Monday 22 January 2024

किसी भी कल्चर में कोई शब्द वास्तव में कितना प्रचलित होता है, इसका अध्ययन उसके लोककलाकारों के सम्बोधनों व् अभिव्यक्तियों से सबसे सहजता से लगाया जाता है|

किसी भी कल्चर में कोई शब्द वास्तव में कितना प्रचलित होता है, इसका अध्ययन उसके लोककलाकारों के सम्बोधनों व् अभिव्यक्तियों से सबसे सहजता से लगाया जाता है| जैसे इस वीडियो में देखें ; हरयाणवी लोक-कलाकार आज से करीब 15-17 साल पहले एक रागनी की प्रस्तुति दे रही हैं, एक हरयाणवी रागनी कार्यक्रम में| व् नोट करें वह अपने पब्लिक-सम्बोधन में पब्लिक को नमस्कार बोल रही हैं, "राम-राम" या कुछ अन्यथा नहीं| व् ऐसे ही अन्य तमाम ऐसे कलाकारों के आज से इतने ही पुराने सम्बोधन नोट किए जाने चाहिएं; तो पता लगेगा कि "हरयाणवी भाषा में "राम" का अर्थ "आराम" व् "आकाश" रखने वाले शब्द की एक पौराणिक चरित्र से समानता होने के चलते; उसकी बेहताशा मार्केटिंग करके उस शब्द को इस शब्द के साथ बदलने की कोशिश हुई है| व्यक्तिगत तौर पर मेरे दादा जी, मरने मर गए परन्तु जब भी दादा जी से फ़ोन पे बात करता था, या छुट्टियों में घर जाता था तो कभी भी "राम-राम" शब्द उनके मुंह से अभिन्दन-स्वरूप नहीं सुना; हमेशा आगे से "नमस्ते फूल", "नमस्ते बेटा/पोता फूल" ही सुना| 


यहाँ यह किसी पौराणिक चरित्र के विरोध-अवरोध की बात नहीं है; अपितु अपने कल्चर-किनशिप की शुद्धता को सही से जानने व् समझने की बात है| समझना इसलिए कि अगर नहीं चाहते कि कोई खटटर जैसा हरयाणवियों को "कंधे से नीचे मजबूत व् ऊपर कमजोर न बतावे" तो| आप लोग इन बातों को सहजता में ऊड़ा देते हो; इसलिए आज आपकी कल्चर व् भाषा की यह दुर्गति हुई पड़ी है व् हर बौद्धिक स्तर से घिरे बैठे हो|  





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