Wednesday, 23 October 2024

तब तक आप इस पुराणे इतिहास को महशुस करी - घेर

ग्रामीण भारत की घर घेर प्रणाली एक मजबूत सामाजिक व्यवस्था का आधार।

हरियाणा के भीतरी इलाकों में घुमने के बाद एक पुरातन व्यवस्था की ओर ध्यान गया जो इस इलाके से लेकर राजस्थान व उत्तरप्रदेश तक प्रचलित है।

रहने के लिए सब जगह जैसे घर होता है यहां घर के अलावा एक घेर भी होता है।

घर पर महिलाओं का अधिपत्य होता है जबकि घेर में पुरुष सत्ता का अधिपत्य होता है।

घेर में उठने बैठने बातें करने और स्वतंत्र रूप से आने जाने की समाजिक सुविधा होती है।


घेर और घर के बीच में एक लॉजिस्टिक सप्लाई लाइन होती है जिसे अक्सर युवा मैनेज करते हैं। चाय खाना जैसे जिसकी जरूरत होती है युवा दौड़ लगाते रहते हैं।

जिन जातियों समाजों ने घर घेर की व्यवस्था बनाई हुई है वो समाजिक रूप से ज्यादा समृद्ध है। उनकी सामाजिक बॉन्डिंग बाजारवाद के इस युग में भी बची हुई है कायम है और मजबूत है।

घर में आने जाने से बाहरी लोग हमेशा परहेज ही करते हैं क्योंकि हमारी संस्कृति ही ऐसी है इसीलिए सब लोग निर्बाध रूप से आ जा सके तो घर के एक्सटेंडेड वर्जन घेर का आविष्कार किया गया था।

कुछ दिन पहले मे जीद जिले म एक मित्र के घेर में रुके था जहां उनके पिता जी और चाचा जी व उसके  मित्रों  से भी मुलाकात हुई थी।

चाय के दौर चलते रहे और हंसी मजाक ठठा भी खूब हुआ।

घेर में आम तौर पर पशु भी होते हैं जहां उनका बेहतर ध्यान रखा जाता है।

मित्र के पिता जी ने आज के मॉडर्न दौर में घेर की प्रासंगिकता पर बात हुई तो उन्होंने बताया कि फ्लैट सिस्टम या एकल घर प्रणाली में जहां घेर नहीं होता है वहां महिलाओं और पुरुषों को एक ही छत के नीचे सारा दिन रहना पड़ता है तो वे ज्यादा खटपट और खिंचाव को महसूस करते हैं।

हम सारा दिन घेर में रहते हैं वहीं से अपने सारे प्रोफेशनल और सोशल अफेयर्स मैनेज करते हैं जिससे घर पर अनावश्यक साईकोलॉजिकल दबाव नहीं बनता है और भाईचारा भी बेहतर मजबूत होता है।

घेर का कंट्रोल सीनियर बुजुर्गों के हाथ में रहता है छोटे बालकों की वहां ट्रेनिंग चलती रहती है। घेर के सभी काम बालकों को सीनियर्स की देख रेख में करने होते हैं


घेर के बिना घर मुझे अधूरे जैसा लगने लगा है।

आज से अगले 10 दिन तक छत्तीसगढ मे कुछ भाइयो से उनके फार्म व घेर पर मुलाकात करने की कोशिश करुगा 

सब भाइयो को नमस्कार राम राम  🙏 सतीश दलाल 🙏

No comments: