Sunday, 27 September 2015

जाटो या तो आर्यसमाजी रह के मूर्तिपूजा से निषेध के ही रास्ते पे चलो अन्यथा अपने जाट महापुरुषों की मूर्तियां बना के उनको पूजो!

अगर जाट समाज ने अपना आर्य-समाज का मूर्ती-पूजा विरोधी होने का सिद्धांत त्याग दिया है तो फिर अपने जाटों महापुरुषों, अवतारों और यौद्धेयों की ही मूर्तियां बनवानी और पूजवानी शुरू कर दो; वरना अपने मूर्ती-पूजा विरोधी के स्टैंड पे ही कायम रहो!

वैसे जाट मूर्ती उपासक जरूर रहा है परन्तु पूजक नहीं और यही हमारा आर्य समाज कहता आया है| तो फिर अब अगर उपासक से पूजक बन ही रहे हो तो फिर "गॉड गोकुला" को पूजो, "महाराजा सूरजमल" को पूजो, "जाटवान जी महाराज" को पूजो, "दादिरानी भागीरथी महारानी" को पूजो, "महाराजा हर्षवर्धन" को पूजो, "बाला जी जाट जी" को पूजो, "वीर तेजा जी" को और बड़े स्तर पर पूजो, "रामलाल खोखर जी" को पूजो, "बाबा शाहमल तोमर" जी को पूजो, "सर छोटूराम जी" को पूजो, "बाबा टिकैत" के मंदिर बनवाओ, "चौधरी चरण सिंह" के मंदिर बनवाओ, "ताऊ देवीलाल" के मंदिर बनवाओ, "दादिरानी समाकौर" को पूजो, "दादिरानी भंवर कौर" को पूजो, "धन्ना भगत" जी की भक्ति को और फैलाओ, "दादा भूरा जी और निंघाहिया" जी को पूजो, "जाट हरफूल जुलानी वाले" के मंदिर बनवाओ, "राजा नाहर सिंह" जी को पूजो, "सरदार भगत सिंह" जी को पूजो, "महाराजा रंजीत सिंह जी" को पूजो, "महात्मा गौतम बुद्ध" को पूजो, "भगत फूल सिंह को पूजो|

दिखती सी बात है राजा-महाराजा के नाम पर जब "राजा राम" की पूजा हो सकती है तो हमारे वालों की भी हो सकती है| और जितनी चाहिए लम्बी चाहिए उतनी लम्बी लिस्ट बना देता हूँ, हमारे जाट समाज के ही अपने देवी-देवताओं की, जो कि वासतव में हो के भी गए और हमें और समाज को भी गौरवान्वित करके गए|

कहने का अर्थ यही है जाट-समाज कि या तो अपनी मूर्ती-विरोधी आर्य-समाजी विचारधारा को पकडे रहो अन्यथा हर मंदिर में जाट देवी-देवता बैठा दो| और अपने ही समाज के पुजारी और कर्मचारी बैठा दो|
इससे हिन्दू धर्म को भी आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि हम खुद हिन्दू हो के हिन्दू की मूर्ती बना के उसकी पूजा करेंगे तो कौन हिन्दू ऐतराज करेगा, या करेगा कोई? वैसे भी तैंतीस कोटियों में तैंतीस करोड़ से ज्यादा देवी-देवता हैं, उसमें पचास-साथ, सौ-दो सौ हमारे और सही।

पूर्णत: मूर्तिपूजा निषेध रखा तो सबसे अग्रणी समाज बने; अब मूर्तिपूजा में उतर रहे हो तो फिर अपनों की मूर्तियां बनवा के उनको पूजो| वर्ना वो दिन दूर नहीं जब "धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का" और "कौवा चला हंस की चाल, अपनी ही चाल भूल बैठा वाली बनेगी| जी हाँ मूर्ती पूजा निषेध के हम हंस हैं, परन्तु मूर्ती-पूजा के कव्वे| लेकिन अगर मूर्ती-पूजा के भी हंस बनना है तो अपनों की मूर्तियां बना के पूजो, वर्ना हंस से कव्वे बनने का दिन दूर नहीं| बाकी मूर्ती-पूजा निषेध के तो हम हंस पहले से हैं ही|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

हरयाणा सीएम खट्टर साहब, "व्यापारी को बावन बुद्धि होवें तो जाट को छप्पन होवें!"

लेख का उद्देश्य:
1. हरयाणा सीएम खट्टर साहब की तरह कंधे से ऊपर की मजबूती दिखाने बाबत!
2. हर हरयाणवी किसान का बालक अब सर छोटूराम बन जाओ, जिन्होनें इनकी हर घिनौनी चाल की गाँठ बाँध के रख दी थी। और रोया करते थे एकमुश्त उनकी चालों के आगे!

चौधरी छोटूराम जी की पहली शिक्षा थी कि हमें धार्मिक तौर पर कभी भी कट्टर व रूढ़िवादी नहीं होना चहिये। उस समय संयुक्त पंजाब में 55 हजार सूदखोर थे, जिनमें से लगभग 50 हजार सूदखोर पाकिस्तान के पंजाब में थे और इनमें अधिकतर अधिकतर वहाँ के हिन्दू अरोड़ा/खत्री व्यापारी थे। ये सभी लगभग सिंधी, अरोड़ा-खत्री हिन्दू थे, क्योंकि इस्लाम धर्म में सूद (ब्याज) लेना पाप माना गया है। उस समय पंजाब की मालगुजारी केवल 3 करोड़ थी। लेकिन सूदखोर प्रतिवर्ष 30 करोड़ रुपये ब्याज ले रहे थे। अर्थात् पंजाब सरकार से 10 गुना अधिक। उस समय पंजाब में 90 प्रतिशत किसान थे जिसमें 50 प्रतिशत कर्जदार थे।

जब गरीब किसान व मजदूर कर्जा वापिस नहीं कर पाता था तो उनकी ज़मीन व पशुओं तक यह सूदखोर गहन रख लेते थे। चौ॰ छोटूराम की लड़ाई किसी जाति से नहीं थी, इन्हीं सूदखोरों से थी, जिसमें कुछ गिने-चुने दूसरी जाति के लोग भी थे। ये सूदखोर लगभग 100 सालों से गरीब जनता का शोषण कर रहे थे। उसी समय कानी-डांडी वाले 96 प्रतिशत, तो खोटे बाट वाले व्यापारी 49 प्रतिशत थे। किसानों का भयंकर शोषण था। हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों के अखबार चौ. साहब के खिलाफ झूठा और निराधार प्रचार कर रहे थे कि “चौधरी साहब कहते हैं कि वे बनियों की ताखड़ी खूंटी पर टंगवा देंगे।” इस प्रचार का उद्देश्य था कि अग्रवाल बनियों को जाटों के विरोध में खड़ा कर देना। जबकि सच्चाई यह थी कि चौधरी साहब का आंदोलन सूदखोरों के खिलाफ था, जिनमें अधिकतर अरोड़ा/खत्री जाति के थे। उसके बाद यह प्रचार भी किया गया कि चौधरी साहब ने अग्रवाल बनियों को बाहर के प्रदेशों में भगा दिया। जबकि सच्चाई यह है थी कि अग्रवालों का निवास अग्रोहा को मोहम्मद गौरी ने सन् 1196 में जला दिया था जिस कारण अग्रवाल समाज यह स्थान छोड़कर देश में जगह-जगह चले गये थे और यह अभी अग्रोहा की हाल की खुदाई से प्रमाणित हो चुका है कि अग्रवालों ने इस स्थान को जलाया जाने के कारण ही छोडा था। (पुस्तक - अग्रसेन, अग्रोहा और अग्रवाल)।

संयुक्त पंजाब में महाराजा रणजीतसिंह के शासन के बाद से ही इन सूदखोरों ने किसान और गरीब मजदूर का जीना हराम कर दिया था। क्योंकि अंग्रेजी सरकार को ऐसी लूट पर कोई एतराज नहीं था क्योंकि वे स्वयं भी पूरे भारत को लूट रहे थे। एक बार तो लार्ड क्लाइव 8 लाख पाउण्ड चांदी के सिक्के जहाज में डालकर ले गया जिसे इंग्लैण्ड के 12 बैंकों में जमा करवाया गया। इस पर अमर शहीद भगतसिंह ने भी अपनी चिंतन धारा में स्पष्ट किया था कि “उनको ऐसी आजादी चाहिए जिसमें समस्त भारत के मजदूरों व किसानों का एक पूर्ण स्वतंत्र गणराज्य हो तथा इसके लिए किसान और मजदूर संगठित हों।”

इसी बीच जब 1947 में अलग से पाकिस्तान बनने की चर्चायें चलीं तो काफी सूदखोर पाकिस्तान में ही रहने की संभावनायें तलाशने लगे थे, लेकिन अलग पाकिस्तान की घोषणा होते ही मुस्लिमवर्ग में एकदम इन शोषणकारियों के विरुद्ध गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने बदले की भावना से प्रेरित होकर शोषणकारी अरोड़ा/खत्री हिन्दुओं की हत्या करनी शुरू कर दी। उस समय सिक्ख भी हिन्दुओं के रिश्तेदार थे इस कारण वे भी इस गुस्से के शिकार हुये। इस पर हिन्दू और सिखों ने पाकिस्तान से भागना प्रारंभ कर दिया, जिसमें काफी को उनके घरों व रास्ते में मुसलमानों ने कत्ल कर दिया| जिसमें लगभग 1 लाख हिन्दू व सिक्ख मारे गये और लगभग 1 करोड़ बेघर हो गये| जबकि हिन्दुस्तान व पाकिस्तान की सरकारों ने कभी किसी मुस्लिम व हिन्दू को देश छोड़ने का आदेश नहीं दिया। (समाचार पत्रों के अनुसार)

ज्यों ही ये मारकाट के समाचार पाकिस्तान के पंजाब से हमारे पंजाब में पहुंचे तो सिक्ख व् हिन्दू जाटों व अन्य ने इन हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों पर हुए अत्याचार की प्रतिक्रिया स्वरूप मुसलमानों को मारना शुरू कर दिया। इस सच्चाई को पंजाब के तत्कालीन गर्वनर मिस्टर ई. एम. जैनकिम्स का पत्र दिनांक 4-8-1947 पूर्णतया सिद्ध करता है कि सबसे पहले दंगे 4 मार्च से 20 मार्च तक लाहौर में भड़के फिर 11 और 13 अप्रैल को अमृतसर में। उसके बाद फिर 10 मई को गुड़गांव जिले में भड़के और इस प्रकार लगभग सारे संयुक्त पंजाब में फैल गए। हिन्दू पंजाबी अखबारों में हिन्दु मृतकों की संख्या लाखों में बतलाई लेकिन राजपाल के इस पत्र के अनुसार पंजाब में कुल 4632 लोग मारे गए और 2573 घायल हुए। जिसमें देहात में 1044 और शहरों में 3588 मारे गए। इससे सिद्ध होता है कि अखबारों के आंकड़े बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लिखे गए ताकि अधिक से अधिक मुआवजा व सहानुभूति बटोरी जा सके। गवर्नर ने अपने पत्र में साफ टिप्पणी की है कि “On the morning of March 4th 1947 rioting broke out in Lahore first. Rohtak disturbances were directly connected with those of in western unit provinces” अर्थात् “4 मार्च 1947 को सबसे पहले लाहौर में दंगे भड़के जो रोहतक में सीधे तौर पर दंगे भड़कने का कारण था।” यही इसका प्रमाण है। इसी प्रकार हरयाणा क्षेत्र में हिन्दू जाटों व अन्य ने मुसलमानों को मारना शुरू किया। प्रांरभ में यह किसी भी प्रकार का धार्मिक दंगा नहीं था, यह तो शोषण के विरोध में मुसलमानों की बदले की भावना की प्रतिक्रिया थी जो मारकाट के रूप में परिवर्तित हुई। हमने हिन्दू शरणार्थियों के मुँह से सुना है कि जो मुसलमान उनके घर की दहलीज पर बैठकर उन्हें सलाम करते थे वही हिन्दू व सिखों के सबसे कट्टर दुश्मन बने, इसका स्पष्ट कारण मुसलमानों का शोषण था। यह किसी भी प्रकार से प्रांरभ में हिन्दू मुस्लिम दंगा नहीं था, यदि ऐसा होता तो पड़ोस के कश्मीर में उस समय किसी भी एक हिन्दू या मुसलमान की हत्या क्यों नहीं हुई?

इसको बाद में हिन्दू-मुस्लिम धार्मिक दंगे का रूप दिया गया और इसके बाद इस बारे में आज तक अनेक फिल्में, पुस्तकें व लेखों आदि के माध्यम से इसे दंगा ही प्रचारित किया जाता रहा है क्योंकि पत्रकार व फिल्मकार इसी वर्ग से अधिक रहे हैं। जिससे शरणार्थियों के लिए यहाँ के हिन्दू व सिखों से पूरी-पूरी सहानुभूति बटोरी जाती रही है और वे यहां बसने में तथा लूट मचाने में सफल रहे।

इसी प्रकार हरयाणा क्षेत्र में बेगुनाह मुसलमानों का कत्ल किया गया तथा उन्हें यहाँ से भगाया गया। जबकि उनका कोई भी कसूर नहीं था, वे सभी तो हम हिन्दुओं के ही बीच से कभी मुसलमान बने थे, हमारी भाषा बोलते थे, हरयाणवी संस्कृति के पालक थे तथा सभी हिन्दू त्यौंहारों को हमारी तरह मनाते थे। ये सभी चौ० छोटूराम के कट्टर समर्थक थे और इस सच्चाई को कोई झुठला नहीं सकता। लेकिन हम लोगों ने उनको सदा-सदा के लिए पाकिस्तान में मुहाजिर (शरणार्थी) बना दिया और दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया। क्योंकि वे भी हमारी ही तरह सीधे-साधे लोग थे जिनको पाकिस्तानी मुसलमानों ने कभी भी अपने गले नहीं लगाया। क्योंकि वहां भी पूर्व प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ सहगल (हिन्दू खत्री) जैसे लोग थे। जबकि हम लोगों ने आने वाले शरणार्थियों का कभी विरोध नहीं किया, क्योंकि हम भी दिल के साफ़ थे, आज तक भी हैं।

पाकिस्तान से आनेवाला लगभग पूरे का पूरा हिन्दू अरोड़ा/खत्री समाज सामान्य वर्ग से सम्बन्ध रखता है, जैसे कि हरयाणा में जाट समाज। जाने वाले मुसलमान लगभग सभी के सभी अनपढ़ व पिछड़ा वर्ग था, लेकिन पाकिस्तान से आनेवाले हिन्दू व सिक्ख अधिकतर पढ़े लिखे थे, क्योंकि अंग्रेजों ने भारत में कलकता, मद्रास, बम्बई तथा इलाहबाद के बाद पांचवां विश्वविद्यालय लाहौर में ही स्थापित किया था। दिल्ली कॉलेज जो सन् 1864 में स्थापित किया गया, को भी सन् 1877 में लाहौर हस्तांतरण कर दिया गया था। इसी प्रकार दिल्ली से पहले लाहौर में सन् 1865 में उच्च न्यायालय स्थापित किया जिसके पीछे अंग्रेजों के अपने स्वार्थ जुड़े थे।

इस प्रकार आने वाले शिक्षित शरणार्थियों ने अपनी जो भी योग्यता बतलाई, उसी को उस समय भारत सरकार व पंजाब सरकार को मानना पड़ा क्योंकि पाकिस्तान से इसकी तसदीक (verification) करना संभव नहीं था। इन्होंने अपनी शैक्षिक योग्यता को झूठा लिखवाकर नौकरियां पाई| क्योंकि दंगों और पलायन का बहाना बनाकर डिग्रियां खोने या गुम हो जाने के बहाने जो चौथी कक्षा तक पास था उसने 8वीं लिखवाई और 8वीं वाले ने 10वीं और 10वीं वाले ने अपने आप को एफ.ए. लिखवाकर आते ही स्थनीय लोगों की नौकरियोंं पर कब्जा कर लिया| यह है इनकी बड़े-बड़े अफसर बनने के पीछे की मेहनत का राज और स्थानीय हरयाणवियों के रोजगार पे झूठ बोल के डाका|

इस प्रकार मुट्ठीभर हिन्दू अरोड़ा/खत्री शरणार्थी आज हरयाणा में लगभग 36.94 प्रतिशत राजपत्रित नौकरियों पर कब्जा किया हुआ है जो लगभग सारे का सारा जाट समाज का हिस्सा है, जबकि प्रचार यह किया जाता रहा कि दलित समाज जाटों की नौकरी हड़प गया। हरयाणा में सामान्य वर्ग में लगभग 32 प्रतिशत जाट (सिख जाट+मूला जाट को मिलाकर) हैं, इस प्रकार मुसलमानों को काटकर जाटों ने अपनी कुल्हाड़ी से अपने ही पैर काट लिये।

सन् 1901 के जमीन एलीगेशन एक्ट के तहत पुराने पंजाब में हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों से जमीन लेकर वास्तविक कास्तकारों यानि किसानों को वापिस कर दी गई थी| उसी जमीन को 1947 में हरियाणा में आने पर अपने नाम की बताकर उसके बदले जमीनें ली और फिर उनको बेचकर दिल्ली व् अन्य बड़े शहरों में पलायन कर गए| इस प्रकार वास्तव में जमीन के मालिक ना होते हुए भी झूठ के बल पर जमीनें ली और फिर हरयाणा के किसानों को ही बेच के अमीर बन गए| यह है इनकी मेहनत का नंबर एक रहस्य| जिनकी कोई जमीन नहीं थी उन्होंने भी झूठ बोलकर यहां मुसलमानों की जमीन हथियाई। 4-4 बार मुआवजा लिया और दिल्ली में कई बार मुफ्त में प्लाट लिए। वहां यह लोग लगभग सारे के सारे traders (व्यापारी) थे, यहां आने पर आर्थिक traitors हो गए। यह पूरा घपला उस समय इनके पुनर्वास मन्त्री मेहर चन्द खन्ना के इशारे पर हुआ। वहां यह नारे लगाते थे - सर सिकन्दर - छोटू कन्जर। लेकिन यहां आने पर खुद कन्जर से भी बदतर हो गए।

चौ. छोटूराम ने एक बार पेशावर में कहा था कि पंजाब में अरोड़ा खत्री रहेंगे या जाट और गक्खड़। लेकिन हमने चौ. छोटूराम को भुलाकर अपनी गलती से इनको अपनी ही चौखट पर बुला लिया। चौधरी छोटूराम ने इनको काबू में रखने के लिए "पहलवानी ब्रिगेड" बना रखी थी, क्योंकि यह हिन्दू अरोड़ा/खत्री उनकी हर रैली में विघ्न डालते थे। इसलिए वो रैली के चारों ओर पहलवान खड़े करके तब रैली करते थे, ताकि इनमें से कोई भी रैली में व्यघ्न ना डाल सके। और इसीलिए यह लोग जब कुछ नहीं कर पाते थे तो सर छोटूराम को कभी "छोटू खान" तो कभी "अंग्रेजों का पिठ्ठू" कहते फिरते थे। जबकि इनके शोभा सिंह चोपड़ा शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह की फांसी में गवाही देने के बावजूद भी इनके लिए राष्ट्रभक्त रहे।

आपस में मिलके रहना, सहना और निभाना यह लोग क्या जानें, और इसका मैंने मेरे "सॉरी "जय माता दी" वाले लेख में खुल के विवरण किया है। चलते-चलते धन्यवाद सीएम साहब, आपके ओच्छे और गैरजिम्मेदाराना बयान के बहाने जिस इतिहास को मैंने सेल्फ में रख छोड़ा था वो फिर से ताजा हो गया।

Phool Kumar Malik

Friday, 25 September 2015

सॉरी, "जय माता दी" परन्तु आज से मैं आपके आदर और पूजा का परित्याग कर रहा हूँ!

Sorry, "Jai Mata Di" but I am disconnecting myself from you!

जाट समाज में एक देवी के रूप में आपका प्रत्यार्पण ज्यादा नया नहीं है, मात्र 30-40 साल पुराना ही है| हमारे समाज में आपका प्रत्यार्पण भी जब आपके मूल-पूत (हिन्दू अरोड़ा/खत्री) आपको साथ लाये तभी के अड़गड़े हुआ था, उससे पहले जाट समाज में ना तो कोई आपको जानता था और ना ही कोई मानता था| नमस्कार/ राम-राम/जय दादा खेड़ा की जगह "जय माता दी" यही कहा करते थे|

वो क्या है ना "जय माता दी" हम जाट दिल के बड़े कोमल, निर्मल, सामयिक व् सौहार्दी होते हैं| इसलिए हमारे यहां अल्लाह, गॉड, भगवान, वाहे-गुरु सब खप जाते हैं और ऐसे ही आप भी खप गई थी| परन्तु हाँ खपते हैं सिर्फ हमारी मर्जी और अनुकम्पा से ही, जब तक हमें यह लगता है कि जो जिस भगवान को हमारे बीच हमारा और हमारी कौम का आदर-मान रखते हुए इंट्रोड्यूस कर रहा है हम उसको इंट्रोड्यूस करने देते हैं, लेकिन हमारे यहां सिवाय "दादा खेड़ा" और "जाट अवतारों" के बाकी कोई भगवान स्थाई नहीं| इन दोनों कॅटेगरियों को छोड़ के बाकी का भगवान हमारे यहां कितने दिन चलेगा वो निर्भर करता है कि उसको इंट्रोड्यूस करने वाला हमारा और हमारी कौम का कितना आदर मान करता है| इसको एक लाइन में लयबद्ध करूँ तो कुछ यूँ कहूँगा कि, "भगवान और भक्ति की वजह से जाट नहीं हुआ, अपितु जाट की वजह से भगवान और भक्ति हुई!"।

अब बात आती है कि मैं क्यों आपका परित्याग करना चाहता हूँ? अब आपसे तो कुछ छुपा नहीं हुआ| देख ही रही होंगी हरयाणा में इनके समाज का क्या सीएम क्या बना, पूरे जाट समाज के दुश्मन हुए खड़े हैं|

1) अच्छा "जय माता दी" यह बताओ 2005 में पंचकुला से कोई साहनी हैं, उन्होंने खापों और जाटों के खिलाफ पंजाब और हरयाणा हाईकोर्ट में अर्जी डाली और वो भी तब जब जाटों का ही सीएम था| तो क्या फिर भी किसी जाट या खाप ने उसको कुछ कहा?

2) फिर उसके बाद से तो आधिकारिक तौर पर मीडिया में बैठे आपके यह पूत दिन-रात जाट और खाप के पीछे पड़े रहे| क्या किसी जाट ने इनको कुछ कहा, वो भी बावजूद जाट सीएम होने के?

3) अभी हाल ही में जब इनके समाज का सीएम बना तो किसी भी जाट ने सामूहिक तौर पर ना तो कोई विरोध किया और ना कोई आपत्ति| अपितु सहर्ष अपनाया, स्वीकार किया वो भी बावजूद यह तथ्य जानते हुए कि यह गैर-हरयाणवी समाज से हैं| वरना आप तो जानती ही हैं उत्तराखंड में एक हरयाणवी सीएम बना था, उत्तराखंडी मूल का ना होने की वजह से छ महीने में ही हटा दिए गए थे| और महाराष्ट्र जैसे राज्य में तो "जय माता दी" कोई एक गैर-मराठी को सीएम बना के ही दिखा दे और फिर वो गैर-मराठी बिहारी या पूर्वांचली हो तो कहने ही क्या|

4) और अब जब से इनका सीएम बना है तब से तो "जय माता दी" यह लोग यह भी भूल गए कि अरे जो तुम्हारे भगवान यानी आप "जय माता दी" तक को पूज रहे हैं, तुम्हारी संस्कृति तक अपनी संस्कृति में मिला ली है, जाटों के इन सकारात्मक पहलुओं को दरकिनार करके देखो "जय माता दी" यह जाटों से कैसे-कैसे भाईचारे निभा रहे हैं:

अ) मई 2015 में जाट आरक्षण से इनका कोई लाभ-हानि ना होते हुए भी, उससे कोई लेना-देना ना होते हुए भी यह लोग जाट आरक्षण के विरुद्ध इनके "हरयाणा पंजाबी स्वाभिमान संघ" से धरना भी दिए और ज्ञापन भी|

ब) रोहतक के वर्तमान एमएलए श्रीमान मनीष ग्रोवर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) की ऑफिसियल लेटर-पैड पर एमडीयू को लेटर जाता है कि यूनिवर्सिटी में जितने भी जाट अध्यापक अथवा कर्मचारी हैं उनके रिकॉर्ड चेक किये जाएँ। और पूछे जाने पर एमएलए साहब बड़ी गैर-जिम्मेदाराना ब्यान के साथ ना सिर्फ इससे खुद को अनजान बताते हैं वरन जो यह कृत्य करने वाला था उसकी छानबीन भी नहीं करवाते।

स) 2014 के चुनाओं के मौके पर पानीपत शहर में ट्रकों के कारोबार में जाटों द्वारा बढ़त बना लेने पर वहाँ के स्थानीय हिन्दू अरोड़ा/खत्री नेता श्रीमान सुरेन्द्र रेवड़ी कहते हैं कि जाटों ने कब्जा कर उनका कारोबार छीन लिया। और यह कहते हुए वह 1947 से लेकर आज तक जाट समाज ने उनके समाज को यहां बसने में जो सहयोग दिया उसको एक झटके में सिरे से ख़ारिज करते हैं। वैसे तो आजतक किसी जाट ने ऐसी बात कही नहीं, फिर भी अंदाजा लगाइये "जय माता दी" कि अगर एक जाट यह बात कह दे कि इन्होनें हमारे रोजगार से ले कारोबार तक बंटवा लिए तो इनकी क्या प्रतिक्रिया होगी?

द) "गुड्डू-रंगीला" फिल्म में "हुड्डा खाप" का मजाक उड़ाने पर जब जाट समाज कलेक्टर को इस फिल्म के डायरेक्टर श्रीमान सुभाष कपूर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) के खिलाफ शिकायत करने जाते हैं तो बजाय उनसे माफ़ी मंगवाने में सहयोग करने के आपके यह पूत इसको जाटों की तानाशाही चिल्लाने लगते हैं| मतलब उल्टा चोर कोतवाल को डांटे|

य) और यह तो यह पानी सर से तो तब गुजरा जब खुद सीएम साहब जाटों को "डंडे के जोर पे हक लेने वाले" कह उठे और फिर यकायक दूसरा बयान यह भी दे बैठे कि "हरयाणवी कंधे से नीचे मजबूत और कंधे से ऊपर कमजोर होते हैं!"

र) अरे "जय माता दी" यह तो यह भी नहीं सोच रहे कि जाट समाज में मेरे जैसे जाट भी हैं जिन्होनें हमेशा इनको "रेफ़ुजी", "पकिरस्तानी" कहने वालों का विरोध किया|

अब "जय माता दी" आप ही बताओ यह तो वाकई में पानी सर से ऊपर गुजरने वाली बात हो गई ना?

अब किसी दूसरी जाति वाले को खुद में हरयाणत व् हरयाणवी महसूस नहीं होता हो तो क्या किसी जाट को भी नहीं होगा? अब अगर दूसरे समाजों ने स्वार्थों या जिस भी वजह के चलते चुप्पी साध ली है तो क्या हरयाणवी शब्द के अपमान पे जाट भी चुप्पी साध जाए? बस यह नहीं हुआ हमारे पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान जी से और सीएम साहब को उनका ओरिजिन याद दिलवाना पड़ा|

अरे "जय माता दी" ओरिजिन तो सिर्फ सांगवान साहब क्या एस.जी.पी.सी. (S.G.P.C.) के चीफ श्री अवतार सिंह मक्क्ड़ भी याद दिला गए, कह गए कि सीएम का गृह जिला करनाल नहीं अपितु पाकिस्तान में झंग है और सीएम पाकिस्तानी है|

तो अब बताओ "जय माता दी" मुझे क्या गधे ने काटा है कि एक ही बयान देने वाले दो लोगों में से यह सिर्फ सांगवान साहब का पुतला फूंकें और मैं आपको मेरे दिल और घर से बाहर ना करूँ|

वैसे आप भी हैरान हो रही होंगी, कि यह कैसा जाट है कि लठ उठा के उनका सर फोड़ने की बजाय मुझे ही घर से निकाल रहा है| वो क्या है ना "जय माता दी" वो कहते हैं ना कि "चोर को क्या मारना, चोर की माँ को मारो!"। वैसे भी क्योंकि जब आपकी भक्ति करने से भी इनमें इतनी अक्ल नहीं आ पाई कि जाट इनके मित्र हैं या शत्रु तो "जय माता दी" मेरे इनको लठ मारने से थोड़े ही आएगी, बस इसीलिए आपको आज से मेरे घर से बाहर कर रहा हूँ|

क्या है "जय माता दी" कि यह समझ रहे हैं कि हमने हमारे कोमल, निर्मल, सामयिक व् सौहार्दी स्वभाव के चलते उनके द्वारा दी गई आप और उनके काफी सारे अन्य रीती-रिवाज, दूध में पानी की तरह क्या मिला लिए कि वह तो इसको उनकी कोई बहुत बड़ी चालाकी या दिमागी ताकत का प्रतीक मान बैठे हैं| जबकि उनको यह नहीं पता कि उत्तरी भारत में उनके समाज से बाहर अगर आपकी इतनी बड़ी पहचान बनी है तो वो तब जब हम जाट उनसे भाईचारा मानते हुए आपको पूजने लगे, वही "भगवान और भक्ति की वजह से जाट नहीं हुआ, अपितु जाट की वजह से भगवान और भक्ति हुई!" वाली बात के तहत| परन्तु "जय माता दी" अब बहुत हुआ, अब मुझसे आपकी पूजा और आदर का सिलसिला ढोंग लगने लगा है| महसूस होने लगा है कि जब आपके मूल पुत्र ही आपकी पूजा करने की वजह से इतने जहरी और नफरत करने वाले बनते हैं तो फिर कहीं मैं भी उनके जैसा ही ना हो जाऊं, इसलिए मैं आज से आपको मेरे दिल, आत्मा और घर से निकाल कर बड़े आदर सहित बाहर कर रहा हूँ| क्योंकि जब आप उनको ही प्रेम से रहना नहीं सीखा सकती तो मुझे क्या सिखाएंगी| इसलिए आखिरी बार "जय माता दी"!

ओह हाँ चिंता ना करें, वो आपको पूजते रहेंगे मुझे उससे कोई ऐतराज नहीं, परन्तु अब आपको मेरे खुद के अंदर से, मेरे घर के अंदर से, मेरे रिश्तेदारों और मेरे प्रभाव और संबंध में आने वाले हर जाट के घर से आपकी चौकियों की, जगरातों की और भंडारों की विदाई आजीवन सुनिशिचित करवाता चलूँगा यह मन में धार लिया है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

मात्र 2300 दुजाणिया जाटों ने जब 40000 की झज्जर के नवाब की सेना का मुंह-तोडा था!

1806 में यह गाँव छोटी सी मुग़ल रियासत भी बन गई थी, जिसकी निशानी यहां एक मस्जिद और नवाब की हवेली जो कि हरयाणा सरकार के आधीन होते हुए 1947 से ही सील पड़ी है|

यह गाँव सत्रहवीं शताब्दी का एक बड़ा ही गौरवशाली किस्सा अपने में संजोये हुए है| बात जून 1687 की है| झज्जर जिला हरयाणा का यह ऐतिहासिक गाँव अपने अदम्य साहस और वीरता के लिए जाना जाता है| तब के झज्जर के नवाब को इस गाँव की एक लड़की पसंद आ गयी| वो जाट लड़की इतनी सुन्दर थी कि बड़े-बड़े सुल्तानों के महलो में भी कोई इतनी सुन्दर औरत नहीं थी|

नवाब ने फरमान भिजवा दिया कि वो लड़की को ब्याहने आएगा| लड़की समझदार थी बोली मै अपने गाँव को बचाने के लिए नवाब से शादी करुँगी|

पर गाँव के जाटों का खून खोल उठा| लड़की का बाप, लड़की और परिवार समेत आत्महत्या करना चाहता था| परन्तु दुजाना व् आसपास के गाँवों की हुई खाप पंचायत ने फैसला लिया कि हर इंसान आखिरी साँस तक लड़ेगा पर लड़की नवाब को नहीं देंगे| अब गाँव का हर जाट जो भी 7 साल से ऊपर का था, और औरतें व् लड़कियाँ सब ने हाथो में जेली, पंजालि, गण्डासियां, बल्लम उठा लिए और गुरिल्ला विधि से एक आत्मघाती हमला करने के लिए तैयार हो गए| हालाँकि लड़ाई से पहले दूसरी जातियां गाँव छोड़ कर भाग गयी थी| पर जाट कभी लड़ाई के मैदान से नहीं भागता|

नवाब ने 1687 की जून महीने में गाँव पर शाही फ़ौज लेकर हमला किया| लडकियां, बूढ़े, बच्चे, औरतें सब सर पर कफ़न बाँध कर आये थे| गाँव ने इतनी बुरी तरह हमला किया कि नवाब की तोप बंदूकों से लैस 40,000 की शाही फ़ौज जो पूरी प्रशिक्षित थी और एक भी लड़ाई ना हारे थे पर जाटों की इस 2,300 की फ़ौज जिसमें आधे से ज्यादा औरतें, लडकियां और बच्चे थे, के सामने शाही सेना बुरी तरह हारी| नवाब बड़ी मुश्किल से जान बचा कर भाग पाया| जाटों ने इनकी तोप, बंदूकें, तलवार आदि हथियार छीन लिए जो उस गाँव के जाटों के घरों में आज भी देखे जा सकते हैं|

हमारे पूर्वजों ने कभी घुटने नहीं टेके, जान गवाँ दी पर पगड़ी नहीं उतरने दी| अन्य हिन्दू समाजों की तरह अपनी औरतों को कायरों की भांति उनके पीछे दुश्मन के घेरे में शाक्के करने के नाम पर पीछे रख उनको उनकी युद्ध कौशलता को आजमाने से नहीं रोका|

एक तरफ जहाँ राजा-महाराजा भी हार जाते थे, अपनी जान छुड़ाने को अपनी बेटियां फ्री-फंड में विदेशियों से ब्याह देते थे वहीँ कुछ मुट्ठी भर जाट किसान जीत जाते थे| अगर कोई सच्चा क्षत्रीपण है तो यह है|

जैसा कि ऊपर बताया बाद में आगे चलकर यह गाँव एक छोटी आज़ाद रियासत के रूप में बदल गया|

रिफरेन्स: चौधरी रवि सिंह ज्वाला

रूपांतरण: फूल मलिक

हरयाणा में दीनानाथ बत्रा की किताबें लागु करना, भगवे का अपनी बुनियाद में कील ठोंकने जैसा है!


पुराने जमाने में दलितों व् पिछड़ों को ग्रन्थ-शास्त्र-पुराण कुछ भी पढ़ना ना सिर्फ वर्जित था अपितु राजा राम जैसे पुरुषोत्म बताये गए राजा के हाथों स्वर्ण ऋषि-मुनियों-शंकराचार्यों-महंतों ने एक दलित महर्षि सम्भूक को शास्त्रार्थ करने पे मरवा दिया था| तो आज ऐसा क्या हो गया कि उसी थ्योरी पर चलने वाले लोग इन अध्यायों को दलित-पिछड़ा सबको खुद ही पढ़ाना चाहते हैं?

यह तो उस हथियार डाले हुए राजा वाली बात हो गई कि लो जी देख लो मेरे पास क्या-क्या है| बढ़िया है अब यह हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के नाम पर हथियार डाले आगे बढ़ रहे हैं| यह पुराने स्वर्ण शंकराचार्यों-महंतों द्वारा इन किताबों और तथ्यों को दलित-पिछड़ों को ना पढ़ाने के ही कारणों को दरकिनार करके चल रहे हैं तो जरूर दिग्भर्मित हो चले हैं|

तो भगवा ऐसा करके अपनी बुनियाद में कील ऐसे ठोंक रहा है कि मैंने रामायण और महाभारत दोनों क्रमश: छटी और सातवीं क्लास में पढ़ ली थी| और इन दोनों ग्रंथों पर एक शंकराचार्य के स्तर का सर्वोत्तम तार्किक ज्ञान रखता हूँ।

अब सोचने की बात यह है कि एक तो बचपन में ही मुझे रामायण और महाभारत पढ़ने को मिली तो मैं जल्दी से महर्षि सम्भूक जैसे चैप्टर कैच कर पाया| दूसरा यह हुआ कि मैं जब बाहर निकला और बड़ी कक्षाओं में साइंस से ले मैनेजमेंट की चीजें पढ़ी तो देखा कि यह रामायण और महाभारत के चरित्र तो अमेरिका के डिज्नीलैंड (Disneyland) वाले काल्पनिक वर्जन हैं| फर्क सिर्फ इतना है कि अमेरिका ईमानदारी से काल्पनिकता को काल्पनिकता स्वीकार करता है और हमारे यहां के सेल्फ-स्ट्य्लेड दम्भी ज्ञानी इनको वास्तविक मनवाने पे तुले रहते आये हैं| ठीक वैसे ही जैसे वो किसी ने दम्भी भाभी को पुलिस की मार के डर से "हाय रे धक्के की माँ" कबुल कर लिया था परन्तु पुलिस से छूटते ही वो वापिस उसकी भाभी ही रही|

तो मेरे ख्याल से यह बहुत अच्छा हो रहा है, एक तो इससे बच्चे बड़ी उम्र (class 11th-12th age) अपनी साइंस और मैनेजमेंट की पढाइयों पर केंद्रित कर पाएंगे और यह सब कल्पनिकताएं पढ़ना वैसे भी बचपन में ही सटीक रहता है क्योंकि उस वक्त बच्चों को कहानिया सुननी बहुत अच्छी लगती हैं|

परन्तु उस डर का क्या जिसकी वजह से पुराने शंकराचार्य-महंत लोग दीनानाथ जैसों द्वारा लिखी किताबों से दलित-पिछड़ों को दूर रखते थे? अब अगर इनको यह बहम हो कि यह इन किताबों को पढ़ा के बच्चों को अपनी शीशी में उतार लेंगे तो इनको यही कहूँगा कि इनसे तो इनके पूर्वज ज्यादा अक्लमंद थे क्योंकि वो जानते थे कि इन काल्पनिकताओं को पढ़ के कोई शीशे में नहीं उतरने वाला अपितु उनके दिमागी दिवालियेपन को सब जान जायेंगे| और यह लोग यहीं अपने सामाजिक वर्चस्व के पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रहे हैं। एक अनचाही और अनिर्धारित सी शायद भारत और विश्व में छा जाने की जज्बाती जल्दबाजी में यह लोग इस ज्ञान को दलित-पिछड़े को खुद ही लुटवा के उनको ज्ञानी बना के अपने ही विरोध में खड़े कर रहे हैं। और इसका प्रमाण है कि दलित-पिछड़े ने जितनी यह चीजें पढ़ी हैं वो इनके प्रभाव से उतने ही दूर गए हैं। 

कहते हैं इनसे बच्चों को नैतिक शिक्षा मिलेगी, अच्छा जी ऐसे वाली नैतिक शिक्षा क्या:

1) कि एक युद्धिष्ठर जुआ खेलने के बावजूद भी और अपनी ही पत्नी का अपनी आँखों के आगे चीरहरण होने के बावजूद भी धर्मराज कहला सकता है| यानी आप नारी सम्मान के हनन में चाहे जितनी हदें पार करो आप फिर भी कहलाओगे धर्मराज ही|

2) दलित को शास्त्रार्थ करने पर मृत्युदंड देने के बजूद भी आप मर्यादापुरुषोत्तम ही कहलाओगे|

3) अपनी माँ तक की हॉनर किलिंग करने के बावजूद भी आप आम इंसान नहीं अपितु भगवान बना के पूजे जाओगे। शायद ऐसा कांसेप्ट तो तालिबानियों के यहां भी नहीं होता होगा।

पढ़ाओ-पढ़ाओ इन काल्पनिकताओं को, बढ़िया है बच्चों के बचपन का सही सदुपयोग हो जायेगा| और पता चलेगा कि ऐसी दम्भी स्टाइल की काल्पनिक दुनिया भारत में आपके सिवाय और कहीं भी नहीं| खुद अपने लिए गड्डे खोदना मुबारक हो| वैसे भी यह हरयाणा है गुजरात नहीं, यहां बालक किसी बात में नकारात्मक चीज पहले पकड़ता है, उसका जवाब मिल जाए तो ही उसके सकारत्मक पर विचारता है, जिसका कि आपकी किताबों में मिलने का धुंधला चांस होता है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

जाटों में कितनी समाई, समरसता और अपनापन है उसका उदहारण है "हरयाणा के शहीदी दिवस" की तारीख!


अभी विगत 23 सितम्बर को पूरे हरयाणा में हरयाणा का शहीदी दिवस मनाया गया। इस तारीख का हरयाणा के शेर रेवाड़ी के रणबांकुरे राव तुलाराम जी से सीधा-सीधा संबंध है। 23 सितम्बर 1863 को उन्होंने देशहित में अपना बलिदान दिया था।

अब बताता हूँ कि मैं इस तारीख का जिक्र इतने ख़ास तरीके से क्यों करना चाहता हूँ। वजह है दिन-भर-दिन हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों द्वारा स्थानीय हरयाणवी समाज में जाट बनाम नॉन-जाट के जहर को आगे से आगे बढ़ावा देना। तो ऐसी ताकतों को बताना चाहूंगा कि यह जाटों की बाहुल्यता के साथ-साथ तमाम हरयाणवियों का हरयाणा है जिनके नाम पर तुम बाकी के नॉन-जाट के आगे जाट को सिर्फ विलेन बना के परोस रहे हो जबकि यहां जाट भी राव तुलाराम जी के ही दिन को सम्पूर्ण हरयाणा के शहीदी दिवस की तौर पर बड़े सहर्ष से मानते और मनाते हैं।

इसी धरती पर अंग्रेजों से संधि हेतु सफेद झंडे उठवा देने वाला राजा नहर सिंह (एक जाट) सा सिंह-सूरमा हुआ, इसी धरती पर अमर गौरक्षक हरफूल जाट जुलानी वाले हुए, इसी धरती पर कालजयी लजवाना कांड के पुरोधा दादावीर भूरा सिंह दलाल और निंघाईया सिंह दलाल हुए। इसी धरती पर सर्वप्रथम व् ममहममद गौरी के तुरंत बाद मुग़लों की गुलामी के विरोध की रणभेरी फूंकने वाले दादावीर जाटवान जी गठवाला महाराज हुए। इसी धरती पर चुगताई मुग़लों के छक्के छुड़ा देने वाली दादीराणी भागीरथी महारानी जाटणी हुई। इसी धरती पर कलानौर का कौल तोड़ने की प्रेरणा व अमरज्योति दादीराणी समकौर गठवाली हुई। इसी धरती पर तैमूर की छाती पे चढ़ उसकी छाती में भाला घोंपने वाले दादावीर हरवीर सिंह गुलिया जी हुए। इसी धरती पर हाँसी की लाल सड़क को अपने खून से लाल कर देने वाले रोहणात् के जाट योद्धा हुए। और ऐसे ही अनगिनत जाट व् अन्य समाजों के योद्धा हुए। और इसी धरती पर ब्राह्मण-सैनी-छिम्बी-खाति तक को बिना जातीय द्वेष के किसानी स्टेटस दिलवाने वाले सर छोटूराम हुए।

परन्तु फिर भी सब हरयाणवी जातियों और नश्लों का एक शहीदी दिवस राव तुलाराम जी के शहीदी दिवस के दिन मनाया जाता है। और हम तमाम जाटों को इस बात पर गर्व है।

विशेष: जाट योद्धाओं के नाम इसलिए गिनवाने पड़े कि इस जाट बनाम नॉन-जाट के जहर से जल रहे हरयाणा में कल को कहीं यह एंटी-जाट लोग कोई और नया सगुफा ना छेड़ देवें। अब वक्त आ गया है कि हर जाट इनकी अनगिनत गज लम्बी होती जा रही जुबान पे इंची-टेप और कैंची ले के बैठ जावें। इन्होनें तो वो नेवा कर रखा है कि "अगला शर्मांदा भीतर बढ़ गया और बेशर्म जाने मेरे से डर गया!"

जय यौद्धेय! - जय हरयाणा! जय हरयाणवी! - फूल मलिक

माननीय कैप्टन अभिमन्यु जी कुछ सीखिये उन्हीं से जिनकी संगत में रहते हैं!


या तो सीएम को पाकिस्तानी मूल का कहने पर जो बयान आपने पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान जी के ब्यान के जवाब में दिया था अब ऐसा ही बयान एस.जी.पी.सी. चीफ श्री अवतार सिंह मक्क्ड़ के सीएम को पाकिस्तानी कहने पे भी दीजिये वरना सीखिये जिनकी सोहबत में रहते हैं उनसे ही।

क्या जलाये सीएम की बिरादरी वालों में से किसी ने मक्क्ड़ साहब के पुतले, जैसे कल हवा सिंह सांगवान के जलाये थे इसी मुद्दे को ले के? क्या आया किसी सीएम साहब की बिरादरी वाले की तरफ से मक्क्ड़ साहब से माफ़ी मंगवाने या उनपे राजद्रोह का मुकदमा करवाने का बयान?

क्यों नहीं हुआ ऐसा? शायद अपनी कौम वाले के मामले में ऐसे मौकों पे चुप रहना क्या होता है और इसका क्या महत्व होता है यह लोग भली-भांति जानते हैं।

जबकि आप खुद जाट हो के अपने ही जाट भाई के ब्यान पे ब्यान देने में एक दिन की भी देरी नहीं किये, वो भी बावजूद इसके कि ब्यान उन्हीं की बिरादरी पे था जो जब उन्हीं की बिरादरी का कोई वही बयान दे तो चुसकते भी नहीं।

वो जो कहावत है ना कैप्टेन साहेब कि "जाटड़ा और काटड़ा अपने को ही मारे!" यह कोई उन मौकों के लिए नहीं होती कि जब कोई जाट दुसरे जाट को यदि तीर-तलवार या गोली से मार दे; वो इन्हीं मौकों और वाकयों की वजह से चलती है जैसा आपने किया।

छोटा मुंह और बड़ी बात परन्तु आशा करता हूँ कि जिस स्वछंद व् स्वतंत्र मति के हमारे बुजुर्ग और पुरखे बताये गए आप भी उसी परम्परा पे चलते हुए और जिनकी सोहबत में रहते हैं उनसे यह सीखते हुए कि ऐसे मौकों पर कैसे रियेक्ट करना चाहिए की सीख को लेकर आगे बढ़ेंगे!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 24 September 2015

ईटीवी के वरिष्ठ सलाहकार श्रीमान गोविन्द ठुकराल जी आपका ब्यान 'डिवाइड एंड रूल' वाला है!


अपनी चालाकियों भरी बाणी से अगर आप यह सोच रहे हैं कि आप जनता को दिग्भर्मित कर लेंगे तो शायद आप गलत हैं| सांगवान साहब ने यह क्या कह दिया कि हरयाणा का सीएम एक हरयाणवी होना चाहिए तो इसपे आपने सिर्फ जाटों को हरयाणवी ठहरा के बाकि हर्याणवियों को अपने पाले में करने की गोटी फेंक दी|

वैसे आज बहुत से हिन्दू खत्री/अरोड़ा महाराष्ट्र में भी हो रखे हैं, परन्तु वहाँ तो राज ठाकरे से ले उद्धव ठाकरे, खुद बीजेपी की सरकार वाले तक सिर्फ मराठी मानुष की बात करते हैं, उसपे तो आप लोगों का कोई बयान ना विरोध आजतक? तो फिर एक हरयाणवी हरयाणा में रह के हरयाणवी की बात कर रहा है तो आपको कुलबुली क्यों हो रही है? इसका मतलब कम से कम इतना तो साफ़ है कि बाकी और कोई हरयाणवी हो या ना हो परन्तु आप तो खुद को हरयाणवी नहीं समझते|

खैर यह फैसला तो मैं आपके द्वारा आपके बयान में विशेष तौर से चिन्हित किये गए जाटों समेत तमाम मूल हर्याणवियों पे छोड़ता हूँ कि वो आपके इस 'डिवाइड एंड रूल' बयान पर क्या रूख अख्तियार करते हैं| आपके इस बयान में आपकी चालाकी को भांप के आपके साथ खड़े होंगे या अपने मूल-हरयाणवी भाईयों की एकता को और सहेजेंगे|

परन्तु आपको एक बात जरूर बता दूँ कि जाट आपके बयान की तरह पेट-भर नहीं| और होते तो आज हरयाणा का दलित-पिछड़ा बाकी सारे देश से अधिक सम्पन्न और अगाड़ी नहीं होता| देश के जिन हिस्सों में आप जैसी सोच के लोग रहते हैं, वहाँ दलित-पिछड़ा की हालत बद से बदतर है| ऐसे में अगर हरयाणा में देश के सबसे सम्पन्न दलित-पिछड़ा हैं तो कहीं-ना-कहीं जाटों की भाईचारा और सौहार्द से बसने और खेतों में एक दूजे से कंधे-से-कन्धा मिला के खटने की वजह भी तो जरूर होगी, या इससे भी इंकार करोगे?

सीएम साहब के एक के बाद एक दो शर्मशार बयानों ("डंडे के जोर पर लेने वाले" और "हरयाणवी कंधे से नीचे ताकतवर और कंधे से ऊपर कमजोर होते हैं) पर सीएम साहब को माफ़ी मांगने की कहने के बजाय उल्टा जाटों को ही घेर रहे हो? मतलब उल्टा चोर कोतवाल को डांटे? सीएम साहब के ऐसे बयानों पे एक स्वाभिमानी हरयाणवी तो कम से कम चुप नहीं बैठ सकता|

हरयाणा के सारे मुख्यमंत्रियों की लिस्ट उठा के देखेंगे तो आप पाएंगे कि सिर्फ जाट ही नहीं अपितु ब्राह्मण, बनिया, बिश्नोई, यादव भी यहां सीएम रहे हैं| अगर जाटों को अपनी चलानी होती तो हरयाणा की कंस्यूमर पावर का जो करीब 60% हिस्सा (जबकि जनसंख्या इसके आधे से भी कम अनुपात में है), वो हम आपकी दुकानों से सामान खरीद के आपको पैसे की ताकत नहीं देते| बल्कि हम सिर्फ बनिया या अन्य जातियों की दुकानों से ही सामान खरीदते|

परन्तु अब अगर आप 'डिवाइड एंड रूल' की इतनी ही घिनोनी चाल चल रहे हैं तो अब जाटों को भी अपनी कंस्यूमर पावर रुपी हाथ आपके समाज के सर से खींच लेने में ही भलाई देखनी होगी| और आपकी दुकानों से हर प्रकार के सामान खरीदने का बायकाट का फार्मूला अपनाना होगा| तभी शायद आप लोगों को एक जाट के सहयोग और उसके भाईचारे की कीमत का अहसास होवे|

बाकी यह हरयाणा की विडंबना ही है कि जिन लोगों को ठीक से हरयाणवी बोलनी नहीं आती, इसका आदर-सम्मान तक नहीं, वो आप जैसे लोग यह बता रहे हैं कि कौन हरयाणवी मूल का है और कौन नहीं| यह वास्तव में मूल हरयाणवी पहचान रखने वाले लोगों के लिए गहन चिंतन की घड़ी है|

चलते-चलते यही कहूँगा कि कोई भी भारतीय अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस आदि-आदि किसी भी देश में चाहे 10 साल से रह रहा हो अथवा 100 साल से उसको और उसके बच्चों तक को हर जगह "भारतीय मूल" व् उसके समूह को "भारतीय" ही बोला जाता है| जब सारे संसार में यह नियम है तो ऐसे में यह बात बिलकुल समझ से परे है कि सांगवान साहब एक "पाकिस्तान मूल" के भारतीय को "पाकिस्तानी मूल" का नहीं तो और कौनसे मूल का कहें? उसके मूल पे उसको पाकिस्तानी नहीं तो और क्या कहें?

इस बात पर इतना बवाल तो खाम्खा जाटों को अपने ही हरयाणवी समाज में विलेन दिखाने और बनाने वाली बात हो रही है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

पंचायती राज चुनावों में शैक्षणिक योग्यता बारे यूरोपीय देशों की तरह जनता की राय लेवे हरयाणा सरकार!

पंचायती राज चुनावों में राज्य सरकार बनाम जनता एवं सुप्रीम कोर्ट के फंसे पेंच का लोकतान्त्रिक हल सुझाते हुए सर्वजातीय सर्वखाप की महिला अध्यक्षा डॉक्टर संतोष दहिया ने सरकार को इस मामले में जनता की राय ले कर चलने की सलाह दी| उन्होंने कहा कि जो मुद्दे जनता के मौलिक अधिकारों को सीधे तौर पर प्रभावित करते हों, उन पर सरकार को यूरोपीय देशों की भांति आमजन की वोटिंग के जरिये ही फैसला लेना चाहिए|

ऐसे मामलों में यूरोपीय देशों के राजनीतिज्ञ जो प्रक्रिया अपनाते हैं उस पर प्रकाश डालते हुए डॉक्टर दहिया कहती हैं कि जैसे अभी पिछले दिनों ग्रीक में आर्थिक संकट पर यूरोपियन यूनियन के सहयोग की शर्तों को मानने बारे ग्रीक के प्रधानमंत्री ने सीधी जनता से वोटिंग करके राय ली और जनता के निर्णय को मानते हुए अपना फैसला "नहीं" में दिया| उससे पहले इसी साल के शुरुवात में स्कॉट्लैंड, इंग्लैंड का हिस्सा "हो या नहीं" इसपे आमजन की वोटिंग के जरिये फैसला लिया गया और स्कॉट्लैंड इंग्लैंड में ही बना रहा|

ऐसे ही पंचायती राज चुनावों में शैक्षणिक योग्यता का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा है जो आमजनता की वोटिंग के जरिये राय लेकर ही निर्धारित किया जाना चाहिए| इसमें हर वोटर की राय पूछी जाए और तब ही कोई निर्णय लिया जाए| इससे ना सिर्फ सरकार का जनता में विश्वास कायम रहेगा, अपितु भारतीय सविंधान की लोकतान्त्रिक परिभाषा को और सार्थकता व् सुदृढ़ता मिलेगी| और सरकार के इस कदम की ना सिर्फ राष्ट्रीय अपितु अंतराष्ट्रीय स्तर पर सरहाना भी होगी और सरकार का "सबका साथ, सबका विकास" नारा "सबका विचार, सबकी सहभागिता" को भी क्रियान्वित करेगा|

अत: इस तरह जनता और सुप्रीम कोर्ट भी सरकार के फैसले से ना सिर्फ सहमत करेंगे, वरन सरकार की भूरी-भूरी प्रशंसा भी होगी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 23 September 2015

गुस्ताकी माफ़ हरयाणा CM चाचू:

आपका ब्यान- "हरयाणवी कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर होते हैं!"

हरियाणा के लोगों के कंधो से ऊपर देखने के लिए देखने वाले का कद भी तो हरियाणा के लोगों की तरह 6 फुट से ऊपर होना चाहिए ना। सो पहले अपना कद-वद बढ़ाओ फिर जो मजबूती आप कंधे से नीचे की देख रहे हो फिर कंधो से ऊपर की भी नजर आ जाएगी।

वैसे आप कन्धों से नीचे की मजबूती देखने के इतने माहिर कैसे हुए, कहीं गे-वे वाला तो कोई चक्कर नहीं? हो भी सकता है क्योंकि आपके माई-बाप संगठन में मर्द-मर्द को राखी बांधता है|

रेस्ट लॉजिक की बात बता दूँ, हमें महाराष्ट्र के मराठों की तरह बिहारी-पूर्वांचलियों को भाषावाद-क्षेत्रवाद और नश्लवाद के नाम पे हरयाणा में बसे गैर-हरयाणवी भाइयों को पीटना तो आता नहीं, अगर आप इसी को कंधे से ऊपर की मजबूती मानते हों तो?

मतलब आप अकेले अनोखे ऐसे मुखिया हो एक राज्य के जो अपनी जनता के लिए इतने शर्मशार कर देने वाले शब्द प्रयोग किया है| मतलब आज भी आप खुद को गैर-हरयाणवी ही मानते हो, वरना हरयाणवियों का इतना भद्दा मजाक तो नहीं बनाते|

लगता है अब हरयाणवियों को मराठियों से कंधे से ऊपर वाली अक्ल सीख ही लेनी चाहिए!

सही कहा आपने हममें वाकई अक्ल नहीं वरना हरयाणा ही पूरे देश में एक इकलौता ऐसा राज्य नहीं होता जहां का सीएम कोई गैर-हरयाणवी हो (अब तो आपको गैर-हरयाणवी ही कहूँगा, वरना अपने हर्याणवियों के लिए ऐसा बोलते हुए आपकी जीभ एक बार तो जरूर ठहरी होती)| महाराज कृपया करके हर्याणवियों की लोकतांत्रिकता की इतनी भी कम कीमत मत आंकिए कि आपको गैर-हरयाणवी होते हुए भी सीएम स्वीकार कर लिया तो कंधे से ऊपर कमजोर कहोगे|

हिम्मत हो तो जरा महाराष्ट्र जैसे राज्य में एक बिहारी (गैर-मराठी) को सीएम बनवा के दिखा दो, पता लग जायेगा कि आपके कन्धों से ऊपर कितनी ताकत है|

आप जैसे लोगों के लिए मेरी दादी जी कहा करती थी कि "अगला शरमान्दा भीतर बड़ गया बेशर्म जाने मेरे से डर गया!" यानी हम तो अपना-अपना कहने और समझने में मर लिए और आप हमारी इस दरियादिली को हमारी कन्धों से ऊपर की कमजोरी ठहरा गए| कोई ना 'नाई के मेरे बाल कोड्ड, बल्या जजमान आगे ही आ जावेंगे!'

Jai Yoddhey! - Phool Malik

हरयाणा पंजाबी स्वाभिमान संघ को मेरा खुला खत!

An open letter to ‘Haryana Punjabi Swabhiman Sangh’:

मैं आगे बढ़ने से पहले स्पष्ट लिख दूँ कि मैं बचपन से ही आप लोगों (हिन्दू अरोड़ा/खत्री समुदाय) को यदाकदा नादान व् अनभिज्ञ लोगों द्वारा 'रिफूजी' कह के सम्बोधित करने का विरोधी रहा हूँ और जहां-जहां मेरी पहुँच हुई मैंने ऐसे लोगों को ऐसा ना बोल आप लोगों को अपना भाई मानने की सदा वकालत की है| आपके समुदाय में मेरे बहुत अच्छे मित्र-बंधू भी है और सामाजिक सौहार्द के रिश्ते भी हैं|

परन्तु आप लोगों द्वारा कल से एक पत्र वायरल हो रहा है जिसमें लिखा है कि पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान द्वारा वर्तमान सीएम हरयाणा को पाकिस्तानी मूल का कहने से आपको बड़ी आपत्ति हुई है| और आपने उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दायर करने हेतु हरयाणा के तमाम जिला उपायुक्त दफ्तरों को पत्र लिखा है।

इससे पहले कि इससे और आगे बढूँ आपको इस पाकिस्तानी सम्बोधन बारे बचपन की कुछ यादें बता दूँ:

1) हरयाणा के हर दूसरे गाँव की भांति मेरे गाँव में भी 1947 के वक्त आपके समुदाय के कुछ लोग आ कर बसे थे| जिनके साथ मेरे परिवार का बड़ा सहयोग, सद्भाव और तन्मयता का रिश्ता था| परन्तु फिर भी मेरी दादी जी मुझे दुकान से कुछ लाने को कहती तो कहती कि वो पाकिस्तानियों वाली दूकान पे जाना वहाँ यह चीज मिल जाएगी|

2) आप सब तो यह जानते ही होंगे कि आप लोग 1947 से दुपहिया वाहनों पर हरयाणा के गाँव-नगरियों में कपडा-लत्ता बेचने जाते रहे हो| हमने बचपन से औरतों के जिक्रों में जब भी यह बात आती कि 'आएं बेबे यु किस्तें लिया' तो लेने वाली जवाब देती 'ए बेबे फलाना पाकिस्तानी दे गया था, तू कहवै तो तेरी खातर और मंगवा द्यूं!'

3) 'रिफूजी' शब्द का तो खैर मैं मेरी जिंदगी के शुरू दिन से ही विरोधी रहा हूँ, परन्तु स्कूलों-कालेजों में नादान बच्चे आज भी इसक प्रयोग कर लेते हैं|

मुझे नहीं पता आप लोगों को अपने पाकिस्तानी मूल का होने की पहचान को छुपाने की आज एकदम से कैसे और क्या जरूरत आन पड़ी|

खैर अब आता हूँ कल के आपके खत पर|

आज जब बात इस हद तक बढ़ गई कि एक जाट को सीएम साहब के जवाब में अपनी प्रतिक्रिया देनी पड़ी तब जा कर आप बोले? इससे पहले जब निम्नलिखित बयानबाजियों और कार्यवाहियों की डेवलपमेंट हो रही थी, तब आप क्यों नहीं बोले?

क्यों आपने इन निम्नलिखित हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों को इनके जाट व् खाप विरोधी बयानों और स्टेण्डों बारे सामाजिक अथवा कानूनी स्तरों पर टोका नहीं? क्यों इनको इनकी हरकतों पे जाट समाज से माफ़ी बारे नहीं कहा? क्यों नहीं इन लोगों को आपने कहा कि आप लोगों की हरकतें सामाजिक तानाबाना बिगाड़ रही हैं इसलिए आप लोग अपनी हरकतों, बयानों के लिए माफ़ी मांगे? आप लोगों को आज जब खुद पर पड़ी तो मानसिक उत्पीड़न नजर आ गया और जाट समाज के खिलाफ आपके समाज के लोग 2005 से तो आधिकारिक यहां तक कि कानूनी तौर पर भी जो उत्पीड़न करते आ रहे हैं वो नजर नहीं आया? मतलब आपका उत्पीड़न, उत्पीड़न और हमारा उत्पीड़न मजाक या चुटकी?

आप लोग इन लोगों पे भी असल तो ऐसे ही राजद्रोह के मुकदमों की सिफारिस करें अथवा इनसे जाट व् हरयाणवी समाज के सन्मुख माफ़ी मंगवाएं|

1) हरयाणा सीएम श्रीमान मनोहर लाल खट्टर ने अभी हाल ही में एक के बाद एक दो बयान दिए, एक में कहते हैं कि 'डंडे मार के हक छीनने वाले लोग' व् दूसरा अभी गोहाना में दिया कि "हरयाणवी सिर्फ कंधो के नीचे से मजबूत होते हैं उपर से नहीं!"

अगर आप लोग यह सोचते हो कि शब्दों की चालाकी की वजह से जनता उनके "डंडे मार के हक छीनने वाले लोग" बयान को नहीं समझेगी तो यह आपकी बहुत बड़ी गलत-फहमी है, क्योंकि सार्वजनिक बयान मौका-स्थिति और माहौल देख के समझे जाते हैं| और इस वक्त मौका है जाट आरक्षण का, स्थिति है जाटों को 'लठ तंत्र' वाले बताने की और माहौल है आरक्षण पे पुनर्विचार का| इसलिए नादाँ से नादाँ भी सीएम के इस वक्तव्य से वो किसपे निशाना साध के गए स्पष्ट पकड़ लेगा|

दूसरी बात शायद आप और सीएम साहब आजतक भी खुद को हरयाणवी नहीं मानते होंगे इसलिए आप लोगों को सीएम साहब के दूसरे बयान "हरयाणवी सिर्फ कंधो के नीचे से मजबूत होते हैं उपर से नहीं!" में खुद उसी स्टेट के लोगों का अपमान नहीं झलका जिनके कि सीएम साहब मुखिया हैं? क्या है या भूतकाल में हुआ हो भारत में ऐसा कोई दूसरा सीएम जो अपने ही राज्यों के लोगों का इतना भद्दा मजाक उड़ाए?

तो क्या आप कल जैसा एक और ऐसा ही खत हरयाणा के तमाम जिला-उपायुक्तों को लिखेंगे, कि खट्टर साहब के खिलाफ भी उन्हीं के प्रदेश की पहचान पर ऐसे कटाक्ष करने के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हो? अब कृपया यह दलील मत दीजियेगा कि सीएम साहब ने तो चुटकी लेते हुए हल्के अंदाज में कहा था| और अगर यही दलील है आपकी तो जब आप सीएम साहब के बयान को चुटकी में ले सकते हो तो फिर सांगवान साहब के बयान में क्या दिक्कत?

अब ऐसे में सांगवान साहब ने आपको 'पाकिस्तानी मूल' कहा तो लाजिमी सी बात है अपनी हरयाणवी पहचान पे वो भी सीएम जैसी पोस्ट पे बैठी सख्सियत की तरफ से ऐसा हमला कैसे सहन हो सकता था? मेरे ख्याल से आप जितने सेंसिटिव इंसानों को जब सांगवान साहब के बयान में मानसिक उत्पीड़न दिख गया तो सीएम साहब के बयान में भी दिख जाना चाहिए कि नहीं?

2) 2014 के चुनाओं के मौके पर पानीपत शहर में ट्रकों के कारोबार में जाटों द्वारा बढ़त बना लेने पर वहाँ के स्थानीय हिन्दू अरोड़ा/खत्री नेता श्रीमान सुरेन्द्र रेवड़ी कहते हैं कि जाटों ने कब्जा कर उनका कारोबार छीन लिया। और यह कहते हुए वह 1947 से लेकर आज तक जाट समाज ने उनके समाज को यहां बसने में जो सहयोग दिया उसको एक झटके में सिरे से ख़ारिज करते हैं। वैसे तो आजतक किसी जाट ने ऐसी बात कही नहीं, फिर भी अंदाजा लगाइये कि अगर एक जाट यह बात कह दे कि इन्होनें हमारे रोजगार से ले कारोबार तक बंटवा लिए तो इनकी क्या प्रतिक्रिया होगी? लेकिन हमने ऐसा कहना होता तो कब के मीडिया के सामने सार्वजनिक तौर पर कह चुके होते|

खैर, मुद्दे की बात यही है कि श्रीमान सुरेन्द्र रेवड़ी जी ब्यान में मानसिक उत्पीड़न क्यों नहीं दिखा? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?

3) रोहतक के वर्तमान एमएलए श्रीमान मनीष ग्रोवर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) की ऑफिसियल लेटर-पैड पर एमडीयू को लेटर जाता है कि यूनिवर्सिटी में जितने भी जाट अध्यापक अथवा कर्मचारी हैं उनके रिकॉर्ड चेक किये जाएँ। और पूछे जाने पर एमएलए साहब बड़ी गैर-जिम्मेदाराना ब्यान के साथ ना सिर्फ इससे खुद को अनजान बताते हैं वरन जो यह कृत्य करने वाला था उसकी छानबीन भी नहीं करवाते।

क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?

4) मई 2015 में जाट आरक्षण से आपको कोई लाभ-हानि ना होते हुए भी, आपका उससे कोई लेना-देना ना होते हुए भी आप लोग जाट आरक्षण के विरुद्ध आपके इसी मंच से धरना भी देते हैं और ज्ञापन भी? आपको विरोध करना था तो या तो सारे आरक्षण का करते, या आपको अपने लिए माँगना था तो सरकारों के आगे जा के अपनी मांग रखते, आपने यह जाट आरक्षण का ही विरोध क्यों किया?

क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे खुद आपके ही ऊपर राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?

5) "गुड्डू-रंगीला" फिल्म में "हुड्डा खाप" का मजाक उड़ाने पर जब जाट समाज कलेक्टर को इस फिल्म के डायरेक्टर श्रीमान सुभाष कपूर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) के खिलाफ शिकायत करने जाते हैं तो बजाय उनसे माफ़ी मंगवाने में सहयोग करने के आप लोगों ने इसको जाटों की तानाशाही बताया? मतलब आपके लोग हमारे समाज का ऐसे खुला मजाक उड़ावें और हम उसके खिलाफ आवाज भी उठावें तो तानाशाही?

क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?

6) सन 2005 में खाप सामाजिक संस्था के खिलाफ पंजाब और हरयाणा हाईकोर्ट में पीआईएल डालने वाले आपके ही समुदाय के पंचकुला से श्रीमान साहनी साहब हैं| यह शायद पूरे देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अपने आप में एक अनोखा मामला होगा ऐसा मामला होगा, जिसमें यह जनाब एक या दो-चार व्यक्ति नहीं अपितु लाखों-लाख का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था के खिलाफ ही जा खड़े हुए|

क्या आप लोगों ने टोका उनको कि किसी व्यक्ति-विशेष के खिलाफ बेशक शिकायत करो, परन्तु पूरी सामाजिक संस्था को कोर्ट में खड़ा करना सभ्यता नहीं? तब आपको नजर नहीं आया कि इससे जाटों और खापों का मानसिकत उत्पीड़न होगा?

क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?

आज सीएम साहब के बयान पे किसी हरयाणवी का पलटवार हुआ तो आप लोगों ने जितनी जल्दी से उनकी जन्मतिथि व् जन्मस्थल की डिटेल्स निकाली, क्या कभी इतनी ही तन्मयता से अपने बच्चों को हरयाणवी सिखाई है? हरयाणत क्या होती है बताई और समझाई है? हरयाणत का मान-सम्मान क्या होता है कभी बताया है? मेरी सोशल मीडिया चैट्स में आज भी मेरे आपके समुदाय से जो मित्र हैं वो मुझे "और हरयाणवी", "और तुम्हारे हरयाणा में ये हुआ वो हुआ" जैसे वर्ड प्रयोग करते हुए शब्द दर्ज हैं| कईयों को तो मैंने कहा भी कि भाई आप रेस/नश्ल से बेशक हरयाणवी ना हों, परन्तु जन्म से तो हरयाणवी हो तो इसी नाते अपने आपको हरयाणवी कह लिया करो? और अब जन्म लेने मात्र से भी कोई हरयाणवी हो सकता है यह आपके ही द्वारा सिद्ध भी कर दिया गया जब आप सीएम साहब को सिर्फ जन्म स्थल के आधार पर हरयाणवी साबित कर रहे हैं| जबकि वही सीएम साहब ऊपर पहले बिंदु में बताये तरीके से हरयाणवियों की खिल्ली उड़ा रहे हैं|

जाट समाज अगर इतना ही उददंड होता तो आप लोगों को 1947 के बाद दोबारा से 1984-86 के दौर में जब आप पंजाब से भगाए गए थे तो फिर से अपने यहां की जीटी रोड़ बेल्ट पे बिना किसी अवरोध के बसने देता क्या? और वो भी बावजूद यह पता होते हुए कि आप 1981 के जनगणना रिकॉर्डों में आप लोग पंजाब में खुद को हिंदी बताए थे और हरयाणा में पंजाबी?

ऐसे-ऐसे रिकॉर्डों और आपके स्टैंडों से तो सांगवान साहब ही क्या मैं खुद भी आपकी असली सोशल आइडेंटिटी बारे दुविधा में हूँ| परन्तु कभी भी इस पर टिप्पणी नहीं की| क्योंकि हम खाप विचारधारा की सोशल डेमोक्रेटिक सोच को पालने वाले समुदाय के लोग हैं| दूसरे समुदाय का मानसिक उत्पीड़न करके ना हमने कभी जीना सीखा और ना किसी के ऐसा करने का समर्थन किया| ना ही हमने कभी मराठों ने जैसे बिहार-पूर्वांचल तो कभी दक्षिण भारतियों को भाषावाद और क्षेत्रवाद के नाम पे महाराष्ट्र में ना सिर्फ उनका मानसिक उत्पीड़न किया वरन बाकायदा पीट-पीट के भगाया भी, ऐसे हमने हरयाणा में बसने वाले तमाम गैर-हरयाणवी समुदायों के साथ नहीं किया| हाँ व्यक्तिगत लेन-देन या झगड़े किसी के हुए हों तो वो समाज में सामान्य बात है परन्तु महाराष्ट्र जैसे अपवाद हमने कभी नहीं खड़े किये, जबकि हरयाणा (आपके मीडिया बांधों की भाषा में जाटलैंड) तो महाराष्ट्र से भी पुराना इतिहास संजोये हुए हैं विस्थापितों व् सरणार्थियों को अपने यहां बसाने और रोजगार देने का| और 1947 से तो आप भी इस बात के साक्षी हो कि हमने आप तो क्या कभी तीन दशक से यहां रोजगार करने आ रहे बिहारी-बंगाली-असामी भाईयों तक को इस भाषावाद, क्षेत्रवाद और नश्लवाद की आग में नहीं झुलसाया|

जबकि आप लोग ऐसा करने की (वो मूल हरयाणवी जैसे कि जाट के साथ) मंशा रखते हो, इसके बाकायदा मीडिया और कोर्टों तक में पुख्ता सबूत दर्ज हैं| हम सर छोटूराम की विचारधारा पर चलने और खाप की विचारधारा में पैदा हुए जींस हैं, हमें आप इतना व्यर्थ तंग ना करें|

अंत मैं आपसे यही प्रार्थना करूँगा कि अगर इससे भी जाट की महत्वता, सामाजिकता व् सौहार्द समझ नहीं आता तो आप लोग पहले ऊपर बताये मुद्दों पर अपने समाज के लोगों से माफ़ी मंगवाएं, और जाट समाज से आपको कैसे रिश्ते चाहियें यह स्पष्ट शब्दों में सामने रखें| यह राजनैतिक पार्टियों को इमोशनल ब्लैकमेल करने के हथकंडे त्यागें और सामाजिक पहलुओं पर समाजों के बीच बैठ के बात करें, इनको राजनैतिक रंग ना देवें|

Email sent to:
1) hemant.bakshi44@gmail.com (State President, Haryana Punjabi Sawbhiman Sangh)
2) mahen.french@gmail.com (Chief-secretary, Haryana Punjabi Sawbhiman Sangh)

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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Tuesday, 22 September 2015

समस्या किसान के बोलने में नहीं है, अपितु अपने उन अधिकारों को ना लेने में है जो किसान ने उसको 'बोलना ले सीख' कहने वालों के पास छोड़े हुए हैं!


एक किसान को किसानी की भाषा अच्छे से आती है| जाहिर सी बात है जो भाषा देश में 'हरित-क्रांति' और 'श्वेत-क्रांति' खड़ी कर दे वो किसानी भाषा का ही कमाल कहा जायेगा| फिर भी इंग्लिश और हिंदी में कारोबारी भाषा भी हर किसान को सीखनी चाहिए|

परन्तु इसके साथ ही किसान को बोलना सीखने की कहने वालों को भी, अपना पेट भरने के लिए खेती करना और देश की सीमा पे खड़ा हो गोली खाना भी सीख लेना चाहिए| मुझे विश्वास है कि जिस दिन यह लोग खुद खेत में खट के पेट भरना और सीमा पे गोली खाना सीख गए, उस दिन यह बोली के लिए सुझाव देना, मजाकिया समझेंगे|

इसके अलावा किसान को अपनी फसलों का भाव खुद तय करने का अधिकार अपने हाथ में ले लेना चाहिए| शर्तिया कहता हूँ कि जिस दिन किसान ने यह अधिकार अपने हाथ में ले लिया उस दिन यह 'बोलना ले सीख कहने' वालों की तादाद में साठ प्रतिशत की कमी स्वत: ही आ जाएगी|

दूसरा दान के नाम पे धंधा करने वालों को दान देते वक़्त उससे दान का हिसाब-किताब लेने की आदत भी डालनी होगी| चाहे कानून बनवा के ही डालनी पड़े| अगर यह भी डाल ली तो रहे-सहे चालीस प्रतिशत की भी किसान से 'बोलना ले सीख' की शिकायत दूर हो जाएगी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

क्यों भाई बाकी के हरयाणवियों क्या हरयाणा आपका नहीं?


लगता है कि हरयाणा सीएम द्वारा,"हरयाणवी सिर्फ कंधो के नीचे से मजबूत होते हैं उपर से नहीं!" कहने को भी हरयाणवी लोग सिर्फ जाट का मजाक समझ रहे होंगे| वो शायद खाप की तरह अब हरयाणवी शब्द को भी सिर्फ जाटों के लिए छोड़ देना चाहते हैं| वरना अभी तक कोई हरयाणवी गुर्जर, अहीर, राजपूत, रोड़, ब्राह्मण, बनिया, दलित, ओबीसी कोई हरयाणवी तो आगे आया होता सीएम साहब के इस बयान की निंदा करने|

सीएम साहब की मेंटलिटी यह भी शो करती है कि वह खुद को प्रदेश का नागरिक नहीं मानते, अथवा खुद को भी कंधे से ऊपर कमजोर मानते हैं| कमाल है सीएम साहब हरयाणवी जनता के लिए आपके लगाव और स्नेह की भी| 

हवा सिंह सांगवान सर आपका कोटि-कोटि धन्यवाद इस बयान और सीएम के 'डंडे के जोर से काम करवाने' वाले बयान पर आपकी हरयाणत जागी और दो टूक सीएम को झाड़ा| सोशल मीडिया पर भी सिवाय जाटों के कोई अन्य हरयाणवी सीएम के बयान के विरुद्ध नहीं बोलता दिखा? क्यों भाई बाकी के हरयाणवियों क्या हरयाणा आपका नहीं? या कबूतर की भांति बिल्ली से आँख मूँद के यह बहम पाल गए हो कि यह "हरयाणवी सिर्फ कंधो के नीचे से मजबूत होते हैं उपर से नहीं!" वाला ब्यान भी सिर्फ जाटों के लिए था?

यार जाटों से इतनी भी मत नफरत करो कि यह गैर-हरयाणवी लोग ऐसे खुले में आपकी बैंड बजा रहे हैं और इसमें आपको कुछ नजर नहीं आ रहा! वाह रे मेरे हरयाणा, क्या नसीब है तेरा! कैसे मूल हरयाणवी हैं तेरे!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक