Saturday, 11 January 2020

नगर खेड़े दी खैर वे साइयाँ, नगर खेड़े दी खैर; मुक्क जां सबतों बैर वे साइयाँ मुक्क जां सबतों बैर!


पंजाबी भाषा में "दादा नगर खेड़े" पर बहुत ही आध्यात्मिक व् रोमांचित करने वाला गाना आया है कंवर ग्रेवाल जी दा:

शीर्षक है: "नगर खेड़े दी खैर वे साइयाँ, नगर खेड़े दी खैर; मुक्क जां सबतों बैर वे साइयाँ मुक्क जां सबतों बैर" - तुस्सी वी सुनो from youtube video link given at the end of this post.|

इसमें दर्जनों ऐसे शब्द हैं जो सिर्फ पंजाबी, हरयाणवी या उर्दू भाषा में मिलते हैं परन्तु हिंदी में नहीं मिलते| हिंदी भी अच्छी भाषा है परन्तु वह भी सीखिए-जानिये यानि हरयाणवी जिसको हरयाणवी ग्रामीण तो आज भी बोलता है| मेरे जैसे सरफिरे एनआरआई हरयाणवी तो जब भी कोई हरयाणवी मिलता है तो बात ही सिर्फ हरयाणवी में होती हैं| फिर नहीं याद रहती हिंदी, इंग्लिश या फ्रेंच|

फंडी का एक फंडा होता है अपने एजेंडा को फैलाने का कि अपनी बात झूठ हो या सच उसको फ़ैलाने व् स्थापित करने हेतु अगर 100 बार भी बोलना पड़े तो बोलते-फैलाते रहो जब तक कि वह अंतत: सच की तरह स्थापित ना हो जाए जनमानस में| और इसके मोटिवेशन के लिए यह जो नेरेटिव रखते हैं उसको कहते हैं कि, "100 बार बोलने से तो झूठ भी सच हो जाता है"| यही तो फंडा है इनका माय्थोलॉजीज को सत्य की तरह स्थापित करवाने का पब्लिक में; वरना देख लो माइथोलॉजी के नाम पर इन्होनें जितना भी स्थापित किया है आजतक उसके जो अगर 95% के कहीं कोई आर्कियोलॉजिकल से ले विभिन्न गज़ेटियर तक में जिक्रे भी मिल जाएँ तो|

मुझे इनकी यह सनक अच्छी लगती है परन्तु झूठ को सच सत्यापित करवाने हेतु की अपेक्षा इसके विपरीत सत्य को जिन्दा जिलाये रखने हेतु| इसलिए दादा नगर खेड़ों जैसी वास्तविक चीजों को जिन्दा रखने हेतु, पुरखों की कल्चरल किनशिप को बनाये रखने हेतु फैलवाइये/फैलाईये| वह 100 बार झूठ फैलाते नहीं थकते आप 5-10 बार अपनी औलादों-पीढ़ियों को पुरखों की यह मान-मान्यताओं वाली सच्चाई नहीं बता सकते? कैसे दादा-दादी-नाना-नानी हो रे तुम आज वालो, जो पोता-पोती-दोहता-दोहतियों को तुम्हारे बाप-दादों-माँ-दादियों की यह चीजें ही पास नहीं कर सकते अगर? या तुम कुछ न्यारे ही उतरे हो धरती पर?

चलिए फैलाइये, सुनिए-सुनवाइये| वरन यह गाना तो ऐसा है कि ब्याह-शादियों से ले बैठकों तक में बैठकर सुबह-शाम सुनिए| धुन भी कितनी रूहानी बनाई है गायक व् उनकी टीम ने| आहा मेरा तो बारम्बार सुनकर भी जी नहीं भरा है, सुने ही जा रहा हूँ, "नगर खेड़े दी खैर वे साइयाँ, नगर खेड़े दी खैर; मुक्क जां सबतों बैर वे साइयाँ मुक्क जां सबतों बैर"|

रमेश चहल भाई को यह गाना भेजने के लिए ख़ास धन्यवाद|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

YouTube Link of the Song: https://www.youtube.com/watch?v=60wwmuViptk

Thursday, 9 January 2020

हरयाणवी उदारवादी जमींदारी की गजब की जेंडर न्यूट्रैलिटी एवं सेंसिटिविटी देखिये!


1) यहाँ गाम-नगरों के नाम खेड़े (ललित खेड़ा) हैं तो खेड़ी (शीला खेड़ी) भी हैं, गढ़ (बहादुरगढ़) हैं तो गढ़ी (राखीगढ़ी) भी हैं, कलां (खानपुर कलां) हैं तो खुर्द (उगालन खुर्द) भी हैं|
2) यहाँ "दादा नगर खेड़ा" पुल्लिंग शब्द के धाम को 100% औरतों की अगुवाई व् आधिपत्य में (कोई मर्द पुजारी सिस्टम नहीं) धोका जाता है तो परस-चुपाड़ स्त्रीलिंग शब्द की जगह में अधितकर मर्द बैठते हैं|
3) बंगालियों को जब विधवा विवाह आंदोलन चलाने की सूझी (राजाराम मोहनराय के वक्त), उससे युगों-युगों पहले से यहाँ विधवा विवाह भी होते थे और विधवा स्त्री को समाज के हर फंक्शन में बराबरी से भाग लेने का अधिकार रहा है; यह नहीं कि कई समाजों की तरह मनहूस मान कर कालकोठरियों या विधवाश्रमों में सड़ने को फेंक दी जाती हो|
4) 99% खेड़े-खेड़ी नॉन-पुरोहित जमात के बसाये हुए हैं; कभी कोई अपशकुन नहीं हुआ आजतक| यह उन बंदबुद्धियों के लिए जो हर बात पर टूने-टोटके-शोण-कसोण के लिए एक विशेष जमात को बुलाने की रयाँ-रयाँ लगाते रहते हैं|
5) 'देहल-धाणी की औलाद' का दादा नगर खेड़े बड़े बीरों का जो नियम है इसके अनुसार पिता के गौत की जगह माँ का गौत भी औलाद का गौत हो सकता है; पूरे विश्व में यह, सिर्फ इस सिस्टम में है|
6) सर्वखाप, खाप या पंचायत सब के सब स्त्रीलिंग शब्द हैं, कभी सोचा इस एंगल से? आखिर क्यों रखे गए थे यह शब्द स्त्रीलिंग में? क्या भावना थी उदारवादी जमींदारों की इसके पीछे?

गुस्ताखी माफ़: खेड़े-खेड़ी, गढ़-गढ़ी के कॉम्बिनेशंस की भाँति मंदिर-मंदिरी या मठ-मठी या डेरा-डेरी या अखाडा-अखाडी देखे-सुने आपने? यह विश्व के सबसे कटटर मर्दवाद के अड्डे हैं| और इसीलिए इनको हरयाणवी उदारवादी जमींदारी खटकती है, इनकी खाप खटकती है|

ऊपर के छह उदाहरणों जैसे और भी बहुतेरे उदाहरण हैं| मकसद बताने का यही है कि किसी भी टीवी सीरियल-फिल्म-एनजीओ-गोलबिंदीगैंग-कथावाचक या 35 बनाम 1 टाइप्स वाले नफरत व् सम्प्रदायवाद के कीड़ों से जेंडर न्यूट्रैलिटी या सेंसिटिविटी सीखने-सुनने से पहले अपने पुरखों के युगों-पुराने स्थापित व् सत्यापित इस सिस्टम को जान लें तो शायद ही आपका जी करेगा इनको सुनने तक को भी| वरन आपको इनकी 90% बातें सबसे बड़ा जाहिलपना व् गंवारपना लगेंगी, ना-काबीले-गौर लगेंगी| तो इससे पहले यह इनका जाहिलपना और गँवारपना आपमें ठूंसें, अपनी चीजों को खुद जानें व् समझें; उसके बाद इनके पास भी कुछ काम का लगे तो ग्रहण कर लेवें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 8 January 2020

क्या रूहानी रहबर था वो: देखा कोई उसके जैसा जो अंग्रेजी गुलामी के दौर में भी "भाखड़ा बाँध" जैसे प्रोजेक्ट बनाता था?

गाँधी देखे हों, नेहरू देखे हों, जिन्नाह देखे हों, श्यामाप्रसाद मुखर्जी देखें हों, सावरकर या गोलवलकर देखें हों? इनके पॉजिटिव कंट्रीब्यूशन पर कोई कटाक्ष नहीं है, बस जानना इतना है कि इन्होनें भी किसी ने सर छोटूराम के "भाखड़ा बाँध" जैसा कोई प्रोजेक्ट लगाया था क्या आज़ादी से पहले?

देखा-सुना-पढ़ा कोई दीनबंधु रहबर-ए-आज़म चौधरी सर छोटूराम जैसा दिग्दर्शी? इतना दिग्दर्शी कि उस दौर में वह "भाखड़ा बाँध" के रूप में ऐसा प्रोजेक्ट लगा गया जिसके बूते आज़ादी के 73 साल बाद आज भी पूरे उत्तरी भारत के हर जाति-धर्म के किसान के खेत सिंचित होते हैं; हर जाति-धर्म के घर-गाम-शहर को बिजली मिलती है, हर जाति-धर्म के व्यापारी के कारखाने-दुकान को बिजली-पानी मिलता है?

एक ऐसा वक्त जब नेहरू-जिन्नाह-गांधी-सावरकर-मुखर्जी आदि इस पर आपस में उलझे हुए थे कि हिन्दू-मुस्लिम को अलग देश देवें या नहीं, उसी वक्त समानांतर में जिंदगी की आखिरी साँस लेने से पहले "भाखड़ा बाँध" का प्रोजेक्ट पूरा होने की फाइल पर हस्ताक्षर करके गया था वह हुतात्मा| इन्हीं वजहों-नीति-नियतों के चलते 33 करोड़ देवी-देवते बनाने-घड़ने वाले भी जाटों को धरती के भगवान् यानि "जाट देवते" बोलते हैं|

वैसे तो हर जाति-धर्म वाला समझे इस बात को, परन्तु जाट खासकर जान ले कि, "यह जाट-देवता वाली छवि यूँ ही नहीं हासिल किये थे पुरखे"| उनकी क्या कूबत थी और आपकी-हमारी क्या कूबत है कभी सोच-विचार कीजियेगा| हमारे पुरखे सिर्फ वह नहीं थे जो आजकल के मीडिया, मूवी-टीवी सीरियल्स, गोल बिंदी गैंग या तथाकथित एनजीओ वाले दिखा सिर्फ अपनी भड़ास निकालते रहते हैं| कोई नहीं दिखायेगा आपको ऐसे लेखों के जरिये ऐसी बातें, सिवाय 10-20-100-50 मेरे जैसे सरफिरों के अलावा| भाखड़ा बाँध जैसे प्रोजेक्ट ही थे जिनके बूते दो-दो हरित-क्रांतियाँ पार पड़ी और सिर्फ जाट-जमींदार ही नहीं अपितु हर जाति-धर्म के जमींदारों के यहाँ हवेलियों पर मोरनियाँ चढ़ाने जितने ब्योंत हुए| आओ विचारें आज कि तुम्हारी-हमारी क्या तैयारियाँ हैं आगे की पीढ़ियों की हवेलियों पर मोरनियाँ चढ़वाने की?

आज 9 जनवरी है आज ही के दिन 1945 में उस उदारवादी जमींदारी की रूह ने आखिरी साँस ली थी| आईये निश्चय करें कि उलझे रहेंगे जिनको धर्म-जातियों की लड़ाईयों-दंगों में लड़ने-लड़वाने-बंटने-बँटवाने को खुद का व् सारे समाज का जीवन सडाना है, इनकी तो धुर-दिन से लाइन ही खराब है उन जमानों में भी इनको यही लावालुतरी आई और वही ढाक के तीन पात; बनिस्पद बेशर्मों की आज भी वही लाइन है| परन्तु हम और आप उस पुरखे की भाँति ऐसे प्रोजेक्ट्स पर नजर रखते हुए, उनको साकार करते चलें कि यूँ ही वह प्रोजेक्ट्स हमारे मरने के बाद 70-100 साल भी दुनियाँ-जहान की जरूरतें पूरी करते रहें जैसे आज "भाखड़ा बाँध" कर रहा है|

और तो क्या ही व्याख्या करूँ मैं उस साक्षात् जमींदार-मजदूरों के भगवान की| उसकी समाज सेवा के प्रति नेक-नियति व् दूरदर्शिता के क्या ही कहने| भले ही फिर वह जमींदार-मजदूर-व्यापार के 13 स्वर्णिम कानून बनाये हों उसके, जो आज तलक लगभग हूबहू रूप में हरयाणा-पंजाब-हिमचाल-दिल्ली तक में लागू हैं; भले ही आज़ादी से भी 10 साल पहले उसने पंजाब में वह आरक्षण लागू कर दिया था जो बाकी के भारत में आज़ादी के बाद लागू हुआ; भले ही उसने 25 साल निर्बाध यूनियनिस्ट सरकार यूनाइटेड पंजाब में चलाई की दास्ताँ हो; भले ही उसने यह सब अचीव करने के लिए समाज को धार्मिक आधार पर बांटने वाली ताकतों को ठेंगा दिखाया था,उसकी बानगी हो| उनके जीवन की सबसे बड़ी सीख यह भी है कि सर्वसमाज-देश का भला करना है तो धार्मिक-जातीय-वर्णीय ताकतों को साइड रखना होगा और ताक पर रख कर काम करने पड़ें तो वह भी करना होगा|

स्टेट से ले सेण्टर सरकारों से अनुरोध है कि भाखड़ा बाँध पर सर छोटूराम का स्टेचू लगवाया जाए| उनको "भारत-रत्न" से नवाजा जाए तो इसमें कोई अहसान करने वाली बात नहीं होगी अपितु पुरखों का देश-समाज पर कर्ज उतारने की बात होगी|

9 जनवरी 1945 सर छोटूराम निर्वाण दिवस विशेष व् 9 जनवरी 1858 राजा नाहर सिंह व् उनके 2 सेनापतियों के बलिदान दिवस पर उन हुतात्माओं को बारम्बार नमन|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


Tuesday, 7 January 2020

सत्रहवाँ जाटरात्रा: 8 जनवरी - 'कूटनीतिक व् शांतिपूर्ण नेगोसिएशन हमेशा पे करती है, तुरंत (ऑन-दी-स्पॉट) ना करे, नजदीक या दूरस्थ भविष्य में जरूर करती है|

शीर्षक: 'कूटनीतिक व् शांतिपूर्ण नेगोसिएशन हमेशा पे करती है, तुरंत (ऑन-दी-स्पॉट) ना करे, नजदीक या दूरस्थ भविष्य में जरूर करती है|

आज के जाटरात्रे का संदर्भ: जब चितपावनी पेशवाओं व् मराठों ने ब्याही थी जाटों से अपनी 10000 के करीब बेटियाँ|

सत्रहवें जाटरात्रे मनाने को मनाने का थीम: "जाटों का ग्लोबल व् राष्ट्रीय डायस्पोरा (अनुवांशिक फैलाव)" व् ग्लोबल व् राष्ट्रीय हस्तियां|

क्या मंथन करें:
कूटनीतिक व् शांतिपूर्ण नेगोसिएशन हमेशा पे करती है: जाट इतिहास में जाट पुरखों की नेगोसिएशन कला, चतुर बुद्धि व् निर्भीकता की वजह से एक बार ऐसा हुआ है जब लगभग 10000 जाटों को एक साथ चितपावनी पेशवाओं व् मराठों ने अपनी लड़कियाँ ब्याह कर (यह हर जाट के लिए सम्मान की बात है, और इसको उसी उद्देश्य से लिया जा रहा है; जातिवाद के नाम पर हर चीज में उपहास व् तंज ढूंढने वाले कीड़े इस पोस्ट व् तथ्य दोनों को इग्नोर करें), उनको बड़े आदर व् सम्मान सहित अपना घर जमाई बनाया था| नासिक के आसपास "खाप बाईसी" बोल के जाटों के 40 गाम बसते हैं| जो जानता होगा उसको तो पढ़ते ही आईडिया आ गया होगा कि यह वाकया कैसे हुआ था?

वाक्या महाराजा सूरजमल जी वाला ही है| पानीपत की तीसरी लड़ाई से पहले पेशवाओं से अपनी बात मनवाने में बेशक महाराजा जी फ़ैल हुए परन्तु उसके रिटर्न्स मल्टीप्ल रहे| सबसे बड़ा रिटर्न यह कि पेशवाओं की चतुराई-छल-कपट से खुद व् खुद के साम्राज्य को बचा सके| दूसरा रिटर्न यह कि जब वीरता व् निर्भीकता साबित करने का सही वक्त आया तो अब्दाली से एक अंश भी खौफ ना खाते हुए, घायल पेशवाओं की ऐसे वक्त में मरहमपट्टियाँ करने आगे आये जिस वक्त में खुद पुणे के पेशवे फाख्ता हो गए थे, तितर-बितर थे; पुणे से कोई मदद ही नहीं पहुंची थी ऐसे दुबक के बैठा गया था वहाँ का मुख्य पेशवा; बाकी राजे-रजवाड़ों का मदद में आना तो छोड़ ही दो|

परन्तु अपनी नीति-नियत-नियम पर रहने का इन दोनों से भी जो सबसे बड़ा तीसरा जो फायदा जाटों को हुआ वह यह कि जब महाराजा सूरजमल जी ने लगभग पेशवाओं-मराठों को अब्दाली से 10000 जाट सेना की सुरक्षा में महाराष्ट्र छुड़वाया तो तब जा के बताते हैं कि चितपावनी पेशवे पसीजे थे और उनको अक्ल आई थी कि जाट गलत नहीं थे| उनकी मानी गई होती तो पानीपत में जीत होती| फिर भी उन्होंने अपनी यह गलती कुछ यूँ ठीक करी कि जाट सेना को वापिस नहीं जाने का अनुरोध किया, जाट सेना को कहा गया कि आप यहीं मराठवाड़ा में नासिक के पास बसों; हम आपको हमारी बेटियाँ ब्याहेंगे| इस अनुरोध को महाराजा सूरजमल जी ने भी स्वीकृति दी| और इस तरह जाटों से मराठवाड़ा की लगभग 10000 छोरियों के एक ही समय में बयाह हुए|

मुग़लों को छोरियाँ दी, इसको दी उसको दी; औरों के ही जिक्र करने पर मत लगे रहा करो| यह भी याद किया करो कि आपके पुरखों की विलक्षण बुद्धि व् नेक-नियत ने इस मामले में क्या कीर्तिमान स्थापित किया था|
तो यह है पुरखों की विलक्षण बुद्धि व् धैर्य का लोहा|

ऐसे ही किस्से और भी बहुत हैं, साल-दर-साल ऐसे किस्से और जोड़े जायेंगे| जिनको सिर्फ जाट ही नहीं अपितु अन्य सर्वसमाज भी जानेगा तो जाट के लिए आदर पैदा होगा|

गुस्ताखी माफ़: वैसे यह जो फरवरी 2016 का दंगा हुआ था वह भी चितपावनी पेशवाओं की अगुवाई वाले संगठन आरएसएस की पोलिटिकल विंग बीजेपी की स्टेट-सेण्टर में सरकार होते हुए, यह कहीं इसीलिए तो नहीं हुआ कि इनको यह भूल पड़ गई हो कि जाट तो तुम्हारे समधाने हैं, जमाई हैं; इन पर क्यों तुम जाट बनाम नॉन-जाट होने दे रहे हो? यह ऐसी-ऐसी बातें जमाना भूले नहीं इसीलिए जाटरात्रे मनाईये| इससे ना सिर्फ आपके पुरखे आपको आशीष देंगे अपितु सोहरे/सगारिये/थारे-म्हारे पुरखों के सुसराड़ियों की "फरवरी 2016" टाइप की बुरी नजर से भी जाट बचे रहेंगे| ऐसे-ऐसे उदाहरणों को जिन्दा रख कर ही "पुरखों की, कौम की किनशिप" को जिन्दा रखा जा सकता है|

न्यूं मान लो कि पानीपत मूवी में भी म्हारे पुरखों के सोहरे/सगारिये/सुसराड़ियों ने उनके जमाईयों की टाँग खिंचाई की; सुनी है इस फिल्म का डायरेक्टर आशुतोष गोवारीकर कर चितपावनि पेशवा मराठा खूम से ही है तो क्या हुआ अब रिश्तेदारों में तो इतना चलता है ना| परन्तु इस हल्की सी चुटकी में इतनी गंभीर बातें अपनी आगामी पीढ़ियों को बताना-बतलाना मत भूलियेगा| वरना वही बात यह सोहरे दूसरी फरवरी 2016 जैसी नजर फिर लगा देंगे|

नासिक, महाराष्ट्र में जाटों के राष्ट्रीय फैलाव बारे आज बताया, बाकी बताना ग्लोबल फैलाव बारे भी था परन्तु वक्त की कमी की वजह से फ़िलहाल इतना ही|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 4 January 2020

जाटरात्रे मनाने की जरूरत क्यों पड़ी?

कई साथियों का फीडबैक आया कि भाई जाटरात्रे मनाने की जरूरत क्यों पड़ी, जबकि जाट तो सर्वसमाज सर्वधर्म को साथ लेकर चलने वाली कौम रही है सदियों से?

भाई बस, यही अहसास ना सिर्फ जाट अपितु जाट बनाम नॉन-जाट व् 35 बनाम 1 रचने-रचवाने वालों को याद रहे कि जाट "सर्वसमाज सर्वधर्म को साथ लेकर चलने वाली कौम है" इसको मत बदनाम करो, इस पर मत बदनीयत रखो; इसीलिए हर साल 23 दिसंबर से 9 जनवरी तक 18 दिन जाटरात्रे मनाने का निश्चय हुआ है| 365-18= 347 दिन सालभर सभी जाति-धर्म-पंथ-स्टेटों वालों के तीज-त्योहारों-व्यवहारों में हंसी-ख़ुशी बढ़चढ़कर शामिल होता है जाट लेकिन फरवरी 2016 के बाद से 18 दिन सिर्फ अपने पुरखों के स्थापित व् सत्यापित किये सिद्धांतों-आध्यात्म्यों वाले तौर-तरीके भी याद किया करेगा जाट|

ताकि शहरी हो या ग्रामीण हर जाट को यह अहसास रहे कि "जाट देवता" कहलवाने के लिए अंधांधुंध धन-दौलत, शहरों-सेक्टरों-गांव में ऊँची कोठी-बंगले व् एमबीए-सीए-बीटेक-एमटेक आदि की डिग्रियां मात्र पर्याप्त नहीं अपितु वह तौर-तरीके-कस्टम्स-ट्रडिशन्स-सिद्धांत आदि, एक शब्द में कहूं तो "कौम की किनशिप" आपस में जानना-जनवाना भी इतना ही जरूरी है जिसके चलते आपके-हमारे पुरखे 95% तथाकथित अक्षरी अनपढ़ व् ग्रामीण होते हुए भी सर्वसमाज-सर्वधर्म से "जाट देवता" कहलवा लेते थे| आप शहरों-विदेशों तक आ लिए, परन्तु वह जाट देवता वाला जज्बा व बिसात साथ लेकर नहीं चल पाए, निसंदेह वह साथ रखते तो शहरी मार्किट का सबसे बड़ा कंस्यूमर बेस यानि जाट, उसी के सेक्टरों पर फरवरी 2016 में 35 बनाम 1 की भीड़ ना टूटती|

यह तो शुक्र कहूं दादा नगर खेड़ों का कि ऐन मौकों पर ग्रामीण जाटों के छोरों ने भर-भर ट्रेक्टर-ट्रॉलियां तुर्ताफूर्ति में इन सेक्टरों के चौक-चौराहों पर अड़ाए अन्यथा हमला काबू बेशक इनके बिना भी हो जाता परन्तु नुकसान कितना ज्यादा करके जाता इसका अंदाजा लगाना ही मुश्किल है| 19 फरवरी से 22 फरवरी 2016, 4 दिन-रात कॉल सेण्टर बन गया था मेरा घर फ्रांस में बैठे हुए भी, 4 दिन कोई काम नहीं किया था बस दिनरात सिर्फ जिंद की स्थिति रोहतक वालों को बता रहा था, सोनीपत की भिवानी वालों को, करनाल की गुड़गाम्मा वालों को, कैथल की झज्जर वालों को, दिल्ली-गाजियाबाद की फरीदाबाद वालों को, पंचकूला की हिसार वालों आदि को| वह चार दिन-रात परमानेंट छप चुके हैं जेहन में| और यह सब कौम को दोबारा ना देखना-झेलना पड़े, इसलिए जरूरी हैं जाटरात्रे मनाने|

एक ऐसी कौम जिसके बिना हरयाणा-हरयाणवी-हरयाणत का कोई भी पहलु पूरा नहीं हो सकता, जो इन शब्दों के मूल में बसती है; वह औरों को गले लगाते-लगाते खुद कब अपने आपको ही भूल गई इसका अहसास दिला गया फरवरी 2016| 90% गाम-खेड़े विशाल हरयाणा धरती के ऐसे हैं जिनके सदियों-शताब्दियों पहले जब यह गाम बसे होंगे तब इनकी नींव के पत्थर जाटों के पुरखों ने रखे हुए हैं और उसी जाट के खिलाफ यहाँ फरवरी 2016 में ऐसा शरणार्थी समझ लेने जैसा व्यवहार करने की कोशिश हुई, उसी के खिलाफ 35 बनाम 1 व् जाट बनाम नॉन-जाट? मखा कोई ना, जाट जब तक अनख पर नहीं लेता तब तक नहीं लेता; अब आगे 18 दिन तो जाट का इतना प्रचार रखेंगे कि आगामी जाट पीढ़ियां ऐसे किसी भी प्रोपगेंडा में नहीं फंसेगी|

अत:आगे वाली जाट पीढ़ियों पर फिर से फरवरी 2016 ना हों इसीलिए जाटरात्रे मनाना तय हुआ है| भले सिर्फ जाट ही मनावें परन्तु मनावें जरूर ताकि भविष्य में जाट के खिलाफ जाट बनाम नॉन-जाट रचने-रचवाने वालों को यह याद आता रहे कि जाट है कौन|

सनद रहे: जाटरात्रे किसी भी सूरत में किसी भी अन्य जाति या धर्म की आलोचना-तुलना अथवा चर्चा तक करने हेतु नहीं हैं| सर्वसमाज-सर्वधर्म के भाईचारे के सिद्धांत को पालते हुए व् सर्वोपरि रखते हुए "जाटरात्रे" भी मनाईये|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 3 January 2020

तेरहवाँ जाटरात्रा - 4 जनवरी - "माइथोलॉजी अधूरा कल्चर है, उसके आगे का पूरा जाट-कल्चर जानना है तो सर्वखाप को पढ़िए"!


इस रात्रे का शीर्षक: "माइथोलॉजी अधूरा कल्चर है, उसके आगे का पूरा जाट-कल्चर जानना है तो सर्वखाप को पढ़िए"|

तेरहवें रात्रे को मनाने का थीम: "जाट अपने मूल स्वभाव यानि DNA की साइकोलॉजी-फिलॉसोफी-आइडियोलॉजी को पहले जाने, फिर उसी के आधार पर समाज से डील करे, नेगोसिएट करे| काबिले-गौर है कि जाट जब तक नेगोसिएट नहीं करता तब तक ही नुकसान में रहता है, वरना जब-जब जाट पुरखों ने नेगोसिएशन करी, सामने वाले से ना सिर्फ अपना सम्मानजनक बचाव कर पाए अपितु उसको उसकी बुद्धि का जायज स्थान भी आभास करवा पाए| दर्जनों ऐसे उदाहरणों में से दो ख़ास उदाहरण महाराजा सूरजमल सुजान व् सर छोटूराम के हैं| महाराजा जी ने ओपन टेबल पर नेगोशिएट किया तो सदाशिव राव भाऊ नामक चितपावनी पेशवा की चालाकी व् चालों से ना सिर्फ खुद को बचा पाए वरन भाऊ को पानीपत के मैदान में अपनी बुद्धि की परख भी भलीभांति हुई व् बाद में पेशवे ऐसे अहसान करके जाटलैंड से विदा किये जैसे कोई झुण्ड से बिछुड़े जानवर को उसकी माँ से मिलवाता है| सर छोटूराम तो इतने बड़े नेगोसिएटर थे कि एक साथ अंग्रेजों से ले सूदखोरों-कालाबाजारियों व् तीन-तीन धर्मों की कट्टर धार्मिक ताकतों को ऐसे खूँटे बाँध नचाया, जैसे मदारी बंदर नचाता है| ऐसे नेगोशिएट करते थे सर छोटूराम कि अंग्रेजों से गेहूं के 6 रूपये मण के भाव की जगह 11 रूपये मण का भाव लेकर उठते थे| अत: मंथन कीजिये कि आपका DNA माइथोलॉजी नहीं है अपितु फैक्टोलॉजी-ब्रोदरहुड-इंसानियत है जो सिर्फ और सिर्फ पुरखों की अनंतकाल से आजमाई हुई खापोलॉजी, दादा नगर खेड़ा व् उदारवादी जमींदारी से ही समझी जा सकती है"|

मंथन क्या करें?: माइथोलॉजी अधूरा कल्चर है, उसके आगे का पूरा जाट-कल्चर जानना है तो सर्वखाप को पढ़िए अर्थात खून-खूम-खूँट के आपसी झगड़े सुलझाने का माइथोलॉजियों का रास्ता घर उजड़वाने, झगड़े लगवाने व् अंत में आपस में मर-कटने की ओर ले जाता है| जबकि जाट का यह कल्चर रहा ही नहीं है कभी भी| जाट की सर्वखाप ने हमेशा शांति से परस-चुपाड़ों के चोंतरों (चबूतरों) पर बैठकर ना सिर्फ ऐसे झगड़े निबटवाये अपितु अंत में दोनों पक्षों के दिल भी मिलवाये| जाट की किसी भी खाप की मीटिंग/पंचायत का ऐसा रिकॉर्ड नहीं मिलेगा कि वह माइथोलॉजी की तरह झगड़ा/मसला नहीं सुलझा पाई तो सगे खूनों में ही युद्ध ठनवा के उठी हो| कोरी बकवास फिलॉसफी है यह माइथोलॉजी वाली, जो जाट के पंचायत कल्चर से कोसों-कोस मेल नहीं खाती|

जाट ही नहीं अपितु सर्वसमाज को आपके-हमारे घरों को झगड़ों में उलझाए रखने की फंडी की यह माइथोलॉजी वाली कूटनीति समझनी होगी| आपके-मेरे-हमारे घरों में झगड़े बने रहेंगे तो इन फंडियों के टूने-टोटकों की दुकानें चलते रहने का स्कोप बना रहेगा| यह कभी न्याय नहीं करते सिर्फ न्यायकारी बनने के फंड रचते हैं तभी यह फंडी कहलाते हैं| इसीलिए तो बड़ी-बड़ी मैथोलॉजिकल किताबों के लेखकों ने इनके हर किस्से का अंत युद्ध पर लाकर किया| तो आप अपना ज्ञान पूरा कीजिये व् माइथोलॉजियों के बाद का रास्ता जानने के लिए पुरखों के पास बैठकर सर्वखाप के ऐतिहासिक इतिहास, बड़ी-बड़ी पंचायतों के न्यायिक फैसले, समाजों-गामों को उजड़ने से बचाने के केसों (मामलों) की स्टडी कीजिये| दो-चार केस भी बुजुर्गों से समझ लिए तो पाओगे कि माइथोलॉजी वाकई में मिथ है, इसका प्रक्टिकलिटी से कोसों-कोस तक कोई वास्ता-नाता नहीं|

क्या कभी देखा है कि दो भाईयों या देवरानी-जेठानी में झगड़ा हुआ हो और वह दोनों पक्ष एक ही फंडी के पास अपना झगड़ा ले के गए हों? कभी नहीं मिलेगा ऐसा| दोनों अलग-अलग के पास जायेंगे और उनसे पूछा-पडवाने, टूने-टोटके से एक दूसरे का विनाश करवाने के तजाम करवाएंगे, अपने घर फूंकेंगे, दिमाग फूंकेंगे और फंडी बैठे मौज मारेंगे| इनमें न्यायकर्ता-पंचायती मान बैठने वाले से बड़ा निर्बुद्धि कोई नहीं धरती पर| जबकि खून-खूम-खूँट के 99% झगड़े ऐसे होते हैं कि एक बार पुरखों की भाँति पंचायत करके बैठ जाओ तो झगड़ा तुरतो-फुर्ती में रफा-दफा|

एक माइथोलॉजी वाले तो मात्र दो परिवारों का झगड़ा सुलटवाने में ही रंभा लिए थे, पाँच गाम तक पर डील नक्की नहीं करवा सके| जबकि आपके पुरखे तो 84-84, 360-360 गामों के मुकदमे बड़ी सरलता से सुलझाते आये सदियों से| मामले सुलटवाने बारे दिल्ली की लाठ-महरौली तो इतिहास में इतनी मशहूर हुई है कि "लाठ-महरौली सर्वखाप के चौधरियों को लाट-साहब" बोला जाता रहा है| वही लाट-साहब शब्द जिसपे बॉलीवुड में फिल्मों से ले गाने, डायलॉग्स तक बने हुए हैं व् आमजन में कहावत भी चलती है कि, "फलानि धकडी बात, तू के लाट-साहब लाग रह्या सै"| इन 23 दिसंबर से 9 जनवरी तक चलने वाले 18 जाटरात्रों में जानिये अपने पुरखों की इन बुलंदियों वाले ऐसे इतिहास को जो लिटरेचर-कल्चर में इतने सम्मान से इतने गहरा समाया हुआ कहलाया है|

इसको जानना क्यों जरूरी है?: अगर सर्वखाप को पढ़े बिना अकेले माइथोलॉजी के आधे ज्ञान वाला ही अपना कल्चर मान बैठोगे तो जो ऊपर बताया कि फंडियों की तो मौज होगी ही होगी साथ में कभी पुरखों का दिया भाईचारे व् कौमी-एकता का कांसेप्ट धरातल पर कायम नहीं रख पाएंगे हम| घरों में आपसी भेदभाव-न्याय-अन्याय के लिए आवाज तो उठाते रहेंगे| फंडी इतना ही चाहते हैं कि घरों में एक-दूसरे पर क्रांतिकारी-विद्रोही ही बने रहो परन्तु उसके आगे अपनी जटबुद्धि लगा के दिल ना मिलने-मिलाने पाओ, झगड़े-मनमुटाव ना सुलटा पाओ| सुलटाने के नाम पर इनके दरवाजे जाओ, इनको मनाओं| चढ़ावा चढ़ाओ और झगड़े का निबटारा भूल जाओ| यानि शांतिपूर्ण हल कभी नहीं निकाल पाओगे| घर की औरतें बहम-अहम्-पक्षपात-वाद-विवाद आदि के चलते घर के ही सदस्यों पर ऐसे आखें तराती व् दाड़ पीसती रहेंगी जैसे "जोहड़ के गोरे पर बैठे भैंसों के झुण्ड में दो झोटे (भैंसे) बिना बात ही सिर उठाये एक दूसरे को घूरते हुए नथूने फुला-फुला खुर्री काटते रहते हैं, व् कई बार तो सिर भी मेल लेते हैं|

सलंगित है "सर्वधर्म-सर्वजातीय-सर्वखाप महापंचायत का लीजेंड"| इसकी हर कड़ी की व्याख्या विस्तार से जाननी है तो मेरे इस लेख पर पढ़ें - http://www.nidanaheights.com/Panchayat.html

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


Tuesday, 31 December 2019

इंडिया में कौन किसको खाना चाहता है!

1 - सनातनी, आर्य-समाज, सिख व् उदारवादी जमींदारी को खाना चाहते हैं|
2 - चितपावनी ब्राह्मण, खुद के सिवाए सारे सनातनियों को खाना चाहते हैं|
3 - जैनी, चितपावनी व् उदारवादी जमींदारी दोनों को खाना चाहते हैं|

अब तीनों बिंदु थोड़ा विस्तार से:

1 - सनातनी, आर्य-समाज, सिख व् उदारवादी जमींदारी को खाना चाहते हैं| आर्य समाज के हर गुरुकुल-मठ में पूरा कब्ज़ा करने की कोशिश में हैं सनातनी आज के दिन| उदारवादी जमींदारी थ्योरी की अग्रणी कौम जाट के खिलाफ 35 बनाम 1 के फरवरी 2016 दंगे इसी कड़ी की इबारत है| वह अलग बात है कि 35 बनाम 1 चला नहीं वरना इरादा इनका हर उदारवादी जमींदार की घिस काढणे का था, शुरुवात जाट से करनी चाही थी| सिख अपना लेशन सीख चुके 1984 के जरिये, अब वह इनके पैंतरों से पार पा चुके| 2013 व् 2016 के दंगों से आर्य समाजियों के भी होश पाख्ता तो हुए हैं परन्तु इनको अभी इनके जाल से पूर्णत: निकलना बाकी है|

2 - चितपावनी ब्राह्मण, खुद के सिवाए सारे सनातनियों को खाना चाहते हैं, जैसे हरयाणवी सनातनी को चितपावनी सनातनी खा रहा है| इसीलिए चितपावनी को फर्क नहीं पड़ता कि कौन हरयाणवी सनातनी ब्राह्मण की फरसे से गर्दन उड़ाने दौड़ता है| सनातनियों द्वारा हरयाणा के हर दूसरे मन्दिर में गैर-हरयाणवी पुजारी बैठाये जा रहे हैं; ऐसे हरयाणवी ब्राह्मण की इकॉनमी की कड खुद गैर-हरयाणवी सनातनी ही तोड़ रहे हैं|

3 - जैनी, सनातनी चितपावनी व् उदारवादी जमींदारी दोनों को खाना चाहते हैं| जैसे जैनी अपने एजेंटों के जरिये फैलवाते है कि ना चितपावनी पेशवाओं के बताये पानीपत के 3 युद्ध सच हैं ना मुग़लकाल, ना कोई राजा ने कोई किला बनवाया| जैनी प्रचार करवाते हैं कि किले तो हुए ही नहीं कभी| दरअसल यह जितने किले हैं यह जैनी व्यापारियों के स्टोरेज हाउस हुए हैं जो उन्होंने ही बनवाये हैं किसी राजा-नवाब ने नहीं| लगता तो नहीं कि जैनी अपने धर्म व् समुदाय से बाहर इतने बड़े दान किये होंगे कभी कि किले-के-किले बनवा दिए? आज अम्बानी जैनी, अडानी जैनी जैसे तमाम उद्योगपतियों को ही देख लो; क्या लगाते हैं सोशल वेलफेयर के नाम पर एक दवन्नी भी? तो जब आज ही नहीं लगाते तो पुराने वक्तों में जरूर इन्होनें सर्वसमाज के "बुर्ज खलीफे" खड़े किये होंगे| समुदाय से बाहर छोरी का रिश्ता तक तो ये देते नहीं, महल-दुमहले चिनवाएँगे ये सर्वसमाज के, हजम होने से ही परे की बात है| 90% हिन्दू विधानसभा होते हुए भी 2016 या शायद 17 में जैन मुनि तरुण सागर का प्रवचन करवाया जाता है हरयाणा विधानसभा में| यह जैनियों द्वारा हरयाणा में सनातनियों को साइड करने की कड़ी का हिस्सा था वरना 90% हिन्दू व् 50% से ज्यादा आर्यसमाजी हरयाणवी समुदाय में कोई भगवा बाबा या आर्यसमाजी प्रचारक ना मिला था क्या यह कार करवाने को? दावा नहीं परन्तु सुनते हैं कि "आदिकिसान" नामक ग्रुप इन्हीं का प्रचारक है व् इसका मुख्य काम है किसान-जमींदारों में यह बात भरवाना कि तुम खालिस कबीले रहे हो और हल की मूठ थामने के सिवाए तुम्हारे पुरखों को कुछ नहीं आया| इसीलिए इनके लिए ना महाराजा सूरजमल सच है और ना ही सर्वखाप|

आजकल जैनी व् अरोड़ा/खत्री कम्युनिटी बनाम ब्राह्मण-बनिया पॉलिटिक्स चल रही है; वैसे तो पूरे भारत में, उसमें भी हरयाणा इनका ख़ास नूराकुश्ती वाला अखाड़ा बना हुआ है| कल तक हरयाणा-पंजाब में सनातनियों का हिंदी भाषा आंदोलन चलाने वाला सबसे बड़ा समुदाय आज सनातनियों को छोड़ जैनी के साथ जा चुका है| और पूरे इंडिया की पॉलिटिक्स को चार जैनियों की चौकड़ी यानि मोदी-शाह-अडानी-अम्बानी ने इस तरह हाईजैक कर रखा है कि इनके आगे चितपावनी से ले पूरा सनातनी व् आरएसएस तक मजबूर है|

कुल एक लाइन का जोड़ कहूं?: आरएसएस की 90 साल के पेड़ का फल जैनी जीम रहे हैं| सनातनी-चितपावनी सिर्फ टुकर-टुकर देखने को मजबूर हैं|

यह सनातनियों को लीड करने वाले ब्राह्मण समाज पर एक श्राप के तहत है| ब्राह्मण को श्राप है कि यह वर्ग सत्ता-संसाधन सब कुछ जुटा तो लेगा, उसमें घुसा भी रहेगा परन्तु इनके जुटाए पे जीमेगा कोई और| पहले मुग़ल जीमे, फिर अंग्रेज और अब जैनी| और यह इसलिए होता है क्योंकि ब्राह्मण जिसको स्वधर्मी कहता है उसमें सबको बराबर रखने-मानने-बताने-बरतने की बजाये वर्ण व् छूत-अछूत के भेदभाव में बाँटता है; जो उसके ऊपर अमानवता के नाम से चक्रवर्धी ब्याज की तरह चढ़ता रहता है व् तब फूटता है जब ब्राह्मण सत्ता-संसाधन की पीक पर पहुँच जाता है| ब्राह्मण अपने भीतर के इस सिस्टम में सुधार कर ले तो यह श्राप हट जाए शायद उस पर से| वरना किसी खट्टर की यह मजाल कि वह एक ब्राह्मण को फरसा दिखा जाए?

भारत की वर्तमान धर्म-जाति-नश्ल व् राजनीति की दशा है यह; अब आपको इसमें से खुद का बचाव कैसे करना है खुद समझ लीजिये|

वैसे इस सबमें हिंदुत्व मिला कहीं? देख लो मुस्लिम का जिक्र किये बिना पोस्ट पूरी की है परन्तु हिंदुत्व फिर भी नहीं दिखा? क्योंकि हिंदुत्व का प्रैक्टिकल ग्राउंड कोई है ही नहीं; यह सिर्फ हवा-हवाई हवाओं का सगूफा है| मुस्लिम से डराने मात्र का टोटका है हिंदुत्व| वरना इनका बस चले तो आर्यसमाजी को सबसे पहले सनातनी खाये, सनातनी को चितपावनी व् चितपावनी को जैनी|

जैनी के ऊपर कौन है ढूंढ रहे हो क्या? चलते-चलते बता ही देता हूँ उसके ऊपर वेटिकन वाले हैं| मक्का वाले भी इन्हीं के इच-बीच हैं कहीं परन्तु उनको सही से पोजीशन नहीं कर पाता हूँ शायद और स्टडी की जरूरत है|

वैसे मुझे व्यक्तिगत तौर पर 'मुंह पर पट्टी रखना' सबसे बेस्ट स्ट्रेटेजी लगती है| वैसे तो अलग धर्म का विचार नहीं परन्तु कभी ऐसा कुछ हुआ और कोई नए धर्म की कल्पना की तो जैनियों वाली यह मुंह पे पट्टी जरूर लगाना चाहूंगा उस नए धर्म में जो भी आएगा सबको, क्योंकि व्यर्थ की बक-बक ही 80% झगड़ों-अपवादों-उपहासों की जड़ है जिसको जैनी मात्र एक पट्टी से निबटा डालते हैं|

उद्घोषणा: मेरा आंकलन गलत भी हो सकता है, ऐसे में पहले ही हाथ जोड़कर माफ़ी| लेख के विचार व्यक्तिगत व् निष्पक्ष हैं; लेखक किसी समुदाय-धर्म से कोई राग-द्वेष नहीं रखता|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

दसवाँ जाटरात्रा - 1 जनवरी!


समर्पित है: सर्वखाप यौद्धेय उदारवादी जमींदारी रक्षक गॉड गोकुला जी महाराज को! - (Photo Attached)

दसवें जाटरात्रे पर क्या मंथन करें: यह जो जमींदारी व् जमीनों की मलकियत है, यह कोई दान में मिला मंदिर नहीं है अपितु गॉड गोकुला जैसे अनगिनत पुरखों के चेतना सिहरा देने जितने सदियों-सदियों के भयंकर बलिदानों की धाती है| इसलिए इसको संभाल कर रखिये व् पुरखों की इस किनशिप को नई पीढ़ियों को पास करने का अपना जीवन-तर जाने जैसा पवित्र फर्ज निभाईये व् आजीवन का पुण्य कमाईये|

अब गॉड गोकुला जी का इतिहास, ऐतिहासिक कविताई व् तथ्यों के गौरे-नजर:

तब के वो हालत जिनके चलते God Gokula ने विद्रोह का बिगुल फूंका:

सम्पूर्ण भारत में मुगलिया घुड़सवार, गिद्ध, चील उड़ते दिखाई देते थे|
हर तरफ धुंए के बादल और धधकती लपलपाती ज्वालायें चढ़ती थी|
राजे-रजवाड़े भी जब झुक चुके थे; फरसों के दम तक भी दुबक चुके थे|
ब्रह्माण्ड के ब्रह्मज्ञानियों के ज्ञान और कूटनीतियाँ कुंध हो चली थी|
चारों ओर त्राहिमाम-2 का क्रंदन था, तथाकथित स्वधर्मी खुद जजिया कर से छूट पा; अपने जमींदार-मजदूर वर्ग को उत्पीड़न के लिए अकेला छोड़ चुके थे|
उस उमस के तपते शोलों से तब प्रकट हुआ था वो महाकाल का यौद्धेय|
समरवीर उदारवादी जमींदारी रक्षक अमरज्योति गॉड-गोकुला जी महाराज|

1857 अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी का पहला विद्रोह था तो 1669 मुग़लों के खिलाफ दूसरा (पहला 1193):

जो हुआ था औरंगजेब की भारी कृषि टैक्स-नीतियों के विरुद्ध ‘गॉड गोकुला’ की सरपरस्ती में,
जाट, मेव, मीणा, अहीर, गुज्जर, नरुका, पंवारों से सजी विशाल-हरयाणा सर्वखाप की हस्ती में|

हल्दी घाटी के युद्ध का निर्णय कुछ ही घंटों में हो गया था,
पानीपत के तीनों युद्ध एक-एक दिन में ही समाप्त हो गए थे,
परन्तु तिलपत, फरीदाबाद का युद्ध तीन दिन-रात चला था|

राणा प्रताप से लड़ने अकबर स्वयं नहीं आया था, परन्त "गॉड-गोकुला“ से लड़ने औरंगजेब को स्वयं आना पड़ा था।

उन्हीं समरवीर उदारवादी जमींदारी के रक्षक अमरज्योति गॉड-गोकुला जी महाराज के 01/01/1670 बलिदान दिवस पर गौरवपूर्ण नमन!

खाप वीरांगनाओं के पराक्रम की साक्षी तिलपत की रणभूमि:

घनघोर तुमुल संग्राम छिडा, गोलियाँ झमक झन्ना निकली,
तलवार चमक चम-चम लहरा, लप-लप लेती फटका निकली।
चौधराणियों के पराक्रम देख, हर सांस सपाटा ले निकलै,
क्या अहिरणी, क्या गुज्जरी, मेवणियों संग पँवारणी निकलै|
चेतनाशून्य में रक्तसंचारित करती, खाप की एक-2 वीरा चलै,
वो बन्दूक चलावें, यें गोली भरें, वो भाले फेंकें तो ये धार धरैं|

God Gokula के शौर्य, संघर्ष, चुनौती, वीरता और विजय की टार और टंकार राणा प्रताप से ले शिवाजी महाराज और गुरु गोबिंद सिंह से ले पानीपत के युद्धों से भी कई गुणा भयंकर हुई| जब God Gokula के पास औरंगजेब का संधि प्रस्ताव आया तो उन्होंने कहलवा दिया था कि, "बेटी दे जा और संधि (समधाणा) ले जा|" उनके इस शौर्य भरे उत्तर को पढ़कर घबराये औरंगजेब का सजीव चित्रण कवि बलवीर सिंह ने कुछ यूँ किया है:
पढ कर उत्तर भीतर-भीतर औरंगजेब दहका धधका,
हर गिरा-गिरा में टीस उठी धमनी धमीन में दर्द बढा।

जब कोई भी मुग़ल सेनापति God Gokula को परास्त नहीं कर सका तो औरंगजेब को विशाल सेना लेकर God Gokula द्वारा चेतनाशून्य जनमानस में उठाये गए जन-विद्रोह को दमन करने हेतु खुद मैदान में उतरना पड़ा| गॉड-गोकुला के नेतृत्व में चले इस विद्रोह का सिलसिला May 1669 से लेकर December 1669 तक 7 महीने चला और अंतिम निर्णायक युद्ध तिलपत में तीन दिन चला| आज हरयाणत व् उदारवादी जमींदारी की रक्षा का तथा तात्कालिक शोषण, अत्याचार और राजकीय मनमानी की दिशा मोड़ने का यदि किसी को श्रेय है तो वह केवल 'गॉड-गोकुला' को है। 'गॉड-गोकुला‘ का न राज्य ही किसी ने छीना लिया था, न कोई पेंशन बंद कर दी थी, बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुग़ल-सत्ता, दीनतापूर्वक, संधी करने की तमन्ना लेकर गिड़-गिड़ाई थी।

गॉड गोकुला जी का बलिदान अवश्य ही उतना ही उच्च, उतना ही महान रहा होगा; जितना कि पांच साल बाद 1675 में उसी औरंगजेब के दरबार में गुरु तेग बहादुर जी का हुआ था| परन्तु गुरु तेगबहादुर जी को सिख-किनशिप आज भी ज्यों-का-त्यों जिन्दा रखे हुए है जबकि जाट व् खाप-लिगेसी क्यों इन चीजों में पीछे है? यही वजह है जिसको ठीक करना है, जिस दिन यह ठीक हो गई जाट बनाम नॉन-जाट व् 35 बनाम 1 ऐसे गायब होंगे जैसे भेड़ों के सर से सींग या जैसे गधों के जुकाम तुरताफुर्ति में ठीक होते हैं|

Sources (सोर्स):
1 - यूरोपियन यात्री मनूची के वृतांत|
2 - नरेन्द्र सिंह वर्मा (वीरवर अमर ज्योति गोकुल सिंह)
3 - कवि बलवीर सिंह की रचनाएँ

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


Saturday, 28 December 2019

सातवाँ जाटरात्रा - 29 दिसंबर - "सर्वखाप का अखाड़ा मिल्ट्री कल्चर"!


इस रात्रे का शीर्षक: "खापलैंड के हर गाम-खेड़े में "कुश्ती-अखाड़ों" के जरिये सर्वखाप द्वारा सदियों से पाले जाने वाला "मिल्ट्री-कल्चर" यानि "सर्वखाप का सोशल सिक्योरिटी एंड सेफ्टी सिस्टम" व् ग़ज़नी-गोरी-तैमूर-अंग्रेज आदि को लूटने-मारने से होते हुए वर्ल्ड वॉर 1 व् 2 और वर्तमान इंडियन डिफेंस सिस्टम में इस कल्चर का योगदान| साथ ही जानें कि कई गाम व् शहरों के नाम में "गढ़ या गढ़ी" लिखे मिलने का राज; जैसे सांपलागढ़ी, राखीगढ़ी, गढ़ी टेकना मुरादपुर, बहादुरगढ़, बल्लबगढ़ आदि|

अनुरोध: हालाँकि इस लेख में जितना भी मटेरियल लाया हूँ, उसमें योगदान सर्वसमाज व् सर्वधर्म का रहा है| परन्तु क्योंकि जाटरात्रे चल रहे हैं और जाट सर्वखाप की सबसे बड़ी व् अहम् इकाई रहा है तो इनका जिक्र जाट की रिफरेन्स में करना जरूरी हो जाता है| अगर कल को सर्वसमाज मिलकर "खापरात्रे" मनाता है तो उस अवस्था में इस लेख में "जाट शब्द" का जिक्र मायने नहीं रखेगा| परन्तु जब तक सर्वसमाज " खापरात्रे" शुरू नहीं करता तब तक "सर्वखाप का सबसेट यानि जाट" सर्वखाप को "जाटरात्रों" के माध्यम से याद करते रहेंगे|

सातवेँ जाटरात्रे को मनाने का थीम - "उदारवादी जमींदारी की थ्योरी खापोलॉजी का 'मिल्ट्री-कल्चर' विश्व का सबसे पुराना ऐसा सिस्टम रहा है जो रातों-रात जितने हजारों-लाखों की सेना चाहिए, उतनी कैपेसिटी की तुरंत तैयार करने की क्षमता व् माद्दा रखता आया है"|

मुख्य मंथन क्या करें - "जाट व् खाप, ऑफ-सीजन (off-season) यानि माइथोलॉजी की गपेड़ों वाले छत्री नहीं अपितु प्रैक्टिकल ग्राउंड यानि ऑन-सीजन (on-season) पर दुश्मन के सामने गाड़े जाने वाले तम्बू क्यों कहलाएं हैं?" विशाल हरयाणा की खापलैंड पर जो काफी गामों-शहरों के नामों के पीछे "गढ़" व् "गढ़ी" लिखे मिलते हैं यह सब सर्वखाप की छापामार युद्धकला के दौरान बनाई जाने वाली "गढ़ियों" के स्थान रहे हैं, जो नाम से ही साक्षी हैं कि इन गामों में किसी न किसी युद्ध में खापों ने गढ़ियाँ (मॉडर्न मिल्ट्री लैंग्वेज में जिनको बंकर बोला जाता है) बनाई थी|

उत्सव स्वरूप क्या चर्चा करें?: फरवरी 2016 के 35 बनाम 1 दंगे होने के बाद जनवरी 2017 में इंडिया आया था| आते ही साथी-सहयोगियों के साथ मिलकर सर्वखाप के सबसेट "सर्वजाट सर्वखाप" की वर्कशॉप ऑर्गनाइज़ करी थी| इस वर्कशॉप को अटेंड करने वालों में दर्जन भर एनआरआई जाट्स, दो दर्जन के करीब जाट खापों के चौधरी व् 50 के करीब ब्यूरोक्रेसी-सोशल संगठनों व् बुद्धिजीवी तबके के जाट व् जाटनी जुटे थे| उसमें सबसे अहम् कथन यही रखा था कि, "जिस प्रकार अगर ब्राह्मण मूर्तिपूजा वाले मंदिरों की देखरेख करनी छोड़ दे तो यह अगले ही दिन खत्म होने शुरू हो जाएँ, उसी प्रकार जाट अगर “सर्वखाप-सिस्टम” व् "दादा नगर खेड़ों" की देखरेख छोड़ दे तो खाप सिस्टम व् दादा नगर खेड़े स्वत: ही अपनी मौत मर जाए"| क्योंकि जैसे मूर्ती-पूजा सिस्टम का जनक कहें या इसकी प्रेरणा में ब्राह्मण बैठा है, ऐसे ही सर्वखाप सिस्टम का जनक कहें या इसकी प्रेरणा में जाट बैठा है| इन दोनों में बड़ा फर्क यही है कि मंदिर की कमाई व् ताकत, ब्राह्मण दिखाता सबकी है परन्तु हकीकत में इनकी कमाई व् ताकत दोनों पर कब्जा अकेले का कायम रखने की कोशिश में रहता है, जबकि सर्वखाप व् दादा नगर खेड़ों को जाट (वर्णवादी प्रभाव वाले जाट को छोड़कर) हकीकत में ही सबका रखता है सर्वसमाज इनके यश व् ताकत से लाभान्वित होता आया है|

परन्तु जबसे खापों में राजनीति घुसी है तब से खाप सिस्टम डाउन ही डाउन गया है| खापों से सीख कर आरएसएस तक अपना नॉन-पोलिटिकल संघ खड़ा कर गई परन्तु खापों के 90% चौधरियों की ऐसी मति भर्मित चल रही है कि उनको सोशल चौधर भी चाहिए और पोलिटिकल कुर्सी भी| आरएसएस आपके पुरखों से सीख कर सोशल प्रेशर ग्रुप व् पोलिटिकल प्रेस्सुर ग्रुप्स अलग-अलग रखना सीख के इतना ग्रो कर गई परन्तु खाप दिशा भटक गई| अत: अपना रूतबा वापिस चाहिए तो यह सोशल चौधर और पोलिटिकल कुर्सी की दो नावों में एक साथ सवार होने की मंशा त्यागनी होगी| कहीं-कहीं असर देखने को भी मिला है परन्तु उतना व्यापक असर आना अभी बाकी है जितना हमारे पुरखों में होता था|

बस आज के जाटरात्रे में एक तो मुख्य चर्चा यही की जाए कि सोशल चौधर व् पोलिटिकल चौधर को अलग-अलग रख के, दोनों जगह अलग-अलग बंदे रख के खापें कैसे आगे बढ़ें व् दूसरा ऐसा करना क्यों जरूरी है| वह निम्नलिखित उदाहरणों से समझें कि आपके पुरखों ने सोशल व् पोलिटिकल सिस्टम अलग-अलग रखे तो ही वह जब-जब राजे-रजवाड़े व् धर्मगुरु फ़ैल हुए तो भी अपने अकेले दम पर देश को भारी मुसीबतों से बार-बार निकालते-बचाते रहे| अगर यह माद्दा पाले रखना है तो पुरखों की राही पर आना होगा हर खाप चौधरी को| कौनसा माद्दा भला, पढ़िए दर्जनों उदाहरणों में से निम्नलिखित सिर्फ 1 दर्जन उदाहरण:

1) सन 1025 में सोमनाथ की लूट को महमूद ग़ज़नी से ना कोई धर्मरक्षक बचा सका ना कोई हिन्दू राजा, वह किसने छीनी ग़जनी से? - जवाब है बाला जी जट्ट की अगुवाई में सिंध के जाटों की खाप आर्मी ने|
2) सन 1206 में पृथ्वीराज चौहान को 1192 में मारने वाले कातिल मोहम्मद गौरी को किसने मारा? - जवाब है दादावीर रामलाल खोखर ने उनकी खाप आर्मी के साथ|
3) सन 1193 में गौरी के गुलामवंश के प्रथम शासक कुतुबद्दीन ऐबक की आधी से ज्यादा सेना को हांसी-हिसार के टिल्लों में किसने काटा? - जवाब है दादावीर जाटवान सिंह गठवाला मलिक ने उनकी खाप आर्मी के साथ|
4) सन 1295 में हिंडन व् काली नदी के मुहानों पर अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना व् उसके सेनापति मलिक काफूर के छक्के छुड़ाने वाले कौन थे (वही खिलजी जिसने चित्तौड़गढ़ तबाह किया था)? - यही सर्वखाप आर्मी|
5) सन 1355 में चुगताई वंश के चार सरदारों को गोहाना से बरवाला तक दौड़ा-दौड़ा कर किसने पीटा? - किसी राजा या धर्मगुरु ने नहीं अपितु सर्वखाप यौद्धेया दादीरानी भागीरथी कौर ने व् उनकी सर्वखाप महिला आर्मी ने|
6) सन 1398 में मुहम्मद बिन तुगलक ने जब बिना लड़े ही तैमूर लंग के आगे हथियार डाल दिए थे तो तैमूरलंग की झाँग में भाला मार उसको लंगड़ा किसने बनाया व् देश से भगाया? - सर्वखाप आर्मी के उपसेनापति यौद्धेय बादली वाले दादावीर हरवीर सिंह गुलिया जी महाराज ने व् सर्वखाप आर्मी ने| सनद रहे इस युद्ध में सर्वखाप सेनापति थे दादावीर जोगराज जी गुज्जर|
7) सन 1508 में बाबर के खिलाफ राणा साँगा की जान बचाते हुए उनकी झोली में जीत डालने वाले कौन थे? - वीर यौद्धेय कीर्तिमल जाट व् उनकी सर्वखाप आर्मी|
8) सन 1620 में दादीराणी समाकौर गठवाली मलिक के आह्वान पर दादी जी के सम्मान में कलानौर-रियासत, रोहतक को मलियामेट किसने किया? - गठवाला खाप के आह्वान पर जुटी सर्वखाप ने, दादावीर धोला जी सांगवान की सर्वोपरि वीरता में|
9) सन 1628 में मुगल शासक शाहजहाँ के भारी-भरकम कृषि-करों के खिलाफ उदारवादी जमींदारी क्रांति का बिगुल किसने फूंका? - दादावीर नंदराम जी के नेतृत्व वाली सर्वखाप आर्मी ने, जिसने शाही सेनाओं को हराया व् बढ़े कर वापिस करवाए| और तुम्हें-हमें लगता है कि आज वाली सरकारें यूँ-ही-बैठे-बिठाये एमएसपी रेट पर आपकी फसलें खरीदेंगी?
10) 1 जनवरी 1670 में जिन सर्वखाप यौद्धेय गॉड गोकुला जी महाराज की गुरु तेगबहादुर जी के बलिदान से 5 साल पहले औरंगजेब के दरबार में शहादत हुई, वह कौन थे? - वह थे विश्व की सबसे भयंकर व् 7 महीनों तक चलने वाली औरंगजेब से आमने-सामने की लड़ाई लड़ने वाली सर्वखाप आर्मी के सर्वेसर्वा| यह लड़ाई भी कृषि पर लगे भारी-भरकम टेक्सों के खिलाफ थी| जहाँ बड़े-बड़े राजे रजवाड़े मुग़ल शासकों के आगे दो-अढ़ाई घंटे ही ठहर पाते थे वहीँ सर्वखाप आर्मी 7-7 महीने उनसे लोहा लेती थी| तिलपत फरीदाबाद की लड़ाई थी वह| और यह सब सिर्फ "सर्वखाप के अखाडा मिल्ट्री कल्चर" की बदौलत|
11) वह भरतपुर रियासत किसकी देन थी जो ना कभी मुग़लों से हारी, न पेशवाओं से व् ना ही कभी अंग्रेजों से? - इसी सर्वखाप अखाडा मिल्ट्री कल्चर की|
12) 1857 की क्रांति में अंग्रेजों को इतनी मुखर टक्कर देने वाली आर्मी कौन थी कि जिसकी ताकत को तोड़ने हेतु अंग्रेजों ने विशाल हरयाणा के ही "यमुना आर" व् "यमुना पार" बोल के दो टुकड़े कर दिए? - यही बाबा शाहमल तोमर व् अन्य दर्जनों खाप चौधरियों के नेतृत्व वाली सर्वखाप आर्मी|

यानि जहाँ सर्वखाप सिस्टम से अलग सिस्टम से निकले राजे-रजवाड़े फ़ैल हो जाते थे, माइथोलोजियों की गपेड़ों वाले वीर कहीं हकीकत व् प्रैक्टिकल में नजर नहीं आये कभी; वहां हमारी सर्वखापेँ बार-बार आगे आती रही और राजे-रजवाड़ों व् धर्म वालों के दावे-ढकोसलों के फ़ैल होने पर भी देश के सिस्टम को विदेशियों के पंजों में मानवता की क्रूरता की हद तक पडने से बार-बार बचाती रही|

भाड़ में जाओ जाट बनाम नॉन-जाट की बकवास और चूल्हे में पड़ो ऐसी पोस्ट्स लिखने पर मुझमे व् मेरी पोस्टों में जातिवाद देखने वाले जनावर; तुम्हें गोलूँगा तो यह इतिहास, यह किनशिप कैसे पास करूँगा आगे की पीढ़ियों को? क्योंकि तुम तो फिल्मों-टीवियों आदि में कभी यह इतिहास ये वीर ये यौद्धेय-यौद्धेयायें दिखाते नहीं, मंदिरों के स्पीकरों से कभी इनके किस्से सुनाते नहीं बल्कि उल्टा सर्वखाप सिस्टम से निकले इकलौते अजेय भरतपुर साम्राज्य के अफ्लातूनों जैसे कि महाराजा सूरजमल जैसी अजेय-देदीप्यमान हस्तियों को "पानीपत" जैसी फिल्मों में हंसी का पात्र बनाते पाए जाते हो? हाँ, जाट जाति के गौरव को गाऊंगा, किसी अन्य जाति को नीचे दिखाऊं तो तुम्हारी जूती और मेरा सर|

इस इतिहास व् सिस्टम को वैसे तो सारा देश याद करे परन्तु आज सातवें जाटरात्रे के दिन जाट समाज तो कम-से-कम ना सिर्फ याद करे वरन ऐसे तमाम खाप-यौद्धेयों व् उनके "अखाडा मिल्ट्री कल्चर" को शीश नवाएँ-गाएं-बताएं-सुने-सुनाएँ| गर्व की बात है कि हमारे खापलैंड के गाम-खेड़ों के इसी मिल्ट्री कल्चर रुपी अखाड़ों से ही देश की डिफेंस फोर्सेज में सबसे ज्यादा जवान जाते हैं| वर्ल्ड वार 1 व् 2 में आधा दर्जन से भी ज्यादा 'विक्टोरिया-क्रॉस' वीरता मेडल्स लाते हैं| जिन जाटों को सराहने के नाम पर तथाकथित स्वधर्मी ग्रंथी व् लेखकों की कलमों की स्याही सूख जाती है, वही जाट जाति अंग्रेजों से "रॉयल रेस" का टाइटल व् पहचान पाती है| और इन सब उपलब्धियों की जड़ों में कोई है तो वह है "सर्वखाप का अखाडा मिल्ट्री कल्चर"| किसी ने सही कहा है, "इतने बड़े वीर, दुनियाँ बड़े-बड़े राजे-रजवाड़े, धर्माधीस व् अधिनायकवादी नेता बना के नहीं खड़े कर पाती, जितने बड़े सर्वखाप का "अखाड़ा मिल्ट्री कल्चर" बच्चों के खेल की भाँति देता आया है"|

सनातनी लोग फेनेटिक हैं सर्वखाप सिस्टम के: इसीलिए इन्होनें भी सर्वखाप अखाड़ों की तर्ज पर अपने अखाड़े बनाये परन्तु हमारे अखाड़ों वाला मिल्ट्री-कल्चर इनके अखाड़ों में आज तक नहीं पाल पाए या कहिये कि उस स्तर की बुलंदी तक कभी नहीं पहुँच पाए| सर्वखाप कल्चर से निकली भरतपुर रियासत ने जब अंग्रेजों को सन 1804 में 4 महीनों के भीतर 13 बार हराया तो, इनको फेनेटिज्म हुआ कि हम भी कुछ ऐसा ही पृथ्वीराज चौहान के बारे फैला देते हैं कि उन्होंने भी गौरी को 17 बार हराया था| जबकि दूसरी बार में तो गौरी ने पृथ्वीराज जी को मार ही दिया था| यहाँ यह बात एक तथ्य के तौर पर बताई गई है अन्यथा लेखक पृथ्वीराज चौहान जी की महानता का तहेदिल से प्रसंशक है क्योंकि वीरता व् कीर्तिमान में चौहान जी के नाम भी यह कीर्तिमान है कि उन्होंने एक बार गौर को हराया था|

पोस्ट के साथ सलंगित कर रहा हूँ सर्वजातीय सर्वधर्म सर्वखाप के हेडक्वार्टर चबूतरे (चौंतरे) व् चौपाल (परस) की फोटो व् इस दर-धाम पर किन-किन राजाओं-नवाबों-शहंशाओं ने शीश नवाये उसकी फेहरिस्त; पोस्ट के साथ इसको भी पढ़ना ना भूलें|

माफ़ी: समय की कमी व् प्रोफेशनल व्यस्तताओं के चलते, हर जाट-रात्रे की व्याख्या हेतु इतनी डिटेल्ड पोस्ट्स नहीं दे पा रहा हूँ | हालाँकि इस विषय की प्रथम पोस्ट में 18 के 18 रात्रों के शीर्षकों की सूची दे दी गई थी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


Thursday, 26 December 2019

सुनी है बीएचयू में "भूत विधा" का सर्टिफिकेशन कोर्स शुरू हुआ है, सोचा उनको इसके लिए एक चैप्टर सुझा दिया जाए; सिलेबस में जोड़ने हेतु!


तो चैप्टर इस प्रकार है:

चैप्टर का शीर्षक: "जाट ने जब जोड़ा भूत के श्मशान में हल"|

चैप्टर की व्याख्या:

एक बार, एक जाट ने शमशान घाट में हल जोड़ दिया, भूत कितै बाहर जा रहा था। भूतनी जाट न डरावन खातिर कांव कांव करण लागी, पर जाट न कोई परवाह नही की ।

आख़िर भूतनी बोली, “जाट तू यो के करै सै?”
जाट बोल्या, “मैं यहां बाजरा बोवुंगा!”
भूतनी बोली, “हम कित रवैंगे?”
जाट बोल्या, “मनै थारा ठेका कोनी ले राख्या"।
भूतनी बोली, “तू म्हारे घर का नास मत कर, इसके बदले हम तेरे घर मै 100 मण बाजरा भिजवा देगें”!
जाट बोल्या, “ठीक सै लेकिन बाजरा कल पहुॅचना चाहिए नहीं तो मैं फेर आ के हल जोड़ दूंगा”?
शाम नै भूत घर आया तो भूतनी बोली आज तो नास होग्या था, न्यूं न्यूं बणी। जाट 100 मण बाजरे में मान्या सै।
भूत ने भोत गुस्सा आया और बोल्या, "तने क्यों 100 मण बाजरे की ओट्टी, मन्ने इसे जाट भतेरे देखे सै, मन्नह उसका घर बता मैं उसने सीधा कर दूंगा। और भूत जाट के घर गया।
जाट के घर मैं एक बिल्ली हिल रही थी। वो रोज आके दूध पी जाया करती। जाट ने खिड़की में एक सिकंजा लगा लिया और रस्सी पकड़ के बैठ गया कि आज बिल्ली आवेगी और मैं उसने पकडूँगा। भुत न सोची तू खिड़की म बड़के, जाट न डरा दे। वो भीतर न नाड़ करके खुर्र-खुर्र करने लगा। जाट नै सोची कि बिल्ली आगी। उसने फट रस्सी खिंची और भूत की नाड़ सिकंजे मैं फंसगी। वो चिर्र्र–चिर्र्र करने लगा।

जाट बोल्या, "रै तू कोण सै?
वो बोल्या, "मैं भूत सूं"।
जाट बोल्या, "अङै के करै सै?"
भूत बोल्या, “मैं तो न्यू बुझण आया था के तू 100 मण बाजरे मैं मान ज्यागा या पूली भी साथै भिजवानी सै?

पुरखों वाली यह स्वछंदता व् निर्भीक-बेखटक आध्यात्मिकता बनी रहे!

जिस किसी का मौका लगे इस कोर्स-सर्टिफिकेशन में एडमिशन लेवे, वैसे भी मात्र छह महीने का कोर्स है| स्वागत है ऐसे कोर्स का, यह कोर्स हर यूनिवर्सिटी में होने चाहियें ताकि लोग इन बाबे-पाखंडियों के तंत्र-मंत्रों में पड़ने की बजाये हकीकत को लॉजिकली व् साइकोलॉजिकली समझें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

फंडी को the best reply होता है!

फंडियों को आपने अक्सर लोगों को यह कहकर मुस्लिमों से डराते उनके खिलाफ बहकाते-भड़काते तो सुना ही होगा कि, "एक बार जिस देश की मुस्लिम जनसंख्या 30% भी हो गई, उस देश में फिर 25 साल के अंदर मुस्लिम किसी को भी जीवित नहीं छोडते"|

सुसरो, उनकी छोडो, तुम्हारी जिस देश में 30 तो क्या 3% भी आबादी हो गई तुमने उस देश को जीते-जी नर्क बना डाला है| तुम्हारे प्रभाव व् डरावे में आने वाले हर एक दिमाग को "घूं-गोबर-गारा का ढेर" कर छोड़ा है| और इसके अलावा तुम्हारा कोई इतिहास नहीं, सृष्टि के उद्गम से लेकर आजतक|

इसलिए मुस्लिम से बचो या ना बचो परन्तु इन फंडियों से सबसे पहले बचो| मुस्लिम तो तुम्हें सामने से बोल के मारेगा अगर मारेगा भी तो परन्तु यह हरामी तो वह जहर हैं जो तुम्हारा दिमाग से ले अस्थिपिंजर पहले खोखला करते हैं और फिर जो चाहे वह गोबर तुममें भरते हैं| इसलिए फंडी की छाया से भी बच के चलो; ऐसे मनहूस कलंक हैं ये मानवता के कोढ़|

फंडी को the best reply होता है, "Simply don't react on their बकवास (whatever they say), rather move ahead silently".

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

वेस्टर्न यूपी में मुस्लिम भाईयों के प्रति सर्वखाप को निभाना होगा सर्वखाप के पुरखों वाला सन 1947 का रोल!


वह रोल जिसके कारण 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे के चलते वेस्ट-यूपी बेल्ट में हिन्दू-मुस्लिम दंगों के नाम पर चिड़िया भी नहीं फड़फड़ाई थी जबकि बाकी इंडिया में भयंकर दंगे हुए थे| तब सर्वखाप चौधरियों ने एकमुश्त फैसला दिया था कि ना यहाँ से कोई जायेगा और ना यहाँ कोई आएगा| जाट-गुर्जर-ओबीसी सब लठ लेकर पहरे पर खड़े हो गए थे कि देखें कौन मुस्लिमों की तरफ आँख उठाकर देखता है| और वाकई में उस वक्त वेस्ट यूपी में एक भी दंगा नहीं हुआ था|

और आज के हालातों में ऐसा करना सिर्फ इसलिए जरूरी नहीं है कि ऐसा आपके पुरखों ने किया था| इसकी सबसे बड़ी वजह है इस बेल्ट के किसान की इकॉनमी की| जिसको तोड़ने हेतु यह तथाकथित स्वधर्मी ही सबसे ज्यादा आमादा हैं| यह आपके खेतों-खलिहानों के सीरी-साझी आपसे छीनना चाहते हैं| ताकि आपको खेतों के लिए जायज दाम पर मजदूर ही ना मिल सके और इन तथाकथित स्वधर्मी व्यापारियों के "कॉर्पोरेट खेती" के सपने को रास्ता मिल सके| इनकी बहकाई में आये तो बाजू पकड़-पकड़ फेंकेगे यह तथाकथित स्वधर्मी ही आपको आपकी ही जमीनों-खेतों से, तो जरा संभाल के सावधान हो के|

सनद रहे, वेस्टर्न यूपी के किसानों के गन्ने का भुगतान नहीं करने वाली सुगरमीलों के 95% मालिक आपके स्वधर्मी हैं, मुस्लिम नहीं| झगड़ा-लफड़ा करना है तो इनके साथ करो, जो आपकी पेमेंट्स दबाये बैठे हैं| मुस्लिम के साथ झगड़े में पड़ कर इनको मार बेशक लोगे परन्तु बाद में ऐसे ही पछताओगे जैसे "कुत्ते को मार बंजारा रोया था"|

हर प्रकार की किसान राजनीति भी यही कहती है| चाहे वह किसान-जमींदार राजनीति सर छोटूराम आइडियोलॉजी की रही, चौधरी चरण सिंह वाली रही, ताऊ देवीलाल वाली रही या बाबा महेंद्र सिंह टिकैत वाली रही|

वैसे भी इस बनाम उस के भुग्तभोगी आपके पडोसी राज्य के आपके ही हिन्दू जाट भाई रहे हैं Feb 2016 में आपने सब अपनी आँखों से बखूबी देखा है| 2013 वाले मुज़फरनगर दंगों में भी आपने देखा ही था ना, कि किस तरह हिन्दू-बनाम-मुस्लिम की लड़ाई उछाल कर बाद में आपके स्वधर्मी ही उस लड़ाई को जाट बनाम नॉन-जाट का रूप दे के "लगा के बण में आग दमालो दूर खड़ी" की तर्ज पर साइड हो लिए थे? उसके बाद क्या हुआ सस्ता व् भरोसेमंद सीरी-साझी गया आपका गया, खेत की लेबर के रेट आसमान चढ़े वह अलग?

तो कृपया ऐसा ना करे वेस्ट यूपी का समाज चाहे वह दलित हो या जाट हो, ओबीसी या अन्य कोई बिरादरी| और अगर सर्वखाप यह ऐलान कर दे कि हम यहाँ पत्ता भी नहीं हिलने देंगे तो क्या योगी और क्या मोदी; औकात नहीं इनकी कि वेस्टर्न यूपी में धार्मिक दंगों के नाम पर एक पत्ता भी हिलवा सकें| जिसके कि आ रही हाल की रिपोर्टों से पूरे आसार बनवाये जाने की खबरें हैं|

हे चौधरियों! अपने पुरखों सी सूझबूझ व् स्वछंदता पालते हुए मानवता पालना, धर्मान्धता नहीं| इन बहरूपिये भगवा भोगीयों के बहकावे में मत आना वरना पीढ़ियाँ लग जाएँगी बना-बनाया, बसा-बसाया यह उपवन फिर से हरा-भरा करने को| वैसे ही बहुत आर्थिक तंगी से ले सामाजिक अस्तित्व की तंगी झेल रहे हो, और मत बोझ डालना अपनी आने वाली पीढ़ियों पर, इन लफड़ों में झुलस कर|

जो मेरी इस पोस्ट से सहमत हो, कृपया इसको ज्यादा से ज्यादा शेयर करे, कॉपी-पेस्ट करके इतना फैलाएं कि जो चौधरी (चौधरी चाहे वह यूपी वाले हों, हरयाणा-दिल्ली-पंजाब या राजस्थान वाले सबको भेजिए) वेस्ट यूपी को इस काल के ग्रास से बचा सकते हों, उन तक यह जरूर से जरूर पहुंचें| तुमको-हमको-आपको हमारे पुरखों के गौरवशाली मानवीय इतिहास की ओर देखना होगा| इन भगवा राष्ट्रवादी फलहरीयों का कुछ नहीं बिगड़ेगा, यह तो कोई झोला उठाकर चल देगा तो कोई जंगलों-पहाड़ों में जा छुपेगा, चढ़ेगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 23 December 2019

आज किसान दिवस पर यह फोटो और इसकी बानगी हर किसान की औलाद कम-से-कम जरूर देखे-जाने व् समझे!

आप भी कहोगे कि "किसान दिवस" है पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह का जन्मदिवस है और मैं आपको फोटो बाबा टिकैत की दिखा रहा हूँ? चंद लाईनों में ही मेरा मंतव्य बतला देता हूँ|

इस तस्वीर के जरिये दो बातें याद दिलाना चाहता हूँ:

1 - किन मस्सकतो के बाद मिला था किसानों को "किसान-घाट": सेण्टर से मनाही आने पर बाबा टिकैत ने राजीव गाँधी को दो टूक में कह दिया था कि, "या तो बड़े चौधरी चरण सिंह की समाधि हेतु दिल्ली राजघाट पर जगह दो, अन्यथा 48 घंटे बाद कस्सियों-फावड़ों-कुदालों से महात्मा गाँधी व् इंदिरा गांधी की समाधियाँ ठीक वैसे ही उखाड़ फेंकी जाएँगी जैसे सर्वखाप यौद्धेय राजाराम जाट जी ने गॉड गोकुला जी की शहादत से क्रोधित हो अकबर की कब्र खोद, उसकी हड्डियों की चिता बना के जला डाली थी"| तब जा कर आनन-फानन में राजीव गाँधी के होश ठिकाने आये थे और चौधरी चरण सिंह के पार्थिव शरीर के लिए "किसान-घाट" बनाया गया था| 

2 - "धर्म जरूरी है परन्तु अँधा होने की हद तक नहीं": आज जो भी तमाम जातियों-वर्णों-धर्मों की किसानों की औलादें धर्म नाम की अफीम सूंघें टूल रही हैं आज वह इस फोटो को देखें और अंदाजा लगा लें कि क्या तुम्हारे पुरखों की हस्ती-औकात-बिसात थी कि हिन्दू-मुस्लिम-सिख सब धर्मों के प्रतिनिधि तुम्हारे पुरखों के मुंह ताकते थे और एक आज तुम हो कि तुम इन तथाकथित धर्म वालों के मुंह ताकते फिर रहे हो| बस इसी से अंदाजा लगा लो कि अपने पुरखों के ऐवज में अपनी औकात बढ़ाये हो या घटाए हो| मेरा आशय यह भी नहीं है कि तुम धर्म का अपमान करो परन्तु उसको उसकी जगह पर रखो, सर पर नहीं| धर्म के भीतर आपकी "किसान" नाम से, किसान की औलाद नाम से भी एक हस्ती है, जिसको सबसे ज्यादा कम्पटीशन आपके धर्म वाला व्यापारी हो या पुजारी वह देता है ना कि कोई गैर-धर्मी| और अगर अपनी यह हस्ती और आर्थिक हालत दुरुस्त रखनी है तो धर्मवालों को आपके पुरखों की भाँति उनकी जगह-स्थान दिखा के रखो|

इसी संदेश के साथ आपको "किसान-दिवस" की हार्थिक शुभकामनायें! 

जय यौद्धेय! - फूल मलिक