Wednesday, 24 January 2024

1905 में एक काल्पनिक पात्र चाणक्य को इतिहास में क्यूँ और कैसे सेट किया गया ???

 भारत में प्रचलित धार्मिक किताबों के नए नए और अलग अलग संस्करण उपलब्ध हैं. लेकिन रहस्य का विषय ये हैं कि किसी भी किताब का मूल आधार स्त्रोत उपलब्ध ही नहीं हैं. अगर किसी का आधार स्त्रोत उपलब्ध भी हैं तो वो नए प्रकाशित संस्करणों से बिल्कुल अलग। नए संस्करणों में सब कुछ संशोधित किया गया हैं। ऐसा करने से विषय के अर्थों का अनर्थ हो जाता हैं। इसलिए उपलब्ध भारतीय दर्शन बहुत ही निराधार और सतही हो गया हैं।। ज्ञान चेतना को जाग्रत करता हैं लेकिन यहां पाठकों के सामने समस्या यह हो जाती है कि वो अनेकों भ्रम के शिकार हो जाते हैं। उसका कारण हैं कि मुख्य विषयो का उपलब्ध ना होना या अनुचित तरीके से संशोधित करना।।

कबीर वर्षा तक लोगों में प्रचलित रहा उनके कुछ दोहे लोगों की जुबान पर चढ़ गए। लेकिन उन्होंने अपने जिवन काल में कभी कुछ नहीं लिखा ना लिखवाया। फिरभी उनके नाम से अनेकों काल्पनिक दोहे और कहानियाँ प्रकाशित हैं। कबीर कटाक्ष कि भाषा बोलते थे।। लेकिन उनके साथ कहीं कोई गुरु तो कहीं राम को जोड़ कर उनके कटाक्ष के वेग को रोका गया।। कबीर उपदेशक नहीं उन्हें उपदेश से मतलब ही नहीं। बस वो व्यंग्य करते हैं वो मुर्ख के संग मुर्ख और विद्वान के संग विद्वान हो जाते। लेकिन वो हिन्दू और मुस्लमान के पाखण्ड पर नग्न कटाक्ष करते हैं।
कबीर एक अलग किस्म के दार्शनिक हैं जो सत्य को उपदेश में लपेट कर नहीं कहते वो उसे कोई धार्मिक कपड़े नहीं पहनाना चाहते। उनका सत्य बिल्कुल नग्न हैं। वो बस वास्तविकता में स्थिर हैं।।
ऐसे ही किसी भी विषय का कोई भी मुल ग्रंथ उपलब्ध नहीं. बहुत से विषय जो पांडुलिपियों के रूप मे उपलब्ध हैं। यह सभी बहुत ज्यादा प्राचीन नहीं और ना ही ये स्पष्ट रूप से यह दर्शाते हैं कि वह क्या हैं। शोधकर्ताओ ने अपने अपने हिसाब से इनका नामकरण किया हुआ हैं।। किसी भी विषय के लेखक की जानकारी ना होने पर ,किसी काल्पनिक नाम से या किसी नाम के सामने महर्षि लगाकर उन्हें आगे बढ़ाया हैं।। वेदव्यास के नाम से अनेकों ग्रंथ प्रचलित हैं जबकि वेदव्यास नामक व्यक्ती का कोई भी प्रमाण किसी भी स्त्रोत में उपलब्ध नहीं हैं।। अनेकों लेखकों ने तलाशने की कोशिश की लेकिन मुल स्त्रोतों में यह तलाश आज भी अधूरी हैं। लेकिन धार्मिक लोगों को वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता इसलिए वो झूठ को लपेट लपेट कर फेंकते रहते हैं l
1905 से पहले चाणक्य नाम का कोई भी पात्र किसी कहानी मे नहीं था, फिर अचानक मैसूर की अंग्रेजों द्वारा स्थापित एक लाइब्रेरी से ऐसा ही एक ग्रंथ मिलने की घोषणा की और 1919 में अनेकों शोध करके चाणक्य को लॉन्च कर दिया गया। हालांकि अभी तक यह संस्करण अधूरा था जो बादमें 1929 के बाद से नए संशोधनों के साथ चोथा संस्करण प्रकाशित किया गया।। इस नए संस्करण में चाणक्य को इतिहास में अच्छे से सेट किया गया।। इसके लिए अंग्रेजों ने एक व्यक्ती रुद्रपट्टणशामा के द्वारा यह कार्य सिद्ध करवाया।
अंग्रेजी भाषान्तर का यह चतुर्थ संस्करण (1929 ई.) प्रामाणिक माना जाता है. इसमें सबकुछ ठीक ठाक स्थापित कर लिया गया था ताकि चाणक्य (रुद्रपट्टणशामा शास्त्री) इतिहास में फिट किये जा सके.
पुस्तक के प्रकाशन के साथ ही स्थानीय लोगो में इसे चर्चा का विषय बनाया गया और अंग्रेजो ने इसका भरपूर प्रचार किया। लेखकों के बीच चर्चा का विषय बना दिया गया था - क्योंकि इसमें अद्भुत तत्त्वों का वर्णन पाया गया, जिनके सम्बन्ध में अभी तक ऐसा कोई संकलन प्राप्त नहीं हुआ था. पाश्चात्य विद्वान फ्लीट, जौली आदि ने इस पुस्तक को एक ‘अत्यन्त महत्त्वपूर्ण’ ग्रंथ बतलाया और इसका प्रचार भी किया और इसे भारत के प्राचीन इतिहास के निर्माण में परम सहायक साधन स्वीकार करते हुए इसे अब इतिहास में स्थापित किया जा चूका हैं.
आखिर अंग्रेज क्यूँ ऐसे काल्पनिक पात्रों को इतिहास में शामिल कर रहें थे। इसके पीछे क्या योजना रहीं होगी यह रहस्य अंग्रेजों के साथ ही चला गया।। लेकिन ऐसे ही अनेकों प्रचलित पात्र आज के भारत मे प्रचलित हैं जो कभी थे ही नहीं।।
धन्यवाद - by Rajesh Dhull

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