हड़निये यानि हड़प लेने वाले, लूट लेने वाले!
इस वीडियो वाले कांसेप्ट से सहमत होने के यह कारण भी हो सकते हैं:
1 - 'जाटों को कई इतिहासकारों ने लुटेरा लिखा है; वजह रही यह कि जो विदेशी आक्रांता जैसे कि ग़ज़नी-तैमूरलंग आदि इनके इलाकों से गुजरे, उनको इन्होनें जी भर के लूटा व् मारा भी| तो हड़निये तो यह रहे हैं, परन्तु दुश्मन का माल; जो इनका अपना बन के रहा, उसको अपने यहाँ बसने में सबसे ज्यादा भाईचारा इन्होनें ही दिखाया|
2 - खापलैंड पर दो तरीके के गाम बसते आए, एक धाड़ी व् एक गैब| धाड़ी वो गाम जो धाड़ मार के खाया करते थे व् गैब वो गाम जो खेती-बाड़ी करके कमा के खाते थे; परन्तु धाड़ मारणियों गेल जब टकराना पड़ता तो अधिकतर जीतते गैब ही थे| जैसे कि मेरा गाम निडाणा, जिला जींद (जिंद) में| इसी धाड़-गैब कल्चर पे निडाना गाम बारे, जब बारात में आए जागसी वाले मशहूर धाड़ी दादा निहाले की हल की फाली पेट में मारने से सोते हुए की हत्या कर दी गई थी (हत्यारे इन्हीं के गाम से आये थे इनपे घात लगा के) तो इनकी माँ ने रोंदी हुई ने एक तान्ना मारया था अक, "ना मरया रे बेटा, सींक-पाथरी, ना मारया रे उल्हाणे-मदीणे; अर जा मरया रे बेटा गैबां के न्यडाणे"! यह पाँचों गाम मलिकों के हैं, सींक-पाथरी-उल्हाणे-मदीणे जब्र भारी गाम रहे हैं व् न्यडाणा गैब गाम|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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