Tuesday, 29 August 2023

हरयाणवी भाषा की दस बोलियां व् उनके क्षेत्र!

1 - नर्दक: अम्बाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, आधा करनाल, आधा पंचकूला| अम्बाला-लाडवा पंजाब से लगती साइड हरयाणवी-पंजाबी मिक्स पूहादी भी बोली जाती है|
2 - खादर: सफीदों (जींद)-पानीपत-आधा करनाल-बागपत-शामली-मुज़फ्फरनगर-मेरठ-आधा सोनीपत - उत्तरी-पूर्वी दिल्ली सूबा
3 - देसाळी (देसवाली): बड़ौत-आधा सोनीपत - रोहतक- झज्जर - जुलाना (जींद), हिसार (आधा नारनौंद) - मुंढाल (भिवानी), बुवानीखेड़ा तहशील, 70 % भिवानी तहसील, करीब 50% तोशाम तहशील, आधी चरखी दादरी, उत्तर-पश्चिमी-दक्षिणी दिल्ली सूबा
4 - बांगरू: कैथळ, जिंद (जींद, नरवाना, उचाना), हिसार (बरवाला, आधा नारनौंद, आधी हांसी), आधा फतेहाबाद
5 - बागड़ी: सिरसा, आधा फतेहाबाद, हिसार (आधी हांसी, आदमपुर, नलवा), भिवानी (तोशाम, लोहारू), आधी चरखी दादरी, श्रीगंगानगर से सीकर तक सीमा लगते राजस्थान के जिले, पंजाब की फाजिल्का-अबोहर पट्टी (हरयाणवी-पंजाबी मिक्स एरिया)
6 - खड़ी बोली: पूर्वी दिल्ली, ग़ाज़ियाबाद, नॉएडा, हापुड़, बुलंदशहर
7 - ब्रज: फरीदाबाद-पलवल-मथुरा-आगरा-भरतपुर-धौलपुर-अलीगढ़-हाथरस
8 - मेवाती: सोहना, नूंह, पुन्हाना, अलवर, आधा भरतपुर
9 - अहीरावती (अहीरावली): रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, नारनौल, गुड़गामा, राजस्थान के बहरोड़, कोटपूतली, बंसूर
10 - रांगड़ी: पाकिस्तान में बोली जाने वाली हरयाणवी

विशेष: जहाँ-जहाँ दो बोलियों का संगम होता है, वहां-वहां सटीक सीमा खींचना बड़ा टेढ़ा काम है; इसलिए वहां की लाइन आप अपने विवेक से भी खींच सकते हैं|

जय यौधेय! - फूल मलिक



Saturday, 26 August 2023

How Jat became Rod!

जाट एक पशुपालक और किसान कबीला था । भारत से ही ये कबीला मध्य एशिया तक गया और फिर कालांतर में वापिस सिंध होते हुए हरियाणा राजस्थान पंजाब उत्तर प्रदेश में आबाद हो गया। इस कबीले की खुद की सत्ता होती थी खाप पंचायत के रुप में और खाप मुखिया ही कबीले के सिद्धांत बनाते थे और जो कबीले के नियम तोडता था उन्हें कबीले से निकाल देते थे ठीक ऐसे ही इस कबीले के मुखिया ने उल्टा चलने के कारण कुछ जाटों को इस कबीले से अलग कर दिया और वा जाट छंटे हुए दबंग होते थे जो दुसरे गांव के लोगो को पीटकर आ जाते थे कभी उनका पशुधन छीन लेते थे जब ये बातें वो गांव वाले खाप मुखिया को बताते थे तो कबीले का मुखिया उनको जात से बेदखल कर देता था ठीक ऐसे ही एक जाटों का बदमाश ग्रुप मोहम्मद गोरी के समय उसके सेनिको को लूट खसोट करने लगा ये सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा मगर गोरी के वापिस चले जाने के बाद उसके उत्तराधिकारी कुतुबुद्दीन ऐबक के शासनकाल में भी दिल्ली में ये लूट खसोट जारी रही जिसकी सजा बेगुनाह जाटों को भी मिलने लगी और वो बदमाश छंटे हुए मुस्टंडे जाट मोज उडाते रहे एक दिन जाट कबीले के मुखिया ने पंचायत करके उन जाटों को गांव से निकाल दिया और जाटों को चेतावनी दे दी कोई भी जाट उनसे शादी नहीं करेगा जिन जाटों को खाप पंचायत के मुखिया ने निकाला था उनमें ज्यादातर मेहला सांगवान तुरान खोखर जाटों की संख्या ज्यादा थी और इसके बाद ये जाटों के गांव छोड़कर करनाल कुरुक्षेत्र के जंगलों की तरफ आकर रहने लगे ये जाट लोग मेहनती और निडर थे और खूब दबंगाई करते थे , मुस्लिम रांगडो से इनका छतीस का आंकड़ा था सो इन्होंने ढाक जंगलों को काटकर उपजाउ बनाया और जाटों से अलग होने के बाद रोड़ बनकर रहने लगे । यही वो समय था जब पहली बार रोड़ जाति अस्तित्व में आई थी । ये करीबन 800-900 वर्ष पुरानी बात होगी और ये जाट आपस में ही शादी करने लगे इन बागी हुए जाटों ने कभी दुसरी जाति के लोगों को अपने में नहीं मिलाया और ना कभी अपनी लड़कियां मुगल शासको को डोले के रुप में दी । आज के समय में वो तमाम बागी जाट करनाल कुरुक्षेत्र की जमीन पर रोड़ जाति के रुप में रहते हैं ‌। आज भी रोड़ जाति के बड़े बुजुर्ग कहते मिल जाते हैं जब उनसे कोई पूछता है कि रोड़ कोनसी जाति है तो वो बस एक ही जवाब देते हैं गर्व से हम जाटों जेसे है । रोड़ो ने कभी नहीं कहा कि वो गुर्जरों जेसे है राजपूतो जैसे है हमेशा जाटों जैसे ही बताया इसका लाजिक भी यही था बुजुर्ग पीढ़ी दर पीढी बताते आए थे की हम पहले जाट ही थे मगर हमें किन्हीं कारणों से अलग कर दिया गया था । रोड़ जाति का एक भी ऐसा त्यौहार नहीं है जो देशवाली जाटों से ना मिलता हो । और जो सांगवान गोत्र के जाट बागी हुए थे वो कोल गांव में रहते हैं

और उस गांव में सिर्फ एक ही गोत्र के जाट आबाद हुए थे । और मेहला गोत्र के जाट मोहाना गांव में आबाद हुए थे !
ये रोड़ उन्हीं वीर जाटों का अभिन्न अंग है जिनको भूल चूक से हमारे जाट कबीले के लोगों ने अलग कर दिया था । अपनी जड़ों को पहचानो रोड़ो
जाट सूरजभान सिंह दहिया (जाट इतिहास रिसर्चर)

खापों की सरंचना व् नामों को ले कर युवा पीढ़ी को सावधान होने की जरूरत है!

वैसे तो पहले भी परन्तु किसान आंदोलन के बाद और अब मेवात में खापों ने जिस तरह से धार्मिक हिंसा का पार्ट बनने से अपने आपको पीछे खींचा है व् मानवीय धरातल पर न्याय का पक्ष लेते हुए मुस्लिम भाईयों के साथ जा खड़ी हुई हैं; उससे अब संघ की नजर खापों में खाप-अभिमान के नाम पर हर गौत के नाम से खापें खड़ी करवाने की धुन सवार हो चुकी है; वहां भी जहाँ क्षेत्रीय नाम के आधार पर खापें सदियों से मौजूद हैं, जैसे कि सतरोळ खाप, महम चौबीसी खाप, बिनैण खाप आदि| हमारे खाप चौधरियों व् चौधराणियों के पास संघ के लोगों की फोन-कॉल आ रही हैं कि हम फलां गौत की खाप बना रहे हैं, व् आपको इसका स्टेट या नेशनल प्रेजिडेंट बनाना चाहते हैं व् बला-बला|


किसान आंदोलन व् मेवात के दो मुद्दों ने इनके स्वघोषित ब्रह्माण्ड के ज्ञानी से ले ब्रह्माण्ड को बार-बार क्षत्रियों से खाली करने के घस्सों की पोल पट चुकी है, क्योंकि आपकी-हमारी ताकत के बिना यह मेवात से अपनी चप्पल तक वापिस नहीं ला सकते| बस चाहते हैं कि इनकी टर्र-टर्र चलती जबान से लोग इनके स्वघोषित ज्ञानी होने व् वीर होने का लोहा मान लें व् इनको मसीहा मान लें; सर्वेसर्वा मान लें| जबकि वास्तव में सर्वेसर्वा व् सर्वसमाज-सर्वधर्म में इंसानियत जो पोषित रखने वाली थ्योरी पहले भी व् आज भी जो साबित हुई है वह तो खाप-खेड़ा-खेत की है| यह तो इस थ्योरी तक को कुतरने वाली दीमक मात्र हैं|

तो ऐसे में खापों से जुड़े तमाम जातियों-धर्मों के लोगों से अनुरोध है कि इस पर अपनी युवा पीढ़ी को जरूर चेताएं व् कोई भी नई खाप बनाने-बनवाने से पहले एक तो यह सोचें कि अगर इनके बहकावे में आ के आप आज अनजाने में कोई नई खाप ईजाद करते हैं तो इसका मतलब आप यह मानते या जानते ही नहीं कि आपकी खाप सदियों पहले से है, व् फलां नाम से है या फिर आप जानबूझ के इनके एजेंडा में खेल रहे हैं|

ऐसे में हर जागरूक युवा, अपने-अपने बुजुर्गों के पास बैठे व् अपनी खाप के नाम व् इतिहास से खुद के साथ-साथ तमाम युवा-वर्ग को अवगत करवावे| व् दूसरा अगर गौत-गाम के नाम से कोई संगठन बनाना भी है तो उसको उसी नाम से चलाएं व् व्यक्तिगत रख के चलाएं; संघियों के उकसावे पे इस कम्पटीशन में ना उतरें कि जब फलां गौत के नाम से खाप है तो हमारी भी गौत की खाप हो, जबकि आपके गौत की खाप सदियों से क्षेत्र के नाम से है, जैसे कि ऊपर उदाहरण दिए| व् जो खापें गौत के नाम से हैं, उनके ऐतिहासिक कारण रहे हैं, उनको जानें|

और अब हमें इस राह पर आना होगा कि जब देखो यह फंडी काँट-छाँट-बाँट के अजेंडे समाज में बोने पे लगे ही रहते हैं तो इनके यह पैंतरे इन पर ही कैसे लागू किए जाएँ; क्योंकि इनकी गेल जब तक "जैसे को तैसा" नहीं करोगे, इनकी समझ नहीं आएगी कि यहाँ और भी बसते हैं व् यह आपकी शर्म-लिहाज को इस लाइन पर ले के चलते रहेंगे कि, आगला शर्मांदा भीतर बड़ गया, बेशर्म जाने मेरे तें डर गया"|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 14 August 2023

गोविंद पंसारे ने "शिवाजी कौन थे, Who was Shivaji" नामक किताब के माध्यम से शिवाजी के राजा बनने व राज्याभिषेक आदि के बारे में विस्तार से लिखा है।

 

शिवाजी ने ताकत के बल पर संगठन खड़ा कर लिया और भूभाग पर कब्जा भी कर लिया था लेकिन मध्यकालीन चातुर्वर्ण व्यवस्था के मुताबिक ब्राह्मण व क्षत्रिय ही राजा बन सकते थे।क्षुद्र को राजा नहीं माना जाता था।
शिवाजी का वंश राजपूत मूल का नहीं था,वो कुंबी मराठा थे: मद्रास उच्च न्यायालय, कोल्हापुर महाराजा बनाम एस. सुंदरम अय्यर एवं अन्य, 21 जनवरी, 1924. (AIR 1925 Mad 497)
ब्राह्मण व क्षत्रिय के अलावा जो भी राजा उभरता तो ब्राह्मण व क्षत्रिय उसका विरोध करते थे।औरंगजेब के सहयोग से राजा जयसिंह ने महाराष्ट्र के ब्राह्मणों को शिवाजी का राज्याभिषेक न करने के लिए "कोटि चण्डी"यज्ञ कराया था जिस पर 2करोड़ रुपये खर्चा हुआ।
महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने शिवाजी का राज्याभिषेक नहीं किया तो शिवाजी ने गागा भट्ट नामक नांदेड़ मूल के ब्राह्मण को,जो बनारस में रह रहे थे,भारी दक्षिणा का लालच देकर बुलाया और राज्याभिषेक कराया।
उच्च मराठा भी शिवाजी को राजा स्वीकार नहीं कर रहे थे।अहमदनगर के आसपास 96 परिवार जिनके पास राज्य भी नहीं था लेकिन खुद को क्षत्रिय कहते थे और शिवाजी को राजा नहीं मानते थे।
शिवाजी ने पुणे का राजकार्य एक ब्राह्मण को सौंप दिया था।उनकी कैबिनेट में ब्राह्मण मंत्री बनाये गए।44 की उम्र में मौंजी बंधन संपन्न कराया।दुबारा मंत्रोंच्चार के साथ शादी की।राजा बनने के लिए सबकुछ किया लेकिन स्थापित क्षत्रियों व बहुसंख्यक ब्राह्मणों द्वारा आलोचना जारी रही।
शिवाजी ने अपने वंशावली लिखवाई और खुद को मेवाड़ के सिसोदिया राजपूतों का वंशज लिखवाया ताकि वो क्षत्रियता हासिल कर सके।मध्यकाल में ब्राह्मण व क्षत्रिय वर्ग के अलावा जो भी राजा उभरे उनको चातुरवर्णीय व्यवस्था के हिसाब से राजा नहीं माना जाता था सबको शिवाजी की तरह विरोध का सामना करना पड़ा था।
यहां तक कि नेपाल के राजा भी खुद की वंशावली में उद्भव मेवाड़ के सिसोदिया वंश से बताते है।हालांकि अकबर के दरबारी कृष्ण भट सेशा ने अपनी किताब शुद्राचार शिरोमणि में लिखा था कि परशुराम द्वारा क्षत्रिय संहार के बाद कोई क्षत्रिय नहीं बचा था फिर भी उस समय मुगलों के सहयोग से राजपूत पूर्णतः ब्राह्मणों के नियंत्रण में नहीं रहे व खुद को क्षत्रिय कहलाने में कामयाब रहे।क्षुद्रों को रोकने के लिए ब्राह्मण भी राजपूतों का सहयोग बीच-बीच मे लेते रहे।
विजयनगर के द्रविड़ राजा व भरतपुर के जाट राजाओं को भी इसी तरह के विरोध का सामना करना पड़ा था।इसलिए क्षत्रियता हासिल करने के लिए इन्होंने भी वंशावली लिखवाई थी जिसमे बालचंद के पीछे का कुछ नहीं लिखा है।ऐसा लिखा मिलता है कि बालचंद की राजपूत पत्नियों के कोई बच्चा नहीं था और जाट पत्नी से जो बच्चा पैदा हुआ उससे भरतपुर राजवंश स्थापित हुआ।
भरतपुर में जो सिनसिनवार जाट है उनकी उत्पत्ति जदु वंशी मानी जाती है और इनका यहां तक पहुंचने का रास्ता गजनी,सियालकोट,लाहौर से होते हुए है।जदु को यदु व जदुवंशी को यदुवंशी लिखना सरल था इसलिए कई दरबारी इतिहासकारों ने मिथिहास लिख दिया।
करौली के राजपूत राजा जादौन वंशी कहलाते थे।इसी बनावटी वंशावली में खुद को इस राजपूत घराने से संबंधित लिखवा लिया था।इसी वंशावली का सहारा लेकर यह अनिरुद्ध सिंह कह रहा है कि हम करौली वालों के वंशज है।खुद के राज परिवार को क्षत्रिय बताने के लिए एक नई वंशावली लिखवाकर सिसोदिया वंश से जुड़वा ले लेकिन बाकी सारे सिनसिनवार गोत्र का बाप दूसरा बताकर यह बदनाम नहीं कर सकता।
डी एन ए जब बदलता,बदल जात है अंश!
हिरण्याक्ष के प्रह्लाद हुए, उग्रसेन के कंस!!
जिस मजबूरी में लिखी गई वंशावली को फाड़कर फेंकना था उसी वंशावली को आधार बनाकर पूरे वंश,गोत्र,समाज पर कालिख पौतने की इस तरह की हरकत इस युग मे कोई मानसिक गुलाम ही कर सकता है!
प्रेमसिंह सियाग

डागर पाल, रावत पाल, सहरावत पाल, चौहान पाल, तेवतिया पाल के चौधरियों को बारम्बार सलूट!

कल की धर्मान्धता में अंधे लोगों की पंचायत से अपने आपको अलग रख के; आपने पाल-खाप की निष्पक्ष छवि व् परिभाषा को बरकरार रखने का जो संदेश दिया है; यह पीढ़ियों-सदियों युगयुगान्तर इतिहास में दर्ज हो गया है| पूर्वाग्रह से ग्रसित भीड़ का जमावड़ा, कभी कोई पंचायत हो ही नहीं सकती व् खाप/पाल पंचायत का तो दूर-दूर तक मतलब ही नहीं| पूर्वाग्रह में सिर्फ कटटरता के म्वादी खड़दू-खाड़े होते हैं; जो जाहिल-गंवार जानवर टाइप मूढ़मति लोग करते हैं|


इनसे दूर रह कर, आपने अपने आपके सभ्य व् सामाजिक होने का जो परिचय दिया है; इसके लिए आपको बारम्बार सलूट है! आपके इन फैसलों की गूँज देशों-विदेशों धरती के हर कोने तक जा रही है| हम आपके बाहर बैठे वंश इसको फैला रहे हैं| आपकी कीर्ति-आभा यूँ ही नभायमान रखी जाएगी; आप ऐसे ही हमारा मार्ग प्रसस्त रखें!

विशेष: पाल व् खाप पर्यायवाची शब्द हैं जो एक ही तरह ही सामाजिक संस्था के है; इनकी umbrella body सर्वधर्म सर्वजातीय सर्वखाप है!

जय यौधेय! - फूल मलिक

Saturday, 12 August 2023

एक बार में तथाकथित निर्मात्री सभा के दो दिन के सत्र में गया हुआ था!

तो वहाँ पर मौजूद आचार्य ने बताया कि शिवाजी के राज्याभिषेक के लिए पंडों को लाखों अशर्फियां रिश्वत के तौर पर दी थी। (शिवाजी को यह अशर्फियां क्यों देनी पड़ी इसका कारण था। शिवाजी की माँ का मानना था कि यदि शिवाजी बिना राज्याभिषेक के गद्दी पर बैठेगा तो उसके द्वारा युद्ध में की गई हत्याओं का पाप उसे लगेगा। अगर वह राज्याभिषेक के बाद गद्दी पर बैठेगा तो राजा के रुप में उसके द्वारा युद्ध में मारे गए लोगों की हत्या का पाप उसे नहीं लगेगा इसलिए शिवाजी की माँ ने शिवाजी पर राज्याभिषेक के लिए दबाव बनाया लेकिन शिवाजी के शूद्र होने के कारण कोई पंडा राज्याभिषेक को तैयार नहीं हुआ और अंत में शिवाजी को लाखों अशर्फियां देकर राज्याभिषेक करवाना पड़ा।) शिवाजी के बाद आचार्य सीधा औरंगजेब पर आया और कहा कि औरंगजेब हर रोज हिंदुओं के सवा मन जनेऊ तोड़कर खाना खाता था। आचार्य के इतना कहते है कि मैने प्रश्न पूछने के लिए हाथ उठाया। इससे पहले भी मैने कई सवाल पूछ लिए थे जिससे आचार्य घबराया हुआ था। मेरे हाथ उठाते ही आचार्य ने कहा कि सवा मन तो कहने की बात है औरंगजेब सवा किलो जनेऊ तोड़कर भोजन करता था। मैने फिर भी अपना हाथ खड़ा रखा। अब आचार्य के पास मेरे सवाल को सुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं था और वह सवा किलो से नीचे भी नहीं आ सकता था क्योंकि इससे नीचे तो फिर औरंगजेब को क्रूर साबित करना बड़ा मुश्किल काम हो जाता। आचार्य ने कहा कि हाँ भाई, बताओ। मैने कहा कि अभी आपने कहा कि शिवाजी को राज्याभिषेक करवाने के लिए लाखों अशर्फियां रिश्वत के तौर पर देनी पड़ी थी। जब शिवाजी जैसे महान व ताकतवर व्यक्ति को भी राज्याभिषेक के लिए सिर्फ इस कारण लाखों अशर्फियां देनी पड़ी क्योंकि वो शूद्र था तो आम आदमी का क्या हाल होगा? उनके पास तो इतनी रकम नहीं होती थी। शूद्रों को जनेऊँ धारण करने का अधिकार नहीं था और दो जनेऊधारी थे उनका औरंगजेब के साथ तालमेल था जिस कारण धर्म के नाम पर लगने वाला उनका जजिया कर भी औरंगजेब ने माफ किया हुआ था तो फिर जनेऊ टूटे किसके? आचार्य के पास कोई जवाब नहीं था तो आचार्य ने कहा कि तुम्हे कौन लेकर आया है? मैने जैसे ही  उस भाई का नाम लिया तो वो दौड़कर आया और मेरे घुटने को हाथ लगाकर बोला कि तू चुप हो जा, सैशन खत्म होने के बाद आपका आचार्य के साथ आधा घंटा का सवाल जवाब का सैशन रख देंगे। मैने कहा कि यह सैशन खत्म होते ही भागेगा देख लेना। जैसे तैसे मैं मान गया। मैं बैठ गया। आचार्य को तो घुम फिरकर फिर मुस्लमानों पर आना था। आचार्य ने जैसे ही बोला कि हमें मुस्लमानों से खतरा है तो मैने फिर हाथ उठाया । अब तो आचार्य के गात में बाकि नहीं रही लेकिन विकल्प भी कोई नहीं था । सत्र में आए बाकि लोगों में बेइज्जती होती यदि सवाल नहीं पूछने देता । आचार्य ने कहा कि हाँ भाई, बोलो । मैने कहा कि कौन से मुस्लमान से खतरा है ? आचार्य बोला कि क्या मतबल है? मैने कहा कि कौन से मुस्लमानों से खतरा है? जाट मुस्लिम ले,राजपूत मुस्लिम से,गुर्जर मुस्लिम से,सैनी मुस्लिम से, लुहार,तेली,नाई,कुम्हार,ब्राह्मण, बनिया कौन से मुस्लमान से खतरा है ? आचार्य मेरी बात को समझ चुका था कि मैं बात कहाँ घुमाना चाहता हूँ इसलिए उसने बिना उत्तर दिए मुझे बैठने के लिए कहा । मैं बैठ गया । दो दिन में सत्र खत्म हुआ तो उन्होने सभी को फीडबैक का फार्म दिया जो मुझे भी मिला । मैने उस फीडबैक में जो लिखा उसको पढ़कर मुझे फिर बुलाया गया और पूछा कि आपने ये क्या लिख दिया ? मैने कहा कि जो मुझे लगा वो मैने लिख दिया । उसके बाद मैं अपने घर आ गया और आज तक मुझे तथाकथित निर्मात्री सभा के किसी सत्र का न्यौता नहीं मिला । - राजेश कुमार 

Thursday, 10 August 2023

मेवात दंगों में फंडियों का साथ नहीं देने पर, अब जाट समाज को इस बात पर घेरा जा रहा है कि "क्या तुम हिन्दू या सनातनी नहीं हो?"

 जवाब: 1875 में आर्य-समाज इसलिए लाया गया था क्योंकि जाट, फंडियों के आज ही तरह के तंज-लांछन-टार्गेटिंग से परेशान हो कर सिखी व् इस्लाम में जा रहा था (1881 से 1931 के जाट की धार्मिक जनसंख्या के आंकड़े उठा के देख सकते हैं) तो फंडियों को अहसास हुआ कि तुम वाकई में ज्यादा ज्यादतियां कर रहे हो, सुधरो व् जाट को मनाओ| तब जाट को मनाने के लिए 1870 से 1875 तक यह अध्ययन किया गया कि जाट को कैसे मनाया जाए| इसके लिए जाट के आध्यात्म व् धार्मिक मतों पर खापलैंड पर करवाई गई रिसर्च में पाया गया कि जाट एकमुश्त "दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों" को धोकता है, जो कि मूर्तिपूजा नहीं करने के सिद्धांत पर आधारित हैं; औरत को धोक-ज्योत में लीड देने के आधार पर आधारित है| 


तब इसी मूर्ती-पूजा नहीं करने के सिद्धांत को आधार बना कर 1875 में "आर्य-समाज" उतारा जाता है, जिसके साथ सत्यार्थ प्रकाश का ग्रंथ आता है इसके ग्यारहवें समुल्लास में जाट की "जाट जी" व् "जाट देवता" कहते-लिखते हुए स्तुति करते हुए| तब जाट को लगा कि "जी" कह के तमीज से बोलने लगे हैं तो मतलब इनको अक्ल आ गई है, सो इनके साथ रह सकते हैं| 


बस, हमारे धर्म बारे यही अक्ल अब ले लो तुम्हारे पुरखों वाली; अन्यथा टकराव रहेंगे व् अपनी मूढ़मति में इन टकरावों को इतना मत बढ़ाते चले जाना कि उस वक्त तो "जाट जी" व् "जाट देवता" कहते-गाते आये थे तो जाट रुक गया था; परन्तु अबकी बार वाला जाट, इससे भी नहीं रुकेगा; चाहे बेशक फिर कितने ही, "सारा संसार जाट जी जैसा हो जाए तो धरती पर पंडे-पाखंडी भूखे मरने लगें" के हवाले देते रहना| याद रखो, तुम्हारे पुरखों की इस लाइन को "भूखे मरने लगें" तक के हवाले दे के रोके थे जाट तुमने? वैसे तो जाट होता कौन है किसी को भूखा मारने वाला; परन्तु यह हालत थी, तुम्हारे जैसों की तब, जो आज मेवात पे जाट की स्वछंदता को नहीं समझते हुए; उससे फिर पूछने लगे हो कि "जाट हिन्दू नहीं है क्या"? 


अरे, तुम जाट की छोडो, तुम्ह खुद हिन्दू कब से हुए, यही बता दो? जरा जाओ और देखो कि 1893 की शिकागो,अमेरिका (विवेकानंद भाषण से प्रसिद्ध) की अंतर्राष्ट्रीय धर्म संसद के वक्त तक तुम खुद को कौनसा धर्म कहते थे? उस वक्त तक भी हिन्दू या सनातनी नहीं हो तुम? तो कब व् कैसे बन गए तुम हिन्दू या सनातनी; जो हमसे पूछ रहे हो कि "तुम हिन्दू या सनातनी नहीं हो क्या"?


घणे सर पर मत मूतो, भारी खता खाओगे; ज्यूँ कुत्ते को मार बंजारा रोया था, वह वाली खता| 


जय यौधेय! - फूल मलिक