Wednesday, 17 July 2024

पंजाब बँटवारा चौधर की लड़ाई थी और रुकावट जाट थे?

मुस्लिम लीग और अकाली दल ने पंजाब के बँटवारे के लिए अपनी अपनी योजना बना रखी थी पर इसमें उनके लिए जाट बड़ी बाधा थे? यह बात अकाली कॉन्फ्रेंस और मुस्लिम लीग कॉन्फ्रेंस मे दी गई स्पीचेस से सिद्ध होती है। अगर दोनों के भाषणों के शब्दों को गौर से पढ़ें तो साफ समझ आता है कि यह बंटवारा वर्ग वर्चस्व के लिए था। क्योंकि उस दौर में पंजाब पॉलिटिक्स की मुख्य बुनियाद जमींदार बनाम गैर-जमींदार थी। जब भी पंजाब एसेम्बली में किसानों के हित का कोई भी कानून आया तो सभी धर्मों के गैर जमींदार इकट्ठा खड़े दिखे।


14 मार्च, 1943 को पटियाला के भवानीगढ़ में ऑल इंडिया अकाली कॉन्फ्रेंस में मास्टर तारा सिंह ने आज़ाद पंजाब स्कीम पर बोलते हुए कहा, आज़ाद पंजाब बनने से न केवल आज़ाद पंजाब के सिखों और हिंदुओं को वर्तमान पाकिस्तान से छूटकरा मिल जाएगा बल्कि पंजाब का जो हिस्सा वर्तमान पंजाब से कट जाएगा, वहाँ रहने वाले सिख और हिन्दू भी बेहतर स्थिति में रहेंगे। उन्होने आगे बताया कि समूहिक तौर पर वे हिन्दू जाटों और अछूतों के बिना 40% (15% सिख और 25% हिन्दू) हो जाएंगे। इन 40 प्रतिशत के सांझा आर्थिक और सांस्कृतिक हित उनके बीच सामंजस्य पैदा करेंगे और इसलिए वे वर्तमान पंजाब की तुलना में अपने हितों की रक्षा करने के लिए बेहतर स्थिति में होंगे। जाटों और आछूतों की मानसिकता, जो वर्तमान पंजाब में हमेशा कुछ लाभ प्राप्त करने के लिए मुसलमानों का समर्थन करते हैं, आज़ाद पंजाब में बदल जाएगी। (The Indian Annual Register, Vol-I, 1943, page 294)

मास्टर तारा सिंह के इस भाषण में “इन 40 प्रतिशत के सांझा आर्थिक और सांस्कृतिक हित उनके बीच सामंजस्य पैदा करेंगे और इसलिए वे वर्तमान पंजाब की तुलना में अपने हितों की रक्षा करने के लिए बेहतर स्थिति में होंगे” वाक्य साफ दर्शा रहा है की उनकी मंशा क्या थी? कैसे सफाई से उन्होनें हिन्दू अलग और हिन्दू जाट व अछूत अलग कर दिये। दरअसल यही सभी धर्मों के जाटों की एकता और जाटों के साथ दलितों का खड़े रहना ही इन लोगों को अखर रहा था। यूनियनिस्ट सरकार में जो कानून बने वह सभी एक तरह से इनके वर्ग के विरोधी थे।

खैर, 19 जून 1943 को अखंड हिंदुस्तान कॉन्फ्रेंस में बाबा खड़क सिंह ने मास्टर तारा सिंह की इस आज़ाद स्कीम का विरोध कर दिया। बाबा खड़क सिंह ने कहा, मास्टर तारा सिंह और जिन्नाह की आज़ाद पंजाब और पाकिस्तान योजनाएँ देश को तोड़ने की योजनाएँ हैं। 1943 में ही लाहौर में एंटी-पाकिस्तान कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए बाबा खड़क सिंह ने कहा, हम सिख शपथ लेते हैं कि यदि जिन्नाह और मास्टर तारा सिंह ने देश को तोड़ने की बात की तो हम उनके साथ संघर्ष करेंगे, क्योंकि आज़ाद पंजाब और पाकिस्तान की बात करना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ।(The Indian Annual Register, Vol-I, 1943, page 295)

इसके बाद अकाल दल में भी इस मुद्दे पर फूट पड़ गई। क्योंकि सभी को मास्टर तारा सिंह का जातिवादी मंसूबा समझ आने लगा था। नवंबर 1943, ननकाना साहिब में ऑल इंडिया अकाली कॉन्फ्रेंस के अधिवेशन में हरचरन सिंह बाजवा ने आज़ाद पंजाब स्कीम का विरोध कर दिया। बाजवा ने एंटी-आज़ाद पंजाब कॉन्फ्रेंस का गठन कर सिखों को आकलियों की इस राजनीति के वीरुध जागृत करना शुरू कर दिया।

मास्टर तारा सिंह के साथ जमींदार वर्ग से प्रताप सिंह कैरो जैसे युवा एमएलए, सरदार बलदेव सिंह आदि जो जुड़े हुए थे वे भी दूर हटते चले गए। सरदार बलदेव सिंह ने तो 12 मई, 1946 को रावी से लेकर दिल्ली, मेरठ डिविजन और आगरा डिविजन को मिलाकर Jatistan बनाने की मांग कर दी। इसको लेकर उन्होनें भरतपुर, अजमेर और पंजाब में सभाएं भी की थी। बाबा खड़क सिंह ने इसका भी विरोध किया था कि ये पंथ के खिलाफ काम है। दोनों ही मांगों का विरोध ये तो बताता है कि बाबा खड़क देशभक्त इंसान थे परंतु जब पंजाब एसेम्बली में मंडी एक्ट लाया गया था तो बाबा खड़क सिंह उसके विरोध में डॉक्टर गोकुल चंद नारंग एंड टीम के साथ खड़े थे, साथ ही नहीं बल्कि उस कानून के विरोध के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था, वो उसका हिस्सा भी थे। (Civil and Military Gazatte newspaper 1946, The Times Of India newspaper 1938)

पंजाब के विभाजन कि बात करने वाले मुस्लिम लीग से जुड़े मुस्लिमों को भी जाट अखर रहे थे। उन्हें भी अपने मंसूबे में जाट बड़ी रुकावट दिख रहे थे। 29 अगस्त 1943 को चक न० 258/जी॰बी, जिला लयालपुर में लीग की बैठक हुई। बैठक की अध्यक्षता मौलवी जमाल मियां (फिरंगी महल लखनऊ से) ने की। बैठक में पंजाब में चौधरी छोटूराम की गतिविधियों की निंदा की और मुस्लिम जाटों को जाट महासभा से दूर रहने का अनुरोध किया गया। (Azad Punjab Scheme, Akhtar Sandhu, Page 51)

चौधरी छोटूराम और जाट महासभा पंजाब के बँटवारे में सबसे बड़ी बाधा थे। चौधरी छोटूराम ने लयालपुर की एक सभा में कहा था की पाकिस्तान की मांग पूंजीवादियों की मांग है। और उनकी बात सही भी थी। पंजाब की उस दौरान की राजनीतिक गतिविधियां देख लीजिये या अब की, एक बात स्पष्ट है कि ऊपरी तस्वीर कुछ और होती है अंदर में असल मे सारा संघर्ष अपने वर्ग के वर्चस्व लिए ही होता है। मास्टर तारा सिंह का भाषण पढ़ लीजिये या बाबा खड़क सिंह का मंडी एक्ट के विरोध मे खड़े होना, सब एक बात स्पष्ट करते है कि जब बात खुद के वर्ग पर आती है तो सारे आदर्श धरे रह जाते हैं। यही बात आज भी लागू है। हाल का किसान आंदोलन इसका ताजा उदाहरण है। सिख धर्म वाले किसान आंदोलन में बड़ी संख्या में साथ खड़े इसलिए दिखे क्योंकि इसमें किसान-कामगार बहुसंख्यक हैं।

-राकेश सिंह सांगवान



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