जब हम छोटे थे तो हमारे घर में चार धुंए की फैक्टरियां थी। उनमें से एक तो पार्ट टाइम थी। यानी चूल्हे पर सुबह- शाम खाना और रोटियां बनती थी। दूसरी फैक्ट्री होती थी, जिसमें गर्म होने के लिए दूध रखते थे, वह लगभग 8 घण्टे धुंआ छोड़ती थी। तीसरी फैक्ट्री थी, जिस पर पशुओं के लिए बिनोले पकते थे। और चौथी फैक्ट्री थी, जिसमें सभी के लिए पानी गर्म होता था। इसके इलावा सर्दियों में गर्मी के लिए खूब भूसा जलाया जाता था। इसके इलावा पशुओं के मच्छरों से बचाव के लिए भी धुआं करते थे। इसके इलावा धान की पैराली भी जलती थी। इसके इलावा, खास कर आज से पंद्रह दिन पहले, कोल्हू भी चलने लगते थे, और वहाँ दिन रात गुड़ पकता था। औऱ ऐसी फैक्टरियाँ घर- घर होती थी। यानी एक गांव में हजारों फैक्टरियाँ ,और अकेले हरियाणा में लगभग 6600 गांव और शायद 9000 के करीब पंजाब में।
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Tuesday 22 October 2024
हमारे घर में चार धुंए की फैक्टरियां थी!
लेकिन किसी ने गांव, देहात, किसान को प्रदूषण के लिए आरोपित नही किया। अब लगभग देहात के सभी धुंआ उद्योग बन्द हो चुके हैं। केवल एक पराली जलाते हैं लेकिन इन हराम खोरों ने किसान को बदनाम कर के रख दिया। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।सारा प्रदूषण केवल और केवल इंडस्ट्री/उद्योग/ फैक्ट्री से होता और बदनाम गरीब किसान को करते हैं। और ऐसे ही ये कर्णधार हैं, जिनको हम ही चुन कर भेजते हैं। और ज्यादातर हैं भी गांव देहात से, लेकीन चु भी नही करते।
Dr Mahipal Gill
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