Friday, 25 September 2015

माननीय कैप्टन अभिमन्यु जी कुछ सीखिये उन्हीं से जिनकी संगत में रहते हैं!


या तो सीएम को पाकिस्तानी मूल का कहने पर जो बयान आपने पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान जी के ब्यान के जवाब में दिया था अब ऐसा ही बयान एस.जी.पी.सी. चीफ श्री अवतार सिंह मक्क्ड़ के सीएम को पाकिस्तानी कहने पे भी दीजिये वरना सीखिये जिनकी सोहबत में रहते हैं उनसे ही।

क्या जलाये सीएम की बिरादरी वालों में से किसी ने मक्क्ड़ साहब के पुतले, जैसे कल हवा सिंह सांगवान के जलाये थे इसी मुद्दे को ले के? क्या आया किसी सीएम साहब की बिरादरी वाले की तरफ से मक्क्ड़ साहब से माफ़ी मंगवाने या उनपे राजद्रोह का मुकदमा करवाने का बयान?

क्यों नहीं हुआ ऐसा? शायद अपनी कौम वाले के मामले में ऐसे मौकों पे चुप रहना क्या होता है और इसका क्या महत्व होता है यह लोग भली-भांति जानते हैं।

जबकि आप खुद जाट हो के अपने ही जाट भाई के ब्यान पे ब्यान देने में एक दिन की भी देरी नहीं किये, वो भी बावजूद इसके कि ब्यान उन्हीं की बिरादरी पे था जो जब उन्हीं की बिरादरी का कोई वही बयान दे तो चुसकते भी नहीं।

वो जो कहावत है ना कैप्टेन साहेब कि "जाटड़ा और काटड़ा अपने को ही मारे!" यह कोई उन मौकों के लिए नहीं होती कि जब कोई जाट दुसरे जाट को यदि तीर-तलवार या गोली से मार दे; वो इन्हीं मौकों और वाकयों की वजह से चलती है जैसा आपने किया।

छोटा मुंह और बड़ी बात परन्तु आशा करता हूँ कि जिस स्वछंद व् स्वतंत्र मति के हमारे बुजुर्ग और पुरखे बताये गए आप भी उसी परम्परा पे चलते हुए और जिनकी सोहबत में रहते हैं उनसे यह सीखते हुए कि ऐसे मौकों पर कैसे रियेक्ट करना चाहिए की सीख को लेकर आगे बढ़ेंगे!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 24 September 2015

ईटीवी के वरिष्ठ सलाहकार श्रीमान गोविन्द ठुकराल जी आपका ब्यान 'डिवाइड एंड रूल' वाला है!


अपनी चालाकियों भरी बाणी से अगर आप यह सोच रहे हैं कि आप जनता को दिग्भर्मित कर लेंगे तो शायद आप गलत हैं| सांगवान साहब ने यह क्या कह दिया कि हरयाणा का सीएम एक हरयाणवी होना चाहिए तो इसपे आपने सिर्फ जाटों को हरयाणवी ठहरा के बाकि हर्याणवियों को अपने पाले में करने की गोटी फेंक दी|

वैसे आज बहुत से हिन्दू खत्री/अरोड़ा महाराष्ट्र में भी हो रखे हैं, परन्तु वहाँ तो राज ठाकरे से ले उद्धव ठाकरे, खुद बीजेपी की सरकार वाले तक सिर्फ मराठी मानुष की बात करते हैं, उसपे तो आप लोगों का कोई बयान ना विरोध आजतक? तो फिर एक हरयाणवी हरयाणा में रह के हरयाणवी की बात कर रहा है तो आपको कुलबुली क्यों हो रही है? इसका मतलब कम से कम इतना तो साफ़ है कि बाकी और कोई हरयाणवी हो या ना हो परन्तु आप तो खुद को हरयाणवी नहीं समझते|

खैर यह फैसला तो मैं आपके द्वारा आपके बयान में विशेष तौर से चिन्हित किये गए जाटों समेत तमाम मूल हर्याणवियों पे छोड़ता हूँ कि वो आपके इस 'डिवाइड एंड रूल' बयान पर क्या रूख अख्तियार करते हैं| आपके इस बयान में आपकी चालाकी को भांप के आपके साथ खड़े होंगे या अपने मूल-हरयाणवी भाईयों की एकता को और सहेजेंगे|

परन्तु आपको एक बात जरूर बता दूँ कि जाट आपके बयान की तरह पेट-भर नहीं| और होते तो आज हरयाणा का दलित-पिछड़ा बाकी सारे देश से अधिक सम्पन्न और अगाड़ी नहीं होता| देश के जिन हिस्सों में आप जैसी सोच के लोग रहते हैं, वहाँ दलित-पिछड़ा की हालत बद से बदतर है| ऐसे में अगर हरयाणा में देश के सबसे सम्पन्न दलित-पिछड़ा हैं तो कहीं-ना-कहीं जाटों की भाईचारा और सौहार्द से बसने और खेतों में एक दूजे से कंधे-से-कन्धा मिला के खटने की वजह भी तो जरूर होगी, या इससे भी इंकार करोगे?

सीएम साहब के एक के बाद एक दो शर्मशार बयानों ("डंडे के जोर पर लेने वाले" और "हरयाणवी कंधे से नीचे ताकतवर और कंधे से ऊपर कमजोर होते हैं) पर सीएम साहब को माफ़ी मांगने की कहने के बजाय उल्टा जाटों को ही घेर रहे हो? मतलब उल्टा चोर कोतवाल को डांटे? सीएम साहब के ऐसे बयानों पे एक स्वाभिमानी हरयाणवी तो कम से कम चुप नहीं बैठ सकता|

हरयाणा के सारे मुख्यमंत्रियों की लिस्ट उठा के देखेंगे तो आप पाएंगे कि सिर्फ जाट ही नहीं अपितु ब्राह्मण, बनिया, बिश्नोई, यादव भी यहां सीएम रहे हैं| अगर जाटों को अपनी चलानी होती तो हरयाणा की कंस्यूमर पावर का जो करीब 60% हिस्सा (जबकि जनसंख्या इसके आधे से भी कम अनुपात में है), वो हम आपकी दुकानों से सामान खरीद के आपको पैसे की ताकत नहीं देते| बल्कि हम सिर्फ बनिया या अन्य जातियों की दुकानों से ही सामान खरीदते|

परन्तु अब अगर आप 'डिवाइड एंड रूल' की इतनी ही घिनोनी चाल चल रहे हैं तो अब जाटों को भी अपनी कंस्यूमर पावर रुपी हाथ आपके समाज के सर से खींच लेने में ही भलाई देखनी होगी| और आपकी दुकानों से हर प्रकार के सामान खरीदने का बायकाट का फार्मूला अपनाना होगा| तभी शायद आप लोगों को एक जाट के सहयोग और उसके भाईचारे की कीमत का अहसास होवे|

बाकी यह हरयाणा की विडंबना ही है कि जिन लोगों को ठीक से हरयाणवी बोलनी नहीं आती, इसका आदर-सम्मान तक नहीं, वो आप जैसे लोग यह बता रहे हैं कि कौन हरयाणवी मूल का है और कौन नहीं| यह वास्तव में मूल हरयाणवी पहचान रखने वाले लोगों के लिए गहन चिंतन की घड़ी है|

चलते-चलते यही कहूँगा कि कोई भी भारतीय अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस आदि-आदि किसी भी देश में चाहे 10 साल से रह रहा हो अथवा 100 साल से उसको और उसके बच्चों तक को हर जगह "भारतीय मूल" व् उसके समूह को "भारतीय" ही बोला जाता है| जब सारे संसार में यह नियम है तो ऐसे में यह बात बिलकुल समझ से परे है कि सांगवान साहब एक "पाकिस्तान मूल" के भारतीय को "पाकिस्तानी मूल" का नहीं तो और कौनसे मूल का कहें? उसके मूल पे उसको पाकिस्तानी नहीं तो और क्या कहें?

इस बात पर इतना बवाल तो खाम्खा जाटों को अपने ही हरयाणवी समाज में विलेन दिखाने और बनाने वाली बात हो रही है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

पंचायती राज चुनावों में शैक्षणिक योग्यता बारे यूरोपीय देशों की तरह जनता की राय लेवे हरयाणा सरकार!

पंचायती राज चुनावों में राज्य सरकार बनाम जनता एवं सुप्रीम कोर्ट के फंसे पेंच का लोकतान्त्रिक हल सुझाते हुए सर्वजातीय सर्वखाप की महिला अध्यक्षा डॉक्टर संतोष दहिया ने सरकार को इस मामले में जनता की राय ले कर चलने की सलाह दी| उन्होंने कहा कि जो मुद्दे जनता के मौलिक अधिकारों को सीधे तौर पर प्रभावित करते हों, उन पर सरकार को यूरोपीय देशों की भांति आमजन की वोटिंग के जरिये ही फैसला लेना चाहिए|

ऐसे मामलों में यूरोपीय देशों के राजनीतिज्ञ जो प्रक्रिया अपनाते हैं उस पर प्रकाश डालते हुए डॉक्टर दहिया कहती हैं कि जैसे अभी पिछले दिनों ग्रीक में आर्थिक संकट पर यूरोपियन यूनियन के सहयोग की शर्तों को मानने बारे ग्रीक के प्रधानमंत्री ने सीधी जनता से वोटिंग करके राय ली और जनता के निर्णय को मानते हुए अपना फैसला "नहीं" में दिया| उससे पहले इसी साल के शुरुवात में स्कॉट्लैंड, इंग्लैंड का हिस्सा "हो या नहीं" इसपे आमजन की वोटिंग के जरिये फैसला लिया गया और स्कॉट्लैंड इंग्लैंड में ही बना रहा|

ऐसे ही पंचायती राज चुनावों में शैक्षणिक योग्यता का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा है जो आमजनता की वोटिंग के जरिये राय लेकर ही निर्धारित किया जाना चाहिए| इसमें हर वोटर की राय पूछी जाए और तब ही कोई निर्णय लिया जाए| इससे ना सिर्फ सरकार का जनता में विश्वास कायम रहेगा, अपितु भारतीय सविंधान की लोकतान्त्रिक परिभाषा को और सार्थकता व् सुदृढ़ता मिलेगी| और सरकार के इस कदम की ना सिर्फ राष्ट्रीय अपितु अंतराष्ट्रीय स्तर पर सरहाना भी होगी और सरकार का "सबका साथ, सबका विकास" नारा "सबका विचार, सबकी सहभागिता" को भी क्रियान्वित करेगा|

अत: इस तरह जनता और सुप्रीम कोर्ट भी सरकार के फैसले से ना सिर्फ सहमत करेंगे, वरन सरकार की भूरी-भूरी प्रशंसा भी होगी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 23 September 2015

गुस्ताकी माफ़ हरयाणा CM चाचू:

आपका ब्यान- "हरयाणवी कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर होते हैं!"

हरियाणा के लोगों के कंधो से ऊपर देखने के लिए देखने वाले का कद भी तो हरियाणा के लोगों की तरह 6 फुट से ऊपर होना चाहिए ना। सो पहले अपना कद-वद बढ़ाओ फिर जो मजबूती आप कंधे से नीचे की देख रहे हो फिर कंधो से ऊपर की भी नजर आ जाएगी।

वैसे आप कन्धों से नीचे की मजबूती देखने के इतने माहिर कैसे हुए, कहीं गे-वे वाला तो कोई चक्कर नहीं? हो भी सकता है क्योंकि आपके माई-बाप संगठन में मर्द-मर्द को राखी बांधता है|

रेस्ट लॉजिक की बात बता दूँ, हमें महाराष्ट्र के मराठों की तरह बिहारी-पूर्वांचलियों को भाषावाद-क्षेत्रवाद और नश्लवाद के नाम पे हरयाणा में बसे गैर-हरयाणवी भाइयों को पीटना तो आता नहीं, अगर आप इसी को कंधे से ऊपर की मजबूती मानते हों तो?

मतलब आप अकेले अनोखे ऐसे मुखिया हो एक राज्य के जो अपनी जनता के लिए इतने शर्मशार कर देने वाले शब्द प्रयोग किया है| मतलब आज भी आप खुद को गैर-हरयाणवी ही मानते हो, वरना हरयाणवियों का इतना भद्दा मजाक तो नहीं बनाते|

लगता है अब हरयाणवियों को मराठियों से कंधे से ऊपर वाली अक्ल सीख ही लेनी चाहिए!

सही कहा आपने हममें वाकई अक्ल नहीं वरना हरयाणा ही पूरे देश में एक इकलौता ऐसा राज्य नहीं होता जहां का सीएम कोई गैर-हरयाणवी हो (अब तो आपको गैर-हरयाणवी ही कहूँगा, वरना अपने हर्याणवियों के लिए ऐसा बोलते हुए आपकी जीभ एक बार तो जरूर ठहरी होती)| महाराज कृपया करके हर्याणवियों की लोकतांत्रिकता की इतनी भी कम कीमत मत आंकिए कि आपको गैर-हरयाणवी होते हुए भी सीएम स्वीकार कर लिया तो कंधे से ऊपर कमजोर कहोगे|

हिम्मत हो तो जरा महाराष्ट्र जैसे राज्य में एक बिहारी (गैर-मराठी) को सीएम बनवा के दिखा दो, पता लग जायेगा कि आपके कन्धों से ऊपर कितनी ताकत है|

आप जैसे लोगों के लिए मेरी दादी जी कहा करती थी कि "अगला शरमान्दा भीतर बड़ गया बेशर्म जाने मेरे से डर गया!" यानी हम तो अपना-अपना कहने और समझने में मर लिए और आप हमारी इस दरियादिली को हमारी कन्धों से ऊपर की कमजोरी ठहरा गए| कोई ना 'नाई के मेरे बाल कोड्ड, बल्या जजमान आगे ही आ जावेंगे!'

Jai Yoddhey! - Phool Malik

हरयाणा पंजाबी स्वाभिमान संघ को मेरा खुला खत!

An open letter to ‘Haryana Punjabi Swabhiman Sangh’:

मैं आगे बढ़ने से पहले स्पष्ट लिख दूँ कि मैं बचपन से ही आप लोगों (हिन्दू अरोड़ा/खत्री समुदाय) को यदाकदा नादान व् अनभिज्ञ लोगों द्वारा 'रिफूजी' कह के सम्बोधित करने का विरोधी रहा हूँ और जहां-जहां मेरी पहुँच हुई मैंने ऐसे लोगों को ऐसा ना बोल आप लोगों को अपना भाई मानने की सदा वकालत की है| आपके समुदाय में मेरे बहुत अच्छे मित्र-बंधू भी है और सामाजिक सौहार्द के रिश्ते भी हैं|

परन्तु आप लोगों द्वारा कल से एक पत्र वायरल हो रहा है जिसमें लिखा है कि पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान द्वारा वर्तमान सीएम हरयाणा को पाकिस्तानी मूल का कहने से आपको बड़ी आपत्ति हुई है| और आपने उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दायर करने हेतु हरयाणा के तमाम जिला उपायुक्त दफ्तरों को पत्र लिखा है।

इससे पहले कि इससे और आगे बढूँ आपको इस पाकिस्तानी सम्बोधन बारे बचपन की कुछ यादें बता दूँ:

1) हरयाणा के हर दूसरे गाँव की भांति मेरे गाँव में भी 1947 के वक्त आपके समुदाय के कुछ लोग आ कर बसे थे| जिनके साथ मेरे परिवार का बड़ा सहयोग, सद्भाव और तन्मयता का रिश्ता था| परन्तु फिर भी मेरी दादी जी मुझे दुकान से कुछ लाने को कहती तो कहती कि वो पाकिस्तानियों वाली दूकान पे जाना वहाँ यह चीज मिल जाएगी|

2) आप सब तो यह जानते ही होंगे कि आप लोग 1947 से दुपहिया वाहनों पर हरयाणा के गाँव-नगरियों में कपडा-लत्ता बेचने जाते रहे हो| हमने बचपन से औरतों के जिक्रों में जब भी यह बात आती कि 'आएं बेबे यु किस्तें लिया' तो लेने वाली जवाब देती 'ए बेबे फलाना पाकिस्तानी दे गया था, तू कहवै तो तेरी खातर और मंगवा द्यूं!'

3) 'रिफूजी' शब्द का तो खैर मैं मेरी जिंदगी के शुरू दिन से ही विरोधी रहा हूँ, परन्तु स्कूलों-कालेजों में नादान बच्चे आज भी इसक प्रयोग कर लेते हैं|

मुझे नहीं पता आप लोगों को अपने पाकिस्तानी मूल का होने की पहचान को छुपाने की आज एकदम से कैसे और क्या जरूरत आन पड़ी|

खैर अब आता हूँ कल के आपके खत पर|

आज जब बात इस हद तक बढ़ गई कि एक जाट को सीएम साहब के जवाब में अपनी प्रतिक्रिया देनी पड़ी तब जा कर आप बोले? इससे पहले जब निम्नलिखित बयानबाजियों और कार्यवाहियों की डेवलपमेंट हो रही थी, तब आप क्यों नहीं बोले?

क्यों आपने इन निम्नलिखित हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों को इनके जाट व् खाप विरोधी बयानों और स्टेण्डों बारे सामाजिक अथवा कानूनी स्तरों पर टोका नहीं? क्यों इनको इनकी हरकतों पे जाट समाज से माफ़ी बारे नहीं कहा? क्यों नहीं इन लोगों को आपने कहा कि आप लोगों की हरकतें सामाजिक तानाबाना बिगाड़ रही हैं इसलिए आप लोग अपनी हरकतों, बयानों के लिए माफ़ी मांगे? आप लोगों को आज जब खुद पर पड़ी तो मानसिक उत्पीड़न नजर आ गया और जाट समाज के खिलाफ आपके समाज के लोग 2005 से तो आधिकारिक यहां तक कि कानूनी तौर पर भी जो उत्पीड़न करते आ रहे हैं वो नजर नहीं आया? मतलब आपका उत्पीड़न, उत्पीड़न और हमारा उत्पीड़न मजाक या चुटकी?

आप लोग इन लोगों पे भी असल तो ऐसे ही राजद्रोह के मुकदमों की सिफारिस करें अथवा इनसे जाट व् हरयाणवी समाज के सन्मुख माफ़ी मंगवाएं|

1) हरयाणा सीएम श्रीमान मनोहर लाल खट्टर ने अभी हाल ही में एक के बाद एक दो बयान दिए, एक में कहते हैं कि 'डंडे मार के हक छीनने वाले लोग' व् दूसरा अभी गोहाना में दिया कि "हरयाणवी सिर्फ कंधो के नीचे से मजबूत होते हैं उपर से नहीं!"

अगर आप लोग यह सोचते हो कि शब्दों की चालाकी की वजह से जनता उनके "डंडे मार के हक छीनने वाले लोग" बयान को नहीं समझेगी तो यह आपकी बहुत बड़ी गलत-फहमी है, क्योंकि सार्वजनिक बयान मौका-स्थिति और माहौल देख के समझे जाते हैं| और इस वक्त मौका है जाट आरक्षण का, स्थिति है जाटों को 'लठ तंत्र' वाले बताने की और माहौल है आरक्षण पे पुनर्विचार का| इसलिए नादाँ से नादाँ भी सीएम के इस वक्तव्य से वो किसपे निशाना साध के गए स्पष्ट पकड़ लेगा|

दूसरी बात शायद आप और सीएम साहब आजतक भी खुद को हरयाणवी नहीं मानते होंगे इसलिए आप लोगों को सीएम साहब के दूसरे बयान "हरयाणवी सिर्फ कंधो के नीचे से मजबूत होते हैं उपर से नहीं!" में खुद उसी स्टेट के लोगों का अपमान नहीं झलका जिनके कि सीएम साहब मुखिया हैं? क्या है या भूतकाल में हुआ हो भारत में ऐसा कोई दूसरा सीएम जो अपने ही राज्यों के लोगों का इतना भद्दा मजाक उड़ाए?

तो क्या आप कल जैसा एक और ऐसा ही खत हरयाणा के तमाम जिला-उपायुक्तों को लिखेंगे, कि खट्टर साहब के खिलाफ भी उन्हीं के प्रदेश की पहचान पर ऐसे कटाक्ष करने के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हो? अब कृपया यह दलील मत दीजियेगा कि सीएम साहब ने तो चुटकी लेते हुए हल्के अंदाज में कहा था| और अगर यही दलील है आपकी तो जब आप सीएम साहब के बयान को चुटकी में ले सकते हो तो फिर सांगवान साहब के बयान में क्या दिक्कत?

अब ऐसे में सांगवान साहब ने आपको 'पाकिस्तानी मूल' कहा तो लाजिमी सी बात है अपनी हरयाणवी पहचान पे वो भी सीएम जैसी पोस्ट पे बैठी सख्सियत की तरफ से ऐसा हमला कैसे सहन हो सकता था? मेरे ख्याल से आप जितने सेंसिटिव इंसानों को जब सांगवान साहब के बयान में मानसिक उत्पीड़न दिख गया तो सीएम साहब के बयान में भी दिख जाना चाहिए कि नहीं?

2) 2014 के चुनाओं के मौके पर पानीपत शहर में ट्रकों के कारोबार में जाटों द्वारा बढ़त बना लेने पर वहाँ के स्थानीय हिन्दू अरोड़ा/खत्री नेता श्रीमान सुरेन्द्र रेवड़ी कहते हैं कि जाटों ने कब्जा कर उनका कारोबार छीन लिया। और यह कहते हुए वह 1947 से लेकर आज तक जाट समाज ने उनके समाज को यहां बसने में जो सहयोग दिया उसको एक झटके में सिरे से ख़ारिज करते हैं। वैसे तो आजतक किसी जाट ने ऐसी बात कही नहीं, फिर भी अंदाजा लगाइये कि अगर एक जाट यह बात कह दे कि इन्होनें हमारे रोजगार से ले कारोबार तक बंटवा लिए तो इनकी क्या प्रतिक्रिया होगी? लेकिन हमने ऐसा कहना होता तो कब के मीडिया के सामने सार्वजनिक तौर पर कह चुके होते|

खैर, मुद्दे की बात यही है कि श्रीमान सुरेन्द्र रेवड़ी जी ब्यान में मानसिक उत्पीड़न क्यों नहीं दिखा? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?

3) रोहतक के वर्तमान एमएलए श्रीमान मनीष ग्रोवर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) की ऑफिसियल लेटर-पैड पर एमडीयू को लेटर जाता है कि यूनिवर्सिटी में जितने भी जाट अध्यापक अथवा कर्मचारी हैं उनके रिकॉर्ड चेक किये जाएँ। और पूछे जाने पर एमएलए साहब बड़ी गैर-जिम्मेदाराना ब्यान के साथ ना सिर्फ इससे खुद को अनजान बताते हैं वरन जो यह कृत्य करने वाला था उसकी छानबीन भी नहीं करवाते।

क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?

4) मई 2015 में जाट आरक्षण से आपको कोई लाभ-हानि ना होते हुए भी, आपका उससे कोई लेना-देना ना होते हुए भी आप लोग जाट आरक्षण के विरुद्ध आपके इसी मंच से धरना भी देते हैं और ज्ञापन भी? आपको विरोध करना था तो या तो सारे आरक्षण का करते, या आपको अपने लिए माँगना था तो सरकारों के आगे जा के अपनी मांग रखते, आपने यह जाट आरक्षण का ही विरोध क्यों किया?

क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे खुद आपके ही ऊपर राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?

5) "गुड्डू-रंगीला" फिल्म में "हुड्डा खाप" का मजाक उड़ाने पर जब जाट समाज कलेक्टर को इस फिल्म के डायरेक्टर श्रीमान सुभाष कपूर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) के खिलाफ शिकायत करने जाते हैं तो बजाय उनसे माफ़ी मंगवाने में सहयोग करने के आप लोगों ने इसको जाटों की तानाशाही बताया? मतलब आपके लोग हमारे समाज का ऐसे खुला मजाक उड़ावें और हम उसके खिलाफ आवाज भी उठावें तो तानाशाही?

क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?

6) सन 2005 में खाप सामाजिक संस्था के खिलाफ पंजाब और हरयाणा हाईकोर्ट में पीआईएल डालने वाले आपके ही समुदाय के पंचकुला से श्रीमान साहनी साहब हैं| यह शायद पूरे देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अपने आप में एक अनोखा मामला होगा ऐसा मामला होगा, जिसमें यह जनाब एक या दो-चार व्यक्ति नहीं अपितु लाखों-लाख का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था के खिलाफ ही जा खड़े हुए|

क्या आप लोगों ने टोका उनको कि किसी व्यक्ति-विशेष के खिलाफ बेशक शिकायत करो, परन्तु पूरी सामाजिक संस्था को कोर्ट में खड़ा करना सभ्यता नहीं? तब आपको नजर नहीं आया कि इससे जाटों और खापों का मानसिकत उत्पीड़न होगा?

क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?

आज सीएम साहब के बयान पे किसी हरयाणवी का पलटवार हुआ तो आप लोगों ने जितनी जल्दी से उनकी जन्मतिथि व् जन्मस्थल की डिटेल्स निकाली, क्या कभी इतनी ही तन्मयता से अपने बच्चों को हरयाणवी सिखाई है? हरयाणत क्या होती है बताई और समझाई है? हरयाणत का मान-सम्मान क्या होता है कभी बताया है? मेरी सोशल मीडिया चैट्स में आज भी मेरे आपके समुदाय से जो मित्र हैं वो मुझे "और हरयाणवी", "और तुम्हारे हरयाणा में ये हुआ वो हुआ" जैसे वर्ड प्रयोग करते हुए शब्द दर्ज हैं| कईयों को तो मैंने कहा भी कि भाई आप रेस/नश्ल से बेशक हरयाणवी ना हों, परन्तु जन्म से तो हरयाणवी हो तो इसी नाते अपने आपको हरयाणवी कह लिया करो? और अब जन्म लेने मात्र से भी कोई हरयाणवी हो सकता है यह आपके ही द्वारा सिद्ध भी कर दिया गया जब आप सीएम साहब को सिर्फ जन्म स्थल के आधार पर हरयाणवी साबित कर रहे हैं| जबकि वही सीएम साहब ऊपर पहले बिंदु में बताये तरीके से हरयाणवियों की खिल्ली उड़ा रहे हैं|

जाट समाज अगर इतना ही उददंड होता तो आप लोगों को 1947 के बाद दोबारा से 1984-86 के दौर में जब आप पंजाब से भगाए गए थे तो फिर से अपने यहां की जीटी रोड़ बेल्ट पे बिना किसी अवरोध के बसने देता क्या? और वो भी बावजूद यह पता होते हुए कि आप 1981 के जनगणना रिकॉर्डों में आप लोग पंजाब में खुद को हिंदी बताए थे और हरयाणा में पंजाबी?

ऐसे-ऐसे रिकॉर्डों और आपके स्टैंडों से तो सांगवान साहब ही क्या मैं खुद भी आपकी असली सोशल आइडेंटिटी बारे दुविधा में हूँ| परन्तु कभी भी इस पर टिप्पणी नहीं की| क्योंकि हम खाप विचारधारा की सोशल डेमोक्रेटिक सोच को पालने वाले समुदाय के लोग हैं| दूसरे समुदाय का मानसिक उत्पीड़न करके ना हमने कभी जीना सीखा और ना किसी के ऐसा करने का समर्थन किया| ना ही हमने कभी मराठों ने जैसे बिहार-पूर्वांचल तो कभी दक्षिण भारतियों को भाषावाद और क्षेत्रवाद के नाम पे महाराष्ट्र में ना सिर्फ उनका मानसिक उत्पीड़न किया वरन बाकायदा पीट-पीट के भगाया भी, ऐसे हमने हरयाणा में बसने वाले तमाम गैर-हरयाणवी समुदायों के साथ नहीं किया| हाँ व्यक्तिगत लेन-देन या झगड़े किसी के हुए हों तो वो समाज में सामान्य बात है परन्तु महाराष्ट्र जैसे अपवाद हमने कभी नहीं खड़े किये, जबकि हरयाणा (आपके मीडिया बांधों की भाषा में जाटलैंड) तो महाराष्ट्र से भी पुराना इतिहास संजोये हुए हैं विस्थापितों व् सरणार्थियों को अपने यहां बसाने और रोजगार देने का| और 1947 से तो आप भी इस बात के साक्षी हो कि हमने आप तो क्या कभी तीन दशक से यहां रोजगार करने आ रहे बिहारी-बंगाली-असामी भाईयों तक को इस भाषावाद, क्षेत्रवाद और नश्लवाद की आग में नहीं झुलसाया|

जबकि आप लोग ऐसा करने की (वो मूल हरयाणवी जैसे कि जाट के साथ) मंशा रखते हो, इसके बाकायदा मीडिया और कोर्टों तक में पुख्ता सबूत दर्ज हैं| हम सर छोटूराम की विचारधारा पर चलने और खाप की विचारधारा में पैदा हुए जींस हैं, हमें आप इतना व्यर्थ तंग ना करें|

अंत मैं आपसे यही प्रार्थना करूँगा कि अगर इससे भी जाट की महत्वता, सामाजिकता व् सौहार्द समझ नहीं आता तो आप लोग पहले ऊपर बताये मुद्दों पर अपने समाज के लोगों से माफ़ी मंगवाएं, और जाट समाज से आपको कैसे रिश्ते चाहियें यह स्पष्ट शब्दों में सामने रखें| यह राजनैतिक पार्टियों को इमोशनल ब्लैकमेल करने के हथकंडे त्यागें और सामाजिक पहलुओं पर समाजों के बीच बैठ के बात करें, इनको राजनैतिक रंग ना देवें|

Email sent to:
1) hemant.bakshi44@gmail.com (State President, Haryana Punjabi Sawbhiman Sangh)
2) mahen.french@gmail.com (Chief-secretary, Haryana Punjabi Sawbhiman Sangh)

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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Tuesday, 22 September 2015

समस्या किसान के बोलने में नहीं है, अपितु अपने उन अधिकारों को ना लेने में है जो किसान ने उसको 'बोलना ले सीख' कहने वालों के पास छोड़े हुए हैं!


एक किसान को किसानी की भाषा अच्छे से आती है| जाहिर सी बात है जो भाषा देश में 'हरित-क्रांति' और 'श्वेत-क्रांति' खड़ी कर दे वो किसानी भाषा का ही कमाल कहा जायेगा| फिर भी इंग्लिश और हिंदी में कारोबारी भाषा भी हर किसान को सीखनी चाहिए|

परन्तु इसके साथ ही किसान को बोलना सीखने की कहने वालों को भी, अपना पेट भरने के लिए खेती करना और देश की सीमा पे खड़ा हो गोली खाना भी सीख लेना चाहिए| मुझे विश्वास है कि जिस दिन यह लोग खुद खेत में खट के पेट भरना और सीमा पे गोली खाना सीख गए, उस दिन यह बोली के लिए सुझाव देना, मजाकिया समझेंगे|

इसके अलावा किसान को अपनी फसलों का भाव खुद तय करने का अधिकार अपने हाथ में ले लेना चाहिए| शर्तिया कहता हूँ कि जिस दिन किसान ने यह अधिकार अपने हाथ में ले लिया उस दिन यह 'बोलना ले सीख कहने' वालों की तादाद में साठ प्रतिशत की कमी स्वत: ही आ जाएगी|

दूसरा दान के नाम पे धंधा करने वालों को दान देते वक़्त उससे दान का हिसाब-किताब लेने की आदत भी डालनी होगी| चाहे कानून बनवा के ही डालनी पड़े| अगर यह भी डाल ली तो रहे-सहे चालीस प्रतिशत की भी किसान से 'बोलना ले सीख' की शिकायत दूर हो जाएगी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

क्यों भाई बाकी के हरयाणवियों क्या हरयाणा आपका नहीं?


लगता है कि हरयाणा सीएम द्वारा,"हरयाणवी सिर्फ कंधो के नीचे से मजबूत होते हैं उपर से नहीं!" कहने को भी हरयाणवी लोग सिर्फ जाट का मजाक समझ रहे होंगे| वो शायद खाप की तरह अब हरयाणवी शब्द को भी सिर्फ जाटों के लिए छोड़ देना चाहते हैं| वरना अभी तक कोई हरयाणवी गुर्जर, अहीर, राजपूत, रोड़, ब्राह्मण, बनिया, दलित, ओबीसी कोई हरयाणवी तो आगे आया होता सीएम साहब के इस बयान की निंदा करने|

सीएम साहब की मेंटलिटी यह भी शो करती है कि वह खुद को प्रदेश का नागरिक नहीं मानते, अथवा खुद को भी कंधे से ऊपर कमजोर मानते हैं| कमाल है सीएम साहब हरयाणवी जनता के लिए आपके लगाव और स्नेह की भी| 

हवा सिंह सांगवान सर आपका कोटि-कोटि धन्यवाद इस बयान और सीएम के 'डंडे के जोर से काम करवाने' वाले बयान पर आपकी हरयाणत जागी और दो टूक सीएम को झाड़ा| सोशल मीडिया पर भी सिवाय जाटों के कोई अन्य हरयाणवी सीएम के बयान के विरुद्ध नहीं बोलता दिखा? क्यों भाई बाकी के हरयाणवियों क्या हरयाणा आपका नहीं? या कबूतर की भांति बिल्ली से आँख मूँद के यह बहम पाल गए हो कि यह "हरयाणवी सिर्फ कंधो के नीचे से मजबूत होते हैं उपर से नहीं!" वाला ब्यान भी सिर्फ जाटों के लिए था?

यार जाटों से इतनी भी मत नफरत करो कि यह गैर-हरयाणवी लोग ऐसे खुले में आपकी बैंड बजा रहे हैं और इसमें आपको कुछ नजर नहीं आ रहा! वाह रे मेरे हरयाणा, क्या नसीब है तेरा! कैसे मूल हरयाणवी हैं तेरे!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


 

मैं आज आजीवन प्रण लेता हूँ कि, "मैं किसी 'हिन्दू अरोड़ा/खत्री' की दुकान से सूई तक भी नहीं खरीदूंगा!"


फिर चाहे मुझे दस दुकान छोड़ के आगे से सामान लाना पड़े, चाहे मुझे एक शहर छोड़ के दूसरे शहर से लाना पड़े, परन्तु इनकी हर प्रकार की दुकानों पे कोई भी सामान लेने नहीं चढूंगा!

विद्यार्थी जीवन में कभी "हिन्दू अरोड़ा/खत्री" मित्र को सहपाठियों द्वारा 'रिफूजी' कहने का ना सिर्फ विरोध करने वाला अपितु उनको यह समझाने वाला कि यह हमारे भाई हैं, वही फूल कुमार मलिक यानि मैं आज ऊपरलिखित स्पथ को आजीवन धारण करता हूँ।

भारतीय सविंधान के विधेय, "मेरी स्वेच्छा से किसी से रिश्ता रखना, लेन-देन रखना या ना रखना" के मेरे सवैंधानिक अधिकार को प्रयोग में लाते हुए मैंने यह सवैंधानिक स्पथ ली है, और यह पूर्णत: कानूनी है|
इस स्पथ की वजहें:

1) महाराष्ट्र जैसे राज्य में कोई महाराष्ट्री एक बिहारी को सीएम स्वीकारने की कल्पना तक भी नहीं कर सकता, और वास्तव में बनाने की तो बात बहुत दूर की है। जबकि हम हरयाणवियों द्वारा एक गैर-हरयाणवी को बिना किसी अवरोध के सीएम स्वीकार करने के बावजूद भी, वर्तमान सीएम हरयाणा श्रीमान मनोहरलाल खट्टर, हरयाणा की सबसे बड़ी जाति जाट को "डंडे के जोर पे" चलने वाली बताते हैं। जबकि खुद जीवन भर आरएसएस के कैम्पों में डंडे घुमाते और लहराते रहे हैं।

2) पानीपत शहर में ट्रकों के कारोबार में जाटों द्वारा बढ़त बना लेने पर वहाँ के स्थानीय हिन्दू अरोड़ा/खत्री नेता श्रीमान सुरेन्द्र रेवड़ी कहते हैं कि जाटों ने उनका कारोबार छीन लिया। और यह कहते हुए वह 1947 से लेकर आज तक जाट समाज ने उनके समाज को यहां बसने में जो सहयोग दिया उसको एक झटके में सिरे से ख़ारिज करते हैं। वैसे तो आजतक किसी जाट ने ऐसी बात कही नहीं, फिर भी अंदाजा लगाइये कि अगर एक जाट यह बात कह दे कि इन्होनें हमारे रोजगार से ले कारोबार तक बंटवा लिए तो इनकी क्या प्रतिक्रिया होगी?

3) रोहतक के वर्तमान एमएलए श्रीमान मनीष ग्रोवर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) की ऑफिसियल लेटर-पैड पर एमडीयू को लेटर जाता है कि यूनिवर्सिटी में जितने भी जाट अध्यापक अथवा कर्मचारी हैं उनके रिकॉर्ड चेक किये जाएँ। और पूछे जाने पर एमएलए साहब बड़ी गैर-जिम्मेदाराना ब्यान के साथ ना सिर्फ इससे खुद को अनजान बताते हैं वरन जो यह कृत्य करने वाला था उसकी छानबीन भी नहीं करवाते।

4) "गुड्डू-रंगीला" फिल्म में "हुड्डा खाप" का मजाक उड़ाने पर जब जाट समाज कलेक्टर को इस फिल्म के डायरेक्टर श्रीमान सुभाष कपूर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) के खिलाफ शिकायत करने जाते हैं तो बजाय उससे माफ़ी मंगवाने में सहयोग करने के इसको जाटों की तानाशाही बताया जाता है।

5) सन 2005 में खाप सामाजिक संस्था के खिलाफ पंजाब और हरयाणा हाईकोर्ट में पीआईएल डालने वाला पंचकुला का श्रीमान साहनी एक "हिन्दू अरोड़ा/खत्री" था। जो कि शायद पूरे देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अपने आप में इकलौता ऐसा मामला होगा।

6) इनकी तीन-तीन पीढ़ियां बीतने के बाद भी जब भी इनसे कोई पूछता है कि तुम्हारा मूल क्या है तो यह हरयाणवी ना बताकर पाकिस्तानी-पंजाबी बताते हैं।

7) हरयाणवियों और जाटों ने इनके पुरखों को अपने यहां बसाने हेतु जो अमिट सहयोग और दरियादिली दिखाई उसको याद रखने की बजाये यह लोग सिर्फ उन अपवादों को सीने से लगाए बैठे हैं जो किन्हीं स्थानीय असामाजिक तत्वों के चलते इनको मिले होंगे।

8) आप लोगों के लिए संस्कृति और सभ्यता एक घिनौना मजाक है इसीलिए आप जब पंजाब में होते हैं तो अपनी मातृभाषा हिंदी बताते हैं और जब हरयाणा में होते हैं तो पंजाबी बताते हैं। इसकी वजह से आपको सांस्कृतिक व् सभ्यता के स्तर पर समुदाय में सामाजिक भाईचारा व् सौहार्द की समझ नहीं है।
ठीक है हिन्दू अरोड़ा/खत्री भाईयो आपको जाटों से इतनी ही घृणा चलानी है तो लो फिर आप जी भर के चलाओ। परन्तु आज यह जाटनी का जाया भी आजीवन स्पथ लेता है कि आपकी दुकानों से एक सुई तक भी खरीदने नहीं चढूँगा।

विशेष:
1) जाटों और हरयाणवियों से अनुरोध है कि इनकी जाति में "पंजाबी" शब्द प्रयोग ना करें अपितु जो यह हैं वो ही प्रयोग करें और वह है "हिन्दू अरोड़ा/खत्री"। पंजाबी शब्द के प्रयोग से हम अपने ही सिख भाइयों से दूर हो जाते हैं। इसलिए यह जो हैं उसको सही शब्द "हिन्दू अरोड़ा/खत्री" से ही इनको सम्बोधन करें।

2) मेरा "हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों" से कोई विरोध नहीं है, विद्यार्थी ज़माने में इनको 'रिफूजी' कहने वाले हर किसी का विरोध करने वाला व् उनको आगे से इनको 'रिफूजी' ना कहने की वकालत करने वाला यह "फूल मलिक" यानी मेरा अब इनकी सामाजिकता और व्यवहार को देखकर इनसे मन भर चुका है इसलिए मैं आज से इस स्पथ को आजीवन अपने जीवन में लागू करता हूँ।

3) भारतीय सविंधान के विधेय, "मेरी स्वेच्छा से किसी से रिश्ता रखना, लेन-देन रखना या ना रखना" के मेरे सवैंधानिक अधिकार को प्रयोग में लाते हुए मैंने यह सवैंधानिक स्पथ ली है, इसलिए यह पूर्णत: कानूनी है| इसको अपनाना, मानना या इसके प्रभाव में आकर ऐसा ही फैसला लेने के लिए आप अपने निजी अधिकार क्षेत्र कानून के तहत स्वतंत्र हैं। जो भी पाठक अपने विवेक से मेरे इस विचार व् प्रण का समर्थन करता है मैं उसका धन्यवादी होऊंगा।

4) क्योंकि खत्री जाटों में भी गोत (गोत्र) होता है, इसलिए यहां मेरा मंतव्य जाटों वाले गोत से नहीं अपितु 'हिन्दू अरोड़ा/खत्री' जाति से है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 18 September 2015

2013 में बासमती चावल की खरीद INR 5000, 2014 बीजेपी govt. आते ही INR 3200-3300, 2015 में INR 1900-1200!

चल क्या रहा है राष्ट्रवादी महानुभावो? किसान को बिलकुल मिटाने की ठानी हुई है क्या? मतलब इसी स्पीड से दाम घटते रहे तो 2019 आते-आते तो कहीं ऐसा ना हो जाए कि किसान को धान बोने के ऐवज में कीमत मिलने की बजाये देनी और पड़े?

माना जाट किसान ने कम वोट दिए होंगे, परन्तु सैनी, गुज्जर, यादव, राजपूत, ब्राह्मण यहां तक कि हिन्दू अरोड़े-खत्री किसानों ने तो झोली भर-भर वोट दिए थे, इनका ही ख्याल रखते हुए रेट्स पे कंट्रोल करवाओ कुछ?
कहाँ हैं राजकुमार सैनी, नयाब सिंह सैनी, कृष्णपाल गुज्जर, कंवर सिंह गुज्जर, राव इंद्रजीत सिंह सबके सब (बीजेपी में बैठे जाट नेताओं से तो अब उम्मीद भी टूट चुकी है)? खुद सीएम भी तो अपने-आपको किसान का बेटा बोलते हैं ना? राजकुमार सैनी जी इस मुद्दे पर मोर्चा लो तो जानूं!

कहीं यह सोच के तो चुप नहीं हो कि नहीं दाम बढ़वा के दिए तो जाट किसान को भी देने होंगे? मतलब किसानी में भी जाति का झूठा अहम घुसाये बैठे हैं| बस जाट किसान को फायदा ना हो फिर चाहे इस चक्कर में सैनी-गुर्जर-राजपूत-ब्राह्मण-अहीर किसान के भी घर कंगाल क्यों ना हो जावें| वाह रे किसान के पूत और किसान के नेता होने का दम भरने वालो|

कुछ भी कह लो किसान नेता बनना इतना आसान खेल भी नहीं! चाहे वो सर छोटूराम हों, चाहे चौधरी चरण सिंह, चाहे बाबा टिकैत, चाहे ताऊ देवीलाल, चाहे ओ. पी. चौटाला और चाहे पिछली सरकार में 5000 रूपये प्रति किवंटल से जीरी का भाव देने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा (मझे माफ़ करना परन्तु अगर इनकी श्रेणी का कोई और उत्तर भारतीय किसान नेता छूट गया हो तो नाम अवश्य बतावें)| इन्होनें कभी किसानों के भाव बढ़ाते वक्त यह संकुचित सोच नहीं रखी होगी कि किसान में भी जाति होती हैं और जाति देख के चलूँ|

मारेंगे किसान और किसानी को बिन आई, यह संकुचित सोच के नए नेता!

जय योद्धेय! - फूल मलिक!

Thursday, 17 September 2015

मक्का क्रेन हादसा बताता है कि एक जिम्मेदार धर्म क्या होता है!

एक तरफ उत्तराखंड हादसा, मुज़फ्फरनगर दंगे, अभी हाल ही में हुआ झाबुआ ब्लास्ट और दूसरी तरफ मक्का मस्जिद का क्रेन हादसा, एक धर्म की अपने अनुयायिओं के प्रति जिम्मेदारी और प्रेम को सही से देखने और समझने का आईना हैं| यह समझने के लिए काफी हैं कि जहां हिन्दू धर्म कोई धर्म नहीं अपितु सिर्फ बिज़नेस है वहीँ मुस्लिम धर्म बताता है कि धर्म क्या होता है, धर्म वालों की जिम्मेदारी क्या होती है|

दो साल पहले जब उत्तराखंड में बेपनाह प्राकृतिक तबाही आई थी और हजारों श्रद्धालु हिन्दू भगवानों के दर से जाते-लौटते नदियों-नालों में बह गए थे तो बड़ी मुश्किल से किसी हिन्दू मंदिर, संस्था, मठ या सभा यहां तक कि किसी भी प्रकार की हिन्दू सेना और दल की जेब से फर्स्ट-ऐड तक के लिए कोई फूटी कौड़ी भी उनके लिए निकली हो, याद करने से भी कोई स्मरण नहीं में नहीं आता, फिर उनके पुनर्वास और नुकसान की क्षतिपूर्ति इनमें से किसी ने की हो वो तो सपनों की बात है|

दो साल पहले ही हुए मुज़फरनगर दंगों में शायद ही कोई ऐसा हिन्दू परिवार मिलेगा जिसको इन ऊपरलिखित संस्थाओं और इनके लोगों से कोई मदद पहुंची हो, यहां तक कि सैंकड़ों युवक अभी तक हिन्दू धर्म के नाम पर जेलों में सड़ रहे हैं परन्तु अभी तक किसी को ना तो कोई कानूनी मदद ना रियायत और ना ही कोई आर्थिक मदद|

और अभी पिछले दिनों ही झाबुआ में हुए बारूद ब्लास्ट में मरे पच्चासी के करीब लोगों को संभालने जो इनमें से कोई पहुंचा हो| साफ़ संकेत है कि इन लोगों के लिए धर्म और इंसानियत नाम की कोई चीज है ही नहीं, फिर उसकी जिम्मेदारी लेना, उठाना और वहन करना तो भूल ही जाओ| बस दान के नाम पे जनता को लूटा, अपना घर बना और तू कौन और मैं कौन|

वहीँ झाबुआ वाले ब्लास्ट के अड़गड़े ही मक्का मस्जिद में क्रेन हादसे में सौ के करीब लोग मरे तो वहाँ के सऊदी किंग ने मृतक व् अपंग हुए के परिवार को 1 मिलियन रियाल यानी करीब पौने दो करोड़ रुपया, घायल को आधा मिलियन रियाल यानी करीब नब्बे लाख रुपया और हर एक के परिवार से दो लोगों को हज की मुफ्त यात्रा|
इसको कहते हैं धर्म और धर्म के बन्दों की हिफाजत करना, और उनकी जिम्मेदारी समझना व् उठाना|

विशेष: कृपया आतंकवाद का रोना रोने वाले और आईएसआईएस का नाम ले के अपने फफोलों को सेंकने वाले इस पोस्ट से दूर रहें, क्योंकि आजकल हवाओं में बंदूकें लहराने, बारूद के गोदाम भरने और मासूम वयोवृद्ध लेखकों द्वारा तुम्हें प्रतिकूल बोलने पर तालिबानी स्टाइल में उनकी हत्या करने में तुम्हारे वाले भी किसी से पीछे नहीं हैं|

जय योद्धेय! - फूल कुमार!

हरयाणवियों को जरूरत है तथाकथित राष्ट्रवादियों व् प्रवासियों की गतिविधियों को सतर्कता व् गौर से देखते और समझते रहने मात्र की!

समय था 1761 में पानीपत के जंगे-मैदान में अहमदशाह अब्दाली से मादरे-वतन को बचाने हेतु युद्ध करने का| ग्वालियर में नागपुरी विचारधारी ब्राह्मण पेशवा सदाशिवराव भाऊ, सहयोगियों व् लोहागढ़ी जाट महाराजा सूरजमल के बीच गहन मंत्रणा चल रही थी| महाराजा सूरजमल अपनी राय रखते हुए कहते हैं कि अगर अहमदशाह अब्दाली को हराना है तो हम सबको एक साथ मिलके एक सेना के रूप में चलना होगा| इस गहन गंभीर घड़ी में भी महाराजा सूरजमल की दूरदर्शिता व् दार्शनिकता को गंभीरता से लेने की बजाय लोहागढ़ी को अक्षम होने का खोल चढ़ाते हुए दम्भ और अतिविश्वास में रमित ब्राह्मण पेशवा ने ताना मारा कि, "दोशालों पाट्यो भलो, साबुत भलो ना टाट, राजा भयो तो का भयो, रह्यो जाट गो जाट!"। और उस पारखी सोच जिसके दम पर कि महाराजा सूरजमल ने दुश्मन की ताकत को जानते और परखते हुए यह सलाह दी थी, उसको व् "जाट-ताकत" के महत्व को दरकिनार कर हेकड़ी में चूर ब्राह्मण पेशवा पानीपत जा चढ़े और साथ ही सारा क्षत्रिय मराठा समाज अब्दाली के आगे जा खड़ा किया|

पानीपत में इनकी ना सिर्फ हार हुई अपितु महाराजा सूरजमल ने इनकी "फर्स्ट-ऐड" करके वापिस नागपुर और उसके मराठवाड़ा में धुर घर तक पहुँचाने हेतु, बाकायदा जाट-सेना साथ भेजी|

आज फिर उसी नागपुरी विचारधारा के थोथे घमंड और मद में चूर कुछ ब्राह्मण पेशवा तथाकथित राष्ट्रवादिता का चोला ओढ़ हरयाणा कहो या खापलैंड कहो, में पैर पसारने को आतुर हैं| पता नहीं इनको अपनी प्रकाष्ठा व् दम्भ को मापने हेतु जाटलैंड ही क्यों दिखती है, शायद विश्व के सूरमाओं की धरती है ना, इसलिए जाटलैंड को जीतना ही इनके लिए स्वर्ग की अमरगति पाने बराबर होता होगा| और वो भी उसी रटी-रटाई लाइन पे चलते हुए ही जिसपे चलते हुए कि सदाशिवराव भाऊ ने "जाट-ताकत" को नकारा था| यह लोग भूल गए हैं कि एक बार नागपुर के यही लोग 1761 में भी चढ़ आये थे और मुंह की खा के गए थे| उस वक्त तो इन्होनें सीधे-सीधे ही जाटों का साथ नहीं लिया था अब थोड़े संशय में हैं| इसलिए जो जाट आसानी से अंधभक्त बन जाते हैं उनको साथ जोड़े जा रहे हैं| परन्तु मुज़फ्फरनगर दंगे के बाद से उनमें से भी 80% जाट इनसे छिटंक के वापिस अपनी जाटधारा के साथ जुड़ चुके हैं, जिसकी वजह से इनके लिए बड़ी उहापोह की स्थिति बनी हुई है|

अत: हरयाणवियों और जाटों से बस इतना ही अनुरोध है कि इन भांप छोड़ने वाले बारिश के बुलबुलों को इनका ठिकाना पकड़ने दो| जब इनका लबो-लवाब ठंडा हो जायेगा तो उस वक्त के लिए महाराजा सूरजमल की भांति इनकी 'फर्स्ट-ऐड' कर वापिस नागपुर छोड़ने हेतु तैयारी करते रहो| और इनके साथ ही कुछ पूर्वोत्तर और 47 की सीमा पार से आये हुए भी विदा करने होंगे, इसलिए साथ ही उसकी भी तैयारी करते रहना होगा|

क्योंकि छोटे से बच्चे को जब कोई चीज न मिलने पर जैसे वो "चुत्तड़ पटक-पटक रोने लगता है", वैसे ही यह चाहे जितने चुत्तड़ पटक लेवें, हरयाणा और खापलैंड पे चाहें जितने जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े सजा लेवें, एक दिन जावेंगे वैसे ही जैसे 1761 वाले गए थे| ना हमें हथियार उठाने की जरूरत और ना ही इनको मुंबई वाले मुम्बईकरों की तरह बिहारी-बंगालियों के स्टाइल में पीटने की जरूरत|

बस जब यह लोग हरयाणा में जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े बनाने से थक जावें और जिनको यह लोग नॉन-जाट के नाम पर जाट के खिलाफ भिड़ा रहे हैं वो इनकी इन चालों को ना समझ जावें, तब तक एक स्टेज पर किसी नचनियां की भाँती स्वांग दिखाने वाली की तरह इनके स्वांग देखते रहें| और जब नॉन-जाट इनके पैंतरे भांप जावें तो समझ लेना कि अब इनकी विदाई का समय हो गया| वही महाराजा सूरजमल वाली 'फर्स्ट-ऐड' विदाई!

जय योद्धेय! - फूल मलिक

व्यापार-शिक्षा-कंस्यूमर प्रोडक्ट्स-कम्युनिकेशन सब ग्लोबल चाहिए, तो फिर सोशल ज्यूरी ग्लोबल क्यों नहीं हो?

1) अमेरिका में कोई भी अपराध होता है तो उसके लिए अमेरिकी अदालतों द्वारा 'हरयाणवी खाप पंचायतों' की तर्ज पर 'सोशल ज्यूरी' बुलाई जाती है, जिसमें मामले से संबंधित स्थानीय क्षेत्र के समाज व् संस्कृतिविद पक्षपात-द्वेष से रहित ग्यारह सदस्य बुलाये होते हैं। पीड़ित और अपराधी दोनों पक्षों के वकील व् उन पर बैठा जज इस ग्यारह सदस्यीय 'सोशल ज्यूरी' से अमेरिकी न्याय व् दंड सहिंता के मद्देनजर न्याय करवाता है और अंत में 'सोशल ज्यूरी' जो फैसला सुनाती है उसको दोनों पक्षों को पढ़कर सुनाता है, और उस फैसले की अनुपालना सुनिश्चित करता है। जी हाँ, बस इतना ही रोल होता है अमेरिका में जज और अदालतों का, यानी 'सोशल ज्यूरी' का फैसला सुनाना ना कि भारत की तरह फैसला करना भी और सुनाना भी।

2) कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, इंग्लैंड हर जगह इसी 'सोशल ज्यूरी' सिस्टम के तहत न्याय होता है, कानून की पालना होती है।

तो भारत और इन विकसित देशों (जिनकी कि व्यापार-शिक्षा-कंस्यूमर प्रोडक्ट्स-कम्युनिकेशन आदि-आदि को हर भारतीय धारण करके चलना आधुनिकता और विकास का मापदंड मान ना सिर्फ उसपे चलता है बल्कि उसका आजीवन गुणगान भी करता है) की न्याय व्यवस्था में 'सोशल ज्यूरी' कहाँ तक है? बाकी भारत में तो कहीं भी नहीं, परन्तु खापलैंड पर खापों (चिठ्ठी फाड़ परम्परा के तहत जो खाप-पंचायतें बुलाई जाती हैं सिर्फ वो अपनी मन-मर्जी या निजी निहित मकसदों के लिए इकठ्ठा हुई भीड़ नहीं) के रूप में खापलैंड के लगभग हर गाँव-गली में मौजूद हैं, परन्तु सवैंधानिक तौर पर उस तरह मान्यता प्राप्त नहीं जैसे ऊपर गिनाये एक-से-एक उच्च कोटि के विकसित देशों में हैं।

तो खापलैंड को न्याय और अपराध-निर्धारण व् निवारण के मामले में तो बस इतना भर पीछे है कि इनको कानून से जोड़ा जावे और विकसित देशों वाले तरीके से इनसे न्याय करवाया जावे। हर निष्पक्ष व् बेदाग पंचायती को "सोशल जज" व् इनकी बॉडी को "सोशल ज्यूरी" का दर्जा मिले।

मुझे अहसास है कि मेरी यह बात सुनकर ना सिर्फ एंटी-खाप मीडिया, अपितु एंटी-खाप विचारधारा के साथ-साथ इनके बारे ग़लतफ़हमी रखने वाले लोगों के हलक सूख जाने हैं। परन्तु यही सत्य है और यही वास्तविक सोशल ज्यूरी है। अब वक्त आ गया है कि खाप-पंचायतें इन विकसित देशों की तर्ज पर अपने लिए 'सोशल ज्यूरी' के स्टेटस की मांग को जोरदार तरीके से उठायें|

और जो खाप-पंचायतों वाले यह पठा दिए गए हैं अथवा मान बैठे हैं कि खापें कभी भी किसी भी वैधानिक तंत्र का अंग ना रह कर सम्पूर्णतया सामाजिक रही हैं तो वो महानुभाव या तो बड़े गर्व से खापों को वैधानिक दर्जा दिए जाने बारे महाराजा हर्षवर्धन बैंस जी को बारम्बार धन्यवादी लहजे से गर्वान्वित होना छोड़ दें अन्यथा इस तथ्य को समझें कि आप वैधानिक व् सामाजिक दोनों होते आये हैं। ध्यान रखें कि जिन विकसित देशों में कहीं उन्नीसवीं तो कहीं बीसवीं सदी में 'सोशल ज्यूरी' कांसेप्ट आया वो आप लोग 643 ईस्वी में महाराजा हर्षवर्धन के दौर में देख भी चुके हो और उससे आगे भी ग़जनी-गौरी-तैमूर-बाबर-रजिया-लोधी-अकबर-औरंगजेब-बहादुरशाह-अंग्रेजों के जमानों में इसका लोहा मनवा चुके हो। आपको स्मृत रहना चाहिए कि महाराजा हर्षवधन के राजवंश ने राजा दाहिर जैसों के हाथों जिस प्रताड़ना की कीमत चुकाई थी, उसमें उन द्वारा खापों को वैधानिक दर्जा देना भी एक वजह थी। परन्तु आगे चलकर राजा दाहिर की मति वालों की वजह से देश ने सदियों की गुलामी की भी सजा भुगती थी। और अब अगर वह फिर से नहीं भुगतवानी तो वक्त आ गया है कि इस ग्लोबलाइजेशन के जमनानी में भारतीय 'सोशल ज्यूरी' का भी ग्लोबलाइजेशन हो।

और इसमें मीडिया में बैठे उन लक्क्ड़भग्गों के कान भी खींचने होंगे जो उनके ही देश में "सोशल ज्यूरी" के प्राचीनतम रूप व् स्वरूप को ग्लोबल पहचान दिलवाने की बजाये, उसमें आवश्यक सुधार करवा उसको लागू करवाने की बजाये, उसका गला घोंटने हेतु जब देखो सर्वत्र कर्णभेदी क्रन्दनों से अपने गलों की बैंड बजाते पाये जाते हैं।

इसलिए अब उन लोगों को यह समझाने का अभियान शुरू किया जाना चाहिए कि बेशक प्रारूप जो हो, परन्तु अब विश्व की इस प्राचीनतम सोशल ज्यूरी व्यवस्था को उन्हीं देशों की तर्ज पर ग्लोबल करना होगा, जिनकी तर्ज पर व्यापार-शिक्षा-कंस्यूमर प्रोडक्ट्स-कम्युनिकेशन तक के ग्लोबलाइजेशन का इसको भारत में उतारने वाले भारतीय ही दम भरते नहीं थकते।

जय योद्धेय! - फूल मलिक

ठेठ हरयाणत और बेबाकपने का गला घोंटने की साजिश थी हरयाणा पंचायत चुनाव में न्यूनमत शिक्षा की शर्त लगाना!

हरयाणा के पंचायती राज चुनावों में विभिन्न वर्गों के उम्मीदवारों के लिए दसवीं व् आठवीं पास होने की शर्त ना सिर्फ पूर्णत: गैर-सवैंधानिक थी (आज सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया है) वरन यह जिस हरयाणवी गट यानी ठेठ हरयाणत और बेबाकपने के लिए हरयाणा जाना जाता है उसको तोड़ने और कमजोर करने हेतु बीजेपी और आरएसएस की सोची-समझी कुटिल षड्यंत्री साजिश का भाग थी|

मैं पहले भी इस विषय पर एक आर्टिकल में यह इंगित कर चुका हूँ कि जो सरकारी व्यवस्था जब तक उसके नागरिकों की शिक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती वो किसी को शैक्षणिक योग्यता के आधार पर चुनाव लड़ने से ख़ारिज कैसे कर सकती है? आम जनता से वोटिंग के जरिये राय ले के निर्णय लेने जैसे मुद्दे पर सरकार अकेले निर्णय कैसे ले सकती है?

परन्तु अब इससे भी बड़े जो पत्ते इसके खुल के सामने आ रहे हैं वो बता रहे हैं कि यह सिर्फ इतना मात्र नहीं था अपितु आरएसएस और बीजेपी की सोची-समझी घिनौनी चाल के तहत ठेठ हरयाणत (जिसको कि बचाने और कायम रखने हेतु सरकार चुनी गई है) का गला घोंटने का कुचक्र था, था क्या अभी भी कुचक्र मंडरा रहा है, सिर्फ कोर्ट का स्टे लगा है| कुचक्र कैसे, वो ऐसे....

सन 2002 में मेरे गाँव में मेरे सगे चचेरे दादा मेरी नगरी (हिंदी में गाँव) के सरपंच थे| कभी गुजरे जमानों में हमारे ही गाँव का एक डिफाल्टर करीब डेड दशक बाद भगमा बाणा धारे, हाथ में कमंडल और चिमटा लिए मेरे गाँव में मंदिर खोलने की मंशा से आया| और सरपंच दादा के आगे गाँव में इस कार्य हेतु मदद का आह्वान किया| तो दादा ने उसको धमकाते हुए कहा कि अपनी खैर चाहते हो तो उल्टे पाँव लौट जाओ| इसी गाँव की पैदाइश होकर अपने गाँव का इतिहास नहीं जानते, परम्परा नहीं जानते? यहां तो अस्थल बोहर के मठाधीश को तीन दिन तक एक पैर पे खड़ा रहने के बाद भी बिना भिक्षा के नगरी को 'छूटा हुआ सांड' कहके लौटना पड़ा था और तुम यहां इनके प्रदूषण को फैलाने आये हो? क्या यह भी भूल गए कि यह आर्य-समाजियों का धाम है और यहां फंड-पाखंड की सार्वजनिक स्वीकार्यता अस्वीकार्य है? यहां किसी मोड्डे-बाबे को रोटी-पानी तो मिल सकता है परन्तु उसकी अय्याशियों का अड्डा नहीं खुल सकता, कोई और ठोर-ठिकाना ढूंढों और सुबह होने से पहले गाँव छोड़ दो, वरना इस गाँव की रीत तुम जानते ही हो| और वो रीत थी कि नगरी में जो लंग्वाड़ा मोड्डा-बाबा-साधु रातभर रुका तो वो सुबह होते-होते अच्छी तस्सली से अपनी चमड़ी उधड़वा के गया|

और यही या इसी तरह की कहानियां और भी बहुतेरे हरयाणवी गाँवों-नगरियों की है|

और क्योंकि बीजेपी और आरएसएस का मिशन ही यही है कि अब उसको हरयाणा के हर ठोर-ठिकाने पे यह ढोंग-पाखंड-आडंबर के अड्डे खड़े करने हैं और इनके इस मिशन में सबसे बड़ा रोड़ा है हरयाणा के उन्मुक्त व् लोकतान्त्रिक सोच के बुजुर्ग, जिनमें कि काले अक्षरी ज्ञान में अधिकतर या तो अनपढ़ हैं या फिर मुश्किल से मिडल पास, लेकिन मंडी-फंडी की चालों को समझने और उनकी काट रखने के सारे के सारे माहिर| और ऐसे में अगर यह लोग गाँवों-नगरियों के पंच-सरपंच रहेंगे तो मोड्डे अपनी मनमानी नहीं कर सकेंगे| इसलिए इनको एक मुश्त बिना शोर-गुल रास्ते से हटाने का शस्त्र था (या कहो कि अभी बना हुआ है) यह शैक्षणिक योग्यता का क्लॉज़|

इससे दूसरा फायदा यह होता कि हरयाणवी बुजुर्ग व् मैच्योर पीढ़ी की बजाये नवजवान पीढ़ी को इनके लिए बरगलाना काफी आसान रहता है और अपनी मंशाएं पूरी करने में सहूलियत होती| देख लो हरयाणा के युवाओ आपके जरिये कैसे-कैसे षड्यंत्र यह षड्यंत्री लोग साधे बैठे हैं| मतलब आपको पता भी नहीं चलने देते और हरयाणवी-हरयाणा-हरयाणत का मलियामेट करने का घिनौना खेल आपके ही जरिये होता|

और बात सिर्फ पाखंडों को फ़ैलाने के मंसूबों तक नहीं है अपितु मंडी यानी व्यापार के लिए भी अपनी मनमानी चालों को अमली-जामा देने में सर छोटूरामी विचारधारा को खत्म करने के इनके कयासों को आस बंधवाना भी इस क्लॉस का मकसद था| क्योंकि अनपढ़ वो नहीं जो काले अक्षर नहीं जानता अपितु वो है जो इनके मंसूबों को नहीं जानता, इनके समाज पे नकारात्मक प्रभावों को नहीं जानता|

शुक्र है कि इस पर रोक लगी|

कहीं पर जाट बनाम नॉन-जाट तो कहीं फन्डियों द्वारा फैलाई जा रही धार्मिक कटटरता और अंधता में फंसे हरयाणवियों को जरा दो पल के लिए इन चीजों से बाहर निकल कर अपनी उस पहचान के लिए सोचना चाहिए, जिसको हम हरयाणवी कहते हैं| आखिर क्यों इनके कुचक्र में फंस हर हरयाणवी इस तथ्य से भटका हुआ सा नजर आता है और यह लोग अपनी चाल चलते ही जा रहे हैं| ध्यान रहे यह शिक्षा का पैमाना खड़ा करने वाले उसी लाला जगत नारायण के वंशज हैं जिन्होनें कभी 1981 की जनगणना में पंजाब में अपनी माँ-बोली हिंदी लिखवाई थी तो हरयाणा में पंजाबी लिखवाई थी| दिखती सी बात है जिनके लिए माँ बोलियाँ और कल्चर पे पलटवार भी सरकारी योजनाओं से लाभ उठाने का एक हथियार मात्र हो, वो क्या तो हरयाणवी की सोचेंगे और क्या इसकी पहचान को कायम रखने की|

परन्तु हम नेटिव हरयाणवी तो सोच सकते हैं?

जय योद्धेय! - फूल मलिक ‪#‎JaiYoddhey‬

Source: पंचायत चुनाव के नए संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, 4 हफ्ते में मांगा जवाब http://www.bhaskar.com/news/c-85-1126368-pa0345-NOR.html