Friday, 20 December 2024

चौधरी ओमप्रकाश चौटाला, वह शेर जिसने नरेंद्र मोदी को चलती गाडी से उतार दिया था!

फंडियों की अक्ल ठिकाने लगाने का वही टशन व् अणख थी चौधरी ओमप्रकाश चौटाला में जो सर छोटूराम में थी!


2013 में रोहिणी कोर्ट में पेशी पे नहीं जाने का ऑप्शन था चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जी के पास| पर पता नहीं किसने सलाह दी कि आगे इलेक्शन हैं जेल चले जाओगे तो वोटों की सिम्पथी मिलेगी| कहाँ 'ग्रीन-ब्रिगेड' वाला दबंग, अपनी इसी दबंगई पर कायम रहते हुए उस दिन कोर्ट न जाते तो सजा नहीं होनी थी व् 2014 में इलेक्शन जीत के या तो एकल दम पे सीएम बनते या अलायन्स में भी बनते तो सबसे बड़ी पार्टी के रूप में खुद ही सीएम बनते|


खैर, बात करते हैं उनकी सर छोटूराम जैसी अणख व् टशन की| जहाँ ताऊ देवीलाल को हरयाणा में बीजेपी की एंट्री करवाने बारे दोषी माना जाता है, जो कि सच भी है; वहीँ चौधरी ओमप्रकाश चौटाला को उसी बीजेपी को ठिकाने लगाने के लिए जाना जाएगा| ऐसा करके उन्होंने बीजेपी से 1990 में उनके पिता ताऊ देवीलाल जी के साथ बीजेपी द्वारा किए गए धोखे का बदला लिया था साल 1999 से ले 2005 तक जब उनकी सरकार रही तब| 


ठिकाने भी लगाया दो तरीके से: एक तो 2000 में जब इनेलो ने बीजेपी के साथ अलायन्स में चुनाव लड़े तो 60-30 के फार्मूला पर चुनाव हुआ| चौटाला साहब ने जिन 30 सीट पर बीजेपी के कैंडिडेट थे, हर एक पर अपने डमी उतारे व् बीजेपी के 24 उम्मीदवारों को तो वहीँ इलेक्शन में ही धूल चटवाई| अभी बीजेपी जो सूत्र सबसे ज्यादा प्रयोग में ला के हरयाणा में तीसरी बार आई है, वह यही चौधरी ओमप्रकाश चौटाला से सीखा हुआ सूत्र था, डमी कहें या बागी उम्मीदवार खड़े करवाने का; जिसको कांग्रेस जानते-बूझते हुए भी अपनी आपसी कलह में फंसे होने के चलते टैकल ही नहीं कर पाई| और उसके बाद फिर जो रगड़ा एक-एक को पकड़ के वह अपने आप में इतिहास है; इसमें क्या रामबिलास शर्मा थे, क्या मनोहरलाल खट्टर व् क्या नरेंद्र मोदी; सबको ठिकाने लगाया हरयाणा में| नरेंद्र मोदी को तो दबड़का के चलती गाडी से ही नीचे उतार दिया था| 


और इनकी भाषण देने की अविरल कला, भाषण की शैली व् भाषण में विषय की तीव्रता के तो विपक्षी भी इतने कायल थे कि आज भी इनकी भाषण शैली को देश के टॉप 1 प्रतिशत नेताओं की श्रेणी में रखा जाता है| 2014 के इलेक्शन में आप से तीन बार मुलाकात हुई, तीनो मुलकातें आजीवन जेहन में रहेंगी!


मेरा मानना है कि राजनीति में एक बार आपको जो छवि बन जाए, आप उससे हट कर दूसरा कोई एक्सपेरिमेंट करने चलते हैं तो फिर गाडी पटरी पर इतनी आसानी से नहीं आती: भले 'ग्रीन-ब्रिगेड' वाली, 'दबंगई' वाली छवि झूठी थी या सच्ची थी; उसको त्याग सहानुभूति वाली राजनीति की परिपाटी चढ़ने के चक्र में उस दिन रोहिणी कोर्ट ना गए होते तो; आज उनकी राजनीति कुछ और ही बुलंदी छू रही होती व् हरयाणा की यह दशा ना होती; जिससे हरयाणा आज गुजार रखा है बीजेपी ने| 'ग्रीन-ब्रिगेड' वाली, 'दबंगई' इन दोनों छवियों से खुद की छेड़छाड़ या इसमें बदलाव करना अपने मूल रूप को बदलने जैसा था; बदलाव जरूरी होते हैं, परन्तु आप बीज की सरंचना ही छेड़ बैठोगे तो भटकन बनेगी ही बनेगी| 


आज उनके निधन की दुखद बेला पर प्रार्थना है कि दादे नगर खेड़े चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जी को उनकी शरण में लेवें व् उनका यह टशन व् अणख रहती दुनिया तक याद की जाए!


जय यौधेय! - फूल मलिक



Friday, 13 December 2024

दानवीर सेठ चौधरी सर छाजूराम जी and Hissar Gurudwara

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।। श्री वाहेगुरु जी की फतह।।


दानवीर सेठ चौधरी सर छाजूराम जी अलखपुरिया!!!


3 अक्तूबर 1925 को हिसार में गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा  की नींव रखी गई थी। इसके निर्माण में हिसार शहर के कई सेठों व कई गांवों ने सेवा दी थीं। इनमें गांव मंगाली, जोकि हिसार जिले का एक बड़ा गांव है, की तरफ से भी सेवा दी गई। उस समय जितने भी भेंटकर्ता थे सबके नाम पत्थर पर लिखे हुए हैं। भेतकताओं में सबसे पहले जो नाम लिखा है वह देख कर मुझे बड़ी हैरानी हुई। वह नाम है चौधरी सर छाजूराम जी शेखपुरा हिसार। 


चौधरी छाजूराम जी लांबा, जिनकी पहचान अब अलखपुरा गांव से है, बहुत बड़े दानदाता थे। उस समय में ब्रिटिश इंडिया में उनके बराबर का कोई दानदाता नहीं हुआ। आजतक कोई भी शोधकर्ता उनके द्वारा दिए गए दान की सूची नहीं बना पाया है। मैने अबतक यह तो पढ़ा था कि चौधरी छाजूराम जी ने जाट शिक्षण संस्थाओं, आर्य समाज गुरुकुलों, डीएवी शिक्षण संस्थाओं, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय आदि संस्थाओं में आर्थिक सहायत दी थी। इनके इलावा उस जमाने के क्रांतिकारियों व नेताओं, जैसे कि गांधी जी, मदन मोहन मालवीय, पंडित नेकीराम शर्मा, पंडित श्रीराम शर्मा, चौधरी छोटूराम आदि, सबकी आर्थिक सहायता की तथा सरदार भगत सिंह तो फरारी के वक्त कलकत्ता में उनकी कोठी पर ही ठहरे थे। उसके दर पर जो भी गया कभी खाली हाथ नहीं लौटा, बल्कि जो वह सोचकर गया उससे दुगना ही लेकर लौटा।


मेरे लिए ये एक नई जानकारी है कि चौधरी छाजूराम जी ने सन् 1925 में हिसार गुरुद्वारा के निर्माण में 2250/· रु की भेंट दो थी, जोकि तब सर्वाधिक भेंट थी। आप अनुमान लगा सकते हैं कि तब इस राशि की कितनी वैल्यू रही होगी! 


–राकेश सिंह सांगवान




Tuesday, 3 December 2024

आज 2024-25 में कैसे किसान आंदोलन का साथ दिया जाए व् कैसे आंदोलन किया जाए?

अब जब केंद्र में बीजेपी एनडीए के रूप में तीसरी बार सत्ता में है, गुजरात-महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश लैंडस्लाइडिंग मेजोरिटी से जीत चुकी है; हरयाणा बॉर्डर मेजोरिटी से आ गई है, राजस्थान में भी ठीक-ठाक बहुमत से है; यूपी उपचुनाव में 9 में से 7 सीट निकाल ली है तो किसान यूनियनों व् नेताओं को सबसे पहले यह समझना होगा कि जब 2020-21 वाले आंदोलन में पूरा SKM एक था तब ही जा के 13 महीने में यह माने थे; तो अब सुन लेंगे ये आपकी? और वह भी यूँ गुटों में बंट के आंदोलन करने से?


या तो पहले आपस में बैठ के अपनी आपसी ईगो-क्लेश-द्वेष, प्रत्यक्ष-hidden तमाम तरह के एजेंडा बतला के अपनी भड़ास निकाल के एक हो जाईए; अन्यथा घर बैठ जाइए| कम से कम पहले से ही गरीबी की मार खा रहे किसान के ट्रेक्टर-ट्रॉली तुड़वाने, तेल-पानी-राशन फुंकवाने, सड़कों पे सोना व् टेंशन में रहने से तो पिंड छूट जाएगा बेचारों का| हासिल कुछ है नहीं, ऐसे सालों-साल बिना आपसी एकता के 'अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग' की तर्ज पर टुकड़ों में सड़कों पे बैठ के क्या गिनीज-बुक-ऑफ़-वर्ल्ड-रिकॉर्ड में विश्व के सबसे लम्बे धरने के तौर पर नाम दर्ज कराना चाहते हो? रहम करो किसानों पर व् हाथ मारो अपनी अक्ल को| 


और फिर भी अक्ल को हाथ नहीं मार रहे तो पक्का मानों, आप खुद या आपको जो बहका के वहां बैठाया है; वह बीजेपी-संघ के इशारे पर ही यह सब कर-करवा रहा है| और उसका उद्देश्य है आपके जरिए बड़े SKM समेत सभी किसानों को यह संदेश देना है कि कितने ही धरने कर लो, हम नहीं सुनने वाले; बल्कि तुम्हे धुल-धर्षित कर तुम्हारी औकात में ला देंगे; वही औकात जिससे किन्हीं जमानों सर छोटूराम जैसे निकाल गए थे| यानि इन टुकड़ों में इधर-उधर बैठ के, बिना सरजोड़ किए जो हो रहा है; यह आंदोलन नहीं कहा जा सकता; यह तो संघ व् बीजेपी के इशारे पे किसानों में अव्वल दर्जे की हताशा-निराशा भरना चल रहा है| 


सीधा सा सवाल है, अगर किसानों के लिए इतना दर्द है तो सभी यूनियनों के साथ बैठ के सरजोड़ क्यों नहीं करते? एक कदम पीछे रह के क्यों नहीं चलते; लीडरी चाहिए ही किसलिए? और नहीं तो सर छोटूराम से ही सीख ले लो; उस आदमी के बनाए कानूनों को बचाने, उस जैसे हक़-अधिकार के लिए सड़कों पे आए हो तो; उससे यह भी सीख लो कि वह कभी लीडरी में नहीं चला; एक कदम पीछे चला; कभी प्रीमियर नहीं बना; बल्कि रेवेन्यू मिनिस्टर रहा; कभी यूनियनिस्ट पार्टी का एक छत्र लीडर नहीं कहलवाया; बल्कि समूह बना के चला| बताओ कब वह यूनाइटेड पंजाब का प्रीमियर था, कब फ्रंट पे था वह; सेकंड-इन-लीड रहा व् तब भी वो सारे कानून बना गया, जो उसको बनाने थे| यह लीडरी का कीड़ा वक्त रहते छोड़ दो; क्योंकि काम करने की नियत रखते हो किसान के लिए तो वह तो सर छोटूराम की तरह एक कदम पीछे रहते हुए भी कर जाओगे; अन्यथा यूँ ही संदेह की दृष्टि से देखे जाओगे; यूँ ही किसान-कौम की ऊर्जा-संसाधन-इंसान खपवाओगे| 


EGO-ETHO-PATHO तीन चीजें होती हैं, जो एक सम्पूर्ण लीडर बनाती हैं| सिर्फ अकेले EGO पे सवार हो लीडरी चाहने वाले; इतिहास की कौनसी गर्द की सबसे निचली तह में जा के दफन होते हैं; योगदान के नाम पर उनको खुद इतिहास तक याद नहीं रखा करता| अकेले EGO पे चलने वाले को ही बीजेपी-संघ जैसे तुम्हारे विरोधी सबसे पहले आ के दोबच्ते हैं व् या तो दबा देते हैं या अपना प्यादा बना लेते हैं| ऐसे में याद रखे जाओगे तो सिर्फ EGO के सर चढ़ भटकन में टूरने वालों की तरह| EGO से हट के जैसे ही ETHO व् PATHO पर भी विचार के आओगे तो समझ आएगा कि सभी से सरजोड़ बिन राह कितनी दुष्कर है|  


जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 2 December 2024

जिस कलानौर रियासत में कौला-पूजन होता था, उसमें ना तब ना आज एक भी जाट-बाहुल्य का गाम नहीं आता!

आज तक यही प्रचार होता रहा है कि कलानौर का नवाब जो भी नई नवेली हिंदू दुल्हन आती थी उसको अपने पति से पहले नवाब के पास जाना पड़ता था, जिसको कौला पूजना कहते थे| वहीं सो-कॉल्ड फंडियों के महिमामंडन में रजवाड़ों बारे यहां पर भी सभी बिरादरियों को अपने साथ बदनाम करने की कोशिश, जबकि सच्चाई यह है कि कलानौर के नवाब के नीचे एक भी जाट-बाहुल्य कहिए या जाट-खेड़े का गाम नहीं आता था, जो जो गांव आते थे नवाब के नीचे वो सभी राजपूत बाहुल्य गाम थे, जो कि आज भी हैं| 


आजादी से पहले, यहां कलानौर का नवाब मुस्लिम पंवार गौत्री रान्घड होता था और इसके नीचे लगभग 70 से 80 गांव थे जो सभी हिंदू-मुस्लिम राजपूतों-रांघड़ों के थे| आजादी के बाद बहुत सारे (40 के करीब) मुस्लिम राजपूतों के गांव पाकिस्तान चले गए थे, जो बचे वो फ़ैल के आज यहां पर तीस छोटे-बड़े गांव राजपूतों के पवार गोत्र के अभी भी हैं जिनके प्रधान ठाकुर रामेश्वर सिंह पवार हैं| कलानौर गोंद सावन तपा का और खरक कैलेगा के 28 से ज्यादा गांव के प्रधान ठाकुर महेंद्र सिंह पवार हैं| इनके गाँवों की लिस्ट नीचे देखें:


कलानोर तपा बोन्द सावड तपा पर्धान ठाकुर रामेश्वर सिंह पन्वार के नीचे आने वाले कलानोर के गाँव निम्लिखित हैं - बोन्द, छोटी बोन्द, रन्कोली, साजुर्वास, सावड, साक्रोड, रानिला, हिन्दोल, मान्हेरु, माल्पोश, निमडी, अचिना, मिर्च, कमोद, बडाला, कायला, लाम्बा, सोप, अजित्पुरा, छोटी चान्ग, मिश्रि, उण, कोल्हावास, नागल आदि| 


खरक केलन्गा तपा प्रधान ठाकुर महेंद्र सिंह पवार के नीचे आने वाले गांव निम्नलिखित है - खड़क, बड़ी, कैलेंडर, फुल पूरा, रेवाड़ी, बड़ी रेवाड़ी, छोटी सीसर ढाणी, हरसुख, खरक, छोटी नौरंगाबाद, कलानौर, काहनूर, लिंगाणा, लहाली, बनियानी, अव्वल अल्लाह, मसूदपुर, पटवा पूर्व, तैमूर पुर, सैंपल वगैरा|


जाटों का इन गाँवों से हो कर गुजरना जरूर होता था और उसी से किस्सा जुड़ा है कलानौर रियासत तोड़ने का| जब दादीराणी समाकौर का ढोला इस रियासत के रास्तों से होते हुए गुजरा था तो नवाब के सैनिक गलती से ढोला रोक बैठे व् फिर जो जाट खापों के किया वह आज "कलानौर रियासत ही तोड़ देने" के इतिहास के नाम से दर्ज है| 


जब ढोला रोका गया तो दादीराणी समाकौर ने विरोध किया व् वहां से निकल सीधी बाप से जा बोली कि, "थमनें जाटों के ब्याही सूं या किसी और के?" तो बाप ने बेशक निसंदेह यही कहा कि, "जाट के"| तो बोली, "कलनौरियाँ कौन हुआ फिर मेरा ढोला रुकवानिया?" और फिर मलिक खाप बैठी, फैसला हुआ सर्वखाप बुलाई जाए व् कलानौर को तोडा जाए| सर्वखाप हुई, मलिक-हुड्डा-बुधवार-सांगवान व् और भी बहुत खापों के चौधरी पहुंचे| इसमें मलिकों के भाणजे गाम बुटाना से दादावीर ढोला सांगवान भी पहुंचे| 


हर खाप ने अपने-अपने गाम के अखाडों से रातों-रात पहलवानी दस्ते बुलाए व् हो गई खाप-आर्मी खड़ी| जा टेकी कलानौर तले खाप की गढ़ी; जिसको आज के दिन "गढ़ी मुरादपुर टेकना" गाम के नाम से जाना जाता है; इसमें गढ़ी यानि खाप की बैरक लगी थी यहाँ, मुरादपुर यानि कलानौर को तोड़ने की मुराद पूरी हुई यहाँ व् टेकना यानी खाप आर्मी की टिकी थी यहाँ आ के| 


सभी बखूबी लड़े, परन्तु मलिकों के भानजे दादा ढोला का पराक्रम से अविरल हो के निखरा व् सबसे ज्यादा रांघड़ काटे| बताते हैं कि इसी बात पे जिद्द लगी कि किसने ज्यादा काटे व् इसी जिदा-जिद्दी में वो आपस में ठन गए व् आमने-सामने की या घात लगा के जैसे हुई; इसमें दादा ढोला वीरगति को प्राप्त हुए| अनजाने में हुई इस घटना इल्जाम आया मलिकों पे कि भानजा मरवा दिया, अपने ही बुलावे पे करे सफल युद्ध में| गठवाला खाप बैठी व् निर्धारित हुआ कि क्योंकि भानजे का शौर्य व् बलिदान सबसे बड़ा था तो इस जगह जहाँ विजय प्राप्त हुई, यहाँ सांगवान गौत का खेड़ा बसाया जाए व् गठवाले का इस खेड़े साथ भाईचारे का रिश्ता रहेगा; यानि ब्याह-वाणे नहीं होंगे| तब से "कलानौर रियासत विजय" की पताका के रूप में आज भी बसता है "गढ़ी मुरादपुर टेकना"| 


कलानौर विजय में कुछ और भी बातें हुई जैसे कलानौर का सिरमौर निशाँ व् तख्त आज भी हुड्डा सर्वखाप हेडक्वार्टर सांघी की परस में लगा हुआ है; जो कि निशानी स्वरूप हुड्डा ले गए थे| 


और दादीराणी समाकौर मलिक को धर्म बहन मानते हुए, आज भी गाम सुनारिया के बुधवार जाटों और मोखरा के मलिक जाटो के बीच शादियां नही होती। व् ऐसी ही और भी ऐतिहासिक रीतें, व् बुलंदियां "down fall of Kalanaur" से जुडी हुई हैं| 


अत: कौला पूजन ना जाटों में कभी हुआ और ना होने दिया| किसी ने चाहा तो इल्जाम-ए-कलानौर तसदीक हुआ|


ऐसा ही एक किस्सा पंजाब के फ़िरोज़पुर जिले की खाप का है; जब अकबर ने एक जाट की छोरी से ब्याह करना चाहा; प्रस्ताव भी भेजा परन्तु खाप ने इंकार कर दिया तो अकबर हमला करने को उतारू हुआ| परन्तु अकबर के सलाहकारों ने समझा दिया कि कहीं भी पंगा लेना परन्तु खाप से नहीं व् अकबर के काफिले को खाली हाथ खामोश लौट जाना पड़ा| 


मुस्लिमों में भी यह हिन्दू से मुस्लिम बने रांघड़ों में बताया जाता है, अन्यत्र मुस्लिम में नहीं| यह रांघड़ भी इसको हिन्दू में मिलने वाले "देवदासी" से ही ले गए बताये गए; यहीं इस बुराई की जड़ में भी फंडी सिस्टम ही है| क्योंकि "चोर चोरी से जा, हेराफेरी से नहीं" यानि आदतें वही, बस धर्म बदल लिया तो रूप बदल लिया|


जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 1 December 2024

जाट कौम का दिसंबर महीने का कैंलेंडर!

1 Dec राजा महेंद्र प्रताप सिंह ठेंनुआ जयंती

1 Dec महाराजा श्री सवाई बृजेंद्र सिनसिनवार जयंती

2 Dec कैप्टन ईशर सिंह संधू पुण्यतिथि 

4 Dec शहीद मेजर अनूप सिंह गहलोत बलिदान दिवस

5 Dec राजा मानसिंह सिंह सिनसिनवार जयंती

5 Dec कर्नल पृथ्वी सिंह गिल पुण्यतिथि 

6 Dec परमवीर चक्र विजेता कर्नल होशियार सिंह दहिया पुण्यतिथि

11 Dec कर्नल पृथ्वी सिंह गिल जयंती 

12 Dec शहीद लेफ्टिनेंट जसमेल सिंह खोखर बलिदान दिवस

14 Dec शहीद फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों बलिदान दिवस 

14 Dec शहीद फ्लाइट लेफ्टिनेंट दिपिका श्योराण जयंती 

15 Dec चौधरी शीशराम ओला पुण्यतिथि 

16 Dec शहीद ब्रिगेडियर होशियार सिंह राठी जयंती

16 Dec कैप्टन बॉक्सर हवा सिंह श्योराण जयंती

23 Dec चौधरी चरण सिंह तेवतिया जयंती 

24 Dec मोहम्मद रफी (भट्टी गोत्र) जयंती 

25 Dec महाराजा सूरजमल सिनसिनवार बलिदान दिवस 

25 Dec एयर मार्शल अमरजीत सिंह चहल जयंती

26 Dec चौधरी सिकंदर हयात खान (चीमा गोत्र) पुण्यतिथि

30 Dec कैप्टन ईशर सिंह संधू जयंती 

Post credit- @sagar_khokhar_2000

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