मोदी-शाह की जोड़ी जब पूंजी पर बैठकर नैतिकता के प्रतिमान तय कर रही थी तब एक शर्त यह भी थी 75 पार के नेता मार्गदर्शक मंडल में रहेंगे।
मोदीजी 74 साल के हो चुके है।यह तय माना जाना चाहिए था कि एक साल बाद पीएम कोई और होगा फिर भी मोदीजी के नाम पर चुनाव लड़ा गया।
अगर स्वनिर्मित नैतिकता के ये प्रतिमान नहीं गढ़े जाते तो आरएसएस के साथ-साथ 10 साल सत्ता चलाने वाले मोदी-शाह के सहयोगी लोग इस बार बगावत नहीं करते।
10 साल सरकार में रहने के बावजूद बीजेपी अपने कार्यों पर वोट मांगती नजर नहीं आई।आरएसएस सहित हितग्राही संगठनों के पास 10 साल सत्ता में रहने के बावजूद जनता को विश्वास में लेने के लिए बताने को कुछ नहीं था।
मोदी जी ने मित्रों के सहयोग से आडवाणीजी को विश्वास में लेकर जो गुजरात मे राजनीति शुरू की वो आगे जाकर क्या करवट लेगी वो आरएसएस को भी नहीं पता था!
गोधरा के बाद जिस तरह अटलजी ने राजधर्म की नसीहत दी व आडवाणीजी ने बचाया वो बात जगजाहिर है।आरएसएस को हिंदुत्व का कोई मेचोमैन चाहिए था वो गोधरा कांड के बाद मोदीजी बन ही चुके थे और मित्रों को न्यायिक व्यस्था से बचने के प्रयास में लगा ऐसा आदमी चाहिए था जो उनकी हर बात माने!
तमाम खोजी पत्रकारों ने स्टिंग किये,सारे अपराध पटल पर थे लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार की अगुआ कांग्रेस हल्के में हांक रही थी!देश की आबोहवा बता रही थी कि गुजरात में 2002 में हुए दंगों का आयोजन किसने व कैसे किया!
लेकिन कांग्रेस में जमे संघियों ने जमकर पैरवी की और बचाया ही नहीं बल्कि सरकार में बैठकर सरकार को बदनाम किया और नितिन गडकरी के खिलाफ महाराष्ट्र में मंत्री होने के समय फर्जी आंदोलन चलाने वाले अन्ना हजारे को उठाकर दिल्ली ले आये!
आरएसएस चंगुल में बुरी तरह फंस चुका था लेकिन पूंजी की ताकत जान नहीं पाया!आरएसएस के लाखों कार्यकर्ता अन्ना आंदोलन में शामिल रहे!जमकर सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार किया!
जब 10 साल सत्ता चल चुकी है।छोटे-छोटे मंदिरों को गिराकर धर्मस्थलों को व्यापारिक कॉरिडोर बनाया जाने लगे तो हिन्दू धर्माचार्यों को अहसास हुआ कि हमारे नीचे से गद्दी खींच ली गई है तो मुँह खोलने लगे!
पहले 5 साल में आरएसएस के कार्यकर्ताओं को अगले 5 साल में परिणाम देखने की नसीहत दी गई!अगले 5 सालों ने इस पूंजीवादी सरकार ने आरएसएस के पदाधिकारियों को भ्रष्ट-ऐशो आराम की जिंदगी जीने में व्यस्त कर दिया!
अब मोदी-शाह के पास मित्रों की पूंजी का पावर है तो आरएसएस के पास वैक्सीन का ओवरडोज लिए बीमार कार्यकर्ता है।
अब आरएसएस के कार्यकर्ताओं के पास 75 साल की उम्र वाली महामानव द्वारा गढ़ी नैतिकता का तुरुप का पत्ता है तो दूसरी तरफ भारतीय समाज,संस्कृति को साथ लेकर नितिन गडकरी जैसा विद्वान नेता!
मोहन भागवत जी योगीजी से बात कर रहे है!लेकिन यह मामला जमेगा नहीं।यूपी की हार की समीक्षा जूतमपैजार होती हुई सड़कों पर देखी गई है!एक साल बाद जब मोदीजी 75 साल के हो जाएंगे उस समय लड़ाई सड़कों पर आएगी!
आरएसएस में कितना ईंधन बचा है वो इस बात से तय होगा कि ठीक एक साल बाद शांतिपूर्वक सत्ता का हस्तानांतरण होगा कि नहीं।अगर सामंजस्य नहीं बैठेगा तो आरएसएस व बीजेपी में से एक का खत्म होना तय है।
अगर पूंजीवाद ने मजबूती पकड़ी तो आरएसएस का तिलिस्म टूट जाएगा और अगर समाजवाद की धारणा ने जोर पकड़ा तो बीजेपी हाशिये पर चली जायेगी और संघ बच जाएगा।
विपक्षी दलों में ही नहीं बल्कि सत्ता विरोधी सोच वाले तमाम नागरिकों के बीच भी नितिन गडकरी एक स्वीकार्य नेता है।अगर 75 साल की उम्र सीमा लागू हुई व नितिन गडकरी प्रधानमंत्री बनते है तो आरएसएस व बीजेपी दोनों को बचने का अवसर मिल सकता है!
आक्रोश बहुत था लेकिन पूंजी के बल पर,मीडिया पर कब्जा करके किसी न किसी तरह बच गए,यह सहूलियत अब आगे नहीं मिलनी है!
Prem Singh Sihag
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