The real identity of #BandaSinghBahadur, also known as Banda #Bairagi or Lachhman Das Bairagi before he was baptized into the #Khalsa. His caste and background have been subject to manipulation and reinterpretation by different communities — #Rajputs, #Brahmins, but **the most historically grounded evidence supports his origin as a Jatt Sikh of the Dhillon clan.
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Thursday, 24 July 2025
Stolen Identity: How Banda Bahadur Was Erased as a Jatt
Wednesday, 23 July 2025
1857 की लड़ाई: जनता के दो दुश्मनों — मुग़ल-राजपूत गठबंधन और अंग्रेजों — के बीच टकराव!
बहुत से लोग 1857 की क्रांति को एक 'भारतीय बनाम अंग्रेज़' संघर्ष मानते हैं, लेकिन असल में यह उतना सरल नहीं था। यह दरअसल दो शोषक शक्तियों के बीच सत्ता संघर्ष था — एक तरफ मुग़ल-राजपूत गठबंधन, जो सदियों से जनता का दमन करता आया था, और दूसरी तरफ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, जो एक नया उपनिवेशवादी शासक बनकर उभरा था।
Sunday, 20 July 2025
जाट विद्यालय चोंडा (बिहार)
जाट विद्यालय चोंडा (बिहार)
Saturday, 19 July 2025
मुगल काल में 2.5% ज़कात मुस्लिमों को देना पड़ता था। हिंदुओं को 1–2% जजिया देना पड़ता था। उस पर भी गरीबों को छूट थी।
कोई इनकम टैक्स, कोई जीएसटी नहीं। फिर भी 1700 ईस्वी में भारत के पास दुनिया की एक–चौथाई दौलत थी।
अब सभी लोगों को 40% टैक्स देना पड़ता है। बदले में गड्ढे वाली सड़कें, गिरते पुल, रेप, हत्या, गुंडागर्दी झेलनी पड़ रही है।
आज नरेंद्र मोदी का भारत दुनिया के भिखमंगे देशों में शुमार है।
फिर भी अगर आप नरेंद्र मोदी सत्ता के विकास का बखान कर रहे हैं तो इसके 2 मतलब हैं–
1. या तो इस सत्ता से आपको दलाली मिल रही है
2. या फिर आप जाहिल भक्त हैं।
15 साल पहले मनमोहन राज में मोदी के दोस्त कॉरपोरेट्स 70% टैक्स देते थे। आम जनता 30% चुकाती थी।
लेकिन चौथी फेल मोदी के राज में गरीब जनता 60% टैक्स चुकाती है। 40% अमीर देते हैं। माहौल में सन्नाटा पसर गया।
✍🏻सौमित्र राय
Thursday, 17 July 2025
जाट लड़कियाँ स्कूल कॉलेज या वर्कप्लेस पर इसलिए टार्गेट होती क्योंकि ....
जाट लड़कियाँ स्कूल कॉलेज या वर्कप्लेस पर इसलिए टार्गेट होती क्योंकि ज्यादातर सुन्दर और लम्बी होती है बाकी हिन्दू लडक़ियों से। मर्द को attraction खूबसूरती से ही होता है।
साथ ही उसकी अगली जेनरेशन के genetics भी सुधरते है लम्बी और सुन्दर लड़की से, इसलिए उसके लिए वो ट्रॉफी है। गैर जाट इसलिए attachment बना कर लड़की को फांसते है, लगाव तो समय के साथ कुत्ते से भी हो जाता है वो तो फिर इंसान है, अकेली बाहर रह रहीं लड़की को अकेलापन दूर करने के लिए एक mental सपोर्ट की जरूरत होती है।
जिसका फायदा लड़के उठाते है उनका मेंटल सपोर्ट बनकर, साथ ही बढ़िया जेनेटिकस की लड़की उनके लिए एक IAS बनने से भी बड़ी चीज होती है इसलिए लड़की के सामने वो बहुत ही caring, supportive और humble बनते, वही एक जाट बैकग्राउंड से आयी लड़की अपने घर में strictness देखती है (असल में बच्चो में discipline और मजबूती यहि strictness लाती है), इसलिए उस लड़की के लिए ये extra humbleness, extra caring बहुत लुभावनी लगती है।
साथ है simple और straight minded जाटों में क्योंकि manipulative nature नहीं होता, इसलिए लड़की भी इन लड़कों का manipulative nature अपने फायदे लिए समझ नहीं पाती है और शिकार हो जाती है सभी जाट भाई अपनी बहनो के पास शेयर ज़रूर करे। - by Dinesh Singh Behniwal
Monday, 14 July 2025
हरियाणा की 10 विधानसभा सीट: जहां जाट निर्दलीय प्रत्याशियों के कारण जीती हुई बाजी हार गई कांग्रेस!
हरियाणा विधानसभा 2024 का परिणाम आए साल भर होने को आया है। फिर भी कांग्रेस की अप्रत्याशित हार और भाजपा की आश्चर्यचकित कर देने वाली जीत के आकलन निरंतर जारी हैं। दरअसल चुनाव एक बहुस्तरीय प्रक्रिया होती है, जिसकी बहुत सारी परतें होती हैं। समय और विश्लेषण करने की प्रक्रिया में ये परतें धीरे-धीरे खुलने लगती हैं और स्पष्ट होती जाती हैं। इन परतों को समझना सभी दलों एवं विश्लेषकों के लिए इसलिए भी जरूरी होता है ताकि भविष्य में बेहतर एवं सटीक राजनीतिक आकलन किया जा सके।
इसी कड़ी में आज हरियाणा की उन 10 विधानसभाओं का आकलन किया जा रहा है जो 10 जाट निर्दलीय प्रत्याशियों के कारण कांग्रेस हार गई।
- बाढड़ा विधानसभा में भाजपा के उमेद पातुवास को 58605 (41.1%), कांग्रेस के सोमवीर सांगवान को 50809 (35.9%), निर्दलीय सोमवीर घसोला को 26730 (18.5%) वोट मिले। भाजपा के उमेद पातुवास ने कांग्रेस के सोमवीर सांगवान को 7585 वोटों से शिकस्त दी।
- बहादुरगढ़ विधानसभा में निर्दलीय राजेश जून को 73191 (46%), भाजपा के दिनेश कौशिक को 31192 (19.6%), कांग्रेस को 28955 (18.2%) वोट मिले। आजाद प्रत्याशी राजेश जून ने भाजपा प्रत्याशी दिनेश कौशिक को 41999 वोट से शिकस्त दी।
- दादरी विधानसभा में भाजपा के सुनील सांगवान को 65568 (46.1%), कांग्रेस की मनीषा सांगवान को 63611 (44.7%), निर्दलीय अजित सिंह को 3369 (2.8%) वोट मिले हैं। भाजपा के सुनील सांगवान ने कांग्रेस प्रत्याशी मनीषा को 1957 वोट से पराजित किया।
- गन्नौर विधानसभा में निर्दलीय देवेंद्र कादियान को 77248 (54.8%), कांग्रेस के कुलदीप शर्मा को 42039 (29.8%), भाजपा के देवेंद्र कौशिक 17605 (12.5%) वोट मिले हैं। निर्दलीय देवेंद्र ने कांग्रेस के कुलदीप को 35209 वोट करारी शिकस्त दी।
- गोहाना विधानसभा में भाजपा के अरविंद शर्मा को 57055 (43.6%), कांग्रेस को 46626 (35.7%), निर्दलीय हर्ष छिक्कारा को 14761 (11.3%), राजवीर दहिया को 8824 (6.8%) वोट मिले। भाजपा के अरविंद शर्मा ने कांग्रेस के जगबीर मलिक को 10429 वोट से जीत हासिल की।
- महेंद्रगढ़ विधानसभा में भाजपा के कंवर सिंह को 63036 (40.6%), कांग्रेस के राव दान सिंह को 60388 (38.9%), निर्दलीय संदीप सिंह को 20834 (13.4%) वोट मिले हैं। भाजपा के कंवर सिंह ने कांग्रेस के राव दान सिंह को कड़े मुकाबले में 2648 वोट से हराकर जीत दर्ज की।
- सफीदों विधानसभा में भाजपा के रामकुमार गौतम को 58983 (40.2%), कांग्रेस के सुभाष गंगोली को 54946 (37.8%), निर्दलीय जगबीर देशवाल को 20114 (13.7%) वोट मिले हैं। भाजपा रामकुमार गौतम ने कांग्रेस के सुभाष को 4037 वोटों से हराया।
- समालखा विधानसभा में भाजपा के मनमोहन भड़ाना ने 81293 (48.4%), कांग्रेस के धर्मसिंह छौक्कर ने 61978 (36.9%), निर्दलीय रविन्द्र मच्छरौली ने 21132 (12.6%) वोट मिले हैं। भाजपा के मनमोहन भड़ाना ने कांग्रेस के धर्मसिंह को 19315 वोट से करारी शिकस्त दी।
- उचाना कलां विधानसभा में भाजपा के देवेंद्र अत्री को 48968 (29.5%), कांग्रेस के बृजेन्द्र सिंह को 48936 (29.48%), निर्दलीय वीरेंद्र घोघड़िया को 31456 (19%) वोट मिले हैं। भाजपा के देवेंद्र ने कांग्रेस के बृजेन्द्र को 32 वोट से कड़े मुकाबले में हराया।
- रानियां विधानसभा में इनेलो के अर्जुन चौटाला को 43914 (30.4%), कांग्रेस के सर्वमित्र कम्बोज को 39723 (27.5%), निर्दलीय रणजीत सिंह को 36401 (25.2%) वोट मिले हैं। इनेलो के अर्जुन सिंह ने कांग्रेस के सर्वमित्र कम्बोज को 4191 वोट से हराया !
वो तीन केस जिन्होंने चौधरी छोटूराम की जिंदगी बदल दी!
पहला: राजपूत विधवा का
दूसरा: ब्राहम्ण किसान का
तीसरा: गोहाना की बूढी औरत का
चौ० साहब रोहतक में वकालत करते थे। उस समय अदालतें कर्जों की वसूली के दावों से भरी पड़ी थीं। आये दिन सामान की कुर्की, जमीनों की मुसताजरी और जायदादों की निलामी होती थी। कलानौर के एक साहूकार महाजन ने एक राजपूत विधवा के खिलाफ कर्जे की डिगरी हासिल कर ली। उसका मकान कुर्क हो गया, जज ने कुर्की का हुकम मन्सूख करने से इन्कार कर दिया क्योंकि "कानून ऐसा था।"
दूसरा दावा में एक ब्राह्मण किसान की जमीन कुर्क हुई, निलाम हो गई। चौधरी साहब ब्राह्मण के वकील थे। वह उसकी जमीन नहीं बचा सके क्योंकि "कानून ऐसा था।"
एक तीसरा दावा ग्राम गांवड़ी तहसील गोहाना की एक बुढ़िया के खिलाफ था। साहूकार ने तीन हजार रुपये की डिगरी कराली। इजरा दायर कर दी। बुढ़िया का सामान कुर्क कर लिया गया। यहां तक कि उसकी हाथ से पीसने वाली चक्की में पड़ा हुआ आटा भी नहीं छोड़ा। चौ. साहब ने कुर्की तुड़वाने के लिए डिस्ट्रिक्ट जज की अदालत में अपील की।
स्वर्गीय बाबू नानकचन्द जैन, प्रसिद्ध दीवानी के वकील, ने मुझे यह घटना बताई थी। कानून उस समय बड़ा स्पष्ट था, जो ऋणी के विरुद्ध और ऋणदाता के हक में था। अतः ऋण अदा न करने की हालत में ऋणी की अवस्था और वेसरोसमानी को कोई वजन नहीं मिलता था। अदालतों में जज अधिकतर शहरी बिरादरियों के ही होते थे। उनका झुकाव स्वाभाविक तौर पर ऋणदाताओं के हक में होता था। अतः वे नैतिकता और न्याय के नाम पर अपनी स्वेच्छा (discretion) का प्रयोग ऋणी के हक में नहीं करते थे।
बहस सुनकर जज साहब ने कहा—
"चौ० साहब! कानून आपकी मदद नहीं करता, मैं क्या करूं।"
चौ० साहब ने सामाजिक न्याय और आचार-व्यवहार पर भी अपील की, परन्तु जवाब वही था—
"चौ० साहब! मैं कानून से बंधा हुआ हूं, मजबूर हूं।"
इस पर चौधरी छोटूराम के दिल पर गहरी ठेस लगी। उन्होंने दावे का लिफाफा जज साहब की मेज पर रख दिया और यह कहकर बाहर निकल गए—
"बहुत अच्छा जज साहब! आपके हाथ जिस कानून से बंधे हुए हैं, मैं आज से उस कानून के विरुद्ध विद्रोह करूंगा। अब इस कानून को ही बदलना है।"
चौ० साहब ने वकालत छोड़ दी और कानून को बदलने की धुन में जुट गए। हालांकि इसका खामियाजा से ये हुआ कि उनको हिंदू विरोधी कहकर बदनाम किया जाने लगा और कुछ तो उनको छोटूखान ही बताने लगे।
सूरजमल सांगवान, किसान संघर्ष व विद्रोह
#ChaudharyChhotuRam
Saturday, 12 July 2025
सांगवानों के बारे में दुष्प्रचार!
ये बात मुझ से बार बार पुछी जाती है कि क्या सांगवान राजपूतों से बने हैं? ये सवाल कोई तीन चार साल पहले मुझ से एक गैर जाट राज्य सभा सांसद ने भी पूछा था। उन्होंने तो न सिर्फ पूछा बल्कि स्वयं कह भी दिया था कि सांगवान राजपूतों से बने हैं। पहली बात तो यह कि मैं स्पष्ट कर दूँ कि कुछ सांगवान अपने को सांगा भी लिखते हैं, जिस कारण कुछ लोगों द्वारा एक भ्रम कि स्थिति पैदा करने की कोशिश की जाती है कि सांगवान का राणा सांगा से संबंध है। लेकिन यह कोरी गप है, सांगवान का राजपूत राजा राणा सांगा से निकट का भी संबंध नहीं था। सांगवान गोत की उत्पत्ति 14 वीं शताब्दी में चौधरी संग्राम सिंह से हुई है। जिनकी मृत्यु लगभग सन 1340 में हुई थी। चौधरी संग्राम सिंह के पिता राव नैन सिंह और उनके बुजुर्ग राजस्थान के सारसू जांगल क्षेत्र से उठकर, घूमते फिरते यहाँ वर्तमान स्थान चरखी, पैंतावास और मानकावास के बीच में नैनसर तालाब के स्थान पर आए थे (पाठकों की जानकारी के लिए बता दूँ कि राव उपाधि थी, जोकि आगे चलकर जाटों का गोत भी बना। इस गोत के गाँव भिवानी में मालवास , हिसार में, राजस्थान के जिला झुञ्झुणु का गाँव घरड़ाना तथा उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में इस गोत के कई गाँव हैं। सबकी जानकारी के लिए बता दूँ कि सीडीएस विपिन रावत का जो हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ था, उसके को-पायलट कुलदीप राव इसी घरड़ाना गाँव से थे।)। इस तालाब को वर्तमान में नरसन कहा जाता है। नैनसर (नरसन) तालाब का नाम चौधरी संग्राम सिंह के पिता राव नैन सिंह के नाम पर पड़ा था। क्योंकि राव नैन सिंह की मृत्यु इसी स्थान पर हुई थी। यहाँ बाढ़ आने के कारण यह पूरा परिवार यहाँ से उठकर असावरी की पहाड़ी पर चला गया था। वहाँ से बाद में खेड़ी बूरा नामक स्थान पर आकर बस गया। इसी स्थान पर चौधरी संग्राम सिंह उर्फ दादा सांगू की यादगार बनाई हुई है, जिसे सांगू धाम के नाम से जाना जाता है। सांगवानों का संक्षेप इतिहास झोझु गाँव के सेवानृवित जेई श्री राजकुमार सांगवान ने भी लिखा है। इस इतिहास को मैं लिखने वाला था, नौकरी के दौरान में मैंने काफी जानकारियाँ जुटा भी ली थी, परंतु पैंतावास खुर्द के कैप्टन रतिराम ने कहा कि इस इतिहास को वह लिखेंगे, तो फिर मैंने मेरा इरादा टाल दिया। हालांकि, वह सभी जानकारियाँ जी मैंने जुटाई थी वह अभी भी मेरे पास रजिस्टर में हैं।
सांगवानों की राजपूत जाति से निकास की बात तो छोड़िए, मैं दावे से लिख रहा हूँ कि आजतक इस देश में कोई भी एक जाट, अहीर या गुर्जर इस राजपूत जाति से नहीं बना है। राजपूत भी जाति नहीं थी, यह पहले एक संघ था, जोकि कई जातियों से बना था। जिसके इतिहास में प्रमाण हैं। इस पूरी कहानी का मर्म माउंट आबू पर्वत पर अग्निकुंड से जुड़ा है। फिर भी आप इस इतिहास के बारे में और जानना चाहते हैं तो आप पाकिस्तान के विख्यात इतिहासकार राजा अलीहसन चौहान द्वारा लिखी पुस्तक “A Short History Of Gujjars” पढ़ सकते हैं। जिसका यमुनानगर के गुर्जरों ने “गुर्जरों का संक्षिप्त इतिहास” नाम से हिन्दी में अनुवाद करवाया है। जिसका पता इस प्रकार है – गुर्जर एकता परिषद, देवधर, यमुनानगर, हरियाणा (135021)। जहां तक सांगवान की या अन्य किसी भी जाट गोत की राजपूत से निकासी की बात है तो उसको हम आंकड़ों से भी समझ सकते हैं। सन 1881 की जनगणना अनुसार राजस्थान में जाटों की जनसंख्या लगभग दस लाख थी, जबकि राजपूत जाति की जनसंख्या लगभग छह लाख थी। संयुक्त पंजाब (पाकिस्तान का पंजाब, भारत का पंजाब , हरियाणा और हिमाचल), जिसे जाटों का गढ़ माना जाता था, यहाँ जाटों (मुस्लिम+सिक्ख+हिन्दू) की जनसंख्या लगभग पैंसठ लाख थी, तो राजपूतों (मुस्लिम+हिन्दू+सिक्ख) की जनसंख्या लगभग तेईस लाख थी। दोनों ही प्रान्तों में राजपूत या तो जाटों की जनसख्या के आधे थे या आधे से कम! अब सोचने वाली बात यह है कि हिन्दू धर्म या जिसे आजकल सनातन धर्म भी कहने लगे हैं, उसकी वर्ण व्यवस्था अनुसार राजपूत को इस व्यवस्था में ब्राह्मण में बाद ऊंचा दर्जा प्राप्त था, क्षत्रिय कहलाते थे, राजपूत अर्थात राज करने वाले; तो व्यवस्था में प्राप्त ऊंचे दर्जे को कौन छोड़ना चाहेगा और वह भी इतने बड़े पैमाने पर? हर कोई ज़िंदगी में प्रमोशन चाहता है, न कि डिमोशन! जाटों के विरुद्ध यह दुष्प्रचार हजार सालों से किया जा रहा है और इसका कारण है कि जाटों ने ब्राह्मण धर्म की बनाई हुई व्यवस्था को कभी स्वीकार नहीं किया, और आज भी इसे पूर्णतया स्वीकार नहीं किया हुआ है। यही कारण है कि आज भी जब भी मौका मिलता है तो इनकी मीडिया जाटों के विरुद्ध षड्यंत्र शुरू कर देती है, समाज में जहर घोलने के लिए जाट-गैर जाट जैसी घृणित नीति अपनाई जाती है।
भारतीय इतिहास बड़ी ही पक्षपात की दृष्टि से लिखा गया है। अंग्रेजों ने इस इतिहास के साथ न्याय किया है। भारतीय इतिहास में दो बहुत बड़ी दुर्घटनाएँ हैं, जिनको आमतौर पर भारतीय इतिहासकारों ने छूना भी नहीं चाहा। जानते हुए भी इन दोनों दुर्घटनाओं को बड़ी चालाकी से नजरंदाज कर दिया गया। जबकि ये दोनों ही दुर्घटनाएँ भारतीय इतिहास का बहुत बड़ा “टर्निंग पॉइंट” हैं। पहली दुर्घटना है, सम्राट अशोक के पौत्र महाराजा बृहदृथ कि एक बहुत बड़े षड्यंत्र के तहत उनके ही साले और सेनापति पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण द्वारा धोखे से हत्या। दूसरी दुर्घटना है, सिंघ के आलौर साम्राज्य के महाराजा सिहासी राय (मोर) कि उनके ही एक मंत्री और सलाहकार चच नाम के ब्राह्मण द्वारा धोखे से हत्या। महाराजा बृहद्र्थ की हत्या दुनियाभर में सबसे बड़ा धार्मिक षड्यंत्र था। जिसमें बौद्ध धर्म को खत्म करके ब्राह्मण धर्म को स्थापित करवाया गया था। याद रहे उस समय कोई भी हिन्दू धर्म नाम का कोई धर्म नहीं था। इन दोनों षडयंत्रों तथा ऐसे दुष्प्रचारों के बारे में, कि ये क्यों किए गए, मेरी आने वाली पुस्तक “जाटों को मलेच्छ और दलित क्यों कहा गया?” में विस्तार से लिखुंगा।
इसके ईलावा मैं एक भ्रम और दूर कर दूँ। सांगवान और श्योराण गोत को लेकर मैं कई लोगों से सुन चुका हूँ कि सांगू और श्योरा दोनों भाई थे। पता नहीं लोग छोटी से बात पर भी अपना दिमाग इस्तेमाल क्यों नहीं करते हैं? एक बड़ा ही छोटा सा तर्क है कि चौधरी संगाम सिंह (दादा सांगू) की तीन शादियाँ हुई थी। पहली शादी श्योरण गोत के प्रधान गाँव सिद्धनवा में हुई थी। अन्य दो शादियाँ अहलावत गोत के डिघल गाँव मे हुई थी। अब एक छोटी सी सोचने वाली बात है कि जब सांगू की पहली शादी श्योराण के सिद्धनवा में हुई थी, तो क्या सांगू ने अपनी बहन से शादी की थी? यह कतई संभव नहीं है। तो ऐसे बेतुके भ्रम ना फैलाया करें।
~सरदार हवासिंह सांगवान (पूर्व कमांडैंट, सीआरपीएफ़)
Friday, 4 July 2025
Dulla Bhatti - दुल्ला भट्टी
Dulla Bhatti (दुल्ला भट्टी)—the iconic rebel of Punjab who fought against the Mughals—is widely accepted in historical and folk traditions as a Jat, and not a Rajput. Let’s explore the historical, textual, and folk evidence to support this claim and also examine why Rajputs try to claim him.