतक कामयाब भी हुए थे परंतु उनकी अकाल मृत्यु ने जाटों को फिर उसी दोराहे पर ला खड़ा किया। लंबे अंतराल के बाद हाल के किसान आंदोलन से फिर वही प्रयास दोहराया गया है। अब इसको भी तोड़ने के प्रयास तो काफी हो रहें हैं। अब जमुना और पंचनद जाटों की समझदारी देखते हैं कि खुद कामयाब होते हैं या दूसरे पक्ष को कामयाब होने का मौका देते हैं!
By: Rakesh Sangwan
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