Friday 23 February 2024

21वीं सदी में खट्टर-मोदी की "रोष-प्रकट हेतु सड़कों पर ट्रैक्टर नहीं ले के चलने" की बात!

21वीं सदी में खट्टर-मोदी की "रोष-प्रकट हेतु सड़कों पर ट्रैक्टर नहीं ले के चलने" की बात बनाम 7वीं सदी के दाहिर-चच द्वारा "जाटों पर हथियार रखने व् घोड़ों पर चलने" का प्रतिबंध दिखाता है कि इन लोगों की मानसिक मंदबुद्धि आज भी उस 7वीं सदी की हीनभावना से पार नहीं पा सकी है:


सातवीं-आठवीं सदी में दो बाप-बेटा राजा हुए, चच व् दाहिर| उन्होंने धोखे से हथियाए अल्पकालिक राज (क्योंकि दाहिर, कासिम से लड़ाई में मारा गया था, फिर कासिम को जाटों ने कूटा था) को निष्कंटक बनाने हेतु, सबसे डेमोक्रेटिक परन्तु सबसे लड़ाकू सामाजिक समूह यानि जाट जाति पर कोई भी हथियार ले कर चलना व् घोड़ों पर चलना, दोनों पर प्रतिबंध लगा दिया था| शायद उसको खामखा के सपने आते थे, कि जाट आते ही होंगे किसी भी वक्त घोड़ों पर सवार हो तेरा राज छीनने| जबकि कोई सच्ची नियत से इनसे पेश आए तो इन जितना डेमोक्रेटिक कोई नहीं| 


अब यही हाल मोदी-खटटर का है| ट्रेक्टर ना हो गए, 7वीं सदी वाले घोड़े हो गए; कि जो सड़कों पर ट्रैक्टर्स नहीं ला सकते| इतिहास मत दोहराओ अपितु  7वीं सदी से आज भी तुम में कायम अपनी इस हीनभावना से पार पाओ; वरना चच-दाहिर की भांति इस देश को ऐसे झंझाल में छोड़ जाओगे कि फिर "इन ट्रेक्टर वाले किसानों" पे ही आ के बात टिकेगी|


मोदी ना सही, खट्टर आप तो इतना रहम करो, अपनी इस स्टेट पे जहाँ तुमने मुसीबत पड़ी में 2-2 बार शरण पाई है; एक बार 1947 में व् दूसरी बार 1984 से 1992 तक वाले काल में| कोई समझाओ व् इन "स्वघोषित कंधे से ऊपर भारी अक्ल के बोझ में भोझ मरते" परन्तु इस ऊपर बताई ऐतिहासिक हीनभावना से ग्रस्त इंसानों को कि थोड़ी बहुत करुणा-मर्यादा बरतें| क्या यह "हरयाणा एक, हरयाणवी एक" के नारे का यही यथार्थ है जो कल खेड़ी-चौपटा में तुमने बरपवाया है या हरयाणा के बॉर्डर्स सील करके हमारे बड़े भाई पंजाब के किसानों पे बरपा रहे हो? आखिर रहेंगे तो यह भी यहीं ना, या इनको कोई अलग देश के मान लिए हो? 


जय यौधेय! - फूल मलिक


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