Tuesday, 31 December 2019

इंडिया में कौन किसको खाना चाहता है!

1 - सनातनी, आर्य-समाज, सिख व् उदारवादी जमींदारी को खाना चाहते हैं|
2 - चितपावनी ब्राह्मण, खुद के सिवाए सारे सनातनियों को खाना चाहते हैं|
3 - जैनी, चितपावनी व् उदारवादी जमींदारी दोनों को खाना चाहते हैं|

अब तीनों बिंदु थोड़ा विस्तार से:

1 - सनातनी, आर्य-समाज, सिख व् उदारवादी जमींदारी को खाना चाहते हैं| आर्य समाज के हर गुरुकुल-मठ में पूरा कब्ज़ा करने की कोशिश में हैं सनातनी आज के दिन| उदारवादी जमींदारी थ्योरी की अग्रणी कौम जाट के खिलाफ 35 बनाम 1 के फरवरी 2016 दंगे इसी कड़ी की इबारत है| वह अलग बात है कि 35 बनाम 1 चला नहीं वरना इरादा इनका हर उदारवादी जमींदार की घिस काढणे का था, शुरुवात जाट से करनी चाही थी| सिख अपना लेशन सीख चुके 1984 के जरिये, अब वह इनके पैंतरों से पार पा चुके| 2013 व् 2016 के दंगों से आर्य समाजियों के भी होश पाख्ता तो हुए हैं परन्तु इनको अभी इनके जाल से पूर्णत: निकलना बाकी है|

2 - चितपावनी ब्राह्मण, खुद के सिवाए सारे सनातनियों को खाना चाहते हैं, जैसे हरयाणवी सनातनी को चितपावनी सनातनी खा रहा है| इसीलिए चितपावनी को फर्क नहीं पड़ता कि कौन हरयाणवी सनातनी ब्राह्मण की फरसे से गर्दन उड़ाने दौड़ता है| सनातनियों द्वारा हरयाणा के हर दूसरे मन्दिर में गैर-हरयाणवी पुजारी बैठाये जा रहे हैं; ऐसे हरयाणवी ब्राह्मण की इकॉनमी की कड खुद गैर-हरयाणवी सनातनी ही तोड़ रहे हैं|

3 - जैनी, सनातनी चितपावनी व् उदारवादी जमींदारी दोनों को खाना चाहते हैं| जैसे जैनी अपने एजेंटों के जरिये फैलवाते है कि ना चितपावनी पेशवाओं के बताये पानीपत के 3 युद्ध सच हैं ना मुग़लकाल, ना कोई राजा ने कोई किला बनवाया| जैनी प्रचार करवाते हैं कि किले तो हुए ही नहीं कभी| दरअसल यह जितने किले हैं यह जैनी व्यापारियों के स्टोरेज हाउस हुए हैं जो उन्होंने ही बनवाये हैं किसी राजा-नवाब ने नहीं| लगता तो नहीं कि जैनी अपने धर्म व् समुदाय से बाहर इतने बड़े दान किये होंगे कभी कि किले-के-किले बनवा दिए? आज अम्बानी जैनी, अडानी जैनी जैसे तमाम उद्योगपतियों को ही देख लो; क्या लगाते हैं सोशल वेलफेयर के नाम पर एक दवन्नी भी? तो जब आज ही नहीं लगाते तो पुराने वक्तों में जरूर इन्होनें सर्वसमाज के "बुर्ज खलीफे" खड़े किये होंगे| समुदाय से बाहर छोरी का रिश्ता तक तो ये देते नहीं, महल-दुमहले चिनवाएँगे ये सर्वसमाज के, हजम होने से ही परे की बात है| 90% हिन्दू विधानसभा होते हुए भी 2016 या शायद 17 में जैन मुनि तरुण सागर का प्रवचन करवाया जाता है हरयाणा विधानसभा में| यह जैनियों द्वारा हरयाणा में सनातनियों को साइड करने की कड़ी का हिस्सा था वरना 90% हिन्दू व् 50% से ज्यादा आर्यसमाजी हरयाणवी समुदाय में कोई भगवा बाबा या आर्यसमाजी प्रचारक ना मिला था क्या यह कार करवाने को? दावा नहीं परन्तु सुनते हैं कि "आदिकिसान" नामक ग्रुप इन्हीं का प्रचारक है व् इसका मुख्य काम है किसान-जमींदारों में यह बात भरवाना कि तुम खालिस कबीले रहे हो और हल की मूठ थामने के सिवाए तुम्हारे पुरखों को कुछ नहीं आया| इसीलिए इनके लिए ना महाराजा सूरजमल सच है और ना ही सर्वखाप|

आजकल जैनी व् अरोड़ा/खत्री कम्युनिटी बनाम ब्राह्मण-बनिया पॉलिटिक्स चल रही है; वैसे तो पूरे भारत में, उसमें भी हरयाणा इनका ख़ास नूराकुश्ती वाला अखाड़ा बना हुआ है| कल तक हरयाणा-पंजाब में सनातनियों का हिंदी भाषा आंदोलन चलाने वाला सबसे बड़ा समुदाय आज सनातनियों को छोड़ जैनी के साथ जा चुका है| और पूरे इंडिया की पॉलिटिक्स को चार जैनियों की चौकड़ी यानि मोदी-शाह-अडानी-अम्बानी ने इस तरह हाईजैक कर रखा है कि इनके आगे चितपावनी से ले पूरा सनातनी व् आरएसएस तक मजबूर है|

कुल एक लाइन का जोड़ कहूं?: आरएसएस की 90 साल के पेड़ का फल जैनी जीम रहे हैं| सनातनी-चितपावनी सिर्फ टुकर-टुकर देखने को मजबूर हैं|

यह सनातनियों को लीड करने वाले ब्राह्मण समाज पर एक श्राप के तहत है| ब्राह्मण को श्राप है कि यह वर्ग सत्ता-संसाधन सब कुछ जुटा तो लेगा, उसमें घुसा भी रहेगा परन्तु इनके जुटाए पे जीमेगा कोई और| पहले मुग़ल जीमे, फिर अंग्रेज और अब जैनी| और यह इसलिए होता है क्योंकि ब्राह्मण जिसको स्वधर्मी कहता है उसमें सबको बराबर रखने-मानने-बताने-बरतने की बजाये वर्ण व् छूत-अछूत के भेदभाव में बाँटता है; जो उसके ऊपर अमानवता के नाम से चक्रवर्धी ब्याज की तरह चढ़ता रहता है व् तब फूटता है जब ब्राह्मण सत्ता-संसाधन की पीक पर पहुँच जाता है| ब्राह्मण अपने भीतर के इस सिस्टम में सुधार कर ले तो यह श्राप हट जाए शायद उस पर से| वरना किसी खट्टर की यह मजाल कि वह एक ब्राह्मण को फरसा दिखा जाए?

भारत की वर्तमान धर्म-जाति-नश्ल व् राजनीति की दशा है यह; अब आपको इसमें से खुद का बचाव कैसे करना है खुद समझ लीजिये|

वैसे इस सबमें हिंदुत्व मिला कहीं? देख लो मुस्लिम का जिक्र किये बिना पोस्ट पूरी की है परन्तु हिंदुत्व फिर भी नहीं दिखा? क्योंकि हिंदुत्व का प्रैक्टिकल ग्राउंड कोई है ही नहीं; यह सिर्फ हवा-हवाई हवाओं का सगूफा है| मुस्लिम से डराने मात्र का टोटका है हिंदुत्व| वरना इनका बस चले तो आर्यसमाजी को सबसे पहले सनातनी खाये, सनातनी को चितपावनी व् चितपावनी को जैनी|

जैनी के ऊपर कौन है ढूंढ रहे हो क्या? चलते-चलते बता ही देता हूँ उसके ऊपर वेटिकन वाले हैं| मक्का वाले भी इन्हीं के इच-बीच हैं कहीं परन्तु उनको सही से पोजीशन नहीं कर पाता हूँ शायद और स्टडी की जरूरत है|

वैसे मुझे व्यक्तिगत तौर पर 'मुंह पर पट्टी रखना' सबसे बेस्ट स्ट्रेटेजी लगती है| वैसे तो अलग धर्म का विचार नहीं परन्तु कभी ऐसा कुछ हुआ और कोई नए धर्म की कल्पना की तो जैनियों वाली यह मुंह पे पट्टी जरूर लगाना चाहूंगा उस नए धर्म में जो भी आएगा सबको, क्योंकि व्यर्थ की बक-बक ही 80% झगड़ों-अपवादों-उपहासों की जड़ है जिसको जैनी मात्र एक पट्टी से निबटा डालते हैं|

उद्घोषणा: मेरा आंकलन गलत भी हो सकता है, ऐसे में पहले ही हाथ जोड़कर माफ़ी| लेख के विचार व्यक्तिगत व् निष्पक्ष हैं; लेखक किसी समुदाय-धर्म से कोई राग-द्वेष नहीं रखता|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

दसवाँ जाटरात्रा - 1 जनवरी!


समर्पित है: सर्वखाप यौद्धेय उदारवादी जमींदारी रक्षक गॉड गोकुला जी महाराज को! - (Photo Attached)

दसवें जाटरात्रे पर क्या मंथन करें: यह जो जमींदारी व् जमीनों की मलकियत है, यह कोई दान में मिला मंदिर नहीं है अपितु गॉड गोकुला जैसे अनगिनत पुरखों के चेतना सिहरा देने जितने सदियों-सदियों के भयंकर बलिदानों की धाती है| इसलिए इसको संभाल कर रखिये व् पुरखों की इस किनशिप को नई पीढ़ियों को पास करने का अपना जीवन-तर जाने जैसा पवित्र फर्ज निभाईये व् आजीवन का पुण्य कमाईये|

अब गॉड गोकुला जी का इतिहास, ऐतिहासिक कविताई व् तथ्यों के गौरे-नजर:

तब के वो हालत जिनके चलते God Gokula ने विद्रोह का बिगुल फूंका:

सम्पूर्ण भारत में मुगलिया घुड़सवार, गिद्ध, चील उड़ते दिखाई देते थे|
हर तरफ धुंए के बादल और धधकती लपलपाती ज्वालायें चढ़ती थी|
राजे-रजवाड़े भी जब झुक चुके थे; फरसों के दम तक भी दुबक चुके थे|
ब्रह्माण्ड के ब्रह्मज्ञानियों के ज्ञान और कूटनीतियाँ कुंध हो चली थी|
चारों ओर त्राहिमाम-2 का क्रंदन था, तथाकथित स्वधर्मी खुद जजिया कर से छूट पा; अपने जमींदार-मजदूर वर्ग को उत्पीड़न के लिए अकेला छोड़ चुके थे|
उस उमस के तपते शोलों से तब प्रकट हुआ था वो महाकाल का यौद्धेय|
समरवीर उदारवादी जमींदारी रक्षक अमरज्योति गॉड-गोकुला जी महाराज|

1857 अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी का पहला विद्रोह था तो 1669 मुग़लों के खिलाफ दूसरा (पहला 1193):

जो हुआ था औरंगजेब की भारी कृषि टैक्स-नीतियों के विरुद्ध ‘गॉड गोकुला’ की सरपरस्ती में,
जाट, मेव, मीणा, अहीर, गुज्जर, नरुका, पंवारों से सजी विशाल-हरयाणा सर्वखाप की हस्ती में|

हल्दी घाटी के युद्ध का निर्णय कुछ ही घंटों में हो गया था,
पानीपत के तीनों युद्ध एक-एक दिन में ही समाप्त हो गए थे,
परन्तु तिलपत, फरीदाबाद का युद्ध तीन दिन-रात चला था|

राणा प्रताप से लड़ने अकबर स्वयं नहीं आया था, परन्त "गॉड-गोकुला“ से लड़ने औरंगजेब को स्वयं आना पड़ा था।

उन्हीं समरवीर उदारवादी जमींदारी के रक्षक अमरज्योति गॉड-गोकुला जी महाराज के 01/01/1670 बलिदान दिवस पर गौरवपूर्ण नमन!

खाप वीरांगनाओं के पराक्रम की साक्षी तिलपत की रणभूमि:

घनघोर तुमुल संग्राम छिडा, गोलियाँ झमक झन्ना निकली,
तलवार चमक चम-चम लहरा, लप-लप लेती फटका निकली।
चौधराणियों के पराक्रम देख, हर सांस सपाटा ले निकलै,
क्या अहिरणी, क्या गुज्जरी, मेवणियों संग पँवारणी निकलै|
चेतनाशून्य में रक्तसंचारित करती, खाप की एक-2 वीरा चलै,
वो बन्दूक चलावें, यें गोली भरें, वो भाले फेंकें तो ये धार धरैं|

God Gokula के शौर्य, संघर्ष, चुनौती, वीरता और विजय की टार और टंकार राणा प्रताप से ले शिवाजी महाराज और गुरु गोबिंद सिंह से ले पानीपत के युद्धों से भी कई गुणा भयंकर हुई| जब God Gokula के पास औरंगजेब का संधि प्रस्ताव आया तो उन्होंने कहलवा दिया था कि, "बेटी दे जा और संधि (समधाणा) ले जा|" उनके इस शौर्य भरे उत्तर को पढ़कर घबराये औरंगजेब का सजीव चित्रण कवि बलवीर सिंह ने कुछ यूँ किया है:
पढ कर उत्तर भीतर-भीतर औरंगजेब दहका धधका,
हर गिरा-गिरा में टीस उठी धमनी धमीन में दर्द बढा।

जब कोई भी मुग़ल सेनापति God Gokula को परास्त नहीं कर सका तो औरंगजेब को विशाल सेना लेकर God Gokula द्वारा चेतनाशून्य जनमानस में उठाये गए जन-विद्रोह को दमन करने हेतु खुद मैदान में उतरना पड़ा| गॉड-गोकुला के नेतृत्व में चले इस विद्रोह का सिलसिला May 1669 से लेकर December 1669 तक 7 महीने चला और अंतिम निर्णायक युद्ध तिलपत में तीन दिन चला| आज हरयाणत व् उदारवादी जमींदारी की रक्षा का तथा तात्कालिक शोषण, अत्याचार और राजकीय मनमानी की दिशा मोड़ने का यदि किसी को श्रेय है तो वह केवल 'गॉड-गोकुला' को है। 'गॉड-गोकुला‘ का न राज्य ही किसी ने छीना लिया था, न कोई पेंशन बंद कर दी थी, बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुग़ल-सत्ता, दीनतापूर्वक, संधी करने की तमन्ना लेकर गिड़-गिड़ाई थी।

गॉड गोकुला जी का बलिदान अवश्य ही उतना ही उच्च, उतना ही महान रहा होगा; जितना कि पांच साल बाद 1675 में उसी औरंगजेब के दरबार में गुरु तेग बहादुर जी का हुआ था| परन्तु गुरु तेगबहादुर जी को सिख-किनशिप आज भी ज्यों-का-त्यों जिन्दा रखे हुए है जबकि जाट व् खाप-लिगेसी क्यों इन चीजों में पीछे है? यही वजह है जिसको ठीक करना है, जिस दिन यह ठीक हो गई जाट बनाम नॉन-जाट व् 35 बनाम 1 ऐसे गायब होंगे जैसे भेड़ों के सर से सींग या जैसे गधों के जुकाम तुरताफुर्ति में ठीक होते हैं|

Sources (सोर्स):
1 - यूरोपियन यात्री मनूची के वृतांत|
2 - नरेन्द्र सिंह वर्मा (वीरवर अमर ज्योति गोकुल सिंह)
3 - कवि बलवीर सिंह की रचनाएँ

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


Saturday, 28 December 2019

सातवाँ जाटरात्रा - 29 दिसंबर - "सर्वखाप का अखाड़ा मिल्ट्री कल्चर"!


इस रात्रे का शीर्षक: "खापलैंड के हर गाम-खेड़े में "कुश्ती-अखाड़ों" के जरिये सर्वखाप द्वारा सदियों से पाले जाने वाला "मिल्ट्री-कल्चर" यानि "सर्वखाप का सोशल सिक्योरिटी एंड सेफ्टी सिस्टम" व् ग़ज़नी-गोरी-तैमूर-अंग्रेज आदि को लूटने-मारने से होते हुए वर्ल्ड वॉर 1 व् 2 और वर्तमान इंडियन डिफेंस सिस्टम में इस कल्चर का योगदान| साथ ही जानें कि कई गाम व् शहरों के नाम में "गढ़ या गढ़ी" लिखे मिलने का राज; जैसे सांपलागढ़ी, राखीगढ़ी, गढ़ी टेकना मुरादपुर, बहादुरगढ़, बल्लबगढ़ आदि|

अनुरोध: हालाँकि इस लेख में जितना भी मटेरियल लाया हूँ, उसमें योगदान सर्वसमाज व् सर्वधर्म का रहा है| परन्तु क्योंकि जाटरात्रे चल रहे हैं और जाट सर्वखाप की सबसे बड़ी व् अहम् इकाई रहा है तो इनका जिक्र जाट की रिफरेन्स में करना जरूरी हो जाता है| अगर कल को सर्वसमाज मिलकर "खापरात्रे" मनाता है तो उस अवस्था में इस लेख में "जाट शब्द" का जिक्र मायने नहीं रखेगा| परन्तु जब तक सर्वसमाज " खापरात्रे" शुरू नहीं करता तब तक "सर्वखाप का सबसेट यानि जाट" सर्वखाप को "जाटरात्रों" के माध्यम से याद करते रहेंगे|

सातवेँ जाटरात्रे को मनाने का थीम - "उदारवादी जमींदारी की थ्योरी खापोलॉजी का 'मिल्ट्री-कल्चर' विश्व का सबसे पुराना ऐसा सिस्टम रहा है जो रातों-रात जितने हजारों-लाखों की सेना चाहिए, उतनी कैपेसिटी की तुरंत तैयार करने की क्षमता व् माद्दा रखता आया है"|

मुख्य मंथन क्या करें - "जाट व् खाप, ऑफ-सीजन (off-season) यानि माइथोलॉजी की गपेड़ों वाले छत्री नहीं अपितु प्रैक्टिकल ग्राउंड यानि ऑन-सीजन (on-season) पर दुश्मन के सामने गाड़े जाने वाले तम्बू क्यों कहलाएं हैं?" विशाल हरयाणा की खापलैंड पर जो काफी गामों-शहरों के नामों के पीछे "गढ़" व् "गढ़ी" लिखे मिलते हैं यह सब सर्वखाप की छापामार युद्धकला के दौरान बनाई जाने वाली "गढ़ियों" के स्थान रहे हैं, जो नाम से ही साक्षी हैं कि इन गामों में किसी न किसी युद्ध में खापों ने गढ़ियाँ (मॉडर्न मिल्ट्री लैंग्वेज में जिनको बंकर बोला जाता है) बनाई थी|

उत्सव स्वरूप क्या चर्चा करें?: फरवरी 2016 के 35 बनाम 1 दंगे होने के बाद जनवरी 2017 में इंडिया आया था| आते ही साथी-सहयोगियों के साथ मिलकर सर्वखाप के सबसेट "सर्वजाट सर्वखाप" की वर्कशॉप ऑर्गनाइज़ करी थी| इस वर्कशॉप को अटेंड करने वालों में दर्जन भर एनआरआई जाट्स, दो दर्जन के करीब जाट खापों के चौधरी व् 50 के करीब ब्यूरोक्रेसी-सोशल संगठनों व् बुद्धिजीवी तबके के जाट व् जाटनी जुटे थे| उसमें सबसे अहम् कथन यही रखा था कि, "जिस प्रकार अगर ब्राह्मण मूर्तिपूजा वाले मंदिरों की देखरेख करनी छोड़ दे तो यह अगले ही दिन खत्म होने शुरू हो जाएँ, उसी प्रकार जाट अगर “सर्वखाप-सिस्टम” व् "दादा नगर खेड़ों" की देखरेख छोड़ दे तो खाप सिस्टम व् दादा नगर खेड़े स्वत: ही अपनी मौत मर जाए"| क्योंकि जैसे मूर्ती-पूजा सिस्टम का जनक कहें या इसकी प्रेरणा में ब्राह्मण बैठा है, ऐसे ही सर्वखाप सिस्टम का जनक कहें या इसकी प्रेरणा में जाट बैठा है| इन दोनों में बड़ा फर्क यही है कि मंदिर की कमाई व् ताकत, ब्राह्मण दिखाता सबकी है परन्तु हकीकत में इनकी कमाई व् ताकत दोनों पर कब्जा अकेले का कायम रखने की कोशिश में रहता है, जबकि सर्वखाप व् दादा नगर खेड़ों को जाट (वर्णवादी प्रभाव वाले जाट को छोड़कर) हकीकत में ही सबका रखता है सर्वसमाज इनके यश व् ताकत से लाभान्वित होता आया है|

परन्तु जबसे खापों में राजनीति घुसी है तब से खाप सिस्टम डाउन ही डाउन गया है| खापों से सीख कर आरएसएस तक अपना नॉन-पोलिटिकल संघ खड़ा कर गई परन्तु खापों के 90% चौधरियों की ऐसी मति भर्मित चल रही है कि उनको सोशल चौधर भी चाहिए और पोलिटिकल कुर्सी भी| आरएसएस आपके पुरखों से सीख कर सोशल प्रेशर ग्रुप व् पोलिटिकल प्रेस्सुर ग्रुप्स अलग-अलग रखना सीख के इतना ग्रो कर गई परन्तु खाप दिशा भटक गई| अत: अपना रूतबा वापिस चाहिए तो यह सोशल चौधर और पोलिटिकल कुर्सी की दो नावों में एक साथ सवार होने की मंशा त्यागनी होगी| कहीं-कहीं असर देखने को भी मिला है परन्तु उतना व्यापक असर आना अभी बाकी है जितना हमारे पुरखों में होता था|

बस आज के जाटरात्रे में एक तो मुख्य चर्चा यही की जाए कि सोशल चौधर व् पोलिटिकल चौधर को अलग-अलग रख के, दोनों जगह अलग-अलग बंदे रख के खापें कैसे आगे बढ़ें व् दूसरा ऐसा करना क्यों जरूरी है| वह निम्नलिखित उदाहरणों से समझें कि आपके पुरखों ने सोशल व् पोलिटिकल सिस्टम अलग-अलग रखे तो ही वह जब-जब राजे-रजवाड़े व् धर्मगुरु फ़ैल हुए तो भी अपने अकेले दम पर देश को भारी मुसीबतों से बार-बार निकालते-बचाते रहे| अगर यह माद्दा पाले रखना है तो पुरखों की राही पर आना होगा हर खाप चौधरी को| कौनसा माद्दा भला, पढ़िए दर्जनों उदाहरणों में से निम्नलिखित सिर्फ 1 दर्जन उदाहरण:

1) सन 1025 में सोमनाथ की लूट को महमूद ग़ज़नी से ना कोई धर्मरक्षक बचा सका ना कोई हिन्दू राजा, वह किसने छीनी ग़जनी से? - जवाब है बाला जी जट्ट की अगुवाई में सिंध के जाटों की खाप आर्मी ने|
2) सन 1206 में पृथ्वीराज चौहान को 1192 में मारने वाले कातिल मोहम्मद गौरी को किसने मारा? - जवाब है दादावीर रामलाल खोखर ने उनकी खाप आर्मी के साथ|
3) सन 1193 में गौरी के गुलामवंश के प्रथम शासक कुतुबद्दीन ऐबक की आधी से ज्यादा सेना को हांसी-हिसार के टिल्लों में किसने काटा? - जवाब है दादावीर जाटवान सिंह गठवाला मलिक ने उनकी खाप आर्मी के साथ|
4) सन 1295 में हिंडन व् काली नदी के मुहानों पर अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना व् उसके सेनापति मलिक काफूर के छक्के छुड़ाने वाले कौन थे (वही खिलजी जिसने चित्तौड़गढ़ तबाह किया था)? - यही सर्वखाप आर्मी|
5) सन 1355 में चुगताई वंश के चार सरदारों को गोहाना से बरवाला तक दौड़ा-दौड़ा कर किसने पीटा? - किसी राजा या धर्मगुरु ने नहीं अपितु सर्वखाप यौद्धेया दादीरानी भागीरथी कौर ने व् उनकी सर्वखाप महिला आर्मी ने|
6) सन 1398 में मुहम्मद बिन तुगलक ने जब बिना लड़े ही तैमूर लंग के आगे हथियार डाल दिए थे तो तैमूरलंग की झाँग में भाला मार उसको लंगड़ा किसने बनाया व् देश से भगाया? - सर्वखाप आर्मी के उपसेनापति यौद्धेय बादली वाले दादावीर हरवीर सिंह गुलिया जी महाराज ने व् सर्वखाप आर्मी ने| सनद रहे इस युद्ध में सर्वखाप सेनापति थे दादावीर जोगराज जी गुज्जर|
7) सन 1508 में बाबर के खिलाफ राणा साँगा की जान बचाते हुए उनकी झोली में जीत डालने वाले कौन थे? - वीर यौद्धेय कीर्तिमल जाट व् उनकी सर्वखाप आर्मी|
8) सन 1620 में दादीराणी समाकौर गठवाली मलिक के आह्वान पर दादी जी के सम्मान में कलानौर-रियासत, रोहतक को मलियामेट किसने किया? - गठवाला खाप के आह्वान पर जुटी सर्वखाप ने, दादावीर धोला जी सांगवान की सर्वोपरि वीरता में|
9) सन 1628 में मुगल शासक शाहजहाँ के भारी-भरकम कृषि-करों के खिलाफ उदारवादी जमींदारी क्रांति का बिगुल किसने फूंका? - दादावीर नंदराम जी के नेतृत्व वाली सर्वखाप आर्मी ने, जिसने शाही सेनाओं को हराया व् बढ़े कर वापिस करवाए| और तुम्हें-हमें लगता है कि आज वाली सरकारें यूँ-ही-बैठे-बिठाये एमएसपी रेट पर आपकी फसलें खरीदेंगी?
10) 1 जनवरी 1670 में जिन सर्वखाप यौद्धेय गॉड गोकुला जी महाराज की गुरु तेगबहादुर जी के बलिदान से 5 साल पहले औरंगजेब के दरबार में शहादत हुई, वह कौन थे? - वह थे विश्व की सबसे भयंकर व् 7 महीनों तक चलने वाली औरंगजेब से आमने-सामने की लड़ाई लड़ने वाली सर्वखाप आर्मी के सर्वेसर्वा| यह लड़ाई भी कृषि पर लगे भारी-भरकम टेक्सों के खिलाफ थी| जहाँ बड़े-बड़े राजे रजवाड़े मुग़ल शासकों के आगे दो-अढ़ाई घंटे ही ठहर पाते थे वहीँ सर्वखाप आर्मी 7-7 महीने उनसे लोहा लेती थी| तिलपत फरीदाबाद की लड़ाई थी वह| और यह सब सिर्फ "सर्वखाप के अखाडा मिल्ट्री कल्चर" की बदौलत|
11) वह भरतपुर रियासत किसकी देन थी जो ना कभी मुग़लों से हारी, न पेशवाओं से व् ना ही कभी अंग्रेजों से? - इसी सर्वखाप अखाडा मिल्ट्री कल्चर की|
12) 1857 की क्रांति में अंग्रेजों को इतनी मुखर टक्कर देने वाली आर्मी कौन थी कि जिसकी ताकत को तोड़ने हेतु अंग्रेजों ने विशाल हरयाणा के ही "यमुना आर" व् "यमुना पार" बोल के दो टुकड़े कर दिए? - यही बाबा शाहमल तोमर व् अन्य दर्जनों खाप चौधरियों के नेतृत्व वाली सर्वखाप आर्मी|

यानि जहाँ सर्वखाप सिस्टम से अलग सिस्टम से निकले राजे-रजवाड़े फ़ैल हो जाते थे, माइथोलोजियों की गपेड़ों वाले वीर कहीं हकीकत व् प्रैक्टिकल में नजर नहीं आये कभी; वहां हमारी सर्वखापेँ बार-बार आगे आती रही और राजे-रजवाड़ों व् धर्म वालों के दावे-ढकोसलों के फ़ैल होने पर भी देश के सिस्टम को विदेशियों के पंजों में मानवता की क्रूरता की हद तक पडने से बार-बार बचाती रही|

भाड़ में जाओ जाट बनाम नॉन-जाट की बकवास और चूल्हे में पड़ो ऐसी पोस्ट्स लिखने पर मुझमे व् मेरी पोस्टों में जातिवाद देखने वाले जनावर; तुम्हें गोलूँगा तो यह इतिहास, यह किनशिप कैसे पास करूँगा आगे की पीढ़ियों को? क्योंकि तुम तो फिल्मों-टीवियों आदि में कभी यह इतिहास ये वीर ये यौद्धेय-यौद्धेयायें दिखाते नहीं, मंदिरों के स्पीकरों से कभी इनके किस्से सुनाते नहीं बल्कि उल्टा सर्वखाप सिस्टम से निकले इकलौते अजेय भरतपुर साम्राज्य के अफ्लातूनों जैसे कि महाराजा सूरजमल जैसी अजेय-देदीप्यमान हस्तियों को "पानीपत" जैसी फिल्मों में हंसी का पात्र बनाते पाए जाते हो? हाँ, जाट जाति के गौरव को गाऊंगा, किसी अन्य जाति को नीचे दिखाऊं तो तुम्हारी जूती और मेरा सर|

इस इतिहास व् सिस्टम को वैसे तो सारा देश याद करे परन्तु आज सातवें जाटरात्रे के दिन जाट समाज तो कम-से-कम ना सिर्फ याद करे वरन ऐसे तमाम खाप-यौद्धेयों व् उनके "अखाडा मिल्ट्री कल्चर" को शीश नवाएँ-गाएं-बताएं-सुने-सुनाएँ| गर्व की बात है कि हमारे खापलैंड के गाम-खेड़ों के इसी मिल्ट्री कल्चर रुपी अखाड़ों से ही देश की डिफेंस फोर्सेज में सबसे ज्यादा जवान जाते हैं| वर्ल्ड वार 1 व् 2 में आधा दर्जन से भी ज्यादा 'विक्टोरिया-क्रॉस' वीरता मेडल्स लाते हैं| जिन जाटों को सराहने के नाम पर तथाकथित स्वधर्मी ग्रंथी व् लेखकों की कलमों की स्याही सूख जाती है, वही जाट जाति अंग्रेजों से "रॉयल रेस" का टाइटल व् पहचान पाती है| और इन सब उपलब्धियों की जड़ों में कोई है तो वह है "सर्वखाप का अखाडा मिल्ट्री कल्चर"| किसी ने सही कहा है, "इतने बड़े वीर, दुनियाँ बड़े-बड़े राजे-रजवाड़े, धर्माधीस व् अधिनायकवादी नेता बना के नहीं खड़े कर पाती, जितने बड़े सर्वखाप का "अखाड़ा मिल्ट्री कल्चर" बच्चों के खेल की भाँति देता आया है"|

सनातनी लोग फेनेटिक हैं सर्वखाप सिस्टम के: इसीलिए इन्होनें भी सर्वखाप अखाड़ों की तर्ज पर अपने अखाड़े बनाये परन्तु हमारे अखाड़ों वाला मिल्ट्री-कल्चर इनके अखाड़ों में आज तक नहीं पाल पाए या कहिये कि उस स्तर की बुलंदी तक कभी नहीं पहुँच पाए| सर्वखाप कल्चर से निकली भरतपुर रियासत ने जब अंग्रेजों को सन 1804 में 4 महीनों के भीतर 13 बार हराया तो, इनको फेनेटिज्म हुआ कि हम भी कुछ ऐसा ही पृथ्वीराज चौहान के बारे फैला देते हैं कि उन्होंने भी गौरी को 17 बार हराया था| जबकि दूसरी बार में तो गौरी ने पृथ्वीराज जी को मार ही दिया था| यहाँ यह बात एक तथ्य के तौर पर बताई गई है अन्यथा लेखक पृथ्वीराज चौहान जी की महानता का तहेदिल से प्रसंशक है क्योंकि वीरता व् कीर्तिमान में चौहान जी के नाम भी यह कीर्तिमान है कि उन्होंने एक बार गौर को हराया था|

पोस्ट के साथ सलंगित कर रहा हूँ सर्वजातीय सर्वधर्म सर्वखाप के हेडक्वार्टर चबूतरे (चौंतरे) व् चौपाल (परस) की फोटो व् इस दर-धाम पर किन-किन राजाओं-नवाबों-शहंशाओं ने शीश नवाये उसकी फेहरिस्त; पोस्ट के साथ इसको भी पढ़ना ना भूलें|

माफ़ी: समय की कमी व् प्रोफेशनल व्यस्तताओं के चलते, हर जाट-रात्रे की व्याख्या हेतु इतनी डिटेल्ड पोस्ट्स नहीं दे पा रहा हूँ | हालाँकि इस विषय की प्रथम पोस्ट में 18 के 18 रात्रों के शीर्षकों की सूची दे दी गई थी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


Thursday, 26 December 2019

सुनी है बीएचयू में "भूत विधा" का सर्टिफिकेशन कोर्स शुरू हुआ है, सोचा उनको इसके लिए एक चैप्टर सुझा दिया जाए; सिलेबस में जोड़ने हेतु!


तो चैप्टर इस प्रकार है:

चैप्टर का शीर्षक: "जाट ने जब जोड़ा भूत के श्मशान में हल"|

चैप्टर की व्याख्या:

एक बार, एक जाट ने शमशान घाट में हल जोड़ दिया, भूत कितै बाहर जा रहा था। भूतनी जाट न डरावन खातिर कांव कांव करण लागी, पर जाट न कोई परवाह नही की ।

आख़िर भूतनी बोली, “जाट तू यो के करै सै?”
जाट बोल्या, “मैं यहां बाजरा बोवुंगा!”
भूतनी बोली, “हम कित रवैंगे?”
जाट बोल्या, “मनै थारा ठेका कोनी ले राख्या"।
भूतनी बोली, “तू म्हारे घर का नास मत कर, इसके बदले हम तेरे घर मै 100 मण बाजरा भिजवा देगें”!
जाट बोल्या, “ठीक सै लेकिन बाजरा कल पहुॅचना चाहिए नहीं तो मैं फेर आ के हल जोड़ दूंगा”?
शाम नै भूत घर आया तो भूतनी बोली आज तो नास होग्या था, न्यूं न्यूं बणी। जाट 100 मण बाजरे में मान्या सै।
भूत ने भोत गुस्सा आया और बोल्या, "तने क्यों 100 मण बाजरे की ओट्टी, मन्ने इसे जाट भतेरे देखे सै, मन्नह उसका घर बता मैं उसने सीधा कर दूंगा। और भूत जाट के घर गया।
जाट के घर मैं एक बिल्ली हिल रही थी। वो रोज आके दूध पी जाया करती। जाट ने खिड़की में एक सिकंजा लगा लिया और रस्सी पकड़ के बैठ गया कि आज बिल्ली आवेगी और मैं उसने पकडूँगा। भुत न सोची तू खिड़की म बड़के, जाट न डरा दे। वो भीतर न नाड़ करके खुर्र-खुर्र करने लगा। जाट नै सोची कि बिल्ली आगी। उसने फट रस्सी खिंची और भूत की नाड़ सिकंजे मैं फंसगी। वो चिर्र्र–चिर्र्र करने लगा।

जाट बोल्या, "रै तू कोण सै?
वो बोल्या, "मैं भूत सूं"।
जाट बोल्या, "अङै के करै सै?"
भूत बोल्या, “मैं तो न्यू बुझण आया था के तू 100 मण बाजरे मैं मान ज्यागा या पूली भी साथै भिजवानी सै?

पुरखों वाली यह स्वछंदता व् निर्भीक-बेखटक आध्यात्मिकता बनी रहे!

जिस किसी का मौका लगे इस कोर्स-सर्टिफिकेशन में एडमिशन लेवे, वैसे भी मात्र छह महीने का कोर्स है| स्वागत है ऐसे कोर्स का, यह कोर्स हर यूनिवर्सिटी में होने चाहियें ताकि लोग इन बाबे-पाखंडियों के तंत्र-मंत्रों में पड़ने की बजाये हकीकत को लॉजिकली व् साइकोलॉजिकली समझें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

फंडी को the best reply होता है!

फंडियों को आपने अक्सर लोगों को यह कहकर मुस्लिमों से डराते उनके खिलाफ बहकाते-भड़काते तो सुना ही होगा कि, "एक बार जिस देश की मुस्लिम जनसंख्या 30% भी हो गई, उस देश में फिर 25 साल के अंदर मुस्लिम किसी को भी जीवित नहीं छोडते"|

सुसरो, उनकी छोडो, तुम्हारी जिस देश में 30 तो क्या 3% भी आबादी हो गई तुमने उस देश को जीते-जी नर्क बना डाला है| तुम्हारे प्रभाव व् डरावे में आने वाले हर एक दिमाग को "घूं-गोबर-गारा का ढेर" कर छोड़ा है| और इसके अलावा तुम्हारा कोई इतिहास नहीं, सृष्टि के उद्गम से लेकर आजतक|

इसलिए मुस्लिम से बचो या ना बचो परन्तु इन फंडियों से सबसे पहले बचो| मुस्लिम तो तुम्हें सामने से बोल के मारेगा अगर मारेगा भी तो परन्तु यह हरामी तो वह जहर हैं जो तुम्हारा दिमाग से ले अस्थिपिंजर पहले खोखला करते हैं और फिर जो चाहे वह गोबर तुममें भरते हैं| इसलिए फंडी की छाया से भी बच के चलो; ऐसे मनहूस कलंक हैं ये मानवता के कोढ़|

फंडी को the best reply होता है, "Simply don't react on their बकवास (whatever they say), rather move ahead silently".

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

वेस्टर्न यूपी में मुस्लिम भाईयों के प्रति सर्वखाप को निभाना होगा सर्वखाप के पुरखों वाला सन 1947 का रोल!


वह रोल जिसके कारण 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे के चलते वेस्ट-यूपी बेल्ट में हिन्दू-मुस्लिम दंगों के नाम पर चिड़िया भी नहीं फड़फड़ाई थी जबकि बाकी इंडिया में भयंकर दंगे हुए थे| तब सर्वखाप चौधरियों ने एकमुश्त फैसला दिया था कि ना यहाँ से कोई जायेगा और ना यहाँ कोई आएगा| जाट-गुर्जर-ओबीसी सब लठ लेकर पहरे पर खड़े हो गए थे कि देखें कौन मुस्लिमों की तरफ आँख उठाकर देखता है| और वाकई में उस वक्त वेस्ट यूपी में एक भी दंगा नहीं हुआ था|

और आज के हालातों में ऐसा करना सिर्फ इसलिए जरूरी नहीं है कि ऐसा आपके पुरखों ने किया था| इसकी सबसे बड़ी वजह है इस बेल्ट के किसान की इकॉनमी की| जिसको तोड़ने हेतु यह तथाकथित स्वधर्मी ही सबसे ज्यादा आमादा हैं| यह आपके खेतों-खलिहानों के सीरी-साझी आपसे छीनना चाहते हैं| ताकि आपको खेतों के लिए जायज दाम पर मजदूर ही ना मिल सके और इन तथाकथित स्वधर्मी व्यापारियों के "कॉर्पोरेट खेती" के सपने को रास्ता मिल सके| इनकी बहकाई में आये तो बाजू पकड़-पकड़ फेंकेगे यह तथाकथित स्वधर्मी ही आपको आपकी ही जमीनों-खेतों से, तो जरा संभाल के सावधान हो के|

सनद रहे, वेस्टर्न यूपी के किसानों के गन्ने का भुगतान नहीं करने वाली सुगरमीलों के 95% मालिक आपके स्वधर्मी हैं, मुस्लिम नहीं| झगड़ा-लफड़ा करना है तो इनके साथ करो, जो आपकी पेमेंट्स दबाये बैठे हैं| मुस्लिम के साथ झगड़े में पड़ कर इनको मार बेशक लोगे परन्तु बाद में ऐसे ही पछताओगे जैसे "कुत्ते को मार बंजारा रोया था"|

हर प्रकार की किसान राजनीति भी यही कहती है| चाहे वह किसान-जमींदार राजनीति सर छोटूराम आइडियोलॉजी की रही, चौधरी चरण सिंह वाली रही, ताऊ देवीलाल वाली रही या बाबा महेंद्र सिंह टिकैत वाली रही|

वैसे भी इस बनाम उस के भुग्तभोगी आपके पडोसी राज्य के आपके ही हिन्दू जाट भाई रहे हैं Feb 2016 में आपने सब अपनी आँखों से बखूबी देखा है| 2013 वाले मुज़फरनगर दंगों में भी आपने देखा ही था ना, कि किस तरह हिन्दू-बनाम-मुस्लिम की लड़ाई उछाल कर बाद में आपके स्वधर्मी ही उस लड़ाई को जाट बनाम नॉन-जाट का रूप दे के "लगा के बण में आग दमालो दूर खड़ी" की तर्ज पर साइड हो लिए थे? उसके बाद क्या हुआ सस्ता व् भरोसेमंद सीरी-साझी गया आपका गया, खेत की लेबर के रेट आसमान चढ़े वह अलग?

तो कृपया ऐसा ना करे वेस्ट यूपी का समाज चाहे वह दलित हो या जाट हो, ओबीसी या अन्य कोई बिरादरी| और अगर सर्वखाप यह ऐलान कर दे कि हम यहाँ पत्ता भी नहीं हिलने देंगे तो क्या योगी और क्या मोदी; औकात नहीं इनकी कि वेस्टर्न यूपी में धार्मिक दंगों के नाम पर एक पत्ता भी हिलवा सकें| जिसके कि आ रही हाल की रिपोर्टों से पूरे आसार बनवाये जाने की खबरें हैं|

हे चौधरियों! अपने पुरखों सी सूझबूझ व् स्वछंदता पालते हुए मानवता पालना, धर्मान्धता नहीं| इन बहरूपिये भगवा भोगीयों के बहकावे में मत आना वरना पीढ़ियाँ लग जाएँगी बना-बनाया, बसा-बसाया यह उपवन फिर से हरा-भरा करने को| वैसे ही बहुत आर्थिक तंगी से ले सामाजिक अस्तित्व की तंगी झेल रहे हो, और मत बोझ डालना अपनी आने वाली पीढ़ियों पर, इन लफड़ों में झुलस कर|

जो मेरी इस पोस्ट से सहमत हो, कृपया इसको ज्यादा से ज्यादा शेयर करे, कॉपी-पेस्ट करके इतना फैलाएं कि जो चौधरी (चौधरी चाहे वह यूपी वाले हों, हरयाणा-दिल्ली-पंजाब या राजस्थान वाले सबको भेजिए) वेस्ट यूपी को इस काल के ग्रास से बचा सकते हों, उन तक यह जरूर से जरूर पहुंचें| तुमको-हमको-आपको हमारे पुरखों के गौरवशाली मानवीय इतिहास की ओर देखना होगा| इन भगवा राष्ट्रवादी फलहरीयों का कुछ नहीं बिगड़ेगा, यह तो कोई झोला उठाकर चल देगा तो कोई जंगलों-पहाड़ों में जा छुपेगा, चढ़ेगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 23 December 2019

आज किसान दिवस पर यह फोटो और इसकी बानगी हर किसान की औलाद कम-से-कम जरूर देखे-जाने व् समझे!

आप भी कहोगे कि "किसान दिवस" है पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह का जन्मदिवस है और मैं आपको फोटो बाबा टिकैत की दिखा रहा हूँ? चंद लाईनों में ही मेरा मंतव्य बतला देता हूँ|

इस तस्वीर के जरिये दो बातें याद दिलाना चाहता हूँ:

1 - किन मस्सकतो के बाद मिला था किसानों को "किसान-घाट": सेण्टर से मनाही आने पर बाबा टिकैत ने राजीव गाँधी को दो टूक में कह दिया था कि, "या तो बड़े चौधरी चरण सिंह की समाधि हेतु दिल्ली राजघाट पर जगह दो, अन्यथा 48 घंटे बाद कस्सियों-फावड़ों-कुदालों से महात्मा गाँधी व् इंदिरा गांधी की समाधियाँ ठीक वैसे ही उखाड़ फेंकी जाएँगी जैसे सर्वखाप यौद्धेय राजाराम जाट जी ने गॉड गोकुला जी की शहादत से क्रोधित हो अकबर की कब्र खोद, उसकी हड्डियों की चिता बना के जला डाली थी"| तब जा कर आनन-फानन में राजीव गाँधी के होश ठिकाने आये थे और चौधरी चरण सिंह के पार्थिव शरीर के लिए "किसान-घाट" बनाया गया था| 

2 - "धर्म जरूरी है परन्तु अँधा होने की हद तक नहीं": आज जो भी तमाम जातियों-वर्णों-धर्मों की किसानों की औलादें धर्म नाम की अफीम सूंघें टूल रही हैं आज वह इस फोटो को देखें और अंदाजा लगा लें कि क्या तुम्हारे पुरखों की हस्ती-औकात-बिसात थी कि हिन्दू-मुस्लिम-सिख सब धर्मों के प्रतिनिधि तुम्हारे पुरखों के मुंह ताकते थे और एक आज तुम हो कि तुम इन तथाकथित धर्म वालों के मुंह ताकते फिर रहे हो| बस इसी से अंदाजा लगा लो कि अपने पुरखों के ऐवज में अपनी औकात बढ़ाये हो या घटाए हो| मेरा आशय यह भी नहीं है कि तुम धर्म का अपमान करो परन्तु उसको उसकी जगह पर रखो, सर पर नहीं| धर्म के भीतर आपकी "किसान" नाम से, किसान की औलाद नाम से भी एक हस्ती है, जिसको सबसे ज्यादा कम्पटीशन आपके धर्म वाला व्यापारी हो या पुजारी वह देता है ना कि कोई गैर-धर्मी| और अगर अपनी यह हस्ती और आर्थिक हालत दुरुस्त रखनी है तो धर्मवालों को आपके पुरखों की भाँति उनकी जगह-स्थान दिखा के रखो|

इसी संदेश के साथ आपको "किसान-दिवस" की हार्थिक शुभकामनायें! 

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


Sunday, 22 December 2019

79 जातीय आधारित हरयाणवी कहावतों में 64 ऐसी हैं जिनमें "जाट" मौजूद है!


यह प्रस्तुति दूसरे जाटरात्रे यानि 24 दिसंबर के उपलक्ष्य में इस रात्रे का शीर्षक "कहावतों, आम बोलचालों व् राजकीय-राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय साहित्य में जाट" विषय के तहत है|

दूसरे जाटरात्रे को मनाने का थीम है - "जाट किसे-नैं घी-दूध खुवावैगा, तो गळ म रस्सा डाल कें"|

मुख्य मंथन क्या करें - "किसी जाति या मानव-समूह का उससे संबंधित कल्चर-कस्टम-लोक्कोक्ति-लोकवाणी-साहित्य-संवाद में कितना स्थान होता है, स्थानीय कहावतें-बातें-मुहावरे उसको जानने का सबसे बढ़िया जरिया होते हैं| जिस समाज का इनमें जितना ज्यादा स्थान वह समाज उतना अग्रणी-सम्मानित-स्थापित-टिकाऊ व् भरोसेमंद होता है"|

अब इन 79 जातीय आधारित हरयाणवी कहावतों में ही देख लीजिये, 64 ऐसी हैं जिनमें जाट जरूर है| हो सकता है कुल संख्या 79 से ज्यादा हो शायद 100 हो, 120, 150 या 200 भी होंगी तो इतना मानता हूँ कि जैसे 64/79 = 81% कहावतों में जाट है तो 200 भी हुई तो इतना अंदाजा है कि जाट न्यूनतम 50% में तो जरूर मिल जायेगा| तो एक जाट के तौर पर आपका-हमारा द्वितीय जाटरात्रे का मकसद यह होना चाहिए कि यह समझा-समझाया जाना चाहिए कि जिन पुरखों की वजह से यह कहावतें हैं, उनके क्या कर्म-सोच-साइकोलॉजिकल थ्योरियां रही होंगी जो "जाट" शब्द को इतना प्रचुर मात्रा में इनमें स्थान मिला|

एक अनुरोध है: जाट बारे अच्छी हैं तो अच्छी लिखी हैं और बुरी हैं तो बुरी परन्तु लिखी हैं ज्यों-की-त्यों, और ऐसे ही बाकी जिस भी बिरादरी की हैं ज्यों-की-त्यों वह लिखी हैं; मकसद सिर्फ कल्चरल हेरिटेज को 'किनशिप' कांसेप्ट के तहत अगली जनरेशन को पास करना है; तो कोई भाई/बहन खामखा सर मत हो जाना मेरे|

इन्हीं शद्बों के साथ प्रस्तुत हैं 79 कहावतें 2 भागों में, पहले में 64 जिनमें "जाट" शब्द जरूर है व् दूसरे में 15 जो साथी बिरादरियों बारे हैं:

Part 1:
1. जाट किसे-नैं घी-दूध खुवावैगा, तो गळ म रस्सा डाल कें|
2. जाट रांडा मरे वो दुर्भागा, ब्राह्मण भूखा मरे वो दुर्भागा|
3. अनपढ़ जाट पढ़े जैसा, अर पढ़या जाट खुदा जैसा!
4. मति मरी जाट की, रांगढ़ राख्या हाळी; वो उसनै काम कहे, ओ दे उसने गाळी!
5. ओच्छा बाणिया, बोराया जाट, मरूं-मरूं करदा बाह्मण, गोद लिया छोरा, ओच्छे की प्रीत, बाल्लू की भींत; कदे सुख ना दें!
6. कविता सोहै भाट की, खेती सोहै जाट की!
7. काटे जाट का, सीखै नाई का!
8. काळा बाह्मण, धोळा चमार, तिलकधारी बाणीया अर कैरे जाट तें बच कें रहणा चहिये!
9. खेती जट्ट की, बाजी नट की!
10. खागडा की लड़ाई म्ह, भेड़िये की चतराई म्ह अर जाट की बुराई म्ह कदे नी फहना चाहिए!
11. गूमड़ा अर जाटडा, बंधे ही भले!
12. गुज्जर के सौ, जाट के नौ (अनाज-दलहन आदि) और माळी के दो किल्ले (फल-फूल-सब्जी) बराबर हो सें|
13. जाट बाहरने (दर) पै आये के घर तक बसा दे!
14. जाट ने हारया तब जाणिये, ज्ब कह पुराणी बात!
15. जाट छिक्या अर राह रुक्या!
16. जाटडा अर काटडा, आपणे नै ऐ मारें!
17. जाट-जाट का दुश्मन, ज्यांते जाट की 36 कौम दुश्मन!
18. जाट-जाट के साठे करदे, घाले-माले!
19. जाट जब तक साथी, हाथ म्ह होवै लाठी!
20. जाण मारे बाणिया, पिछाण मारे जाट!
21. आग्गम बुद्धि बाणिया, पाच्छ्म बुद्धि जाट!
22. बावन बुद्धि बणिया, छप्पन बुद्धि जाट|
23. जाट बलवान जय भगवान!
24. जाट कै लागी हंगाई, म्हास बेच कै घोड़ी बिशाई!
25. जाट अर सांप म्ह तै पहल्यां किसने मारे, सांप नै जाण दे अर जाट नै समारे!
26. जाट, बैरागी, नटवा, चौथा राज-दरबार, यें चारों बांधे भले, खुल्ले करें बिगाड़!
27. जाट जब दुश्मन पिछानना अर मंत्रणा करणी शुरु कर दे, तै सब काहें नै कूण म्ह धर दे!
28. जाट एक समुन्दर सै अर जो भी दरिया (जाती) इसमै पड़ती है वाः समुन्दर की बण ज्या सै!
29. जाट एक दमड़ी पै लहू-लुहान, बाणिया सौ पै भी ना खींचा-ताण!
30. जाट जितना कटेगा, उतना ही बढ़ेगा!
31. जाट सोई पांचों झटकै, खासी मन ज्यों निशदिन अटकै!
32. जाट जाट को मारता यही है भारी खोट, ये सारे मिल जायें तो अजेय इनका कोट!
33. जाट नै मरया जद जाणिये जब उसकी तेरहँवी हो ले|
34. जाट नै कै तै जाट मारै अर नहीं तै भगवान (जाट को मारै जाट या फिर करतार)
35. जाट तैं यारी अर शेर की सवारी - एक बात हो सें|
36. जाट ठाणे जो मरोड़, भला कौन दे तोड़|
37. जाटनी कदे विधवा ना होती (प्राचीन विधवा-विवाह प्रचलन की वजह से)|
38. जाट कै तो खा कै मरेगा कै बोझ ठा कै मरेगा|
39. जाटां का बुड्ढा, बुढापे मै बिगड़या करै|
40. जाट नाट्या अर कर्जा पाट्या|
41. जाट रै जाट, खड़ी करदे तेरी खाट - बीज खोस ले बोण नी दे, सोड़ खोस ले सोण नी दे, डोग्गा मारै रोण नी दे|
42. दो पाटा के बचाल्ये साबत बच्या ना जाट!
43. नट विद्या आ जावै पर जट्ट विद्या कोनी आवै|
44. पात्थर म्ह घुणाई कोन्या, जाट म्ह समाई कोन्या!
45. बिन जाटां किसने पाणीपत जीते!
46. ब्राह्मण खा मरे, तो जाट उठा मरे!
47. बणिया हाकिम, ब्राह्मण शाह, जाट मुहासिब, जुल्म खुदा।
48. भूरा चमार, काला जाट अर कानी लुगाई, काले भीतर आले बताये!
49. भरा पेट जाट का, हाथी को भी गधा बतावे!
50. भरा पेट जाट का, अम्बर म्ह मओहरे करे!
51. माँगे तो, जाट दे ना गंडा भी, ब्यन मांगे दे दे भेल्ली|
52. मकौड़ा, घोड़ा और जठोड़ा पकड़ने पर कभी छोड़ते नहीं!
53. जाट मर्द साठा ते पाठा|
54. एक नट की कला की गहराई मापी जा सकती है लेकिन एक जाट की बुद्धि की कभी नहीं|
55. मिट्टी के बर्तन म्ह धरया घी, हिन्दू की दाड़ी, कई बेटियों वाले पिता और जाट को दिए कर्ज का कभी भरोसा नहीं करना चाहिए|
56. जाटां का समूह, अळसु-पळसु बाताँ का ढूह|
57. जाट जब आप्पे तैं बाहर हो ज्या तो खुदा-ए उसनें थाम सकै|
58. जाट की हांसी आम आदमी की पसली चटका दे|
59. निरे सफ़ेद कपड़े पहनने वाले और मांस (चिकन) खाने वाले जाट की ऋणदेन पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए|
60. ऐकले जाट कै फसियो ना, इनकी पंचायत तैं डरियो ना!
61. जाट रे जाट, सोलह दूनी आठ!
62. जाट रे जाट, तेरे सर पे खाट, तेली रे तेली, तेरे सर पर कोल्हू|
63. जाट जब तक साथी, हाथ में होवै लाठी|
64. जाटड़ा और काटड़ा, अपने को मारे|

Part 2:
1. कुम्हार गधे पै फल्लारे मारै|
2. जै बाणिया बणज्या हाक्क्म, तो गजब खुदा!
3. इह्सा भाज्दा हंडे सै, ज्यूँ गहण म चूड़ा!
4. काश की खेती,साँस की ब्यमारी, बीर तैं बैर अर हीर तैं यारी कदे ना निभै!
5. चूड़ा रग देख कें लठ मारया करै|
6. देखी भाळी डूमणी, गावै औल-पचौल!
7. नयी-नयी मुसल्लमानणी, अल्लाह-ए-अल्लाह पुकारै|
8. नाईयां के ब्याह म्ह होक्का कूण भरे|
9. न्यूं बोअळा होया हाँडै जाणु बिगड़े ब्याह म नाई!
10. परहेज पुगाण बाणिया सबतें पक्का बताया अर बाह्मण, नाई अर लुगाई सबतें कच्चे बताये|
11. ब्राह्मण भूखा भी बुरा तो धापा भी बुरा!
12. बीर, बाणिया, पुलय्स, ड्रेवर, बच्छ्यु, सांप, गव्हेरा, जिसकै मारैं डंक गात में, दीखे घोर अँधेरा|
13. भूले ब्राह्मण भेड़ खाई, अर फेर खाऊं तो राम-दुहाई!
14. लोभ लाग्या बाणीया, चून्दें लाग्या गौका (गाय), रुकें तै रुके रहं ना तै चाल्ले-ए-जाँ!
15. गाम बसाये बाणीये,पार पड़ै तो जाणिए|

उद्घोषणा: लेखक सर्वसमाज-सर्वधर्म का पैरोकार है जब तक बात समाज को एक सामूहिक परिवार की भाँति चलाने की आती है तो| यह लेख घर के भीतर के एक सदस्य को उस घर में उसके योगदान-सहयोग-सम्पर्ण आदि बता उसकी हस्ती को जिन्दा रख एक 'किनशिप' के नियम के तहत अगली पीढ़ी को पास करने की कवायद भर है| इसके अलावा घर के जिस सदस्य के लिए यह लिखा जा रहा है यानि "जाट" वह हमेशा यह बात सबसे ऊपर रखेगा कि समाज रुपी इस सामूहिक परिवार में उसके साथ 36 बिरादरी व् सर्वधर्म रहते हैं| इसलिए इस लेख में बताई गई बातों को खुद की हस्ती बारे जागरूकता तक ही प्रयोग करेगा| कहीं भी, किसी भी हालात में यह लेख कोई भी द्वेष-घमंड-अहम्-तुलना पालने या उसका प्रदर्शन करने का जरिया नहीं बनाया जाए| ऐसा करने वाले असली "जाट के जाम" नहीं माने जायेंगे| लाजिमी है कि ऐसी मति को ठीक करके ही इस लेख को पढ़ें, तभी इसका मंतव्य समझ आएगा, इसको पढ़ने में लुत्फ़ आएगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 21 December 2019

कल से शुरू हो रहे 18 जाटरात्रों को मनाने की विधि!

एक उद्घोषणा: लेखक सर्वसमाज-सर्वधर्म का पैरोकार है जब तक बात समाज को एक सामूहिक परिवार की भाँति चलाने की आती है तो| यह लेख घर के भीतर के एक सदस्य को उस घर में उसके योगदान-सहयोग-सम्पर्ण आदि बता उसकी हस्ती को जिन्दा रख एक 'किनशिप' के नियम के तहत अगली पीढ़ी को पास करने की कवायद भर है| इसके अलावा घर के जिस सदस्य के लिए यह लिखा जा रहा है यानि "जाट" वह हमेशा यह बात सबसे ऊपर रखेगा कि समाज रुपी इस सामूहिक परिवार में उसके साथ 36 बिरादरी व् सर्वधर्म रहते हैं| इसलिए इस लेख में बताई गई बातों को खुद की हस्ती बारे जागरूकता तक ही प्रयोग करेगा| कहीं भी, किसी भी हालात में यह लेख कोई भी द्वेष-घमंड-अहम्-तुलना पालने या उसका प्रदर्शन करने का जरिया नहीं बनाया जाए| ऐसा करने वाले असली "जाट के जाम" नहीं माने जायेंगे| लाजिमी है कि ऐसी मति को ठीक करके ही इस लेख को पढ़ें अन्यथा यहीं तक पढ़ के छोड़ दें|

यही मौसम सबसे प्रयुक्त क्यों?: सर्दियों का मौसम, खेतों में तमाम तरह की बुवाई-बहाई हो चुकी है| बस फसलों को पानी देना या गन्ना (गंडा) छोलना मुख्यत: यही दो काम रहते हैं| सर्दी शिखर पर होती है तो क्या गाम वाला क्या शहर वाला, हर कोई गूदड़ों में दुबका रहना पसंद करता है| यानि अधिकतर कुणबा घर में ही होता है| छोटे-बड़े लगभग फुरसत में होते हैं| स्कूली बच्चों की भी कहीं क्रिसमस की, तो कहीं सर्दी की तो कहीं नए साल की छुट्टियाँ होती हैं| संयोग यह भी है कि इन्हीं रात्रों के दौरान न्यूनतम 5 सिर्फ जाट ही नहीं अपितु हिंदुस्तान की महानतम हस्तियों में सुमार हस्तियों के जन्म अथवा बलिदान दिवस भी आते हैं| तो ऐसे में मौका है कि घर व् आसपड़ोस के बड़े, बच्चों व् जवानों समेत एक साथ बैठें व् 18 अध्यायों में रोज एक अध्याय की भाँति 18 जाट-रात्रों के जरिये कुछ यूँ अपनी "किनशिप" को आगे की पीढ़ियों को पास करें, 'किनशिप' को डेवेलोप करें:

पहला जाटरात्रा -
दिन - 23 दिसंबर
खास बात - बड़े चौधरी साहब का जन्मदिवस
इस रात्रे का शीर्षक "जाट वास्तुकला-स्थापत्यकला-भवन-हवेली निर्माण रुचि-गाम-खेड़े सरंचना-आर्ट व् कला"|
इसको मनाने का थीम - "अनपढ़ जाट पढ़े जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा"|
मुख्य मंथन क्या करें - "विचारें कि हमारे पुरखे 99% ग्रामीण व् अक्षरज्ञान में नगण्य होते हुए भी सत्यार्थ-प्रकाश जैसे ग्रंथों में "जाट जी" व् "जाट देवता" कहला गए और आप-हम उसके विपरीत "35 बनाम 1" या "जाट बनाम नॉन-जाट" झेल रहे?"

उत्सव स्वरूप क्या चर्चा करें?: आपस में बताएं कि जाट समाज कैसे परस-चौपाल-चुपाड़, कुँए-जोहड़ों व् उनपे बुर्ज-बुर्जी, दादा नगर खेड़ों के मात्र एक कमरा आकार के धोक-ज्योत के धाम, हवेलीयों आदि के निर्माण में कैसी नक्कासी आदि प्रयोग करता रहा है| क्यों पुरखों की हवेलियां बाई-डिफ़ॉल्ट गर्मियों में ठंडी व् सर्दियों में गर्म रहती थी| बताएं कि जाटलैंड जहाँ तक है इंडिया में कम्युनिटी गैदरिंग की परस-चौपाल सिर्फ वही तक मिलती हैं; इस हद के बाहर इनका नामो-निशां मिलता है तो फिर सीधा इंडिया से बाहर यूरोप-अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया में ही मिलता है| कैसे यह मिनी फोर्ट्रेस परस-चौपाल हर प्रकार के धार्मिक व् राजनयिक स्थल से उच्च स्तर की इंसानियत पालती आई हैं, आदि-आदि|

इसी से संबंधित कुछ फोटोज इस पोस्ट के साथ लगा रहा हूँ| तो कल बड़े चौधरी साहब की जीवनी समेत, "जाट वास्तुकला-स्थापत्यकला-भवन-हवेली निर्माण रुचि-गाम-खेड़े सरंचना-आर्ट व् कला" बारे आपस में बताएं-पूछें-जानें-समझें| बच्चों को इस पोस्ट की फोटोज भी दिखा सकते हैं शेयर कर सकते हैं| वैसे भी इन फोटोज को नेशनल-स्टेट आदि लेवल का कोई ही पाठ्यक्रम शायद कवर करता हो, जाट के नाम से तो छोडो "हरयाणवी कल्चर" के नाम तक से नहीं| इसलिए यह करना और भी लाजिमी हो जाता है|

मैंने यहाँ "जाट" की बजाये "हरयाणवी" इसलिए बोला है कि "हरयाणवी कल्चर" अकेले जाट से नहीं बनता; 36 बिरादरी व् सर्वधर्मों के गठबंधन से बनता है| इसलिए यह "जाट-रात्रे" मनाते वक्त सिर्फ अपनी हस्ती का अनुभव करें, किसी भी अलगाव या तुलना का नहीं| क्योंकि यह परस-चौपाल आदि तक में सम्पूर्ण हरयाणवी समाज का सहयोग है| ऐसा होते हुए भी इस विषय को पहला जाट-रात्रा इसलिए चुना क्योंकि हरयाणवी समाज में जाट-समाज का इसमें सबसे अधिक सहयोग व् रुचि रही है शायद न्यूनतम 50 से ले 80% तक| परस-चौपाल के रखरखाव के लिए सरकारी ग्रांट्स मिलना आजकल की कहानी है अन्यथा मुख्यत: जाट-समाज समेत अन्य बिरादरियों के दान-सहयोग से ही यह इमारतें बना करती थी, आज भी अधिकतर ऐसे ही बनती हैं|

इसी तरह अगले 17 रात्रों पर एक दिन एडवांस में 17 रात्रों बारे बताता जाऊँगा| अगर लगा कि दैनिक व्यस्तताओं के चलते वक्त की कमी है तो शायद उस दिन बाकी बचे रात्रों बारे ब्रीफ में एक ही पोस्ट भी निकाल दूँ| सम्पूर्ण जाट-रात्रों की सूची जरूर आज ही डाल रहा हूँ, यह रही इंग्लिश में:

1 - 23 December - Art & Construction Heritage of Jats (Paras-Chaupal-Kuen-Burj-Habitation Structure)
2 - 24 December - Proverbs, Slangs and Literature of Jats (All folk sayings around jats)
3 - 25 December – the Princely States of Jats (All global to domestic prince states of Jats)
4 - 26 December – Spirituality of Dada Nagar Kheda / Dada Bhaiya / Gaam Kheda / Baba Bhoomiya / Jathera – A system of statueless priestless worshipping of ancestors and nature as a prime power. Along with the Jat spiritual leaders.
5 - 27 December – Gender Sensitivity, Gaut and Kheda System and Humanity in Jats and Khaps
6 - 28 December – Basics and Golden Belief System, Barter Distribution and Partner Working Culture of “Udarvadi-Jamindari”
7 - 29 December – Military Culture of Akhadas under Sarvkhap Social Security and Safety System, their contribution in World War 1 & 2 and present-day official defenses of India
8 - 30 December – Social Engineering Legend of Sarvkhaps to maintain Brotherhood and Justice in the society and traditional Lhaas system
9 - 31 December –Custom-Costume-Culture-Folklores-Art and Music-Legendary Kissas of Jats and Khaps
10 - 1 January – History and Legends of Khaps and Yauddheyas ( a brief note)
11 - 2 January – History and geography of vishal Haryana (a brief note)
12 - 3 January – Languages of Jats and Khaps – special focus on “Haryanvi is a language and not a dialect” along with Punjabi, Urdu, Hindi, Marwadi, Sanskrit, English etc.
13 - 4 January – Agriculture, Businesses, and Ecosystem of Jats and Khaps
14 - 5 January – Vishal Haryana- United Punjab as an epic abode of Jats and Khaps and India as their motherland
15 - 6 January – Jat and World to Indian and various State Politics
16 - 7 January – Ancient (Bagad) and modern-day RWAs, Bureaucracy, Judiciary and Civil Societies of Jats and Khaps
17 - 8 January – Environment Purity & Safety, Greenary Management, Society Hygiene System and role of Jats and Khaps in Green and White Revolutions
18 - 9 January – Global Analogical Study of Jats and Khaps as Human Race and Civilization with the rest of the world

Photos Sources:
1 - Sir Ranbir Phaugat
2 - Sir Rajkishan Nain
3 - Sir Rajkumar Siwach
4 - Sir Rohnit Phore
5 - Myself
6 - Many friends

जय यौद्धेय! - फूल मलिक