Sunday 23 January 2022

​​इंडिया गेट के नीचे से "अमर-जवान ज्योति" को हटाए जाने ​के​पीछे "mercenaries" वाला कारण देना; बहुत ही बेहूदगी भरे अंध-अहंकार की प्रकाष्ठा है!

वैसे तो नहीं बोल रहा था इस ज्योति को नेशनल वॉर मेमोरियल में समाहित करने बारे; एक अच्छी भावना से ही देख रहा था| परन्तु जब आर्मी के ही दो बड़े अधिकारीयों के ट्वीट्स का सलंगित स्क्रीनशॉट ​(see attachment) ​देखा तो माथा ठनका कि यह फंडी इस देश की आत्मा को खोखला करने की कौनसी अप्रत्याशित ​व् ​अमर्यादित हदों के पार जा चुके हैं|


क्योंकि किसी भी देश की सेना उसकी सरकार के हुक्म की पाबंद होती है; फिर चाहे वह किसी भी काल के शासक-सरकार का युग रहा हो; आज़ाद युग रहा हो अथवा गुलाम युग| आज भी तो पता नहीं कहाँ-कहाँ अरब-अमेरिका-अफ्रीका में कभी नाटो के कहे पे तो कभी किसी अन्य शांति-बहाली के नाम पर भारतीय ​​सेना जाती रहती है; तो क्या कल को उनको भी यही बोल दिया जाएगा कि यह देशभक्त नहीं थे अपितु "पैसे के लिए​​ भाड़े पे गए लोग थे"?  ऐसे ही विश्व युद्ध ​- 1 व् ​2 में सेना​ ​गई थी|

​ऐसे तो फिर क्या ​अकबर के दरबार के नौ रत्नों में जो 4 या 5 हिन्दू बताए जाते हैं; उनको यही लोग महान, रत्न आदि कहना-लिखना-बताना बंद कर चुके हैं? अंग्रेजों से प्राप्त 300 से ज्यादा "सर" की उपाधि वाले लोगों में 98 से ले 99% फंडी वर्ग से आते हैं; क्या उनको भी यह इस विकृत मानसिकता के लोग​,​ इसी ​"mercenaries" ​वाली श्रेणी में रखेंगे? यह लोग महानिकम्मे व् मक्कार लोग हैं; इनसे समाज जितना जल्दी पिंड छुड़वा ले उतना बेहतर|

और "पैसे के लिए" इस दुनिया कौनसी नौकरी नहीं की जाती है, जो यह लोग इस चीज को एक "निंदनीय अतिश्योक्ति" के रूप में बयाँ कर रहे हैं?​ इस हिसाब से तो इनके ही एक बड़े नेता अमित शाह ने ब्यान दिया था कि, "व्यापारी भी बड़ा देशभक्त होता है"? क्यों भाई, किस बात का देशभक्त व्यापारी; वह तो अपने नफे-नुकसान यानि पैसे के लिए काम करता है; खटता है; या नहीं? तो कहें फिर हर व्यापारी को भी mercenary?

सेना वालों की देशभक्ति देश की सरकारों के हुक्म से निर्धारित होती है| सरकार उनको जहाँ कहेगी, उनको वहां खड़ना होता है| यह किसी पोलिटिकल पार्टी, किसी नेता विशेष या फंडियों की मनमाफिक परिभाषाओं की पाबंद कैसे हो जाएगी? यह लोग ऐसा करके ना सिर्फ डिफेंस वेटरंस में तनाव पैदा करना चाहते हैं अपितु विदेशों में बसने वाले WW-1 व् WW-2 की पीढ़ियों की NRI फैमिलीज़ में को भी शर्मिंदा व् हताश करना चाहते हैं| स्थानीय वॉर-वेटरंस तो इनके निशाने पर हैं हीं|  

कितनी आसान स्टेटमेंट बना दिया है इन्होनें डिफेंस में काम करने को, कि उसको मात्र पैसे पे ला के तोल दिया है? उस भावना, उस वीरता, उस जिगरे​,​ उस शारीरिक फिटनेस की कोई कीमत नहीं, जिसपे कि पास होने को फंडियों के तो 99% बच्चे, भर्ती लाईनों में खड़ा होने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं?

अरे फंडियों, और नहीं तो उस इजराइल से ही सीख लेते; ऐसे जहर फैलवाने से पहले, जिनको तुम हर बात में आदर्श मान फॉलो करते दीखते हो? सीख लेते कि क्यों वह अपने हर सिटीजन को न्यूनतम 2 साल सेना में लगवाते हैं?​ लगता है अब मुद्दा यह उठना चाहिए कि देश का हर नागरिक न्यूतम 2 साल डिफेंस में लगाएगा; तब जा कर ऐसे लोगों को पट्ट खुलेंगे| ​

फंडी अपनी बेशर्मी व् बदनीयती के चरम पर है| अगर इनको नहीं रोका गया तो समझो इनका क्रूरतम तो अभी देखना बाकी है|

जय यौधेय! - फूल मलिक  



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