Saturday 20 February 2016

क्या खूब अक्ल दिखाई है कंधे से ऊपर मजबूत अक्ल वाले खट्टर बाबू ने!

खट्टर बाबू, खामखा जिद्द पे अड़ के कौनसी कंधे से ऊपर की अक्ल दिखा ली आपने? अपनी ही बिरादरी के लोगों के ग्राहक छिनवा दिए, या यूँ कहूँ कि कम/ज्यादा % में तुड़वा दिए| सनद रहे जनाब आपने जिस कम्युनिटी के साथ अपनी कम्युनिटी का मनमुटाव बढ़वाया है वो हरयाणा की कंस्यूमर पावर (उपभोक्ता शक्ति) यानी बाजार से सामान खरीदने की भागीदारी का 60% के करीब बाजार देती है| मैं यह भी नहीं कहता कि जाट आपके समाज वालों की दुकानों पर नहीं लौटेंगे, परन्तु जो भाईचारा और समरसता थी उसको लौटने में ना जाने कितने महीने-साल लग जाएँ या शायद बहुत से लौटें ही ना| सनद रहे यहां दोनों समुदायों के व्यापारी की बात नहीं कर रहा हूँ, अपितु जाट समुदाय के ग्राहक की बात कर रहा हूँ। इसमें भी उन युवा ग्राहकों की जो रेस्टोरेंट्स में खाते हैं और शोरूम्स में शॉपिंग करते हैं।

और मैं यह बात खाली हवाओं में नहीं कह रहा हूँ| जिधर भी हरयाणा में बात कर रहा हूँ, हर तरफ का जाट यही कह रहा है कि हम सीएम की कम्युनिटी वालों की दुकानों-शोरूमों-रेस्टोरेंटों से जितना हो सकेगा उतना सामान खरीदने का बायकाट करेंगे| हो सकता है यह उनका वक्त के तकाजे के चलते वाला गुस्सा हो या गुस्सा उतरने के बाद भी यह तकाजा रहे; परन्तु जब तक भी यह रहेगा तब तक ग्राहक किसके घटे रहेंगे? अब मैं इस बात में तो क्यों पडूँ कि आपकी कम्युनिटी वाले भी इस पोस्ट को पढ़ते ही यह बोल देंगे कि जाट ग्राहक की जरूरत किसको है| ऐसा या तो वो बोलेंगे नहीं और बोलेंगे तो फिर कंधे से ऊपर मजबूत अक्ल के तो नहीं कहलायेंगे|

दूसरा संशय आपने अपने संघ की फैलती जड़ों का भी नुकसान करवा दिया है| मेरे ख्याल से जाट अगर संघ से ज्यादा जुड़ भी नहीं रहे थे तो फिर भी संघ से किसी जाट को झिझक भी नहीं थी, परन्तु आपके इस महान कार्य से उसमें भी फर्क पड़ने के असर बन गए हैं और संघ अब हरयाणा में शायद ना के बराबर ही जाट जोड़ पाये| क्योंकि सोशल मीडिया में ऐसे स्टेटस तक ट्रोल हो रहे हैं कि "आज तक हिंदुत्व की अफीम में बहके हुए थे, धन्यवाद आपका जो आपने हमें बता दिया कि हम जाट हैं|"

परन्तु हाँ बनिया भाईयों की दुकानों-शोरूमों-रेस्टोरेंटों पर चढ़ने से जाट कोई परहेज नहीं बता रहे| चलो हमें क्या है, हमें तो सामान चाहिए, आपकी कम्युनिटी वालों की दुकानों से ना सही अपने बनिया भाईयों की दुकानों से खरीद लेंगे या फिर बिलकुल ऐसा थोड़े ही है कि बाकी और ३३ बिरादरियों की दुकाने ही नहीं रहेंगी आज के बाद|
ना खट्टर बाबू बात जमी नहीं, कुछ ज्यादा ही अक्ल लगा गए आप| कोई नी ऐसा ना हो तो फिर 'घणी स्याणी दो बै पोया करै" जैसी कहावतें किधर जाएँगी| राजनैतिक तौर पर इस दंगे का आप 3.5 साल बाद कितना फायदा ले पाओगे यह तो तब ही पता चलेगा, परन्तु इतना जरूर दिख रहा है कि तब तक आपकी कंधे से ऊपर की मजबूत अक्ल ने आपकी कम्युनिटी से हरयाणा का सबसे बड़ा उपभोक्ता जो अलग छिंटकवा दिया है उससे आपके समाज को अच्छा-खासा नुकसान होने की सम्भावना बन चली है|

वैसे जाट कह रहे थे कि लेख के अंत में आपका धन्यवाद भी कर दूँ| धन्यवाद कर दूँ कि आपने हमें अपने-आपको उत्तरी भारत और हरयाणा में खासकर पुनर्जीवित व् एक कर दिया| आप जैसे और सैनी जैसे दो-चार, दो-चार होते समय-समय पर होते रहें तो जाट एकता स्वत: ही बनी रहे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक - यूनियनिस्ट मिशन

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