Thursday, 26 August 2021

किसान से बड़ा कोई वास्तविक योगी-तपस्वी नहीं!


किसान आंदोलन के 9 महीने पूरे होने पर विशेष!
कितने प्रतिशत योगी-तपस्वी लगातार 9 महीने शांतचित ऐसे तपते हैं जैसे दिल्ली के बॉर्डरों पर पिछले 9 महीनों (26 नवंबर 2020 से ले आज 26 अगस्त 2021) से किसान तप रहे हैं? खुले आसमान तले तपस्या करते योगी जितना तप-कष्ट तो किसान खेतों में दिन-रात गर्मी-सर्दी-बरसात-ओले-आंधी-तूफानों से लड़ते हुए ही कर लेता है परन्तु इन 9 महीनों से दिल्ली बॉर्डर्स पर जिस तरीके से किसान वास्तविक योगी बन के बैठा है क्या ही कोई असली वाला करता होगा|
वह औरत-मर्द ज़रा ध्यान देवें जो कल अगर किसान यह आंदोलन जीत के जाते हैं तो अंधविश्वासों व् अंधश्र्द्धाओं में इसकी सफलता की वजहें ढूंढ रहे होंगे| अपने इन मर्दों-बीरों की इस तपस्या को बाद में फंड-पाखंडों की देन बता के इसको मिटटी में रोलते मत फिरना|
ध्यान रखना, यह जो फलहरी-फंडी आज किसानों के लिए लंगर तक लगवाने के नाम पर दड़ मारे पड़े हैं; कल जब किसान की जीत होगी तो फलाना चमत्कार, धिकड़ा आशीर्वाद बताते टूलेंगें| यही करते आए हैं ये, तपस्या-मेहनत आप लोगों की, क्रेडिट धरवा लेंगे किसी चमत्कार-आशीर्वाद के नाम पर; अबकी बार इनको यह क्रेडिट नहीं लूटने देना है|
बेशक आध्यात्म होता है व् उसकी शक्ति भी होती है और पिछले 9 महीने से किसानों ने शांतचित रह कर जिसका प्रदर्शन किया है वह यह आध्यात्म ही है, इसकी शक्ति ही है| तो कल को इसका क्रेडिट अपने इस आध्यात्म व् शक्ति को ही रखना; तभी वाकई में शत-प्रतिशत सफलता आपको साजेगी|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 25 August 2021

किसान आंदोलन को इसके अंजाम तक पहुंचाने हेतु अगली कूटनैतिक डॉज क्या चाहिए होगी?

अगर सामाजिक व् आर्थिक उन्नति चाहिए तो अन्धविश्वास व् अंधश्रद्धा को साइड में रखना ही होगा| जिनको इनको साइड में रखना किसी धर्म के खतरे में आ जाने जैसा लगता हो तो वह "सन 1789 की फ़्रांसिसी क्रांति" व् 15वीं सदी की "यूरोप की ब्लैक प्लेग त्राशदी" पढ़ लें| इन दोनों घटनाओं के बाद भी यहाँ ईसाई धर्म ही है, कहीं कोई धर्म खत्म नहीं हुआ| हाँ, जो खत्म हुआ वह हुआ अन्धविश्वास व् अंधश्रद्धा; जिससे लोग बाहर आये व् सामाजिक व् आर्थिक तौर पर आज़ाद बने|

इंडिया के खापलैंड क्षेत्र में लोग खाप-खेड़े-खेत की फिलोसॉफी के चलते सदियों से यह आज़ादी भोगते आ रहे थे; बस अभी मात्र डेड-दो दशक में जब से अन्धविश्वास व् अंधश्रद्धा की बेपनाह डॉज पब्लिक को दी गई तब से यहाँ भी लोग अपने सांझे मुद्दे भूल बस एक दूसरे में दुश्मन देखने लगे हैं व् कहीं 35 बनाम 1 तो कहीं ओबीसी बनाम फलाना आदि में उलझे चल रहे हैं|
5 सितंबर की मुज़फ्फरनगर महापंचायत से इस तथ्य का ऐलान हो जाना चाहिए कि सामाजिक व् आर्थिक आज़ादी की लड़ाईयों से ना कभी कोई धर्म मिटा ना उसपे खतरा हुआ परन्तु जो अन्धविश्वास व् अंधश्रद्धा में डूब भीरु-कायर बने रहे वह अन्धविश्वास व् अंधश्रद्धा बढ़ाने वालों द्वारा लूटे जाते रहे, मानसिक गुलाम व् बंधुआ बनाए जाते रहे| अत: स्पष्ट कहा जाए कि अन्धविश्वास व् अंधश्रद्धा से बाहर आए बिना आर्थिक व् सामाजिक आज़ादी सम्भव नहीं; उसकी पुरखों वाली निरंतरता सम्भव नहीं|
एक संदेश यह भी दिया जाए कि अहिंसा को सबसे ज्यादा सिरोधार्य रखने वाला, जीवों-कीटों के प्रति इतना संजीदा धर्म जो जीव ना मरें इसलिए मुंह पर पट्टी बाँध के चलता है; जुबान से मानसिक हिंसा ना हो इसलिए ख़ामोशी से अनवरत सिर्फ काम करता है; आखिर उसी के धर्म के अडानी-शाह जैसे लोग व्यापार के नाम पर सविंधान से ले कानूनों तक के जरिए उल-जुलूल कानून पास करवा देश-समाज के किसानों-मजदूरों की आवाज की अनदेखी कर मानसिक हिंसा क्यों कर रहे हैं? क्या हुआ आपके धर्म की शिक्षाओं का जिसमें "अहिंसा" हर हाल में पालनी होती है? यहाँ जिस धर्म की बात हो रही है आप समझ ही रहे होंगे| आखिर क्यों इतनी एथिकल वैल्यूज पालने वाले धर्म के लोग भी अनएथिकल तरीकों से देश में ढाँचे से ले व्यापार को बिगाड़ रहे हैं?
क्या इससे अच्छा तो उदारवादी जमींदारों का एथिकल वैल्यू सिस्टम व् एथिकल कैपिटलिज्म नहीं है; जो खाप-खेड़े-खेत की किनशिप पे फलता-फूलता आया; जिसमें कमियां तो हो सकती हैं परन्तु इस स्तर की अमानवता व् अनदेखी नहीं कि अपने ही धर्म-देश के लोग 9 महीने से सड़कों पर बैठे हैं व् किसी को परवाह ही नहीं? क्या विदेशी आक्रांता इनसे भी निर्दयी रहे होंगे?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 22 August 2021

सम्मोहन में लपेटी मार्केटिंग व् मिथ्या आध्यात्म, घरों की उधमिता (entrepreneurship) को खा जाते हैं व् जनता को बड़ी ब्रांड्स की मात्र 'कंज़्यूमर-मार्किट' बना छोड़ते हैं!

निचौड़: उधमिता सिर्फ आपको इकॉनमी नहीं अपितु कल्चर भी बचा कर देती है| अकेले मर्दों के ताश नाश ना कर रहे, लुगाई भी बराबर की आहुति डाल रही हैं| वह कैसे, नीचे पढ़ते चलिए:

आज से 25-30 साल पहले ग्रेटर हरयाणा व् पंजाब का हर ग्रामीण परिवार आधा व्यापारी खुद ही होता था, जो मुख्य धंधे कृषि के समानांतर ऐसी उधमिता करता था कि हर घर के 50% से ज्यादा खर्चे, घर की उधमिता से ही सुलट जाते थे| जैसे कि
मर्द, खाली वक्तों में पटशन (जूट/सणी) के पोड तोड़ते थे| बैठकों-दरवाजों-हवेलियों के आगे बैठ उनसे विभिन्न प्रकार की रस्सियां बुनते/बांटते थे| इससे कृषि से ले डांगर-ढोर व् घर की तमाम तरह की रस्से (मोटे-पतले)-सूतली-ज्योड़ी-नेज्जू-गांडली आदि की जरूरतें घर की घर में पूरी हो जाती थी| बाँट-बाँट रस्से-रस्सियां इतनी खाटें भर लेते थे कि बाजे-बाजे के यहाँ तो चाहे पूरी बारात/झंज रोक लेते; इतनी खाटें होती थी| अब बैठकों-दरवाजों तो छोडो, गाम की परस-चौपाल में खाट इकठ्ठी करनी पड़ जाएँ तो मर हो जाती है| ब्याह-वाणों में तो खाटों की जगह अब लगभग हर दूसरे को गद्दे चाहियें| एक यह उधमिता चली जाने से कितना सारा कल्चर भी इसके साथ या तो चला गया या जा रहा है अंदाजा लगा लीजिये| और यह तो सिर्फ एक उधमिता का उदाहरण है| और आज इसकी जगह किसने ले ली है? सारा खाली वक्त सिर्फ ताश पीटने की बीमारी ने, हर दूसरा इस आदत से ग्रस्त है| इन ताश की महफ़िलों में एक और बीमारी आन पली जो पहले सिर्फ लुगाईयों के बाँटें बताई जाती थी यानि चर्चा-चुगली| बैठे-बैठे आँख-दाड़-दिमाग पिसें जाएंगे कि फलाने के बालक ठीक काम रहे हैं तो क्यों? फलाने का नाश कोडबे सी हो; आदि-आदि|
मर्द ही क्यों, आ जाओ अब औरतों की सुन लो; मर्दों से दो चंदे अगाड़ी बेशक कूद रही हों; पछाड़ी का तो सवाल ही नहीं|
औरतें, खाली वक्तों में चरखे कातती थी, चर्घे भर्ती थी; जिससे सूत तैयार होता था| उस सूत से दरी-खेश-बिस्तरे व् ब्याह-वाणे में काम आने वाले खरड़-पल्लड़ बनते थे| आज अंदाजा लगा लो जब से यह गायब हुए हैं, हर घर पर दरी-खेश-बिस्तरों का कितना अतिरिक्त बोझ बढ़ा है व् ब्याह-वाणे में लगने वाले टेंट-शामियानों का कितना अतिरिक्त खर्च बढ़ा है? जब से मिथ्या आध्यात्म चला है, जरा अंदाजा लगाओ कितने शुद्ध तार्किकता व् हकीकत आधारित लोकगीत, छंद, कविताई गायब हो गई? और इसकी जगह किसने ले ली? हद से ज्यादा तुके-बेतुके चलने वाले टीवी सीरियल्स ने; जिनमें घर की औरतों में थोथे अहम्, रानी-महारानी होने के घमंड भरने के सिवाए धांस भी नहीं होती| तीज-त्योहारों पे इनके पल्टे-कोंचे नहीं चलते बस महारानियों की तरह लिस्ट थमा देती हैं कि जाओ और बाजार से ले आओ| जो देवरानी-जेठानी-ननंद-सासु टोल-के-टोल बैठ आपसी प्यार में चूर चरखे कातती थी; अब टीवी द्वारा परोसी गई झूठी मैथोलोजियों की फ़ोक्की वीरता-महानता भर दिमागों में; एक दूसरी के चोटे पाडती ज्यादा दिखती हैं अन्यथा जोहड़ में आन बड़ी दूसरी भैंस को जैसे भैंस टेढ़ी आँख व् गर्दन करके देखती हैं; यह दशा इनकी लगभग हर दूसरी की हो रखी है|
जबकि यह जो बाजार इन लोगों ने अपने यहाँ उतार लिया है; इनको जरा यह सामान इन तक पहुंचाने वाले घरों की तसवीर दिखाई जाए तो पता लगे इनको कि बहुतेरे तो डबल शिफ्ट करते हैं| आचार जैसे धंधे तो इनकी लुगाईयों ने डाट रखे हैं; वही लुगाई जो घर से बाहर इनको चिढ़ाएँगी कि हमारे तो ये हमारे तो वो; परन्तु घर के अंदर झांकों तो वही औरतें-मर्द फ़टे-पुराने कपड़े डाल कोई आचार डाल रही होगी तो कोई करघे पे जुटा खड़ा होगा|
लगा लीजिए अंदाजा कि कैसे उधमिता का खोना, ना सिर्फ आपकी आर्थिक हैसियत गौण कर देता है अपितु आपकी कल्चरल ताकत भी खा जाता है| हालाँकि परफेक्ट ये भी नहीं, क्योंकि इनकी उधमिता अनएथिकल कैपिटलिज्म वाली है परन्तु इनकी निरंतरता एथिकल कैपिटलिज्म वालों पर उधमिता नहीं करने के चलते भारी पड़ रही है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 20 August 2021

पैसे व् पॉवर से बड़ी होती है unity - किसान आंदोलन ने उदाहरणों समेत इसको साबित करना शुरू कर दिया है!

इसका सबसे बड़ा उदाहरण पंजाब में सेट हुआ है|

किसान आंदोलन शुरू होते ही अम्बानी के जियो व् टावर्स के बहिष्कार के आगे अम्बानी को माफ़ी मांग चुपचाप निकलना पड़ा|
अभी इसी हफ्ते बावजूद कोर्ट से स्टे लेने के व् साइलो गोदाम व् उसकी अन्य फ़ूड यूनिट्स पर ताला लगा के पिछले 7 महीने से धरने पर बैठे किसानों को हटवाने के ऑर्डर्स लेने पर भी अडानी, जालंधर व् लुधियाना में किसानों को नहीं हटवा सका व् अंतत: उसको भी पंजाब से बिस्तरा गोल करके जाना पड़ रहा है|
जब खुद का नुकसान हुआ तो शायद इनको समझ आ गई होगी कि तुम्हारे तानाशाही व् अनएथिकल पूँजीवाद रवैये से जब तुम एथिकल पूंजीवादी उदारवादी जमींदारों को लूटने चलते हो तो कैसा महसूस होता है|
यह किसान आंदोलन लड़ाई ही अनएथिकल पूँजीवाद (फंडियों की वर्णवादी मानसिकता वाला व्यापार) बनाम एथिकल पूंजीवादी (उदारवादी जमींदार) है| जो सामंती जमींदार (वर्णवादी सोच वाले) हैं जैसे कि आरएसएस का किसान संघ; यह तो आज भी धड़ मारे पड़े हैं| सुनी है अब 8 सितंबर से आ रहे हैं किसान संघ वाले घड़ियाली आंसुओं वाला अपनापन दिखाने| वर्णवाद रहित उदारवादी जमींदारों सावधान, बचाना इनसे अपने आंदोलन को| इनको यूपी में सत्ता जाती दिख रही है, बस वहां नैया पार लगे, इतने तक साथ दिखने के आदेश हुए होंगे इनको; वरना 9 महीने तो ना दिखे ये कहीं भी| यह दूसरा उदाहरण आपकी unity की ताकत का की पावर में बैठे हुए भी अब आपके साथ दिखने लालायित हुए जाते हैं|

प्रकृति-परमात्मा-पुरखे जब साथ लग के किसी चीज को जिताने में साथ आते हैं तो ऐसा ही होता है:
गठवाला खाप व् बाल्याण खाप में फूट डलवा के आंदोलन को तोड़ने का आखिरी प्रयास था क्या फंडियों का, जो इतना आशाहीन हो चुके अपने "डिवाइड एंड रूल" के पैंतरे आजमा के कि आरएसएस का किसान संघ 9 महीने चुप व् विरोध में रहने के बाद अब 8 सितंबर से 525 जिलों में किसान आंदोलन के समर्थन में उतरेगा? बच के रे बाबा इन घड़ियालों से; जरूर यूपी-उत्तराखंड-पंजाब इनके हाथ से जा रहे हैं 2022 में यह जंच गई होगी इनको बस यह बच जाएँ थारे साथ घस्स के इतने तक की दौड़ होगी इनकी; वरना जिनकी सरकार हो उनको यह नाटक करने की जरूरत क्यों? जो एक बार मोदी को बोल दें तो आज की आज फैसला हो जाए, तो यह स्वांग क्यों?
गजब तालमेल बैठा हुआ है कि किसान संयुक्त मोर्चा स्तर से ले खाप स्तर, हर जगह फूट की कोशिशें कर ली; परन्तु दाल ना गल रही अबकी बार फंडियों की|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 18 August 2021

बाबा गुलाम मोहम्मद जौला साहब बोले व् बुलवाये : "हर-हर महादेव, अल्लाह हू अकबर"!

एक तरीका अंधभक्तों का है जो डंडा दे के भी लोगों से "जय श्री राम" बुलवाने को निताने हुए रहते हैं और एक तरीका उदारवादी जमींदारों के प्यार-मोहब्बत का है कि मुसलमान "हर-हर महादेव" बोलता है तो हिन्दू "अल्लाह-हू-अकबर"| यह वीडियो मारो उनके मुंह पर जो कहते हैं कि मुस्लिमों से यह बुलवा के दिखा दो, वह बुलवा के दिखा दो व् खामखा भड़का के आपके अंदर मुस्लिमों पे प्रति जहर भरते हैं व् दूसरी तरफ आपके ही धर्म में आपके प्रति 35 बिरादरियों को भड़का के रखते हैं| पुरखों की लाइन पर चलो, उससे सर्वोत्तम कोई मार्ग नहीं|

बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के बाद आज फिर से यह नारे वापिस लौट आए हैं "भारतीय किसान यूनियन" की महापंचायतों में! यह कोई कम बड़ा हासिल नहीं किसान आंदोलन का व् किसान आंदोलन को तोड़ने वाले फंडियों की करतूतों का!

चौधरी चरण सिंह से होते हुए पीछे सर छोटूराम व् उनसे पहले सरदार अजित सिंह की "किसान-मजदूर-व्यापारी" वाली राष्ट्रीय राजनीति के नए आगमन का आगाज होता दिख रहा है|

1 - सरदार अजित सिंह - 1907 के "पगड़ी संभाल जट्टा" किसान आंदोलन के प्रणेता|
2 - सर छोटूराम - मंडी-फंडी नाम के दुश्मन को सही से जेहन में बिठवा देने वाला मसीहा|
3 - चौधरी चरण सिंह - अपने से पहले वाली प्रधानमंत्री को करप्सन चार्जेज में जेल दिखा देने वाला नेता जिसका पूरे देश में इकलौता ऐसा पोलिटिकल घराना जिसकी आगे की 3 पीढ़ियों तक में किसी पे एक सुई तक के घपले का करप्शन चार्ज नहीं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

https://www.youtube.com/watch?v=lSyG0iIr2Mw

Friday, 13 August 2021

बाड़ का जवाब बाड़ से दो; पर कैसी बाड़?

इस बार 15 अगस्त 2021 के मौके पर लालकिले पर लॉजिस्टिक्स कंटेनर्स की ऊँची दीवारों बारे कोई कहता है कि:

1) 56 इंची किसानों से डर गया|
2) किसानों को बदनाम कर रहा है|

इन दोनों बिंदुओं में थोड़ी बहुत सच्चाई तो है परन्तु इनसे भी बड़ी वजह व् दूरगामी राजनीति व् कूटनीति के तहत यह तथाकथित स्वघोषित स्वर्ण जमात के बच्चों में किसानों के प्रति तुच्छ भावना भर रहा है, उनके अंदर किसानों के प्रति उमड़ रहे इमोशंस को रोकना चाहता है, वह नहीं चाहता कि उनकी जमात का कोई व्यक्ति किसानों को अपने बराबर भी समझे, अपितु किसानों में सिर्फ दुश्मन देखे| वही नश्लवाद अलगाववाद की विश्व की सबसे धूर्त्तम वर्णवादी थ्योरी| वह यह दुरुस्त करना चाहता है कि तथाकथित स्वघोषित स्वर्ण समाज में कोई किसानों का हितैषी ना ऊठ खड़ा हो|

सबको मालूम है कि 10 दिन में 9 महीने होने को हैं किसान आंदोलन को; इन्होनें जहाँ किसानों का रास्ता रोका था वह वहीँ बैठे हैं| वहां से रामलीला मैदान (यही धरनास्थल निर्धारित करके चले थे किसान) तक आने की जद्दोजहद नहीं की; तो वह क्या ख़ाक ही उसके प्रोग्राम को डिस्टर्ब करेंगे| 26 जनवरी पे भी बाकायदा पुलिस परमिशन से तो ट्रेक्टर-मार्च निकाला था व् जो भी निर्धारित रुट से आगे गए वह इस सरकार की कूटनैतिक मंशा के तहत ही गए थे| बाद में इनकी वह मंशा पकड़ी भी गई थी|

वैसे जरूरत पड़ने पर यह अपने हिसाब से किसान हितैषी भी उतारेंगे इनके मध्य से ही, क्रेडिट लेने हेतु कि देखो जीत हुई तो हमारी वजह से ही हुई| ठीक वैसे ही जैसे सुप्रीम कोर्ट में खापों के केस में जब खाप चौधरियों की दलीलों के आगे सुप्रीम कोर्ट के जज तक पस्त हो गए और लगा कि यह तो केस जीत जाएंगे (क्योंकि मीडिया ट्रायल्स व् बदनामी के प्रोपगंडा से बनाए माहौल से केस नहीं जीते जाया करते) तो इनके अपने बीच से ही एक रिटायर्ड आर्मी पर्सनल उतारा गया था| ताकि यह दिखे कि हम तो इस लड़ाई में आपके साथ थे व् जीत का कुछ क्रेडिट इनके बाँटें भी आवे वरना केस हार जाते तो खापों के सर्वनाश की सबसे बड़ी होली यही जलाते; वह भी खापों को अपने ही तथाकथित धर्म का बताने के बावजूद| शुरू के लगभग 3 साल जब इस केस की मुख्य लड़ाई लड़ी गई थी, तब कहीं नहीं दिखे थे ये; अपितु बाट जोह रहे थे कि दिखां हार ही जाएँ केस|

बाद में इस पंचायती को मैंने बहुत अच्छे से ऐसे मैटर्स पर चेक किया कि यह कितना बड़ा पंचायती है| 2 मामले ऐसे थे जिनमें एक पार्टी इस पंचायती की बिरादरी की थी, परन्तु दोनों में फैसले करवाने से टरका गया|

खैर, इसको बोलते हैं अपनी अगली पीढ़ी की इनके अनुसार इनके लिए गैर-जरूरी लोगों से मानसिक बाड़ करना| आप भी कर लो अपनी पीढ़ी की इन फंडियों से बाड़; बाड़ का जवाब बाड़ से दो!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक



Thursday, 12 August 2021

जनसंख्या में आधा प्रतिशत होते हुए भी कभी जैन धर्म, फंडियों के षड़यत्रों का शिकार क्यों नहीं हुआ या होता?

रामरहीम, रामपाल, आशाराम यह आसानी से इनके शिकार कैसे हो जाते रहे हैं? यहाँ तक कि सिखी को भी इन्होनें टारगेट किया न्यूनतम एक दशक (1984-1994) तो मिटाने के जूनून तक किया| 2000 से ले 2016-17 तक खाप भी खूब टारगेट करवाई? तो ऐसा क्या है कि इन सबसे जनसख्यां में कई गुणा कम होने पर भी जैनी कभी इनके निशाने पर नहीं आते?

आप कहेंगे पैसा?
क्या पैसा बिना किसी स्ट्रेटेजी के ही आ जाता है किसी के पास? तो क्या हैं वो स्ट्रेटेजी, जिनके बूते यह पैसा भी हासिल करते हैं व् विश्व में महाधूर्तों में आने वाले फंडियों की बिना एक पत्ता खुड़काये नकेल डाले रखते हैं? कुछ एक जो मैंने समझी वो यह कही जा सकती हैं:
1 - जैनी, सूचना-तंत्र पर बेहताशा इन्वेस्ट करता है| हर एक की गुप्त सीआईडी करवाता है; व इसके आधार पर जब जहाँ जिसको मारना होता है, उसको बौद्धिक और चारित्रिक कमजोरी के बल पर मारता है|
2 - "किनशिप" व् "सरजोड़" में यह सबसे मजबूत हैं, इसीलिए शायद सबसे थोड़े भी हैं| परन्तु आंतरिक लोकतंत्र इतना महीन मैनेज करते हैं कि एक चम्मच तक गिरने की आवाज बाहर नहीं आती इनके यहाँ की| यानि "mind-aligning" पर सबसे ज्यादा जोर देते हैं|
3 - इनकी नाक में दम करने वाले (जैसे इनकी सॉफ्ट-टार्गेटिंग, इनकी बदनामी आदि) को यह पहली-दूसरी-तीसरी आदि स्टेज पे नहीं अपितु अंतिम स्टेज पे जा के मारते हैं यानि जब इस लेवल की वाकई में नौबत आती है| इस मामले में यह इतने कटिबद्ध होते हैं कि सुनने में आता है एक बार तो इन्होनें सीधा एक शंकराचार्य को ही मरवा दिया था| तब से बताते हैं कि सनातनी कभी इनसे पंगा नहीं लेते| जबकि रामरहीम-रामपाल-आशाराम-खाप क्या बिगाड़ पाई फंडियों का? हाँ सिख धर्म ने जरूर इनको जवाब दिया परन्तु 3-4 दशक लग गए इसमें| जबकि जैनी एडवांस में भांप लेते हैं कौन किस मीजान से इन पर मुंह उठाये चला आ रहा है| और यह सम्भव होता है अपनी "कौम-कल्चर" की इंटेलेक्चुअल स्तर पर टॉप वाली "बाड़" किये रहने से|
4 - सन्यास के नाम पर फंडियों की तरह ढोंग नहीं करते, एक बार संसार तज दिया तो तज दिया| और ना ही यह सन्यास लेने पे गली-मोहल्ले मांगते फिरते व् ना ही जंगलों में जा बैठते| अपितु अपने समाज के बीच ही रहते हैं व् समाज से सोध कर-कर अपने समाज को एक सच्चे-सूचे गाइड की तरह गाइड करते हैं|
5 - दुनिया की सबसे खतरनाक नश्लवाद व् अलगाववाद की थ्योरी यानि "वर्णवाद" को यह अपने यहाँ सिरे से नकारते हैं| इनके यहाँ कोई आ गया तो वह सिर्फ जैन है| यानि एक बार जो जैनी बन गया, उसकी हर सम्भव रक्षा करते हैं|
यही वह कुछ वैल्यू-सेट हैं जिनके बूते जैनी सबसे सुरक्षित व् सबसे अमीर बने रहते हैं|
आशा है कि "किनशिप", "सरजोड़" व् "बाड़" की सामाजिक परिवेश में कितनी महत्ता है समझ रहे होंगे|
जैनियों के हिसाब का इनके सबसे नजदीक लगता समाज है उदारवादी जमींदारों व् सिखी का; बशर्ते वह अपनी "किनशिप", "बाड़" व् "सरजोड़" ढंग से कर लें|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 10 August 2021

गौत का प्यार जाति-धर्म से भी बड़ा होता है, ठीक वैसे ही जैसे जाति का प्यार धर्म से भी बड़ा होता है!

अलग जातियों के मध्य साझा गौत (गोत्र) होने पर भी गौत से क्या लगाव होता है इसकी बानगी देखने को मिली बॉलीवुड एक्टर प्रेम चोपड़ा (खत्री जाति) की नीरज चोपड़ा भाई (रोड़ जाति) को गोल्ड मैडल आने की बधाई देने के लहजे वाली वीडियो से| चोपड़ा गौत चार जातियों में साझा है रोड़, खत्री, जाट व् बाल्मीकि दलित| ऐसे ही खत्री एक जाति है तो दूसरी तरफ जाटों में खत्री एक गौत है|


यह एक सुखद अहसास है, यह होना भी चाहिए| इसमें कई लोग जातिवाद ढूंढते नजर आए; परन्तु यह भावना भिन्न जाति-गोतों के मध्य अगर ऊपर दिए उदाहरण की तरह इन अंतरों को मिटाती है तो सुखद है; बशर्ते इसका पता लगने पर भी यह भावनाएं ना बदलें तो|

मेरे दादा-दादी ने मुझे यही सिखाया कि जाति-धर्म अलग होने पर भी गौत के प्यार का लगाव नहीं बदलता व् धर्म अलग होने पर भी जाति का लगाव नहीं बदलता| मेरा गौत मलिक (गठवाला) है, जाति से जाट हूँ; परन्तु मलिक खत्री जाति में भी होता है, चमार जाति में भी व् मुस्लिम धर्म में गौत के साथ-साथ मलिक टर्की, फारस के खलीफाओं की उपाधि भी होती है|

कोई हँसे तो हँसे, परन्तु दादा-दादी की शिक्षा का इतना प्रभाव था कि स्टूडेंट लाइफ में लड़कियों से दोस्ती करते वक़्त, मैं गौत सबसे पहले देखता था; मलिक गौत की किसी भी जाति-धर्म की हुई तो बहन, अन्यथा दोस्त| आज भी किसी भी महिला से प्रोफेशनल-सोशल वजहों से जुड़ना होता है तो पहले झटके पीहर व् ससुराल के गौत पूछता हूँ; पीहर की मलिक हुई तो बहन/भतीजी/बुआ (उम्र के हिसाब से), ससुराल की मलिक हुई तो भाभी या आंटी; बाकी अन्य अपनी आपसी समझ व् आदर के अनुसार आंटी, बहन जी, दीदी, मैडम या सीधा नाम से बुलाना|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 8 August 2021

"पबनावा" रोड समाज के बड़े गामों में से एक गाम; जिसके ऐतिहासिक शोध से पता चलता है कि रोड समाज हरयाणा में औरंगजेब के जमाने से भी पहले वक्तों से बसता है!

"पबनावा" रोड समाज के बड़े गामों में से एक गाम; जिसके ऐतिहासिक शोध से पता चलता है कि रोड समाज हरयाणा में औरंगजेब के जमाने से भी पहले वक्तों से बसता है व् मराठा नहीं अपितु जाट समाज की तरह ही एक उन्मुक्त समाज है इस शोध से इसके व्यापक प्रमाण मिलते हैं:

देश के गौरव जीवेलिन थ्रो में ओलिंपिक गोल्ड लाने वाले नीरज चौपड़ा की इस आल्हादित करने देने वाली उपलब्धि के साथ ही रोड बिरादरी की आइडेंटिटी बारे भी सोशल मीडिया पर अलग-अलग पोस्टें देखी तो मुझे हरयाणा के विख्यात आर्कियोलॉजिस्ट व् फोटो एक्सपर्ट सर रणबीर सिंह फौगाट द्वारा किये व् निडाना हाइट्स वेबसाइट पर 2013 में ऑनलाइन पब्लिश किये गए इस आर्टिकल (http://www.nidanaheights.com/scv-hn-pabnava.html) का हवाला याद हो आया तो पब्लिक से साझा करने की सूझी|
इस आर्टिकल को गाम पबनावा के लोगों के बताए तथ्यों के आधार पर लिखा गया था, जो कि कुछ भ्रांतियों को स्पष्ट करता है:
1) रोड समाज, जाट समाज की भांति उन्मुक्त स्वभाव व् छवि का समाज है जो चतुर्वर्णीय व्यवस्था से अपने को जोड़ने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेता|
2) रोड समाज, यहाँ औरंगजेब के जमाने से भी पहले से बसता है (लिंक पर जा कर लेख के अंतिम भाग में पढ़ें), जो इस भ्रान्ति को दरकिनार करता नजर आता है कि रोड, पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद, यहाँ रह गए मराठे या पेशवा हैं|
3) हरयाणा में आरक्षण की बात हो या सेण्टर में, रोड समाज को जाट समाज की श्रेणी में रखा जाता है, जिस श्रेणी में कि अन्य जैसे त्यागी, बिश्नोई, जट्ट सभी चतुर्वर्णीय व्यवस्था से खुद को तटस्थ रखते हैं|
अन्य भी सर्वसमाज का आदर है व् इस सर्वसमाज आदर की बात को सर्वोपरि रखते हुए यह बात जरूर कहनी चाहिए कि जो नीरज भाई का मैडल आने के बाद, इस समाज से अपनी नजदीकी दिखा रहे हैं; उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि चाहे मिलके लड़ी आरक्षण की लड़ाई हो या अभी चल रहे किसान आंदोलन में अग्रणी समाजों के आपसी-सहयोग की बात हो या कृषक समाजो में सबसे ज्यादा समानता; जाट व् रोड समाज एक दूसरे के सबसे नजदीक बैठते हैं|
बाकी एनालिसिस पाठक खुद कर लें|
खैर, हरयाणा से व्यक्तिगत स्पर्धा में भाई नीरज चोपड़ा समेत भाई रवि दहिया व् भाई बजरंग पुनिया, तीनों को खासतौर से व् समस्त ओलिंपिक विजेताओं को बार-बार
बधाई
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जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 6 August 2021

एक अंधभक्त ने आजतक पे चौधरी राकेश टिकैत व् अंजना ॐ कश्यप की 'लखनऊ पंचायत' को प्रायोजित बताया!

आज आजतक टीवी पे अंजना ॐ कश्यप के साथ टीवी पंचायत कार्यक्रम में चौधरी राकेश टिकैत द्वारा "जयपुर हाईकोर्ट में पीछे किसी साल में 15 अगस्त के दिन संघ के बीजेपी सीएम द्वारा तिरंगे की जगह भगवा फहराने" की बात उठाने को एक अंधभक्त ने उन्हीं की दी हुई स्क्रिप्ट बताया|

सुन कर मैं चौंका भी व् बड़ी हंसी भी आई और पूछा, "अच्छा, ऐसा क्या स्क्रिप्टेड है उसमें?"
अंधभक्त बोला कि यह हमारी चाल है, राकेश टिकैत को इतना बड़ा लीडर बना के जनता की आँखें बंद करने की कि सब टिकैत पे यकीन करने लग जावें कि देखो टिकैत तो संघ के विरुद्ध बोलते हुए भी नहीं डरता|
मैंने कहा तो यह तो अच्छी बात है ना कि कोई तो लीडर है जो इनकी गलतियों पे बोलने की हिम्मत रखता है|
अंधभक्त फिर बोला, "तुम जैसे मूर्ख लोग, हमारी बातें समझ जाते तो बात ही क्या होती"|
मैं फिर अचंभित, मैंने विषयमित होते हुए पूछा कि साफ़ बोल ना? ऐसा कितने बड़े ओहदे पे है तू इनमें, जो इनकी इतने भीतर की बातें तुझे पता हैं; पी के तो नहीं बैठा?
अंधभक्त बोला कि हम, जब राकेश टिकैत का कद ऐसी-ऐसी प्रायोजित डिबेट्स के जरिए खुद पे हमले करवा के इतना ऊंचा कर देंगे कि संयुक्त किसान मोर्चा में उसका एकछत्र प्रभाव हो जाए तो टिकैत के जरिए हम अपने मनमुताबिक समझौता करवाएंगे व् सिर्फ बिलों में कुछ संसोधन करवा धरने उठवा देंगे, बाकी MSP कानून या अन्य मुद्दों पर कुछ नहीं मिलने वाला किसानों को|
मैंने कहा, "ओ भाई, धन्य हो थम और थारे सगूफे; टिकैत साहब को कोई दूध पीता बच्चा समझा है क्या? उनके पीछे 1907 से ले आज तक की किसान क्रांतियों की विरासत है, वह खुद एक राष्ट्रीय किसान नेता बाबा टिकैत के बेटे हैं| वह, तुम जैसों की चालों को देखते हुए ही बड़े हुए हैं; संयुक्त किसान मोर्चा के साथ चलते हुए कब व् कैसे तुम्हारे घुटने टिकवाएंगे देखते जाओ|"
अंधभक्त: बहम में जीना छोड़ दो|
मखा चोखा भाई, फ़िलहाल तो छोड़ नहीं सकते; हकीकत सामने होगी तो बेशक|
अंधभक्त: तो तैयार रहो, हकीकत से रूबरू होने को|
अरे यार तुम गृहयुद्ध तो नहीं करवा दोगे?
अंधभक्त: राष्ट्रभक्ति व् धर्मभक्ति निभाने को हम कुछ भी कर सकते हैं|
मैं तब से सदमे में हूँ कि यह कैसी वाली सनक है जो हर किताब, हर परिभाषा, हर वैधानिक सविंधान से परे की स्वपरिभाषित राष्ट्रभक्ति व् धर्मभक्ति घड़ के बैठे हैं जो इसके अलावा इनके पल्ले कुछ नहीं पड़ता|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

फंडी कैसे समाज में polarisation व् manipulation का गेम खेलते हैं, उसकी इस धाती से समझिए!

समझिए व् यह अंकुर जहाँ फूटता दिखे उसको वहीँ दबोचिए!

मीडिया द्वारा ऐसे शरारतपूर्ण टाइटल वाले कार्यक्रमों से हर प्रकार के नेता को दूर रहना चाहिए| यह घोर सनकी इसी तरीके से समाज में polarisation व् manipulation का खेल खेलते हैं| कृपया हो सके तो यह संदेश हर किसान नेता तक पहुँचावें व् ऐसे कार्यक्रमों का भहिष्कार करवावें|

इस तरह के टाइटल्स रख के, यह लोग पूरे 1 घंटे के प्रोग्राम में 70 बार जाट-जाट चिल्लायेंगे व् नॉन-जाट पब्लिक को जता देंगे कि यह किसान आंदोलन भी सिर्फ जाटों का है व् बीजेपी की खाट भी सिर्फ जाट खड़ी करेंगे| व् इन्हीं प्रोग्राम्स में जो भी जाट नेता चला जाएगा, उसको दिखा-दिखा फंडी ओबीसी व् दलित्स में यह प्रचारित करेंगे देखो इधर हम राष्ट्रभक्ति की बात करते हैं व् यह जाट-जाट चिल्लाए जाते हैं|

यह ऐसे टाइटल्स से प्रोग्राम ब्राह्मण, बणिया, राजपूत, अरोड़ा, खत्री या किसी अन्य जाति के नाम से क्यों नहीं करते कभी? टाइटल्स मैं सुझा देता हूँ जैसे कि, "अरोड़ा, बनेगा बीजेपी की राह का रोड़ा", "बणिया, केजरी को सपोर्ट दे, बीजेपी से कटवाएगा धनिया" या "ब्राह्मण, सबका बिगाड़ देगा सामण" आदि-आदि|

विशेष: लेखक हर जाति, हर वर्ग से प्यार करता है| परन्तु समाज में असली जातिवाद व् वर्णवाद के बीज बोने वाले मीडिया व् इन मीडिया के सलाहकार फंडियों को आईना दिखाना चाहता है कि यह हरकतें कल को तुम्हारे समाजों के टाइटल्स के साथ होने लगी तो सहन तो कर लोगे ना; या कहीं फिर आ जाओ जातिवाद-जातिवाद चिंघाड़ते?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


Tuesday, 3 August 2021

क्या है जो 8 महीने बीत जाने पर भी किसान अपने धरनों की टकसाल सी निरंतर चलाए जाते हैं?

निचौड़: यह पब्लिक संसदों व् पब्लिक की क्याण (लिहाज-लाज) मानने के दस्तूर अमेरिका-यूरोप में मिलते हैं; स्वघोषित विश्वगुरु बने फंडियों के यहाँ नहीं| आगे कभी भी भूल सर मत बैठाइयो इनको|

8 महीने किसानों को सड़कों पर बिठा के भी टस-से-मस नहीं होने की मानसिकता वह वर्णवाद है, जिसमें सिर्फ उच्च वर्ण ही सब निर्णय लेता है व् इस व्यवस्था को मानने वालों के अनुसार नीचे के वर्णों की आवाज इनके अनुसार इनके यहाँ मायने नहीं रखती| सरकार व् सत्ता का अहम् नहीं है यह जो फैसला नहीं होने दे रहा, अपितु इस सत्ता में यह ऊपर बताये वर्णवाद वाले लोग आन बैठे हैं, जो तुम्हारे द्वारा आवाज उठाने मात्र को ही इनकी तौहीन मानते हैं| जो लोग बौद्धिकता का परिचय देते हुए उछाल देते हैं ना कि राजनीति बदलने से पहले सिस्टम बदलने होंगे; अवश्य बदलने होंगे, परन्तु पहले वह सिस्टम बदलो जहाँ से वर्णवाद दिमागों में घुस के चलता है; तब तौड़ मिलेगा| यह वर्णवाद तोड़ा जाएगा, तब रास्ता पाएगा!
वरना ऐसा जुल्म, ऐसा बेशर्मपना कि स्वधर्म की सरकार में सर्वधर्म के किसान 8 महीने से देश की राजधानी की दहलीज पे इन्होनें रोक रखे, ना इनको "रामलीला मैदान" में जाने दे रहे और ना इनकी सुन रहे| ऐसा नहीं कि यह "रामलीला मैदान" जाने को इनके मोहताज हैं, जाने को तो अपनी आई पे यह सीधे संसद में जा बैठें, परन्तु देश के कानून-कायदों व् सविंधान में विश्वास की मर्याद ना टूटे; इसलिए बॉर्डर्स पर ही शांति धारे अपने धरनों की टकसाल सी चलाए जाते हैं|
और यह जो 8-8 महीने से सड़कों पर बैठ के हौंसले नहीं छोड़े हैं, यह आते ही उस सिस्टम से जो हैं वर्णवाद के बिल्कुल विपरीत है यानि मुख्यत: खेड़ों, खापों, निहंगों व् मिसलों वाले लोग| खेड़ों, खापों, निहंगों व् मिसलों वालो व् अन्य इस जैसी विचारधारा के लोगो ख़ुशी मनाओ व् गर्व करो खुद पर कि इंडिया में वाकई विश्व स्तर का कुछ है, जो अमेरिका-यूरोप से मिलता है तो यह आपका स्वछंद पब्लिक ओपिनियन व् सामूहिक लीडरशिप पर चलने वाला सिस्टम; जो अधिनायकवादी फंडियों को मुसलमानों से ले ईसाईयों से भी ज्यादा चुभता है| फंडी इन्हीं दो धर्मों को इनका सबसे बड़ा दुश्मन बताते हैं ना? नहीं, इनको सबसे ज्यादा यह विचारधारा हजम नहीं; जो ताकत बन किसानों को 8 महीने होने के बाद भी यथावत जमाए हुए हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 30 July 2021

जिसकी जितनी विधवा औरतें, विधवा आश्रमों में सड़ती हैं, वह जाति, वह वर्ण, वह वर्ग उतना ही बड़ा स्वर्ण व् कुलीन!

इस देश की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यहाँ स्वर्ण व् कुलीन वह समाज कहलाता है जिसकी सबसे ज्यादा औरतें विधवा होने पर, दिवंगत पति की प्रॉपर्टी से बेदखल कर हरद्वार से हुगली तक के व् वृन्दावन के विधवा आश्रमों में आजीवन सड़ने हेतु फेंक दी जाती हैं| अगर इस स्वघोषित स्वर्ण व् कुलीन वर्ग को इसकी औकात में रखना है तो इसकी यह कमजोर नश दबाओ| इन अबला-असहाय औरतों को, जो कि इन विधवा आश्रमों में अघोषित वेश्याओं सी जिंदगी जीने को मजबूर होती हैं, इनको इन स्वघोषित स्वर्ण-कुलीनों के चंगुल से छुड़वाने का अभियान चलाओ; पहले इस विषय पर सार्वजनिक चर्चाएं ही चल जाएँ तो फिर देखो इन तथाकथित सर्वणों के घमंड, ज्ञान, manipulation व् polarisation स्किल्स का कैसे कूप सा धधक-धधक जलता है|

और कुछ समाज ऐसे हैं जो विधवाओं को पुनर्विवाह की व्यवस्था दे कर भी, दिवंगत पति की प्रॉपर्टी पर उसका हक़ आजीवन यथावत रख कर भी, क्रूर-तालिबानी-निर्दयी बतवा दिए जाते हैं व् वह समाज अपनी इस इतनी पॉजिटिव व् महान मानवता व् जेंडर सेंसिटिविटी की KINSHIP को इतना भी प्रचारित व् अपनी औरतों में नहीं जगाते कि वह समाज विधवाओं को विधवा आश्रमों में साड़ने वाले तथाकथित स्वर्ण परन्तु नियत व् नीति से फंडी समाज, उसकी सॉफ्ट-टार्गेटिंग से अपने आपको बच/बचा सकें| असली स्वर्ण ये हैं जो फंडियों की तुलना में महिला के प्रति इतनी वास्तविक कुलीनता व् सभ्यता बरतते हैं, परन्तु ढंग से अपनी KINSHIP को carry-forward नहीं करवाने के चलते क्या-क्या तो नहीं झेलते ये, 35 बनाम 1 से ले क्या-क्या नहीं?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक