Maharaj फिल्म समीक्षा : वाडो के काले कारनामो को उजागर करती वास्तविक घटना पर आधारित ये फिल्म - न केवल पाखंड को उजागर करती हैं बल्कि थाईलैंड से आयातित धार्मिक पाखंडो के पाप से भरे घड़े को भी फोड़ती हैं.
उत्तर भारत में यह धार्मिक उन्माद नया नया हैं इसलिए यहाँ ऐसा नहीं हुए लेकिन इस धार्मिक ढांचे के इतिहास इतना कला हैं की मंदिर की मुर्तिया भी काली बनायीं जाती थी.
धर्मांध और अंधविस्वास में लिप्त लोगो को इस फिल्म को जरूर देखना चाहिए. की कैसे भगवान और धर्म के नाम पर मंदिर बनाए गए और फिर उनके नाम पर लूट और शोषण की शुरुआत हुई. कैसे धर्म को धंधा बनाया गया और कैसे इनका भगवान अपने मुँह पर कालिख पोते मंदिर की मूर्ति में मृत पड़ा रहा.
इतिहास : समय क्या नहीं करवाता 1400 ईस्वी में थाईलैंड कल्चर भारत में दस्तक देता हैं. पहली शताब्दी से ही सिल्क रुट पर इजिप्ट और थाई मनोविज्ञान विशाल चर्चा का विषय था. छठी शताब्दी तक इस मनोविज्ञान की अनेको तकनीके अपभ्रंश होकर विकृत परम्परावादी धार्मिकता का रूप ले रही थीं. जैसे आजके समय में नेता अभिनेता यूटूबर आदि प्रसिद्ध हैं. ऐसे ही 7 सदी से लेकर 14 वि सदी तक के इस दौर में लेखन प्रसिद्धि का मुखर विषय बना. इंडियन रीजन ( अफगान बॉर्डर से लेकर इंडोनेशिया तक ) थाई कम्बोडियन और इंडोनेशिया ये तीन ऐसे क्षेत्र थे जहा मनोवैज्ञानिक विषयो से अनेको कहानिया सांस्कृतिक परम्पराओ में विकसित हो चुकी थीं.
चोल सशको के दरबारों में नाटक करने वाले निषाद नट उन कहानियो को कॉपी कर प्रदर्शित नाटकीय रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं. थाईलैंड कम्बोडिआ ऐसे क्षेत्र रहे हैं जहा सबसे पहले मंदिरो (วัด वाड - थाई भाषा में मंदिर को वाड कहा जाता हैं. वाड एक ऐसा अधिकृत क्षेत्र जो चारो और से सुरक्षित स्थान हो ) इसलिए थाई राजा इस वाड में विशेष रूप से रहता हैं. आज भी थाई राजा राम (दसम ) अपने वाड (मंदिर ) में रहता हैं.
वजिरालंकरण 16 अक्टूबर 2016 को 64 वर्ष की आयु में थाईलैंड के राजा बने. लेकिन राजगद्दी पर अपने पिता के निधन के 50 दिवसीय शोक के पश्चात् दिसम्बर 01, 2016 को आसीन हुए. इन्हें "फरा राम दशम" की उपाधि से अलंकृत किया गया. रामकियेन ( रामायण ) थाईलैंड का राष्ट्रिय ग्रन्थ हैं.
ऐसे ही वाड चोल शाशको ने बनवाए जिन्हे वो चोलेश्वर ( चोलो के ऐश्वर्य का स्थान ) कहते हैं. आज ये वाड़े दक्षिण के अनेको मंदिरो में बदले गए है. ऐसे ही एक वाड़े और उसके धार्मिक महाराज और शोषिक धार्मिक अंधभगति की वास्तविक घटना पर आधारित फिल्म है Maharaj - जिसमे Jaideep Ahlawat ने महाराज का रोल निभाया है और करसनदास मुलजी का रोल निभाया है Amir Khan के बेटे Junaid Khan ने. फिल्म के लेखक है Saurabh Shah.
फिम्ल में फिल्म निर्माण नियमो के तहत और धार्मिक माहौल को देखते हुए थोड़ा बैलेंस करके दिखाया गया हैं. ताकि लोग बेवजह विरोध न करें. हालाँकि धार्मिक पाखंडियो ने भोली भली जनता का शोषण किया हैं वो दिखने लायक और बताने लायक भी नहीं हैं.
लेकिन फिल्म का मुख्य प्लाट थाईलैंड ये आयातित धार्मिक पाखंड के इतिहास को प्रत्यक्ष रूप से उजागर करता हैं. पुरे देश के धर्मांध लोगो को इसे देखना चाहिए और इन धार्मिक पाखंडो से खुद को बचाकर आने समाज को भी करसनदास मुलजी की तरह जागरूक करना चाहिए. इन मंदिरो की कोई महानता नहीं हैं ये शोषण के काले इतिहास और अश्लीलता को समेटे हुए हैं. इसलिए दक्षिण के सभी मंदिरो की मुर्तिया भी काली मिलेंगी क्योकि ये कालिख इनके निर्माताओं के चेहरे की हैं.
कर्म ही धर्म हैं और वास्तविकता से स्पष्ट वाकसिद्धि से परिपूर्ण अंधविस्वासो से मुक्त सार्थक और सत्य को धारण करना वास्तविक धर्म हैं. किसी भी कल्पना अंधविस्वास और पाखंड में धर्म नहीं हैं. धन्वयाद
~Rajesh Dhull
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