1 - सनातनी, आर्य-समाज, सिख व् उदारवादी जमींदारी को खाना चाहते हैं|
2 - चितपावनी ब्राह्मण, खुद के सिवाए सारे सनातनियों को खाना चाहते हैं|
3 - जैनी, चितपावनी व् उदारवादी जमींदारी दोनों को खाना चाहते हैं|
अब तीनों बिंदु थोड़ा विस्तार से:
1 - सनातनी, आर्य-समाज, सिख व् उदारवादी जमींदारी को खाना चाहते हैं| आर्य समाज के हर गुरुकुल-मठ में पूरा कब्ज़ा करने की कोशिश में हैं सनातनी आज के दिन| उदारवादी जमींदारी थ्योरी की अग्रणी कौम जाट के खिलाफ 35 बनाम 1 के फरवरी 2016 दंगे इसी कड़ी की इबारत है| वह अलग बात है कि 35 बनाम 1 चला नहीं वरना इरादा इनका हर उदारवादी जमींदार की घिस काढणे का था, शुरुवात जाट से करनी चाही थी| सिख अपना लेशन सीख चुके 1984 के जरिये, अब वह इनके पैंतरों से पार पा चुके| 2013 व् 2016 के दंगों से आर्य समाजियों के भी होश पाख्ता तो हुए हैं परन्तु इनको अभी इनके जाल से पूर्णत: निकलना बाकी है|
2 - चितपावनी ब्राह्मण, खुद के सिवाए सारे सनातनियों को खाना चाहते हैं, जैसे हरयाणवी सनातनी को चितपावनी सनातनी खा रहा है| इसीलिए चितपावनी को फर्क नहीं पड़ता कि कौन हरयाणवी सनातनी ब्राह्मण की फरसे से गर्दन उड़ाने दौड़ता है| सनातनियों द्वारा हरयाणा के हर दूसरे मन्दिर में गैर-हरयाणवी पुजारी बैठाये जा रहे हैं; ऐसे हरयाणवी ब्राह्मण की इकॉनमी की कड खुद गैर-हरयाणवी सनातनी ही तोड़ रहे हैं|
3 - जैनी, सनातनी चितपावनी व् उदारवादी जमींदारी दोनों को खाना चाहते हैं| जैसे जैनी अपने एजेंटों के जरिये फैलवाते है कि ना चितपावनी पेशवाओं के बताये पानीपत के 3 युद्ध सच हैं ना मुग़लकाल, ना कोई राजा ने कोई किला बनवाया| जैनी प्रचार करवाते हैं कि किले तो हुए ही नहीं कभी| दरअसल यह जितने किले हैं यह जैनी व्यापारियों के स्टोरेज हाउस हुए हैं जो उन्होंने ही बनवाये हैं किसी राजा-नवाब ने नहीं| लगता तो नहीं कि जैनी अपने धर्म व् समुदाय से बाहर इतने बड़े दान किये होंगे कभी कि किले-के-किले बनवा दिए? आज अम्बानी जैनी, अडानी जैनी जैसे तमाम उद्योगपतियों को ही देख लो; क्या लगाते हैं सोशल वेलफेयर के नाम पर एक दवन्नी भी? तो जब आज ही नहीं लगाते तो पुराने वक्तों में जरूर इन्होनें सर्वसमाज के "बुर्ज खलीफे" खड़े किये होंगे| समुदाय से बाहर छोरी का रिश्ता तक तो ये देते नहीं, महल-दुमहले चिनवाएँगे ये सर्वसमाज के, हजम होने से ही परे की बात है| 90% हिन्दू विधानसभा होते हुए भी 2016 या शायद 17 में जैन मुनि तरुण सागर का प्रवचन करवाया जाता है हरयाणा विधानसभा में| यह जैनियों द्वारा हरयाणा में सनातनियों को साइड करने की कड़ी का हिस्सा था वरना 90% हिन्दू व् 50% से ज्यादा आर्यसमाजी हरयाणवी समुदाय में कोई भगवा बाबा या आर्यसमाजी प्रचारक ना मिला था क्या यह कार करवाने को? दावा नहीं परन्तु सुनते हैं कि "आदिकिसान" नामक ग्रुप इन्हीं का प्रचारक है व् इसका मुख्य काम है किसान-जमींदारों में यह बात भरवाना कि तुम खालिस कबीले रहे हो और हल की मूठ थामने के सिवाए तुम्हारे पुरखों को कुछ नहीं आया| इसीलिए इनके लिए ना महाराजा सूरजमल सच है और ना ही सर्वखाप|
आजकल जैनी व् अरोड़ा/खत्री कम्युनिटी बनाम ब्राह्मण-बनिया पॉलिटिक्स चल रही है; वैसे तो पूरे भारत में, उसमें भी हरयाणा इनका ख़ास नूराकुश्ती वाला अखाड़ा बना हुआ है| कल तक हरयाणा-पंजाब में सनातनियों का हिंदी भाषा आंदोलन चलाने वाला सबसे बड़ा समुदाय आज सनातनियों को छोड़ जैनी के साथ जा चुका है| और पूरे इंडिया की पॉलिटिक्स को चार जैनियों की चौकड़ी यानि मोदी-शाह-अडानी-अम्बानी ने इस तरह हाईजैक कर रखा है कि इनके आगे चितपावनी से ले पूरा सनातनी व् आरएसएस तक मजबूर है|
कुल एक लाइन का जोड़ कहूं?: आरएसएस की 90 साल के पेड़ का फल जैनी जीम रहे हैं| सनातनी-चितपावनी सिर्फ टुकर-टुकर देखने को मजबूर हैं|
यह सनातनियों को लीड करने वाले ब्राह्मण समाज पर एक श्राप के तहत है| ब्राह्मण को श्राप है कि यह वर्ग सत्ता-संसाधन सब कुछ जुटा तो लेगा, उसमें घुसा भी रहेगा परन्तु इनके जुटाए पे जीमेगा कोई और| पहले मुग़ल जीमे, फिर अंग्रेज और अब जैनी| और यह इसलिए होता है क्योंकि ब्राह्मण जिसको स्वधर्मी कहता है उसमें सबको बराबर रखने-मानने-बताने-बरतने की बजाये वर्ण व् छूत-अछूत के भेदभाव में बाँटता है; जो उसके ऊपर अमानवता के नाम से चक्रवर्धी ब्याज की तरह चढ़ता रहता है व् तब फूटता है जब ब्राह्मण सत्ता-संसाधन की पीक पर पहुँच जाता है| ब्राह्मण अपने भीतर के इस सिस्टम में सुधार कर ले तो यह श्राप हट जाए शायद उस पर से| वरना किसी खट्टर की यह मजाल कि वह एक ब्राह्मण को फरसा दिखा जाए?
भारत की वर्तमान धर्म-जाति-नश्ल व् राजनीति की दशा है यह; अब आपको इसमें से खुद का बचाव कैसे करना है खुद समझ लीजिये|
वैसे इस सबमें हिंदुत्व मिला कहीं? देख लो मुस्लिम का जिक्र किये बिना पोस्ट पूरी की है परन्तु हिंदुत्व फिर भी नहीं दिखा? क्योंकि हिंदुत्व का प्रैक्टिकल ग्राउंड कोई है ही नहीं; यह सिर्फ हवा-हवाई हवाओं का सगूफा है| मुस्लिम से डराने मात्र का टोटका है हिंदुत्व| वरना इनका बस चले तो आर्यसमाजी को सबसे पहले सनातनी खाये, सनातनी को चितपावनी व् चितपावनी को जैनी|
जैनी के ऊपर कौन है ढूंढ रहे हो क्या? चलते-चलते बता ही देता हूँ उसके ऊपर वेटिकन वाले हैं| मक्का वाले भी इन्हीं के इच-बीच हैं कहीं परन्तु उनको सही से पोजीशन नहीं कर पाता हूँ शायद और स्टडी की जरूरत है|
वैसे मुझे व्यक्तिगत तौर पर 'मुंह पर पट्टी रखना' सबसे बेस्ट स्ट्रेटेजी लगती है| वैसे तो अलग धर्म का विचार नहीं परन्तु कभी ऐसा कुछ हुआ और कोई नए धर्म की कल्पना की तो जैनियों वाली यह मुंह पे पट्टी जरूर लगाना चाहूंगा उस नए धर्म में जो भी आएगा सबको, क्योंकि व्यर्थ की बक-बक ही 80% झगड़ों-अपवादों-उपहासों की जड़ है जिसको जैनी मात्र एक पट्टी से निबटा डालते हैं|
उद्घोषणा: मेरा आंकलन गलत भी हो सकता है, ऐसे में पहले ही हाथ जोड़कर माफ़ी| लेख के विचार व्यक्तिगत व् निष्पक्ष हैं; लेखक किसी समुदाय-धर्म से कोई राग-द्वेष नहीं रखता|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
2 - चितपावनी ब्राह्मण, खुद के सिवाए सारे सनातनियों को खाना चाहते हैं|
3 - जैनी, चितपावनी व् उदारवादी जमींदारी दोनों को खाना चाहते हैं|
अब तीनों बिंदु थोड़ा विस्तार से:
1 - सनातनी, आर्य-समाज, सिख व् उदारवादी जमींदारी को खाना चाहते हैं| आर्य समाज के हर गुरुकुल-मठ में पूरा कब्ज़ा करने की कोशिश में हैं सनातनी आज के दिन| उदारवादी जमींदारी थ्योरी की अग्रणी कौम जाट के खिलाफ 35 बनाम 1 के फरवरी 2016 दंगे इसी कड़ी की इबारत है| वह अलग बात है कि 35 बनाम 1 चला नहीं वरना इरादा इनका हर उदारवादी जमींदार की घिस काढणे का था, शुरुवात जाट से करनी चाही थी| सिख अपना लेशन सीख चुके 1984 के जरिये, अब वह इनके पैंतरों से पार पा चुके| 2013 व् 2016 के दंगों से आर्य समाजियों के भी होश पाख्ता तो हुए हैं परन्तु इनको अभी इनके जाल से पूर्णत: निकलना बाकी है|
2 - चितपावनी ब्राह्मण, खुद के सिवाए सारे सनातनियों को खाना चाहते हैं, जैसे हरयाणवी सनातनी को चितपावनी सनातनी खा रहा है| इसीलिए चितपावनी को फर्क नहीं पड़ता कि कौन हरयाणवी सनातनी ब्राह्मण की फरसे से गर्दन उड़ाने दौड़ता है| सनातनियों द्वारा हरयाणा के हर दूसरे मन्दिर में गैर-हरयाणवी पुजारी बैठाये जा रहे हैं; ऐसे हरयाणवी ब्राह्मण की इकॉनमी की कड खुद गैर-हरयाणवी सनातनी ही तोड़ रहे हैं|
3 - जैनी, सनातनी चितपावनी व् उदारवादी जमींदारी दोनों को खाना चाहते हैं| जैसे जैनी अपने एजेंटों के जरिये फैलवाते है कि ना चितपावनी पेशवाओं के बताये पानीपत के 3 युद्ध सच हैं ना मुग़लकाल, ना कोई राजा ने कोई किला बनवाया| जैनी प्रचार करवाते हैं कि किले तो हुए ही नहीं कभी| दरअसल यह जितने किले हैं यह जैनी व्यापारियों के स्टोरेज हाउस हुए हैं जो उन्होंने ही बनवाये हैं किसी राजा-नवाब ने नहीं| लगता तो नहीं कि जैनी अपने धर्म व् समुदाय से बाहर इतने बड़े दान किये होंगे कभी कि किले-के-किले बनवा दिए? आज अम्बानी जैनी, अडानी जैनी जैसे तमाम उद्योगपतियों को ही देख लो; क्या लगाते हैं सोशल वेलफेयर के नाम पर एक दवन्नी भी? तो जब आज ही नहीं लगाते तो पुराने वक्तों में जरूर इन्होनें सर्वसमाज के "बुर्ज खलीफे" खड़े किये होंगे| समुदाय से बाहर छोरी का रिश्ता तक तो ये देते नहीं, महल-दुमहले चिनवाएँगे ये सर्वसमाज के, हजम होने से ही परे की बात है| 90% हिन्दू विधानसभा होते हुए भी 2016 या शायद 17 में जैन मुनि तरुण सागर का प्रवचन करवाया जाता है हरयाणा विधानसभा में| यह जैनियों द्वारा हरयाणा में सनातनियों को साइड करने की कड़ी का हिस्सा था वरना 90% हिन्दू व् 50% से ज्यादा आर्यसमाजी हरयाणवी समुदाय में कोई भगवा बाबा या आर्यसमाजी प्रचारक ना मिला था क्या यह कार करवाने को? दावा नहीं परन्तु सुनते हैं कि "आदिकिसान" नामक ग्रुप इन्हीं का प्रचारक है व् इसका मुख्य काम है किसान-जमींदारों में यह बात भरवाना कि तुम खालिस कबीले रहे हो और हल की मूठ थामने के सिवाए तुम्हारे पुरखों को कुछ नहीं आया| इसीलिए इनके लिए ना महाराजा सूरजमल सच है और ना ही सर्वखाप|
आजकल जैनी व् अरोड़ा/खत्री कम्युनिटी बनाम ब्राह्मण-बनिया पॉलिटिक्स चल रही है; वैसे तो पूरे भारत में, उसमें भी हरयाणा इनका ख़ास नूराकुश्ती वाला अखाड़ा बना हुआ है| कल तक हरयाणा-पंजाब में सनातनियों का हिंदी भाषा आंदोलन चलाने वाला सबसे बड़ा समुदाय आज सनातनियों को छोड़ जैनी के साथ जा चुका है| और पूरे इंडिया की पॉलिटिक्स को चार जैनियों की चौकड़ी यानि मोदी-शाह-अडानी-अम्बानी ने इस तरह हाईजैक कर रखा है कि इनके आगे चितपावनी से ले पूरा सनातनी व् आरएसएस तक मजबूर है|
कुल एक लाइन का जोड़ कहूं?: आरएसएस की 90 साल के पेड़ का फल जैनी जीम रहे हैं| सनातनी-चितपावनी सिर्फ टुकर-टुकर देखने को मजबूर हैं|
यह सनातनियों को लीड करने वाले ब्राह्मण समाज पर एक श्राप के तहत है| ब्राह्मण को श्राप है कि यह वर्ग सत्ता-संसाधन सब कुछ जुटा तो लेगा, उसमें घुसा भी रहेगा परन्तु इनके जुटाए पे जीमेगा कोई और| पहले मुग़ल जीमे, फिर अंग्रेज और अब जैनी| और यह इसलिए होता है क्योंकि ब्राह्मण जिसको स्वधर्मी कहता है उसमें सबको बराबर रखने-मानने-बताने-बरतने की बजाये वर्ण व् छूत-अछूत के भेदभाव में बाँटता है; जो उसके ऊपर अमानवता के नाम से चक्रवर्धी ब्याज की तरह चढ़ता रहता है व् तब फूटता है जब ब्राह्मण सत्ता-संसाधन की पीक पर पहुँच जाता है| ब्राह्मण अपने भीतर के इस सिस्टम में सुधार कर ले तो यह श्राप हट जाए शायद उस पर से| वरना किसी खट्टर की यह मजाल कि वह एक ब्राह्मण को फरसा दिखा जाए?
भारत की वर्तमान धर्म-जाति-नश्ल व् राजनीति की दशा है यह; अब आपको इसमें से खुद का बचाव कैसे करना है खुद समझ लीजिये|
वैसे इस सबमें हिंदुत्व मिला कहीं? देख लो मुस्लिम का जिक्र किये बिना पोस्ट पूरी की है परन्तु हिंदुत्व फिर भी नहीं दिखा? क्योंकि हिंदुत्व का प्रैक्टिकल ग्राउंड कोई है ही नहीं; यह सिर्फ हवा-हवाई हवाओं का सगूफा है| मुस्लिम से डराने मात्र का टोटका है हिंदुत्व| वरना इनका बस चले तो आर्यसमाजी को सबसे पहले सनातनी खाये, सनातनी को चितपावनी व् चितपावनी को जैनी|
जैनी के ऊपर कौन है ढूंढ रहे हो क्या? चलते-चलते बता ही देता हूँ उसके ऊपर वेटिकन वाले हैं| मक्का वाले भी इन्हीं के इच-बीच हैं कहीं परन्तु उनको सही से पोजीशन नहीं कर पाता हूँ शायद और स्टडी की जरूरत है|
वैसे मुझे व्यक्तिगत तौर पर 'मुंह पर पट्टी रखना' सबसे बेस्ट स्ट्रेटेजी लगती है| वैसे तो अलग धर्म का विचार नहीं परन्तु कभी ऐसा कुछ हुआ और कोई नए धर्म की कल्पना की तो जैनियों वाली यह मुंह पे पट्टी जरूर लगाना चाहूंगा उस नए धर्म में जो भी आएगा सबको, क्योंकि व्यर्थ की बक-बक ही 80% झगड़ों-अपवादों-उपहासों की जड़ है जिसको जैनी मात्र एक पट्टी से निबटा डालते हैं|
उद्घोषणा: मेरा आंकलन गलत भी हो सकता है, ऐसे में पहले ही हाथ जोड़कर माफ़ी| लेख के विचार व्यक्तिगत व् निष्पक्ष हैं; लेखक किसी समुदाय-धर्म से कोई राग-द्वेष नहीं रखता|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक