Friday 30 July 2021

जिसकी जितनी विधवा औरतें, विधवा आश्रमों में सड़ती हैं, वह जाति, वह वर्ण, वह वर्ग उतना ही बड़ा स्वर्ण व् कुलीन!

इस देश की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यहाँ स्वर्ण व् कुलीन वह समाज कहलाता है जिसकी सबसे ज्यादा औरतें विधवा होने पर, दिवंगत पति की प्रॉपर्टी से बेदखल कर हरद्वार से हुगली तक के व् वृन्दावन के विधवा आश्रमों में आजीवन सड़ने हेतु फेंक दी जाती हैं| अगर इस स्वघोषित स्वर्ण व् कुलीन वर्ग को इसकी औकात में रखना है तो इसकी यह कमजोर नश दबाओ| इन अबला-असहाय औरतों को, जो कि इन विधवा आश्रमों में अघोषित वेश्याओं सी जिंदगी जीने को मजबूर होती हैं, इनको इन स्वघोषित स्वर्ण-कुलीनों के चंगुल से छुड़वाने का अभियान चलाओ; पहले इस विषय पर सार्वजनिक चर्चाएं ही चल जाएँ तो फिर देखो इन तथाकथित सर्वणों के घमंड, ज्ञान, manipulation व् polarisation स्किल्स का कैसे कूप सा धधक-धधक जलता है|

और कुछ समाज ऐसे हैं जो विधवाओं को पुनर्विवाह की व्यवस्था दे कर भी, दिवंगत पति की प्रॉपर्टी पर उसका हक़ आजीवन यथावत रख कर भी, क्रूर-तालिबानी-निर्दयी बतवा दिए जाते हैं व् वह समाज अपनी इस इतनी पॉजिटिव व् महान मानवता व् जेंडर सेंसिटिविटी की KINSHIP को इतना भी प्रचारित व् अपनी औरतों में नहीं जगाते कि वह समाज विधवाओं को विधवा आश्रमों में साड़ने वाले तथाकथित स्वर्ण परन्तु नियत व् नीति से फंडी समाज, उसकी सॉफ्ट-टार्गेटिंग से अपने आपको बच/बचा सकें| असली स्वर्ण ये हैं जो फंडियों की तुलना में महिला के प्रति इतनी वास्तविक कुलीनता व् सभ्यता बरतते हैं, परन्तु ढंग से अपनी KINSHIP को carry-forward नहीं करवाने के चलते क्या-क्या तो नहीं झेलते ये, 35 बनाम 1 से ले क्या-क्या नहीं?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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