Monday, 8 September 2025

प्रकृति का मौसम विभाग है टिटहरी या टिटूड़ी

🦆
इसके आगे तो वैज्ञानिक भी फैल हैं 👇पहले ही बता दिया था कैसा रहेगा मानसून ⚠️
इस बार टिटहरी ने कई जगह छत पर अंडे दिये, सोशल मीडिया पर बहुत से फोटो ऐसे दिखे जिनमें इस पक्षी ने ऊंचाई पर अंडे दिए थे। जैसे कि।खेत में बने मकान की छत पर 🤷
👉 टिटहरी ने 4 अंडे दिये हो तो समझो 4 महीने बारिश होगी।
👉 टिटहरी ने ऊँचाई वाली जमीन पर अंडे दिये तो समझो बहुत अच्छी बारिश के आसार है इस बार। जो कि सच भी साबित हुआ है ☑️
👉 अगर टिटहरी ने छत पर अंडे दे दिये है तो समझो पानी से तबाही होगी,, कई राज्य बाढ़ की चपेट में है।
👉 कभी आप टिटहरी को कुरुक्षेत्र के अलावा देश मे मृत नही देख सकते
👉 टिटहरी जिस खेत मे अंडे देती है वो खेत कभी खाली नही रहता, अच्छी फसल होती है।
👉 जिस वर्ष टिटहरी अंडे न दे या जमीन में नीचे गड्ढे में अंडे दे तो समझ लो अकाल पड़ेगा या कम बारिश होगी इस साल।
प्रकृति इनसे है, ये प्रकृति के पोषक हैं। जब विज्ञान नही था तब ये थे, प्रभु ने इसलिए इन्हें बनाया। हम खो रहे है और भूगत रहे है। इनको इग्नोर करके , जैसे हिमाचल में बाढ़ आई कुत्ते ने आगाह किया था, जिन्दगी भी बचाई थी 🐕 कुछ लोग अब ज्ञान देंगे साइंस (वैज्ञानिक) युग का तो भाई ऐसा भी हुआ है मौसम विभाग (वैज्ञानिकों) ने भारी बारिश 🌧️ का अलर्ट ⚠️ जारी किया और उस दौरान बूंद तक नहीं पड़ी।

Sunday, 7 September 2025

गर्व है कि मैं ऐसी अणखी-अल्हड़ कल्चर-किनशिप-कौम से आता हूँ!

 गर्व है कि मैं ऐसी अणखी-अल्हड़ कल्चर-किनशिप-कौम से आता हूँ:


पंजाब बाढ़ पर जो एक्का सप्ताब (पंजाब-हरयाणा-वेस्ट यूपी- उत्तरी राजस्थान यानि मिसललैंड + खापलैंड) ने दिखाया है; कुदरत ते रब दोनों सदके में खड़े लखांदे ने!

क्या मूळे-मेवाती, क्या बांगरू-बागड़ी-खादरी-नरदकी-देसाळी-अहीराळी-ब्रजाळी-पुआदे-दोआबी गाह-के-गेर दी पंजाब को जाने वाले सड़कें; अपनी राहत-सामग्री के लंगर-लश्करों से!

रोको-रोको, थाम्बो-थाम्बो की आवाज लग गई आने कि अभी ब्रेक लगाओ; पहले जो आ गई, वह खपा ली जाए! ऐसे में यह सलंगित नजारा व् गाना; इस पूरे सैलाब को क्या खूब बखां करता है; दोनों के लिए ही, जो बाढ़ में फंसे हैं व् जो राहत-सामग्री पहुंचा रहे हैं:

ओ शेरा ऊठ जरा ते, फिर ओ ही जलवा दिखा अपणा!
बड़ी बेताब है दुनिया, तेरी परवाज देखण नूं!
जे मुद्दा हौंद दा होया, ता तीरां वांग टकरांगे,
असि बैठे नहीं हा, सिर ते उड़ते बाज देखण नूं!
जमाना रुक गया तेरा, ओ ही अंदाज देखण नूं!

जय यौधेय! - फूल मलिक



Wednesday, 3 September 2025

यहाँ के गामों में कोई भिखारी नहीं मिलेगा, कोई भूखा-नंगा सोता नहीं मिलेगा!

यह हद से ज्यादा माइग्रेशन आने के बाद का तो पता नहीं क्या हाल है, परन्तु इससे पहले यानि एक दशक पहले तक की ही ले लो; मिसललैंड+ खापलैंड यानि सप्ताब (पंजाब + दोआब - यमुना-गंगा वाला दोआब) बारे यह कहावत मशहूर रही है कि, "यहाँ के गामों में कोई भिखारी नहीं मिलेगा, कोई भूखा-नंगा सोता नहीं मिलेगा"! यह क्यों रही है इसकी बानगी देखनी है तो अभी पंजाब में आई बाढ़ के चलते, मदद को टूट के पड़े पूरे खापलैंड (उत्तरी राजस्थान से ले धुर लखीमपुर-खीरी से होते हुए पंजाब तक आ जाओ) के एक-एक गाम की बानगी देख लो! पांच एक साल के गैप में दूसरी बार यह झटका देखने को मिल रहा है, किसान आंदोलन में देखा था या अब देख रहे हो!


और इस जज्बे के पीछे जो फिलॉसोफी यानि दर्शनशास्त्र है वह कहाँ से आता है? सिख बाहुल्य इलाकों यानि मिसललैंड में "बाबा नानक की लंगर परम्परा से" व् खापलैंड पर दादा नगर खेड़ों/ दादा नगर भय्यों/ बाबा नगर भूमियों की मूर्तिरहित मर्द-पुजारी-रहित धोक-ज्योत की परम्परा वाले धामों के सिद्धांत में बसते उस सिद्धांत से जो सदियों से इन खेड़ों के पुरखों ने यह कहते हुए स्थापित किया कि, "इतनी न्यूनतम मानवता हर किसी ने पुगानी है कि गाम-नगर-खेड़े/खेड़ी में बसने वाला कोई भी शख्स भूखा-नंगा नहीं सोना चाहिए"!

इन्हीं दो परम्पराओं के चलते सप्ताब बारे यह कहावत चलती आती है कि, "यहाँ के गामों में कोई भिखारी नहीं मिलेगा, कोई भूखा-नंगा सोता नहीं मिलेगा"!

विशेष: दादा नगर खेड़ा वह कांसेप्ट है जिसे खापलैंड की सभी मूल जातियां व् धर्म धोकते हैं!

जय बाबा नानक जी! जय दादे नगर खेड़े/भय्या/भूमिया!

जय यौधेय! - फूल मलिक

अंग्रेज सर की उपाधि उसी को देते थे जो उनका सरपरस्त होता था? ये गलतफहमी आज दूर हो जाएगी!

अंग्रेज सर की उपाधि उसी को देते थे जो उनका सरपरस्त होता था? ये गलतफहमी आज दूर हो जाएगी:


सन् 1941 में विश्व युद्ध के कारण भारत के बाजारों के हालात काफी खराब हो गए थे। जमाखोरी के कारण सभी वस्तुओं के भाव बढ़ गए थे और मजदूरी कम होने के कारण मजदूरों की हालत काफी खराब हो गई थी। इस स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार ने सभी प्रांतों के प्रतिनिधियों की बैठक बुलाई। इस बैठक में चौधरी साहब ने पंजाब की तरफ से भाग लिया और स्थिति से निपटने के लिए ठोस सुझाव दिए।


खाद्यान्नों की गंभीरता को देखते हुए सन् 1943 में भारत ने 'खाद्यान्न नीति समिति' का गठन किया। पंजाब को छोड़कर अन्य प्रान्तों में अन्न का इतना संकट हो गया था कि भारत सरकार अन्न का नियंत्रण एवं राशनिंग करने पर आमादा थी, लेकिन, चौधरी छोटूराम इसका पुरजोर विरोध कर रहे थे।


चौधरी साहब ने पंजाब के किसानों को प्रेरित करना आरंभ कर दिया कि यदि सरकार गेहूं पर नियंत्रण करती है, तो वे अपना गेहूं मंडियों में न बेचें और अच्छे मूल्य पर बेचने के लिए घरों में रखे रहें।


चौधरी साहब के इस प्रचार को सरकार ने एक प्रकार का विद्रोह माना और सन् 1943 में खाद्यान्न कांफ्रेंस बुलाई, जिसमें उन्हें भी बुलाया गया। इस कांफ्रेंस में चौधरी साहब ने गेहूं के नियंत्रित मूल्य को 6 रुपये मन से बढ़कर 10 रुपये प्रति मन करने पर जोर दिया।


यह सुनकर लॉर्ड वेवल ने कहा कि जब भारत के दूसरे प्रान्तों के मंत्री इस प्रस्ताव से सहमत हैं कि गेहूं का मूल्य 6 रुपये मन हो, तो आपको क्याआपत्ति है? इस पर चौधरी साहब बोले कि इन प्रान्तों के पास गेहूं है कहां? इनमें से कई प्रान्त तो गेहूं लेने वाले हैं। केवल पंजाब ऐसा प्रांत है, जो गेहूं देने वाला है। जब हमारे किसान अन्य चीज महंगे दामों पर खरीद रहे हैं, तो गेहूं को 6 रुपये प्रति मन के हिसाब से नहीं दे सकते। वायसरॉय एक प्रांत के मंत्री से ऐसी विद्रोहात्मक उत्तर की आशा नहीं रखते थे। अतः वे उत्तेजित होकर गुस्से में बोले कि वे किसान की कोई मदद नहीं कर सकते।


वायसरॉय वेवल का ऐसा कटु उत्तर सुनकर चौधरी छोटूराम छाती तानकर बोले- "फिर तो, किसान का गेहूं भी 10 रुपये प्रति मन से कम नहीं बिक सकता।"


वायसराय चौधरी साहब के इस उत्तर से बेहद नाराज हो गए और बैठक समाप्त हो गई। बताते हैं कि चौधरी साहब ने यहां तक कह दिया कि यदि सरकार 6 रुपये प्रति मन गेहूं खरीदने पर अडिग रही, तो वे पंजाब के किसानों को कहकर गेहूं की खड़ी फसल में आग लगवा देंगे, लेकिन, गेहूं को 6 रुपये प्रति मन नहीं बचेंगे।


चौधरी छोटूराम के गेहूं के मूल्य के प्रति कठोर रुख को देखकर भारत सरकार परेशानी में पड़ गई। अंग्रेज अधिकारियों ने खाद्यान्न के मूल्यों के संकट के लिए चौधरी साहब को उत्तरदायी ठहराना शुरु कर दिया।


चौधरी साहब के इस कठोर रवैया की प्रतिक्रिया इंग्लैंड में भी हुई और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पंजाब मंत्रिमंडल से निकालने पर जोर दिया, चाहे इससे पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी की सरकार का पतन हो जाए और पंजाब में धारा 93 लगानी पड़े।


चौधरी छोटूराम को पंजाब मंत्रिमंडल से निकालने की इस मांग से पंजाब के राज्यपाल ग्लेंसी बहुत चिंतित हुए और उन्होंने चौधरी साहब को मंत्रिमंडल में बने रहने की प्रासंगिकता बताते हुए भारत के वायसरॉय को पत्र लिखकर बताया कि चौधरी छोटूराम का गेहूं के मूल्य के बारे में कठोर रवैया इसलिए है कि अन्य राज्यों में पंजाब की अपेक्षा गेहूं के भाव ज्यादा है। यही नहीं, उत्तर प्रदेश और बंगाल में खाद्यान्नों को महंगें दामों में बेचकर भारी मुनाफा कमाया जा रहा है। यदि ऐसा भेदभाव रहा, तो पंजाब का किसान संकट की स्थिति उत्पन्न कर सकता है और पंजाब मंत्रिमंडल ब्रिटिश सरकार को कठिनाई में डाल सकता है।


राज्यपाल ग्लेंसी का वायसराय को लिखा पत्र समयानुकूल एवं प्रासंगिक था, क्योंकि, द्वितीय विश्व युद्ध में गेहूं के उत्पादक पंजाब के किसान के फौजीबेटे मोर्चे पर युद्ध लड़ रहे थे। अतः इस मौके पर किसानों को नाराज करने से भारत में अंग्रेजी राज्य के लिए संकट पैदा हो सकता था। यह सोचकर सरकार ने चौधरी छोटूराम के द्वारा मांगे गए गेहूं के मूल्य में भी 1 रुपया ज्यादा बढ़ाकर गेहूं का मूल पंजाब में 11 रुपये प्रति मन निश्चित कर दिया और इस प्रकार ब्रिटिश सरकार लाचार होकर धरतीपुत्र चौधरी छोटूराम के सामने झुकने पर मजबूर हो गई।


असल में अंग्रेज सर की उपाधि उसको भी देते थे जिसमें दम होता था और ये दम किसानों ने चौधरी साहब को दिया था - By Dharmendra Kawanri from book of Dr. Santram Deswal ji



Tuesday, 2 September 2025

SYL के भूतो, इस फ्यूज्ड मुद्दे के टेस्टिंग टूल मत बना करो!

पहली बात, यह आ भी गई तो ऐसी "मोरी-बंद" आएगी कि इसका 80-90% पानी एनसीआर (दिल्ली-गुड़गामा-फरीदाबाद) की वेलफेयर सोसाइटी वालों को, इंडस्ट्री वालों को व् बहुत सा इन्हीं शहरी क्षेत्रों का धरती का वाटर-लेवल सुधारने के नाम पे शहरी-धरती में डाल-डाल के बर्बाद कर दिया जाया करेगा; और बचा हुआ 10-20% यमुना में जा के गेर दिया जाएगा; थारे पल्ले आवेगी खाली इसकी पाछली धार; वह भी नाम-मात्र तुम्हें बहलाने को! इसलिए इसका जिसको असली फायदा होना है, यह भूत उनके लिए छोड़ दो, यानि एनसीआर के शहरियों के लिए! वहां बवाल काटो व् उनको निकालो बाहर कि लाएं खोद के इसको!


ऐसी बोळी-ख्यल्लो हैं ये इस मुद्दे को उठाने वाले, 99% को तो यही ना पता मिले कि "मोरी-बंद" क्या बला होवै! 


खैर, चाहे किसी के गाम-खेतों की दशकों की सेम ना गई हो आज तक भी, उन्नें भी टेस्ट करने लग जाते हैं कि SYL चाहिए? आहो चाहिए, पर उन गामां की सेम उतारने वाली चाहिए!


सबसे बड़ी बात, यह शुद्ध पावर-पॉलिटिक्स का मुद्दा है, तमाम नेताओं-पार्टियों के लिए; असलियत में यह आनी होती तो हर किसी की स्टेट-सेण्टर दोनों जगह कई-कई सरकारें आई और गई और अभी चल भी रही है| तुम्हें क्या लगता है इतना सब कुछ हाथ में होते हुए भी, यह मुद्दा पब्लिक के लिए कुछ करने का बचता है क्या? सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर्स तक आए पड़े हैं; तो इतना सब होने के बाद भी इसको तुम खोद के लाओगे या कोर्ट-कानून-सरकार को लाना है? और हरयाणा-पंजाब का बच्चा-बच्चा इस बारे जान चुका है, वह भी उन एरियाज का जहाँ तुम इसके जरिए कुछ रस चाहते हो कि यह भिड़ें और तुम्हें रस आवे! कोनी रह रह्या इस तिल में तेल!


आखिरी बात, किसान आंदोलन के वक्त ही इसको टेस्ट कर-कर बावले हो लिए थम; तभी इसकी फूंक लिकड़ गई थी और थम इसको अब बाढ़ के वक्त टेस्ट करने चले हो; आराम दो कुछ अपने सड़ांधले दिमाग व् सोच को! यह हरयाणा-पंजाब तो यूँ ही आपस में मदद करेंगे, व् एक कठ हुए चलेंगे!


जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 1 September 2025

चौधरी छोटूराम और जमीन!

कम पढ़ाई बहुत खतरनाक बात होती है, इसी के कारण चौधरी छोटूराम को समझने में कई भाई भूल कर जाते हैं हकीकत ये है कि चौधरी साहब नहीं होते तो आज जाट, अहीर, गुजर, राजपूत, रोड़, माली, गौड़ ब्राह्मण, चौहान, जांगडा के पास एक कनाल जमीन भी नहीं होती.

पंजाब भूमि हस्तांतरण पर रोक
पंजाब में भूमि के हस्तांतरण को रोकने के लिए चौधरी छोटूराम ने दस जातियों को 'वैधानिक कृषक जनजाति' की श्रेणी में रखवाया। इन जातियों में अहीर, जाट, गुर्जर, राजपूत, रोड़, माली, बिलोच, मुगल, सैयद, पठान जातियां थी।
इन जातियों के लोगों की जमीन गैरजमींदार नहीं खरीद सकता था। 'रहन' पर रखी जमीन की अवधि भी 20 वर्ष से अधिक नहीं हो सकती थी। जाहिर है कि इस वैधानिक कृषक जनजाति कानून से किसान जातियों को न केवल राहत मिली, बल्कि, अत्यधिक लाभ भी हुआ। यदि यह कानून नहीं बनाया जाता, तो इन जातियों के किसानों की भूमि गैरजमींदार खरीद लेते और ये कृषक जातियां भूमि-विहीन हो जाती।
सुरक्षित जाति कानून
सन् 1925 में चौधरी छोटूराम ने निजी प्रयास करके गौड़ ब्राह्मण, चौहान, जांगड़ा और कुरैशी जातियों को भी भूमि हस्तांतरण के संबंध में सुरक्षित जातियां घोषित करवा दिया, जिससे इन जातियों के लोगों को भी इस कानून के अंतर्गत सुरक्षा मिल गई और उनके द्वारा साहूकारों से लिए गए कर्ज के बदले में उनकी जमीन साहूकारों के हाथों में जाने से बच गई, वरना, वे कृषक जमीन रहित होकर दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर हो जाते।



Sunday, 31 August 2025

बांगर, खादर, नरदक, बागड़, अहीरवाटी, मेवात और ब्रज

 आप किस इलाके से आते हैं?

बांगर, खादर, नरदक, बागड़, अहीरवाटी, मेवात और ब्रज
हरियाणा के समस्त भूभाग को बांगर, खादर, नरदक, बागड़, अहीरवाटी, मेवात और ब्रज आदि उपखंडों में बांटा गया है।
जिला रोहतक, सोनीपत, झज्जर, जींद, कैथल, जींद जिला का नरवाना, जिला हिसार की हांसी व हिसार तहसीलें तथा भिवानी जिला की भिवानी तहसील 'बांगर' भू-भाग में परिगणित किए जाते हैं। यहां की धरती समतल और उपजाऊ है। इसी बांगर भू-भाग में जिला रोहतक के गांव गढी में ही दीनबंधु छोटूराम जी का जन्म हुआ था।
पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र और अंबाला के भू-भाग को 'नर्दक' कहते हैं। यह भू-भाग खूब हरा-भरा और अत्यधिक उपजाऊ है। यमुना नदी के साथ लगते क्षेत्र को 'खादर' कहते हैं। यहां की उपजाऊ भूमि का चप्पा-चप्पा सोना उगलता है।
जिला हिसार का पश्चिम-दक्षिण क्षेत्र, जिला महेंद्रगढ़, जिला रेवाड़ी का कोसली क्षेत्र, जिला भिवानी की दादरी तहसील व लोहारू तहसील से लेकर दडबा कलां, फतेहाबाद, ऐलनाबाद, रोड़ी, सिरसा, डबवाली तक फैले भू-भाग को 'बागड़' कहा जाता है। यहां बालू रेत के टीले हैं। यहां खेती के लिए ज्यादातर वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता था। नल-कूप, नहर आदि सिंचाई के साधन उपलब्ध होने के कारण अब यहां भी अच्छी पैदावार होने लगी है।
जिला रेवाड़ी, गुरुग्राम जिला की गुड़गांव तहसील का काफी बड़ा भाग, झज्जर जिला का नाहड की तरफ का क्षेत्र, महेंद्रगढ़ जिला की नारनौल तथा महेंद्रगढ़ तहसील का कुछ क्षेत्र और भिवानी व हिसार का कुछ क्षेत्र 'अहीरवाटी' कहलाता है। यह रेतीला एवं शुष्क क्षेत्र है।
फरीदाबाद और पलवल जिलों को 'ब्रज' कहा जाता है। यहां की धरती समतल और उपजाऊ है। आगरा और मथुरा क्षेत्र से सटा होने के कारण यहां के लोगों की भाषा, रहन-सहन, खान-पान आदि ब्रजवासियों से मिलता है।
नूंह जिला में नूंह के अतिरिक्त फिरोजपुर झिरका, पुन्हाना, हथीन, तावडू, नगीना आदि क्षेत्रों को 'मेवात' कहा जाता है। यह क्षेत्र पथरीला और कहीं-कहीं रेतीला है। शुष्क क्षेत्र होने के कारण यहां के लोग खेती के लिए ज्यादातर वर्षा पर निर्भर रहते हैं।
स्रोत. दीनबन्धु छोटूराम की जीवनी, लेखक: डॉ. सन्तराम देशवाल जी

दिल्ली–दोआब में ज़मींदारी : असली मालिक कौन?

 दिल्ली–दोआब में ज़मींदारी : असली मालिक कौन?

यह आर्टिकल मुग़ल–ब्रिटिश दौर के असली राजस्व रेकॉर्ड और गज़ेटियर पर आधारित है । इससे ये साफ़ होगा कि जाट ही असली ज़मींदार, किसान, चौधरी और मालिक थे – बाक़ी जातियाँ सिर्फ़ “दरबारी, पुजारी या भाड़े के सैनिक”।
(मूल स्रोतों के आधार पर एक ऐतिहासिक विवेचना )
🔹 1. #मुग़ल काल (#अकबर का दौर – 1595)
अकबर के नवरत्न अबुल फ़ज़ल ने अपनी किताब आइने अकबरी (Ain-i-Akbari, 1595) में लिखा है:
दिल्ली–आगरा–मथुरा–मेरठ–रोहतक के इलाक़ों में खेती करने वाली प्रमुख जाति जाट थी।
इन्हें “बाग़ी, हठी और लगान न देने वाले” कहा गया।
कई परगनों का राजस्व सीधा जाट चौधरियों के पास जाता था, बीच में कोई #राजपूत या #ब्राह्मण जमींदार नहीं।
> स्रोत: Ain-i-Akbari, Vol. II (1595 Persian text with English translation by H. Blochmann, Asiatic Society of Bengal, 1873)
🔹 2. मुग़ल रेकॉर्ड में जाटों का ज़िक्र
फ़ारसी दस्तावेज़ों में जाटों को “#मालगुज़ार” (जमीन पर कर देने वाले) और कई जगह “चौधरी” लिखा गया।
#औरंगज़ेब के दौर (मआसिर-ए-आलमगिरी) में साफ़ ज़िक्र है कि जाटों ने लगान देने से मना कर दिया और फ़ौजें भेजकर भी ऊँहे दबाया नहीं जा सका।
🔹 3. #ब्रिटिश काल (1803–1857)
जब 1803 में दिल्ली ब्रिटिश के हाथ में आयी तो अंग्रेज़ों ने रेवेन्यू सेटलमेंट किया।
Delhi, #Rohtak, #Gurgaon, #Meerut, #Muzaffarnagar के गज़ेटियर में लिखा है:
“The Jats are the principal landholding community.”
दिल्ली और रोहतक के गाँवों में अधिकांश ज़मींदार और खेत मालिक जाट चौधरी थे।
राजपूत और ब्राह्मण छोटे जोत वाले या #मज़दूरी/#पुजारी वर्ग में दर्ज किए गए।
> स्रोत: Gazetteer of the Delhi District (1883–84), Gazetteer of the Rohtak District (1884), Gazetteer of the Gurgaon District (1883)
🔹 4. दिल्ली के आस-पास के जाट गाँव
1857 से पहले दिल्ली क्षेत्र में जाटों की बस्तियाँ और खापें –
पालम 360 खाप (सोलंकी, तोमर, गैहलोत ,पंवार,शेहरावत ,ड़बास, मान, राना , शयोकिन आदि)
अलीपुर, बवाना, नरेला, नजफ़गढ़ – बड़े जाट ज़मींदार
रोहतक–सोनीपत–भिवानी बेल्ट – यहाँ जाट ही खेतिहर और गाँव चौधरी थे।
🔹 5. असली निष्कर्ष
1. पहला #किसान – जाट
2. पहला #ज़मींदार – जाट
3. पहला #चौधरी – जाट
4. पहला #पहलवान/#खिलाड़ी - जाट
5. पहला #राजा - जाट
6. पहला बाग़ी (मुग़लों और अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़) – जाट
7. बाक़ी जातियाँ या तो दरबार की गुलामी करती थीं या पुजारी।
इसलिए जो लोग कहते हैं कि “जाटों के पास ज़मीन नहीं थी”, वह या तो इतिहास पढ़े बिना बोलते हैं या फिर झूठी जातिवादी कहानी गढ़ते हैं।
असलियत यह है कि 1857 से बहुत पहले से ही दिल्ली–दोआब का ज़मींदार सिर्फ़ और सिर्फ़ जाट ही था।
सरकार ऑफ दिल्ली - जाट
सरकार ऑफ़ संभल - जाट
सरकार ऑफ सहारान पुर - जाट